Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
06-21-2018, 12:12 PM,
#16
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा सेक्सी हवेली का सच -11 लेकर आपके सामने हाजिर हूँ अब आप कहानी का मज़ा लीजिए

"मैं कुच्छ ऐसे ही दीवार के साथ लगी नंगी ही खड़ी रही" बिंदिया ने अपनी बात जारी रखी " मुझे यकीन नही हो रहा था के जिसे मैं एक छ्होटा बच्चा समझती थी वो अभी अभी मेरी गान्ड मारके गया है. समझ नही आ रहा था के मेरा बलात्कार हुआ है या मैने अपनी मर्ज़ी से अपनी गान्ड मराई है. तभी मुझे पायल के आने की आवाज़ सुनाई दी तो मैने जल्दी से कपड़े पहने"

"चंदर ने इस बारे में क्या कहा?" रूपाली ने पुचछा

"वही तो बात है ना मालकिन. आज तक मेरी चंदर से उस दिन के बारे में कोई बात नही हुई है. बस जब उसका दिल करता है तो वो मेरे पास आके इशारे से समझा देता है और अगर मेरा दिल करता है तो मैं उसे इशारा कर देती हूँ. हम में से कोई भी इस बारे में चुदाई हो जाने के बाद बात नही करता. बाकी वक़्त हमारा रिश्ता वही रहता है जो हमेशा से था." बिंदिया ने जवाब दिया

"ह्म्‍म्म्मम" रूपाली ने हामी भारी

"उस दिन वो पूरा दिन गायब रहा और रात 9 बजे से पहले घर नही आया. जब वो आया तो पायल सो चुकी थी पर मैं जाग रही थी. वो अपनी चारपाई पर जाकर चुपचाप लेट गया. खाना भी नही माँगा और सो गया. पर मेरी आँखों से नींद गायब थी. दोपहर को मेरी गान्ड मारके उसने मेरे अंदर एक आग लगा दी थी. मैं कई साल से नही चुदी थी और उस दिन मेरा दिल बेकाबू हो रहा था. समझ नही आ रहा था के क्या करूँ पर सो ना सकी. आधी रात के करीब हुलचूल महसूस हुई तो मैने चादर हटाके देखा तो वो मेरे बिस्तर के पास खड़ा था. अंधेरे में हम एक दूसरे को देख नही सके पर समझ गया था के मैं जाग चुकी हूँ. मैं थोड़ी देर ऐसे ही लेटी रही और वो यूँ ही खड़ा हुआ मुझे देखता रहा. मुझे आज तक नही पता के मैने कैसे किया पर कुच्छ देर बाद मैं अपनी चारपाई पर एक तरफ को हो गयी. वो इशारा समझ गया के मैं उसे अपनी पास आके लेटने के लिए कह रही हूँ. वो फ़ौरन चारपाई पर चढ़ गया और मेरे पास आके लेट गया.

"मैं उसकी तरफ पीठ करके लेटी थी और वो मेरा चेहरा दूसरी तरफ था. वो सीधा लेटा हुआ था. कुच्छ पल यूँ ही गुज़र गये. जब उसने देखा के मैं बस चुपचाप लेती हूँ तो उसने मेरी तरफ करवट ली और मेरे कंधे पर हाथ रखा. मुझे लगा के वो मुझे अपनी तरफ घुमाएगा पर उसने धीरे धीरे मेरे कंधे को सहलाना शुरू कर दिया और उसका हाथ धीरे धीरे मेरी पीठ से होता हुआ फिर मेरी गान्ड तक आ पहुँचा. उसने थोड़ी देर पकड़कर मेरी गान्ड को दबाया और पिछे से ही हाथ मेरी टाँगो के बीच घुसकर मेरी चूत टटोलने लगा. इस वक़्त उसे मेरी तरफ से किसी इनकार का सामना करना नही पड़ रहा था. उसने मेरी टाँगो में हाथ घुसाया और मैने उसे रोका नही. उसने मेरी चूत पर हाथ फेरना शुरू किया और तब भी मैं कुच्छ नही बोली. पर हां उसकी इस हरकत ने मेरे जिस्म में जैसे आग लगा दी. मेरी साँस भारी हो गयी और मेरे मुँह से एक आह निकल गयी. वो समझ गया के मैं भी उसके साथ हूँ और मेरे साथ सॅट गया. उसका लंड फिर मेरी गान्ड पर आ लगा और तब मुझे महसूस हुआ के वो अपना पाजामा उतार चुका था. उसके लंड और मेरी गान्ड के बीच फिर से सिर्फ़ मेरा घाघरा ही था जिसे उसने फिर एक बार उपेर को खींचना शुरू कर दिया. मुझे उसकी इस हरकत से फ़ौरन दिन की कहानी याद आ गयी और मेरा दिल सहम गया के वो कहीं से फिर से लंड गान्ड में ना घुसा दे. ये ख्याल आते ही मैं फ़ौरन सीधी होकर लेट गयी जैसे अपनी गान्ड को अपने नीचे करके उसे बचा रही हूँ. मेरा घाघरा वो काफ़ी उपेर उठा चुका था और मेरे यूँ अचानक सीधा होने से और भी उपेर हो गया. मैं जाँघो तक नंगी हो चुकी थी. मेरी दोनो आँखें बंद थी और मैं खामोशी से उसकी अगली हरकत का इंतेज़ार कर रही थी. दिल ही दिल में मुझे अपने उपेर हैरानी हो रही थी के मैं उसे रोक क्यूँ नही रही. वो मेरे बेटे जैसा था और उसे अपनी चूत देना एक पाप था पर दूसरी तरफ दिल से ये आवाज़ आ रही थी के बेटे जैसा ही तो है. मेरा अपना बेटा तो नही तो पाप कैसा. मैं इसी सोच में थी के मुझे अपने उपेर वज़न महसूस हुआ. आँखें खोली तो देखा के वो मेरे उपेर आ चुका था. मेरा घाघरा उसने और उपेर खिच दिया था और मेरी चूत खुल चुकी थी. वो मेरे उपेर आया और हाथ में लंड पकड़कर चूत में डालने की कोशिश करने लगा" बिंदिया बोले जा रही थी. अब उसे भी अपनी चुदाई की दास्तान सुनने में मज़ा आ रहा था.

