RE: Desi chudai story वो जिसे प्यार कहते हैं
राजेश अचंभित रह गया इस अचानक अवास्तविकता की तरफ बढ़ते हुए. पर मिनी अपनी विश्वासपूर्वक वाणी के साथ बोलती रही.
‘मुझे पीठ में चाकू घोंप कर मारा था एक और मन्त्र ने जो मुझ से जलता था.आज भी मुझे अपनी पीठ में दर्द का अहसास होता रहता है और मैने ये पता किया कि ये पिछले जनम से कुछ जुड़ा हुआ है……’
मिनी ने तब बताया के ये सब जानकारी उसे उसके गुरु ने दी जो केरला में है और खुद को –‘पास्ट लाइफ थेरपिस्ट’ कहता है. सिर्फ़ इंसान के माथे को देख कर वो बता सकता है कि वो पिछले जनम में क्या था. मिनी ने ये भी बताया कि उसने मुंबई के किसी थेरपिस्ट के साथ भी कुछ सेशन्स किए थे, तब उसे महसूस हुआ कि जो भाषा वो बोल रही है वो उसके लिए एकदम अंजन है और आवाज़ भी बहुत भारी किसी आदमी की और वो किसी दरबार में है. पर जब उसकी तबीयत खराब होने लगी तो ये सेशन बीच में ही रोक दिए. ये सब उसकी आज की जिंदगी में बहुत दखल कर रहा था.
‘लेकिन आप इस सब के लिए गई ही क्यूँ?’
‘एक जिग्यासा थी.एक जुस्तुजू थी जिंदगी को उसकी वास्तविकता के बाद या पहले के रूप को जानने की. इस के आलवा एक से ज़्यादा हस्तिस्थिति को अनुभव करने की इच्छा’
राजेश की अश्चर्यचकित्त अक्षुण भर भी कम ना हुई. कुछ देर वो वॅज्माइ ही रहा.
उसने ये निष्कर्ष निकाला कि शायद मिनी के शांत स्वाभाव के पीछे एक जोखिम भरी जिंदगी जीने की भावना छुपी हुई है. इसके अलावा वो बहुत साहसी भी है. राजेश में हिम्मत नही थी अपनी पिछली जिंदगी के बारे में जानने की.
इस पारस्परिक वार्तालाप ने राजेश की जिग्यासा को बढ़ावा दे दिया. उसको बहुत सी बातों के बारे में सोचने को विवश कर दिया. मिनी से हुई कुछ देर की बातों ने उसे बहुत कुछ दे दिया था. वो सच में एक ऐसे इंसान के रूप में सामने आई थी, जिसके बारे में और भी जानने की इच्छा बढ़ती ही रहे. बिल्कुल उसकी तरहा वो भी दूसरे को काफ़ी अचंभित करने की क्षमता रखती थी.
राजेश ने एक और कॉफी लेने का फ़ैसला किया और वेटर को बुला कर – कॉस्टा रीका तरज़ू का ऑर्डर दे दिया. मिनी उसकी पसंद पे हैरान थी. राजेश उस जादू को अनुभव करना चाहता था जो इस कॉफी ने मिनी पे किया था.
कैसे मिनी इतनी उत्साहित हो गई थी.
‘ तो आज से पाँच साल बाद तुम खुद को कहाँ देखते हो?’ मिनी ने पूछा.
‘मुझे कोई आइडिया नही’
‘क्या?’
‘हां सच में मैं एक स्वप्नदृष्टा हूँ.अपने स्कूल के दिनो में क्रिकेटर बनना चाहता था.फिर एक वक़्त ऐसा आया कि मुझे लगा ये मुमकिन नही होगा. तब मैने सिविल सर्वीसज़ के बारे में सोचा’
‘लेकिन क्रिकेट और सिविल सर्वीसज़ तो बिल्कुल अलग हैं’
‘हां, शायद शोर्य और कीर्ति ने मुझे आकर्षित किया था, और इन दोनो पेशों में इन दोनो चीज़ों की बाहियात है.’
