Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
06-21-2018, 12:08 PM,
#5
RE: Sex Chudai Kahani सेक्सी हवेली का सच
रूपाली अपने ससुर से अलग हुए और फिर कमर पे तेल लगाने लगी. फिर उसने अपने हाथों से ठाकुर को इशारा किया के वो अपनी दोनो बाँहे उपेर उठाए. ठाकुर ने आर्म्स उपेर उठाई और रूपाली जिस्म के दोनो तरफ तेल लगाने लगी. इस कोशिश में वो ठाकुर के काफ़ी करीब आ चुकी थी और उसकी चुचियाँ फिर ठाकुर की कमर पे दबने को तैय्यार थी. रूपाली से और रहा नही गया. उसकी अपनी वासना उसे पागल कर रही थी. उसने हाथ जिस्म ठाकुर के साइड से सरका कर उसकी छाती पे तेल लगाने लगी. ऐसा करने से उसे अपने ससुर के और करीब आना पड़ा और उसकी छातियाँ फिर ठाकुर की कमर से जा लगी.उसके जिस्म में जैसे गर्मी और ठंडक एक साथ उठ गयी. ठंडक मर्दाना जिस्म के इतना करीब होके और गर्मी उसकी टाँगो के बीच उसकी चूत में. वो ठाकुर के सीने पे तेल मलने लगी और पिछे हाथ हिलने से उसकी दोनो छातियाँ ठाकुर की कमर पे घिसने लगी.

शौर्या सिंग का अब खुद पे काबू रखना मुश्किल हो गया था. रूपाली अब उनकी कमर पे तेल लगा रही थी और पिछे से उसकी दोनो छातियाँ उनकी कमर पे दब रही थी. ये बात सॉफ थी के बहू अपनी चुचियों को उनकी कमर पे और ज़्यादा घिस रही थी, और उनके करीब होके चुचियाँ कमर पे दबा रही थी. उसके मुँह से निकलती आह सीधा उनके कानो में पड़ रही थी. ठाकुर ने अपना हाथ बहू के हाथ पे रखा और उसे सहलाने लगे. दूसरे हाथ से उन्होने अपनी धोती थोड़ी ढीली की और लंड को बाहर निकाला. रूपाली उनसे लगी खड़ी थी. हाथ छाती पे तेल लगा रहे थे, चुचियाँ कमर पे दब रही थी और उसका सिर उनके कंधे पे टेढ़ा रखा हुआ था. उन्हें रूपाली का हाथ धीरे से पकड़के नीचे किया और अपने लंड पे ले जाके टीका दिया.

रूपाली की वासना से हालत खराब थी. वो और ज़ोर से अपने ससुर के साथ चिपक गयी थी और छातियाँ ज़ोर ज़ोर से उनकी कमर पे रगड़ रही थी. वो जानती थी के अब तक शौर्या सिंग जान गये होंगे के वो भी गरम हो चुकी है पर इस बात की अब उसे कोई परवाह नही थी. वो उनकी छाती को अब मालिश के लिए नही सहला रही थी. अब इस सहलाने में सिर्फ़ और सिर्फ़ वासना थी. उसके मुँह से निकलती आह इस बात का सॉफ सबूत थी के वो चुदना चाहती थी. लंड लेना चाहती थी अपने अंदर. टाँगो खोल देना चाहती थी आज 10 साल बाद. उसने अपना सर ठाकुर के कंधे पे रख दिया और अपने ससुर के जिस्म से चिपक गयी. फिर धीरे से उसे एहसास हुआ के ठाकुर ने उसके हाथ को सहलाना शुरू कर दिया है. मतलब आग दोनो तरफ लग चुकी थी और दोनो को ही इस बात का अंदाज़ा था के आग पुर जोश पे है. ठाकुर के हाथ ने रूपाली के हाथ को नीचे सरकाना शुरू किया और इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाती उसके हाथ में एक लंबा सख़्त डंडा सा कुच्छ आ गया.