"सीधे चूत में लंड? उससे पहले कुच्छ नही?" रूपाली ने पुचछा

"पहली बार ज़िंदगी में किसी औरत के नज़दीक आया था मालकिन और वो भी सिर्फ़ 16-17 साल का लड़का. उसे तो बस चूत मारने की जल्दी थी. उसे क्या पता था के एक औरत को कैसे गरम तैय्यार करते हैं. उसे तो ये तक नही पता था के चूत में लंड कैसे डालते हैं. मेरी दोनो टांगे बंद थी और वो उपेर मेरे बालों पे लंड रगदकर घुसने की जगह ढूँढ रहा था. मेरी दोनो टाँगें उसकी इस हरकत से अपने आप खुल गयी और वो ठीक मेरी टाँगो के बीच आ गया. लंड को उसने फिर चूत पर रगड़ा तो मेरे मुँह से फिर आह निकल गयी. चूत पूरी तरह गीली हो चुकी थी पर वो अब भी लंड घुसाने में कामयाब नही हो पा रहा था. लंड को चूत पर रखकर धक्का मारता तो लंड फिसलकर इधर उधर हो जाता. जब खुद मुझसे भी बर्दाश्त नही हुए तो मैने अपने घुटने मॉड्कर टांगे उपेर हवा में कर ली. गान्ड मेरी उपेर उठ चुकी थी और चूत लंड के बिल्कुल सामने हो गयी. नतीजा ये हुआ के उसके अगले ही धक्के में लंड पूरा चूत में उतरता चला गया. बहुत दिन बार चुड रही थी इसलिए मेरे मुँह से आह निकल गयी और जैसी की मुझे उम्मीद थी, लंड चूत में घुसते ही उसके पागलों की तरह धक्के शुरू हो गये. उसने कुच्छ नही किया था. ना मुझे चूमा, ना मेरे जिस्म में कोई रूचि दिखाई. बस लंड चूत में डाला और धक्के मारने शुरू. 10-12 धक्को में ही उसके लंड ने पानी छ्चोड़ दिया और उसने मेरी चूत को भर दिया. मैं झल्ला उठी. मुझे अभी मज़ा आना शुरू ही हुआ था के वो ख़तम हो गया. मुझे लगा के शायद वो रुकेगा पर उसने लंड चूत में से निकाला, मेरे उपेर से उठा और पाजामा उठाकर अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया"

