Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
06-21-2018, 12:04 PM,
#31
RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
जब उन्होंने मुझे छोड़ा तो मैं उठ कर बैठ गया. चाची का जोरदार स्खलन हुआ था, वे निढाल होकर पीछे टिक कर बैठी थीं. उनकी बुर एकदम गीली थी, यहां तक कि एक दो बूंदें नीचे चादर पर भी टपक गयी थीं. मैंने धीरे से उनकी टांगें फैलायीं और उस अमरित को चखने के लिये उनकी टांगों के बीच घुसने की कोशिश की तो उन्होंने रोक दिया.

"चाची ... प्लीज़ ..." मैंने तड़प कर कहा. सामने रस टपक रहा था और चाची मुझे चाटने से मना कर रही थीं.

"अरे रुक, अभी देती हूं तेरे को तेरी पसंद की चीज. विनय बेटे, आज ये करके बहुत अच्छा लगा, मैं भूल ही गयी थी यह सुख, और खास कर आज मुझे जो मजा आया, वो तू देख रहा था और तेरी फ़रमाइश पर मैं कर रही थी, इसलिये आया. तुझे इनाम देना चाहती हूं, और अभी मेरा भी मन नहीं भरा, तूने भी बड़े दम से कंट्रोल किया खुद को, उसका फल तो मिलना ही चाहिये तेरे को और साथ ही साथ थोड़ा और आनन्द लूटना चाहती हूं. जा जल्दी से नीच किचन में जा और वहां वो केले पड़े हैं वो ले आ"

मैं समझ गया, दिल झूम उठा. कोई नंगी हस्तमैथुन करती महिला केले मांगे तो उसका क्या मतलब हो सकता है! वैसे ही भाग कर नीचे गया, नंगा. किसी के देख लेने का कोई खतरा नहीं था, बंगले का दरवाजा बंद था, नीलिमा के बिना कोई लैच खोल कर आ भी नहीं सकता था. किचन में चार पांच केलों का बंच था, मैंने पूरा उठा लिया और भाग कर ऊपर आ गया.

चाची फ़िर से कुरसी में बैठ गयी थीं, और अपनी बुर सहला रही थीं लगता है फ़िर से गरम हो गयी थीं दो मिनिट में ही, या फ़िर कह सकते हैं कि ठंडी हुई ही नहीं थीं. "ये क्या? तू सब उठा लाया? अरे एक चाहिये था." वे मेरी ओर देखकर बोलीं.

मैं क्या कहता. केले से काम उनको करना था, मुझे नहीं. चाची ने केले देखकर उनमें से एक चुना, मुझे लगा था कि सबसे बड़ा चुनेंगी पर उन्होंने लिया सबसे कम पका हुआ, थोड़ा कच्चा. मेरी नजर केले की ओर लगी देखकर वे मुस्करायीं "तूने तो देखी होंगी ऐसी ब्ल्यू फ़िल्म? मजा आत है ना?"

"हां चाची" मैंने स्वीकार किया. चाची ने अब वो केला छीला. यह जरा मेरे लिये नया था याने अब तक मैंने जो फ़िल्में देखी थीं उनमें की स्त्रियां केले को वैसे ही बिना छीले अंदर डालती थीं. चाची ने मुझे इशारा किया कि उनके सामने जमीन पर बैठूं. शायद उन्हें मुझे पास से बाल्कनी व्यू देना था. फ़िर उन्होंने अपनी टांगें खोलीं और पैर थोड़े ऊपर किये और केले के छिले हिस्से की नोक को अपने क्लिट पर धीरे धीरे रगड़ने लगीं. केले का दूसरा सिरा उन्होंने बिना छिले छोड़ दिया था ताकि पकड़ने में आसानी हो.

चाची के सामने मैं पास ही बैठा था. केले से हस्तमैथुन का वह नजारा मुझे साफ़ दिख रहा था. और उनके पैर भी मेरे बिलकुल पास थे जिनमें अब वे गुलाबी चप्पलें झूल रही थीं. उनकी बुर अब एकदम गीली हो गयी थी, रस चमक रहा था, क्लिट भी एकदम लाल हो गया था. थोड़ी देर केले से अपना क्लिट रगड़ने के बाद उन्होंने एक हाथ की उंगलियों से अपनी चूत खोली और दूसरे से केला धीरे धीरे अंदर कर दिया. अब मुझे समझ में आया कि उन्होंने आधा पका केला क्यों चुना था. पका हुआ तो अब तक टूट चुका होता. मेरी ओर देखकर वे मुस्करायीं पर अब उनकी मुस्कराहट में टेंशन था, वासना का टेंशन. हौले हौले वे केला अंदर बाहर करने लगीं.

केले से मुठ्ठ मारने का वह करम बस दस मिनिट चला होगा पर मेरा हालत खराब कर गया. केला जल्दी ही गीला होकर चमकने लगा था, जैसे शहद में डुबोया हो. अब उस गीले केले के अंदर बाहर होने से ’पुच’ ’पुच’ ’पुच’ की आवाज भी आ रही थी. जब भी वे केला बाहर खींचतीं तो रस की की कुछ बूंदें बाहर छलक छलक आतीं. लगता है रस अब नल के पानी की तरह बह रहा था उनकी चूत से. चाची जिस तरह से सांस ले रही थीं, उससे लगता था कि इस बार वे ज्यादा नहीं टिकेंगीं. मेरा मन हो रहा था कि लंड को पकड़कर मुठ्ठ मार लूं पर ऐसा करना याने अपनी दुर्गत को आमंत्रण देना था. चाची ने मेरी हालत देखी तो मुझे सांत्वना पुरस्कार दे दिया, अपना एक पैर थोड़ा बढ़ाकर अपनी लटकती चप्पल के पंजे को मेरे होंठों पर रगड़ने लगीं. उनकी वे नेल पेंट लगी हुईं गोरी सुडौल उंगलियां, मेरे मुंह में घुस रही थीं. आज तो मेरी किस्मत जोर पर थी, चाची एक के बाद एक उपहार मुझे दे रही थीं. मेरी क्या हालत हुए होगी, आप ही अंदाजा लगा सकते हैं. मैंने मुंह खोल कर उस मुलायम गुलाबी रबर की स्लीपर का सिरा और उनकी एक दो उंगलियां मुंह में लीं और चूसने लगा. किसी भी मिठाई से उन चीजों का स्वाद मेरे लिये ज्यादा जायकेदार था.