ठाकुर ने जैसे ही अपनी लंड पे रूपाली का हाथ खींचा तो रूपाली ने हाथ फ़ौरन वापिस खींचना चाहा. पर ठाकुर की गिरफ़्त मज़बूत थी. उसने हाथ हटने ना दिया और अपने लंड पे रूपाली के हाथ से मुट्ठी सी बना दी. रूपाली ने फिर हाथ हटाने की कोशिश की पर हटा नही पाई. एक औरत का हाथ अपने लंड पे ठाकुर को अलग ही मज़ा दे रहा था. इस लंड का आखरी बार इस्तेमाल कब हुआ था ये ठाकुर को याद तक नही था. उसने धीरे धीरे रूपाली के हाथ को आगे पिछे करना शुरू कर दिया और लंड को उसके हाथ से सहलाने लगा. थोड़ी देर बाद उसने अपना हाथ हटा लिया पर रूपाली का हाथ अपने आप लंड पे आगे पिछे होता रहा. ठाकुर के मुँह से आह आह की आवाज़ ज़ोर से निकलने लगी. तेल लगा होने के कारण बड़ी आसानी से लंड रूपाली के हाथ में फिसल रहा था. गर्मी बढ़ती जा रही थी. इतने वक़्त से ठाकुर ने चुदाई नही की थी इसलिए अब खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था. वो जानते थे के ज़्यादा वक़्त नही टिक पाएँगे वो इस गरम जिस्म के सामने.

रूपाली इस हमले के लिए तैय्यार नही थी. उसने लंड बहुत कम अपने हाथ में पकड़ा था वो भी अपने पति के बार बार ज़िद करने पर. उसने हाथ हटाना चाहा पर हटा नही पाई. ठाकुर ने अभी भी उसका हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और उसकी उंगलियाँ अपने लंड पे लपेटकर मुट्ठी सी बना दी थी. रूपाली ने फिर हाथ हटाने की कोशिश की पर फिर नाकाम रही. अब उसके ससुर ने हाथ आगे पिछे करना शुरू कर दिया था और पूरा लंड रूपाली के तेल लगे हाथ में आगे पिछे हो रहा था. ठाकुर ने थोड़ी देर बाद हाथ हटा लिया पर रूपाली ने अपना हाथ हिलाना जारी रखा. आज पहली बार वो अपनी मर्ज़ी से एक लंड को पकड़ रही थी और उसका मज़ा ले रही थी. ठाकुर के लंड की लंबाई का अंदाज़ा उसे सॉफ तौर पे हो रहा था. लग रहा था जैसे किसी लंबे मोटे डंडे पे उसका हाथ फिसल रहा हो. ठाकुर के मुँह से जैसे जैसे आह निकलती रूपाली के हाथ की रफ़्तार और तेज़ होती जाती . वो पिछे से अपने ससुर से चिपकी खड़ी थी और उसका लंड हिला रही थी. छातियाँ उसकी कमर पर रगर रही थी और नीचे से अपनी चूत ठाकुर की गांद पे दबा रही थी. धीरे धीरे ठाकुर की आह तेज़ होती चली गयी और रूपाली पागलों की तरह लंड हिलाने लगी अचानक उसके ससुर की जिस्म थर्रा उठा, एक लंबी आह निकली और एक गरम सा लिक्विड रूपाली के हाथ पे आ गिरा. ठाकुर के लंड ने माल छ्चोड़ दिया था. रूपाली ने लंड हिलाना चालू रखा और लंड से पिचकारी पे पिचकारी निकलती रही. कुच्छ रूपाली के हाथ पे गिरी, कुच्छ सामने बिस्तर पर और और ज़मीन पर. जब माल निकलना बंद हुआ तो ठाकुर की साँस भारी होनी लगी, उसका जिस्म रूपाली की गिरफ़्त में ढीला पड़ने लगा तो वो समझ गयी के काम ख़तम हो चुका है. वो ठाकुर के जिस्म से शरमाते हुए अलग हुए, तेल की कटोरी उठाई और कमरे से बाहर आ गयी.