"और तू अभी तक गरम थी?" रूपाली ने पुचछा

"हां और क्या. मेरे जिस्म से तो जैसे अँगारे उठ रहे थे. मैं यूँ ही पड़ी रही. घाघरा उपेर पेट तक चढ़ा हुआ और चूत खुली हुई. मुझे ये तक फिकर नही रही के अगले ही बिस्तर पर मेरी जवान बेटी सो रही है जो किसी भी पल जाग सकती थी.चंदर मुझे ऐसी हालत में छ्चोड़के गया था के मेरा दिल कर रहा था उसे एक थप्पड़ जड़ दूं. मेरे हाथ मेरी चूत तक पहुँच गये और मैं खुद ही अपनी चूत को टटोलने लगी. उसका पानी अब तक चूत में से बाहर बह रहा था. मैं अपनी चूत मसलनी शुरू की पर दी पर जो मज़ा लंड में था वो अपने हाथ में कहा. जब मुझसे बर्दाश्त ना हुआ तो मैं बिस्तर से उठी और खुद चंदर की चारपाई के पास जा पहुँची. वो सीधा लेटा हुआ था और उसने अब तक पाजामा नही पहना था. मुझे हैरत हुई के मेरी तरह उसे भी पायल के जाग जाने की कोई परवाह नही थी. उसने गर्दन घूमकर मुझे देखा और मैने उसकी तरफ. अंधेरा था इसलिए एक दूसरे के चेहरे को सॉफ देख नही सकी. मैने अपना घाघरा खोला और नीचे गिरा दिया. नीचे से पूरी तरह नंगी होकर मैं उसकी चारपाई पर चढ़ि. उसने हिलकर साइड होने की कोशिश की पर मैने उसका हाथ पकड़कर उसे वहीं लेट रहने का इशारा किया और अपनी टाँगें उसके दोनो तरफ रखकर उसके उपेर चढ़ गयी. उसका लंड अभी भी बैठा हुआ था. मैने उसे अपने हाथ से पकड़ा और गान्ड थोड़ी उपेर उठाकर नीचे से लंड चूत पर रगड़ने लगी. वो वैसे ही लेटा रहा और मैने लंड रगड़ना जारी रखा. मेरी चूत पूरी तरह गीली और गरम थी और लंड रगड़ने से और भी ज़्यादा शोले भड़क रहे थे. थोड़ी देर लंड यूँ ही रगड़ने का अंजाम सामने आया और उसका लंड फिर खड़ा हो गया. मैने अपनी गान्ड नीचे की और लंड पूरा चूत में ले लिया." बिंदिया ने जैसे बात ख़तम करते हुए कहा

"तो तूने भी उसे बता दिया के तू भी वही चाहती है?" रूपाली ने पुचछा

"और क्या करती मालकिन. जिस्म में मेरे भी आग लगी हुई थी. वो बच्चा था इसलिए बार बार जल्दी से झाड़ जाता. उस पूरी रात मैं उससे चुड़वति रही. तब तक जब तक की मेरी चूत की आग ठंडी नही हो गयी. उस रात हम दोनो का रिश्ता पूरा बदल गया पर हमने कभी इस बारे में बात नही की. तबसे अब तक वो हर रोज़ मुझे चोद्ता है. दिन में कम से कम 3 बार तो चोद ही लेता है और कम्बख़्त ने गान्ड भी नही बख़्शी. कभी चूत मारता है तो कभी गान्ड." बिंदिया हस्ते हुए बोली

"और तू मरवा लेती है? दर्द नही होता?" रूपाली ने फिर हैरत से पुचछा

"होता है पर जब लंड घुसता है तब. बाद में मज़ा आने लगता है. अरे मालकिन औरत को लंड घुसने से मज़ा ही आता है. अब वो लंड चाहे उसके मुँह में घुसे, या चूत में या गान्ड में" (दोस्तो यही बात तो आपका दोस्त राज शर्मा कहता है जिस औरत ने अपने तीनो छेदों का मज़ा नही लिया तो क्या खाक सेक्स किया )बिंदिया ऐसी बोली जैसे सेक्स पर कोई ग्यान दे रही ही रूपाली को

"पर उसके लंड से काम चल जाता है तेरा?" रूपाली ने पुचछा

"मतलब" बिंदिया आँखें सिकोडती बोली

"अरे देखा था आज मैने दिन में जब तू उसके लंड पर कूद रही थी. थोडा छ्होटा ही लगा मुझे तो" रूपाली ने जवाब दिया

"बच्चा है वो अभी मालकिन. इस उमर में एक आम आदमी का जितना होता है उतना ही है उसका भी. पर ये कमी वो दूसरी जगह पूरी कर देता है. शुरू शुरू में जल्दी झाड़ जाता था पर अब तो आधे घंटे से पहले पानी छ्चोड़ने का नाम नही लेता. और चूत मारे या गान्ड, धक्के ऐसे मारता है के मेरा पूरा जिस्म हिला देता है. दिन में 3-4 बार चोद्के भी दोबारा चोदने को तैय्यार रहता है" बिंदिया बोली

"कभी पायल को शक नही हुआ?" रूपाली ने फिर सवाल किया

"पता नही. शायद हुआ हो. हम अक्सर ऐसे वक़्त ही चोद्ते थे जब वो कहीं बाहर गयी होती थी पर कह नही सकती." बिंदिया ने जवाब दिया