चाची का आखिर आखिर में संयम जाता ही रहा, वे अचानक लगातार केला अंदर बाहर पेलने लगीं. फ़िर एक सिसकी के साथ एकदम ढेर हो गयीं. वह केला भी टूट गया पर उसको उन्होंने अपनी उंगली से पूरा अपनी बुर के अंदर घुसेड़ दिया.

दो मिनिट वे थोड़ा हांफ़ते बैठी रहीं फ़िर अपनी बुर को हथेली से बंद करके उठकर बोलीं "अब ले अपना इनाम, अब काफ़ी होगा तेरे जैसे जवान बच्चे के लिये, नहीं तो बस कुछ चम्मच रस से हा काम चलाना पड़ता तेरे को. अब तो चाटने चूसने के अलावा खाने वाला प्तसाद भी है तेरे लिये" उठ कर उन्होंने अपनी चप्पलें निकाली और नीचे रख दीं. मुझे उनका सिरहाना करके लिटाया और फ़िर उलटी तरफ़ से मेरे ऊपर लेट गयीं. बिना कुछ कहे उन्होंने मेरे मुंह पर अपनी चूत जमाई और खुद मेरा लंड पूरा निगल लिया. मैं पागलों की तरह वह मिठाई खाने में लग गया, चूत की चासनी और बुर के शहद में बनाया हुआ केले का फ़्रूट सलाड उनकी बुर के कटोरे में से खाने मिलना, इससे ज्यादा लाजवाब लज्जतदार डिश और क्या हो सकती थी!

केले को मैंने बुर के अंदर से चूस चूस कर निकाला, केला खतम होने पर भी चूसता रहा क्योंकि अब भी तन मन में आग लगी थी. क्या भाग थे मेरे, चाची से लंड चुसवा रहा था, उनकी बुर में से मीठा केला खा रहा था और मेरे सिर के नीचे उनकी मुलायम खूबसूरत रबर की स्लीपरों का तकिया था. यह आग तब अचानक ठंडी हुई जब चाची ने मेरा लंड चूस कर उसमें की मलाई निकाल ली.

कुछ देर हम पड़े रहे फ़िर चाची उठ कर बैठ गयीं. अपने बाल ठीक करके बोलीं "मन भरा तेरा?"

मैंने उनके पांव चूम लिये. कुछ बोलने की जरूरत नहीं थी. मेरी आंखों में जो भक्तिभाव उमड़ आया होगा उसी से चाची को पता चल गया होगा. उन्होंने लाड़ से मेरे गाल सहला कर बोलीं "बहुत कंट्रोल किया तूने, मुझे भी बड़े दिनों के बाद हस्तमैथुन में इतना आनन्द आया. तभी तो कहती हूं कि तू याने एकदम गुड्डा है मेरा. पहले रोम की रानियां मैंने सुना है अपनी सेवा में खास लड़के रखती थीं, अब तूने मुझे सच में महारानी बना दिया विनय"

वह दोपहर मुझे हमेशा याद रहेगी क्योंकि वह दोपहर आगे मेरे साथ होने वाले किस्सों की रंगबिरंगी मूवी का ट्रेलर मात्र थी, वैसे यह मुझे बहुत बाद में समझ आया. और चाची के जाने के पहले फ़िर से वैसी शनिवार की दोपहर मुझे नहीं मिली. मेरे उस अद्भुत नाश्ते के बाद चाची को चोदने में भी जो मजा आया उसकी कोई गिनती नहीं है. केले से गीली हुई एकदम चिकनी चिपचिपी चूत में लंड ऐसे फ़िसल रहा था जैसे बढ़िया ऑइल डाले हुए एन्जिन में पिस्टन फिसलता है. चुदाई की आवाज भी अलग थी ’फच’ ’फच’ ’फच’, खास कर जब मैं कस के चोदता था.

उस दोपहर की चुदाई खतम होने के बाद को जब मैं अपने कमरे में जा रहा था तब चाची ने अचानक पूछा "विनय बेटे, तूने डिसाइड किया कि ट्रेनिंग के बाद कहां प्लेसमेंट लेगा? याने गोआ या नासिक?"

मैंने बिना सोचे तुरंत कह दिया "चाची, मैं तो कल ही उनको राइटिंग में देने वाला हूं कि मुझे गोआ की ही पोस्टिंग दी जाये" चाची बड़े प्यार से मुस्करायीं जैसे उन्हें यही अपेक्षित था.

बाद में जरूर मुझे लगा कि अगर चाची चली गयीं तो मैं यहां क्या झक मारूंगा! पर चाची पर मुझे पूरा भरोसा था, एक महारानी अपने प्यारे गुलाम को ऐसे नहीं छोड़ने वाली थी यह मेरा विश्वास था.
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