बाहर आकर रूपाली सीधा अपने कमरे में पहुँची. आज बहुत सी चीज़ें पहली बार हुई थी. उसने पहली बार अपनी मर्ज़ी से लंड पकड़ा था, पहले बार किसी मर्दाने जिस्म से अपनी मर्ज़ी से सटी थी, पहली बार किसी मर्द के साथ गरम हुई थी और उसके और ससुर के बीच पुराना रिश्ता टूट चुका था. अब जो नया रिश्ता बना था वो वासना का था, जिस्म की भूख का था. वो ठाकुर के लंड को को तो हिलाके ठंडा कर आई थी पर खुद उसके जिस्म में जैसी आग लग गयी थी. चूत गीली हो गयी थी और लग रहा था जैसे उसमें से लावा बहके निकल रहा हो. उसके हाथ पे अभी भी ठाकुर के लंड से निकला पानी लगा हुआ था. वो अपने बिस्तर पे गिर पड़ी. टांगे खुद ही मूड गयी, सारी उपेर खींच गयी, पॅंटी सरक कर घुटनो तक आ गयी, हाथ चूत तक पहुँचा और फिर जैसे उसकी टाँगो के बीच एक जुंग का आगाज़ हो गया.

दरवाज़े खटखटाने की आवाज़ से रूपाली की आँख खुली तो देखा के सुबह का सूरज आसमान में काफ़ी उपेर जा चुका था. रात कब उसकी आँख लग गयी उसे पता तक ना चला. सुबह देर तक सोती रही. भूषण फिर जगाने आया था. उसे अपने उठ जाने का बताकर रूपाली बाथरूम में पहुँची. हालत अभी भी कल रात वाली ही थी. पॅंटी अभी तक घुटनो में ही फासी हुई थी और ठाकुर का माल अभी भी हाथ पे ही लगा हुआ सूख चुका था. उसने बाथरूम में पहुँचकर अपने कपड़े उतारे और नंगी खड़ी होकर फिर शीशे में देखने लगी. आज जो उसे नज़र आया वो उसने पहले कभी नही देखा था. अबसे पहले शीशे में उसे सिर्फ़ एक परिवारिक औरत नज़र आती थी जिसकी भगवान में बहुत श्रद्धा थी. पर आज उसे एक नयी औरत नज़र आई. वो औरत जो चीज़ों को अपने हाथ में लेना जानती थी. जो अपने जिस्म का का इस्तेमाल करना जानती थी. जो हर चीज़ पे काबू पाना चाहती थी. जो अब और प्यासी ना रहकर अपने जिस्म की आग मिटाना चाहती थी. और सबसे ज़्यादा, जो ये पता लगाना चाहती थी के उसके पति के साथ क्या हुआ था. कौन था जिसने एक सीधे सादे आदमी की हत्या की थी.

रूपाली ने पास पड़ी क्रीम उठाई और नीचे बाथ टब के किनारे पे बैठ गयी. उसकी चूत पे अभी भी घने बॉल थे. अब इस जगह के इस्तेमाल का वक़्त आ गया था तो इन बालों की ज़रूरत नही थी. उसने क्रीम अपने हाथ में ली और धीरे धीरे चूत पर और चूत के आस पास लगानी शुरू की. हाथ चूत पे धीरे धीरे उपेर नीचे होता रहा और रूपाली को एहसास हुआ के उसकी चूत में उसी के हाथ लगाने से फिर गर्मी बढ़ती जा रही है. वो हाथ को ज़ोर से हिलाने लगी और टांगे फेलते चली गयी. दूसरा हाथ अपने आप चुचियों पे पहुँचकर उन्हें हिलाने लगा. उसने एक अंगुली पे ज़रा ज़्यादा क्रीम लगाई और उसे धीरे धीरे चूत की गहराई तक पहुँचा दिया. दूसरी अंगुली भी जल्दी ही पहली के साथ अंदर तक उतरती चली गयी. अभी उसने मज़ा लेना शुरू ही किया था के नीचे से एक शोर की आवाज़ आई. लगा जैसे दो आदमियों में बहस हो रही है. एक आवाज़ तो उसके ससुर की थी पर दूसरी आवाज़ अंजानी लगी. उसने जल्दी से रेज़र उठाया और अपनी चूत से बॉल सॉफ करना शुरू किए.

नहा कर रूपाली नीचे पहुँची तो बहस अभी भी चालू थी. उसके ससुर एक अंजान आदमी से किसी बात पे लड़ रहे थे. दोनो आदमियों ने रूपाली को नीचे आते देखा तो खामोश हो गये.