रूपाली और बिंदिया अब ऐसे बात कर रहे थे जैसे बरसो की दोस्ती थी. रूपाली जानती थी के उसका तीर निशाने पर लगा है. बिंदिया बॉटल में उतार चुकी है. वो रूपाली को वो सब बता देगी जो वो मालूम करना चाहती है और इस बात का किसी से ज़िक्र भी नही करेगी. रूपाली अच्छी तरह जानती थी के अगर ठाकुर को ये पता चला के वो उनके खानदान के बारे में नौकरों से पुछ्ती फिर रही है तो ये रूपाली के लिए ठीक ना रहता. और उपेर से वो ठाकुर को दुख भी नही पहुँचना चाहती थी इसलिए इस बात को गुप्त रखना चाहती थी.

बातों बातों में दिल धंले को आ गया था इसलिए रूपाली जानती थी के अब उसे वापिस जाना पड़ेगा. उसने बिंदिया को अगले दिन पक्का हवेली आने को कहा और अपनी कार की तरफ बढ़ चली. वो चाहती थी के अगले दिन बिंदिया हवेली आए और वो उससे वो सब मालूम कर सके जो वो करना चाहती थी.

कार चलाती रूपाली हवेली पहुँची तो हैरान रह गयी. हवेली के कॉंपाउंड में पोलीस की जीप खड़ी थी और कुच्छ आदमी एक तरफ खड़े नीची आवाज़ में कुच्छ बात कर रहे थे. रूपाली कार से उतरी और आगे बढ़ी ही थी के एक तरफ से आवाज़ आई

"सलाम अर्ज़ करता हूँ मोहतार्मा"

वो पलटी तो देखा के इनस्पेक्टर मुनव्वर ख़ान खड़ा हुआ था

"क्या हो रहा है ये सब?" रूपाली ने पुचछा

"लाश मिली है एक." इनस्पेक्टर ने जवाब दिया "यहीं हवेली के कॉंपाउंड से"

"कैसी लाश?" रूपाली ने चौंकते हुए पुचछा

"ओजी लाश तो लाश होती है" ख़ान सिगेरेत्टे का काश लेता हुआ बोला "ऐसी लाश वैसी लाश मैं कैसे बताऊं. लाश तो सब एक जैसी ही होती हैं"

"पिताजी कहाँ है?" रूपाली ने ख़ान की बात सुनकर झुंझलाते हुए पुचछा

"रूपाली" ठाकुर की आवाज़ आई. रूपाली ने फ़ौरन अपने सर पर सारी का पल्लू डाल लिया. औरों के सामने तो उसे यही दिखना था के वो अब भी ठाकुर से परदा करती है. भले अकेले में शरम के सारे पर्दे उठा देती हो.

"आप अंदर जाइए. हम आपको बाद में बताते हैं" ठाकुर ने उससे कहा और खुद ख़ान से बात करने लगे

रूपाली धीमे कदमो से हवेली के अंदर आ गयी. उसने आते हुए चारों तरफ नज़र दौड़ाई पर लाश जैसा कुच्छ दिखाई नही दिया. हां बाहर खड़े आदमी उसे देखकर नीची आवाज़ में कुच्छ बात कर रहे थे. अपने कमरे में आकर रूपाली फ़ौरन खिड़की के पास आई पर जिस तरफ उसके कमरे की खिड़की खुलती थी वहाँ से कुच्छ नज़र नही आ रहा था. थोड़ी देर बाद पोलीस की जीप हवेली के दरवाज़े से बाहर निकल गयी. उसमें बेता ख़ान अब भी सिगेरेत्टे के कश लगा रहा था.

कपड़े बदलकर रूपाली नीचे आई.

"वो ख़ान क्या कह रहा था. लाश?" उसने बड़े कमरे में परेशान बैठे ठाकुर से पुचछा

"हां. हवेली के पिच्चे के दीवार के पास मिली है. लाश क्या अब तो सिर्फ़ हड्डियाँ बची थी. सिर्फ़ एक कंकाल" ठाकुर ने परेशान आवाज़ में कहा

"हवेली में लाश?" रूपाली को जैसे यकीन नही हो रहा था "किसकी थी?"

"क्या पता" ठाकुर ने उसी सोच भारी आवाज़ में कहा "अब तो सिर्फ़ हड्डियाँ ही बाकी थी."

"पर यहाँ तो कोई आता जाता भी नही. बरसो से हवेली में कोई आया गया नही" रूपाली परेशान सी बोली

"यही बात तो हमें परेशान कर रही है. हमारी ही हवेली में एक लाश गाड़ी हुई थी और हमें ही कोई अंदाज़ा नही? ऐसा कैसे हो सकता है?" ठाकुर की आवाज़ में गुस्से झलक रहा था
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