"सोच लीजिए. मैं अब और इंतेज़ार नही कर सकता" वो अंजान शक्श ये कहकर वापिस दरवाज़े से निकल गया.मेरी सभी स्टोरी आप मेरे ब्लॉग हिन्दी सेक्सी स्टोरी ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम और सेक्सी कहानी ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम पर पढ़ सकते है

"इसकी हिम्मत दो देखो. कल तक हमारे जूते चाटने वाला आदमी आज हमारे दरवाज़े पे खड़ा होकर हमारे सामने आवाज़ उँची कर रहा है" ठाकुर ने रूपाली को देखते हुए कहा

रूपाली ने इस वक़्त घूँघट निकल रखा था क्यूंकी घर में भूष्ण भी था. इस वजह से वो कुच्छ ना बोली और ठाकुर पेर पटक कर अपने कमरे में दाखिल हो गये.

"कौन था ये आदमी" रूपाली ने किचन में आते ही भूषण से पुचछा पर भूषण ने कोई जवाब ना दिया और एक ग्लास और कुच्छ नमकीन लेकर ठाकुर के कमरे की तरफ बढ़ गया.

शाम ढाल चुकी थी. ठाकुर अब तक अपने कमरे से बाहर नही आए थे. रूपाली अच्छी तरह से जानती थी के कमरे में घुसे रहने की दो वजह थी. एक तो ये के कल रात जो हुआ उसके बाद ठाकुर उससे नज़रें मिलने से कतरा रहे हैं और दूसरा गुस्से में डूबे वो फिर शराब की बॉटल खोले बैठे होंगे. ये बात तभी सॉफ हो गये थी जब भूषण ग्लास और नमकीन लेकर ठाकुर के कमरे की तरफ गया था.

"अब वक़्त आ गया है कुच्छ बातों पे से परदा उठ जाए" सोचते हुए रूपाली ठाकुर के कमरे की तरफ बढ़ी. भूषण अपना काम निपटाके जा चुका था. हवेली में अब सिर्फ़ रूपाली और ठाकुर बाकी रह गये थे.

रूपाली अपने ससुर के कमरे में पहुँची तो देखा के वो शराब के नशे में धुत बिस्तर पे पसरे पड़े थे. उसने अंदर आकर दरवाज़ा बंद कर लिया.

वो अपने ससुर के बिस्तर के पास पहुँची और गौर से देखने लगी. ज़ाहिर था के शराब का नशा अब हद के पार जा चुका था और उन्हें कुच्छ भी खबर नही थी के आस पास क्या हो रहा है.वो दिल मसोस कर रह गयी. इस हालत में वो उसके सवालो के जवाब देना तो दूर की बात है अपना नाम तक बता दें तो बहुत बड़ी बात होगी.उसने शराब की बॉटल और ग्लास उठाकर एक तरफ रखा और ससुर को ढंग से बिस्तर पे लिटाया. कमरे में इधर उधर पड़ी चीज़ें उठाकर सलीके से जगह पर रखी और बाहर जाने के लिए मूडी पर तभी शौर्या सिंग के मुँह से एक आवाज़ सुनकर वापिस पलटी. कमरे में काफ़ी ठंडक और ठाकुर सर्दी से सिकुड़कर लेटे हुए थे. रूपाली पलटकर वापिस आई और चादर उठाकर अपने ससुर के उपर डालने लगी के तभी उसकी नाज़ुर उनकी धोती में बने हुए उभार पे पड़ी.

रूपाली का दिल एक बार फिर ज़ोर से धड़कने लगा. कल शौर्या सिंग का लंड हिलाते हुए वो उनके पिछे खड़ी थी इसलिए देख नही पाई थी. काफ़ी लंबा और मोटा था इस बात का अंदाज़ा तो उसे हो गया था पर नज़र नही पड़ी थी. उस वक़्त बैठा हुआ लंड भी किसी लंबे मोटे साँप की तरह लग रहा था. रूपाली के घुटने काँप उठे और उसे समझ नही आया के वो क्या करे. एक तरफ तो उसका दिल चूड़ने के लिए कर रहा था पर ठाकुर जिस हालत में सोए पड़े थे उसमें ऐसा कुच्छ भी हो पाना मुमकिन नही था. ठाकुर से चुदने की बात सोचकर ही रूपाली की टाँगो के बीच फिर नदी बहने लगी. वो सोचने लगी के अगर ठाकुर उसे चोद्ते तो कैसा होता पर अगर माणा कर देते तो क्या? आज सुबह जब वो उसके सामने आए थे तो उससे नज़र नही मिला पा रहे थे. ज़ाहिर था के वो कल रात मालिश करते हुए जो हुआ वो सोचकर झिझक रहे थे. कैसे भी हो आख़िर वो थे तो उसके ससुर ही और वो उनके मरे हुए बेटे की बीवी. उनकी बेटी के समान. रूपाली वहीं बिस्तर पे बैठ गयी और सोचने लगी के अगर ज़रूरत पड़ी तो ठाकुर को खुश करने के लिए उसे क्या करना चाहिए. वो बिस्तर पे बिल्कुल अनाड़ी थी. पति के साथ वो कभी उसका साथ नही देती थी. बस वो जो कहता था वो सुनती रहती थी, करती भी नही थी.

अचानक उसके दिमाग़ में अपने पति का ख्याल आ गया. वो बिस्तर पे काफ़ी कामुक था. रोज़ नयी नयी फरमाइश करता रहता था. ज़ाहिर था जो चीज़ें उसे पसंद थी वही बाकी मर्दों को भी पसंद होगी.उसने वो सब बातें एक एक करके याद करनी शुरू की. उसका पति चाहता था के वो लंड हाथ से हिलाए, उसे मुँह में लेके चूसे,चुद्ते वक़्त अलग अलग पोज़िशन में आए और भी ना जाने क्या क्या. रूपाली ने मॅन में सोच लिया के वो वही सब अपने ससुर के साथ करेगी जिसके लिए उसने अपने पति को हमेशा मना किया और उसमें से एक चीज़ थी लंड चूसना जो उसका पति उसे हमेशा बोलता था पर वो करती नही थी.

ठाकुर इस वक़्त गहरी नींद में थे. रूपाली ने एक नज़र उनके चेहरे पे डाली और फिर धोती में बंद उनके लंड पर. अगर उसने बाद में ये लंड चूसना ही है तो अभी थोड़ी प्रॅक्टीस क्यूँ ना कर ली जाए. ससुर जी अभी सो रहे हैं तो कुच्छ अगर ग़लत भी हुआ तो कुच्छ नही होगा. कम से कम उसे पता तो चल जाएगा के आख़िर करना क्या है. इन सबसे ज़्यादा जो ख्वाहिश उसके दिल में उठ रही थी वो थी लंड को देखने की.

रूपाली थोडा आयेज को झुकी और काँपते हाथो से अपने ससुर को हिलाया.

"पिताजी. सो गये क्या?" उसने इस बात की तसल्ली करनी चाही के ठाकुर सचमुच गहरी नींद में है.जब दो तीन बार हिलने पर भी ठाकुर की आँख नही खुली तो रूपाली समझ गयी के कोई ख़तरा नही. फिर भी एक आखरी तसल्ली करने के लिए उसके पास रखा एक स्टील को फ्लवरपॉट उठाया और ज़ोर से ज़मीन पे फेका.

रात की खामोश पड़ी हवेली फ्लवरपॉट गिरने की आवाज़ से गूँज उठी. खुद रूपाली के कान बजने लगे पर ठाकुर की नींद नही खुली.

अपनी तसल्ली होने पर रूपाली मुस्कुराइ और फिर ठाकुर के बिस्तर पे आके बैठ गयी. काँपते हुए हाथों के उसने फिर ठाकुर की धोती की तरफ बढ़ाया. उसका गला सूख रहा था और पूरा जिस्म सूखे पत्ते के जैसे हिल रहा था. एक तो जिस्मानी रिश्ता और वो भी अपने ही ससुर के साथ. पाप और वासना के इस मेल ने उसके रोमांच को और बढ़ा दिया था.

धीरे से रूपाली ने अपना हाथ ठाकुर के सोए हुए लंड पे रखा और सिहर उठी.लगा जैसे लोहे की कोई गरम रोड उसके हाथ में आ गयी हो. उसकी दोनो टांगे आपस में और सिकुड गयी और छ्होट की दीवारें आपस में घिसने लगी. उसने हाथ को धीरे धीरे लंड पे आगे पिछे किया और लंड की पूरी लंबाई का अंदाज़ा लिया.

"बैठा हुआ भी कितना लंबा है" रूपाली ने धीरे से सोचा

उसने धोती के उपेर से ही लंड को धीरे धीरे हिलाना और दबाना शुरू किया. आनंद की वजह से उसकी दिल की धड़कन और तेज़ हो गयी थी. आँखें मदहोश सी हो रही थी. दूसरा हाथ अपने आप उसकी चूत पे पहुँच गया और धीरे धीरे सारी के उपेर से ही उपेर नीचे होने लगा.

थोड़ी देर ऐसे ही हिलाकर रूपाली ने ठाकुर की धोती को एक तरफ सरकाना शुरू किया ताकि लंड को बाहर निकाल सके. ठाकुर आराम से लेटे हुए थे इसलिए थोड़ी परेशानी हो रही थी. रूपाली ने अपना हाथ धीरे से धोती के अंदर घुसकर लंड की तरफ बढ़ाया और उसके मुँह से आह निकल पड़ी.

ठाकुर ने धोती के नीचे कुच्छ नही पहेन रखा था. रूपाली के हाथ अंदर डालते ही उसके हाथ में ठाकुर का लंड आ गया. रूपाली के होश उड़ गये.पहली बार उसने बिना किसी के कहे अपनी मर्ज़ी से एक लंड को अपने हाथ में लिया था. मज़ा जो आ रहा था उसे शब्द बयान नही कर सकते. रूपाली ने पूरे लंड पे हाथ फिराया और उसे देखने के लिए पागल सी होने लगी. उसने अपने हाथ की गिरफ़्त लंड पे मज़बूत की और दूसरा हाथ चूत से हटाकर उससे धोती का एक सिरा पकड़ा. हाथ को एक ज़ोर का झटका दिया तो धोती खुलकर एक तरफ हो गया और रूपाली के आँखो के सामने ठाकुर का लंबा मोटा काला लंड आ गया.

रूपाली की आँखें और मुँह दोनो ही खुले रह गये. लंड कैसा होता है आज उसने ये पहली बार गौर से देखा था. कुच्छ देर तक वो लंड को ऐसे ही पकड़े देखती रही. कुच्छ ना किया.फिर धीरे से अपना हाथ पुर लंड की लंबाई पे फिराया. लंड अपने आप थोड़ा हिला और ठाकुर के जिस्म में थोड़ी हरकत हुई. रूपाली ने फ़ौरन अपना हाथ रोक लिया और ठाकुर को देखने लगी पर लंड वैसे ही पकड़े रखा. फिर उसे एहसास हुआ के उसके लंड हिलने से ठाकुर को नींद में भी मज़ा आया था और जिस्म जोश की वजह से हिला था. ये सोचकर रूपाली ने लंड फिर धीरे से सहलाया और लंड में फिर करकट हुई. तभी उसे कल रात की बात याद आई जब ठाकुर ने अपना लंड उसके हाथ में देकर मुट्ठी बना दी थी. यही सोचते हुए रूपाली ने फिर लंड को वैसे ही हाथ में पकड़ लिया और उसी तरह से आगे पिछे करने लगी.

उसने हाथ ने फिर अपना जादू दिखाया. नशे में सोए पड़े ठाकुर का लंड नींद में भी खड़ा होने लगा. देखते देखते लंड अपनी पूरी औकात पे आ गया और रूपाली हैरत से देखने लगी. अगर वो दोनो हाथों से पकड़ ले तो भी पूरा लंड नही पकड़ पाएगी. मुट्ठी मुश्किल से लंड को पूरा घेर पा रही थी. रूपाली वैसे ही लंड को हिला रही थी के तभी उसके अपने पति के वो शब्द याद आए जो वो हर रात उसे कहता था

"जान. लंड मुँह में लेके चूसो ना एक बार" ये उसके पति के हमेशा ख्वाहिश होती थी जिसे रूपाली ने कभी पूरा नही किया था. लंड मुँह में लेने का सोचकर ही उसे उल्टी सी आती थी और वो हमेशा पुरुषोत्तम को मना कर देती थी. ठाकुर के लंड को हिलाते हिलाते रूपाली के दिमाग़ में ख्याल आया के क्यूँ ना आज ये भी करके देखा जाए. उसका पति हमेशा कहता था इसका मतलब मर्द को लंड चुसवाने में मज़ा आता है. आज अगर वो कर सकी तो अपने ससुर को भी इसी तरह अपने वश में रखेगी. ना कर सकी तो कुच्छ और सोचेगी. यही सोचते हुए रूपाली ने अपने होंठ पर जीभ फिराई और मुँह को खोला.

लंड के उपेर के हिस्से को उसने अपनी सारी से सॉफ किया और मुँह को ऐसे ही खोलके लंड मुँह में लेने के लिए झुकी ही थी के उसकी साँस उपेर की उपेर और नीचे की नीचे रह गयी. सामने बड़े शीशे में कमरे का दरवाज़ा दिखाई दे रहा था और दिख रहा था दरवाज़े पे खड़ा भूषण जो ना जाने कबसे खड़ा हुआ सब देख रहा था.

रूपाली घबराकर फ़ौरन पलटी. लंड उसके हाथ से छूट गया और वो बिस्तर से उठकर खड़ी हो गयी. नज़रें दरवाज़े पे खड़े भूषण से मिली. उसके यूँ अचानक पलट जाने से बुद्धा भूषण भी घबरा गया और फ़ौरन पलटकर चला गया.मेरी सभी स्टोरी आप मेरे ब्लॉग हिन्दी सेक्सी स्टोरी ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम और सेक्सी कहानी ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम पर पढ़ सकते है

रूपाली की समझ में नही आया के क्या करे. हवेली में क्या हो रहा था अगर ये बात बाहर निकल गयी तो रही सही इज़्ज़त भी चली जाएगी. वो कहीं मुँह दिखाने लायक नही रहेगी. अगर उसके देवरो और ननद को ये बात पता चली तो वो क्या करेंगे? तेज तो शायद उसे काटकर फेक देगा. और उसका अपना खानदान? उसके बाप भाई? वो तो कहीं के नही रहेंगे. रूपाली की पूरी दुनिया उसकी आँखों के सामने घूमने लगी. समझ नही आया के क्या करे. उसने पलटकर अपने ससुर की तरफ देखा. वो अभी भी सोए पड़े थे और लंड अब भी वैसा ही खड़ा था पर जिस लंड को देखकर उसकी चूत में आग लग रही थी अब उसे देखकर कुच्छ महसूस नही हुआ. वो धीमे कदमो से ठाकुर के कमरे से बाहर निकली और बाहर बड़े कमरे में आकर सोफे पे बैठ गयी.

भूषण ने सब देख लिया था. जाने क्या सोच रहा होगा. अगर उसने किसी को कहा तो? अगर उसने ठाकुर को ही बता दिया तो? वो रात को यहाँ क्या करने आया था? शायद उसके फ्लवरपॉट फेकने की आवाज़ सुनके आया होगा. अब क्या करूँ? रूपाली का दिमाग़ जैसे फटने लगा और उसे अपना पूरा प्लान एक पल में डूबता सा लगने लगा. भूषण इस हवेली के बारे में सब कुच्छ जानता है और इज़्ज़त भी करता था. अब मैं उसकी नज़रों में एक रंडी से ज़्यादा कुच्छ नही बची.

तभी रूपाली के दिमाग़ में एक ख्याल आया. "भूषण इस हवेली के बारे में सब कुच्छ जानता था."

यही बात रूपाली अपने दिमाग़ में काई बार दोहराती रही. उसे कुच्छ सवालों के जवाब चाहिए थे और भूषण इस हवेली के बारे में सब कुच्छ जानता था. रूपाली ने इससे आगे और कुच्छ ना सोचा. वो उठ खड़ी हुई और तेज़ कदमो से भूषण के कमरे की तरफ बढ़ी.

भूषण हवेली के बाहर बड़े दरवाज़े के पास बने एक छ्होटे से कमरे में रहता था. वो हवेली से बाहर निकली तो देखा के भूषण हवेली के लॉन में ही तेज़ कदमो से इधर उधर घूम रहा था. देखने में बेचेन से लग रहा था. वो एक छ्होटी सी कद काठी का आदमी था. मुश्किल से साढ़े पाँच फुट और बहुत ही दुबला पतला. 70 के आसपास था इसलिए कमज़ोर जिस्म में एक मुर्दे जैसा लगता था.वो परेशान सा यहाँ वहाँ घूम रहा था के सामने आती रूपाली को देखकर अपने कमरे में जाने के लिए मुड़ा.

"भूषण" रूपाली की मज़बूत आवाज़ सुनकर वो ठिठक गया.

"माफ़ करना बहूरानी. वो हवेली में ज़ोर से कुच्छ गिरने की आवाज़ आई तो मैं तो बस देखने गया था. पर मैं तो......" वो बोल ही रहा था के रूपाली ठीक उसके सामने आ खड़ी हुई.

"ये बात अगर मेरे और तुम्हारे अलावा किसी और को पता चली को गर्दन काट कर हवेली के दरवाज़े पे टंगा दूँगी" रूपाली की घायल शेरनी सी आवाज़ सुनकर भूषण सहम गया. रूपाली के लंबे छोड़े कद के आगे वो 70 साल का कमज़ोर छ्होटा सा बुद्धा ऐसा लग रहा था जैसे किसी शेरनी के सामने हिरण का बच्चा.

"ज़ुबान खुले तो कटवा दीजिएगा बहूरानी. आप भरोसा रखिए ...... " भूषण फिर दोबारा अपनी बात पूरी ना कर सका. वजह थी उसके पाजामे पे रखा रूपाली का हाथ.

रूपाली ने आगे बढ़कर भूषण के लंड को थाम लिया. भूषण घबराकर फ़ौरन पिछे हटा पर रूपाली साथ साथ आगे बढ़ी. वो पिछे एक पेड़ के साथ जा लगा और रूपाली आगे बढ़कर उससे सॅटकर खड़ी हो गयी.

उसकी नज़र ठीक भूषण की नज़रों से जा मिली. भूषण का लंड इतना छ्होटा था के रूपाली को अपने हाथ से पाजामे में लंड ढूँढना पड़ा. एक तो छ्होटा सा आदमी और बुढहा. ये तो होना ही था सोचते हुए रूपाली ने हाथ उपेर किया और उसके पाजामे का नाडा खोल दिया.

"ये आप क्या कर रही हैं बहूरानी?" भूषण बोल ही रहा था के रूपाली ने उसके मुँह पे अंगुली रखकर खामोश होने का इशारा किया और उसके सामने अपने घुटनो पे बैठ गयी.

भूषण की कुच्छ समझ नही आ रहा था. सब कुच्छ इतनी जल्दी हो रहा था के उसका दिमाग़ झल्ला रहा था. उसने सामने बैठी रूपाली पे एक नज़र में डाली और रूपाली ने एक झटके में उसका पाजामा नीचे खींच दिया.भूषण ने नीचे झुक कर पाजामा पकड़ने की कोशिश की पर नाकाम रहा. रूपाली ने दूसरा हाथ उसकी छाती पे रखा और उसे वापिस सीधा खड़ा कर दिया.

भूषण का जिस्म काँप रहा था. रूपाली ने उसका छ्होटा सा लंड अपने हाथ में लिया और धीरे धीरे हिलाने लगी और मुँह उठाकर नज़र भूषण से मिलाई.

"मैं तुमसे कुच्छ सवाल करूँगी भूषण. और मुझे सीधे सीधे जवाब चाहिए. कुच्छ भी छुपाया तो काट कर इसी लोन में गाड़ दूँगी" रूपाली की आवाज़ में जाने क्या था के उसे सुनकर ही भूषण की धड़कन रुकने लगी. पूजा पाठ में हमेशा डूबी रहने वाली ये औरत आज उसे कोई जल्लाद लग रही थी. वो सामने बैठी उसका लंड ऐसे हिला रही थी जैसे अपने सवालों के जवाब के लिए उसे रिश्वत दे रही हो.

"जी बहूरानी" भूषण ने धीमी आवाज़ में कहाँ. रूपाली अब भी उसका लंड हिला रही थी पर कुच्छ असर नही हो रहा था. लंड वैसे ही बैठा हुआ था बल्कि और भी सिकुड रहा था.

"आज जो आदमी आया था वो कौन था?" रूपाली ने पहला सवाल पुचछा. उसे महसूस हुआ के अपने ही नौकर का छ्होटा सा लंड हिलाते हुए भी उसकी चूत फिर गीली होने लगी थी. उसका दूसरा हाथ खुद ही फिर उसकी चूत पे पहुँच गया. रूपाली ने लंड गौर से देखा और अगले ही पल आगे बढ़ी और मुँह खोलकर लंड मुँह में ले लिया.
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