‘फिर क्या हुआ?’
‘फिर मुझे एहसास हुआ कि ये भी नही हो सकता. मैने फिर वोही किया जो मेरे दोस्त कर रहे थे. एमबीए करी और काम करना शुरू कर दिया. लेकिन मैं अब भी बहुत कुछ करना चाहता हूँ ….’
‘ह्म्म्म……………इंट्रेस्टिंग! लेकिन सच में ऐसा लगता नही कि तुम इतने कन्फ्यूज़्ड हो’
‘असल में मेरी समस्या ये है कि मैं हमेशा दूसरों को प्रभावित करना चाहता हूँ……. खुद को भी. इसलिए मुझे पता ही नही चला, मेरी स्ट्रेंत्स क्या हैं और मैं क्या करना चाहता हूँ’
उसकी इस नंगी सत्यनिष्ठा से मिनी काफ़ी प्रभावित हुई.
‘पर क्या तुमने कभी सोचा है कि आख़िर में तुम अपनी जिंदगी कहाँ ले जाना चाहते हो?’
राजेश काफ़ी देर चुप रहा शायद दिमाग़ में कुछ तोल रहा था कि जो वो कहने जा रहा है उसका अप्रत्यक्ष परिणाम क्या होगा, आख़िर वो बोल पड़ा.
‘हां ……मैं देश का प्रधान मंत्री बनना चाहता हूँ’
उसके शब्दों में जवानी की एक चमक थी.
मिनी ये महसूस करने लगी राजेश में ये प्रवृति है बड़ी बड़ी बाते एक दम शांत भाव से कहने की.
उसे ये पता नही चल रहा था कि वो सीरीयस है या मज़ाक कर रहा है. वो अपनी इस दुविधा से जल्दी बाहर निकल आई.
राजेश ने बहुत ही सूक्षमता से आज की पॉलिटिक्स में उसके रुझाव को सामने रख दिया.
‘मुझे ये समझ में नही आता कि लोगो को शोक क्यूँ लगता है जब कोई पॉलिटिक्स में अपना रुझाव दिखाता है. क्या पॉलिटिक्स इतनी बुरी है?
हमारी स्वाधीनता की लड़ाई भी एक पोलिटिकल मूव्मेंट थी. अगर हिस्टरी को ध्यान से देखोगे तो पाओ गे कि सारे लीडर्स कितनी ओछी पॉलिटिक्स किया करते थे आपस में – तुम्हें और गहरा सॉक लगेगा. फिर भी उस मूव्मेंट ने हमे आज़ादी का तोहफा दिया. और सिस्टम से लड़ने के लिए तुम्हे सिस्टम का हिस्सा बनना पड़ेगा’
मिनी शांत रूप से उसे सुनती रही.
‘और क्या हमारी वर्क प्लेसस में कम पॉलिटिक्स है?’
मिनी और भी ज़यादा उस से प्रभावित हो गई – उसके आदर्शपूर्ण दृढ़ विश्वास को देख.
दोनो राजेश और मिनी ने एक दूसरे की प्रतिभा को पहचानना शुरू कर दिया – दूसरे को एक दम अचांबित करना,बिल्कुल अनप्रिडिक्टबल रहना वो भी एक दृढ़ विश्वास के साथ.
उनकी इस विशेषता से कोई प्रतिकार नही कर सकता था.
दोनो ने महसूस किया कि कॉफी तो कभी की ख़तम हो गई है. वो तो अपनी परस्परीकता के जादू को सीप कर रहे थे.
‘मेरी माँ कहती थी, जितना तुम किसी चीज़ के पीछे भगॉगे वो तुमसे उतना ही दूर होती जाएगी. और जब तुम उसके पीछे भागना छोड़ दोगे तो अगर तुम्हारी किस्मत में है तो तुम्हे ज़रूर मिलेगी. कम से कम अपनी जिंदगी में मैने इसे सच पाया है.’
मिनी ने राजेश की महत्वाकांक्षाओ को सोचते हुए एक दार्शनिक चिंतन करते हुए कहा.
उनकी बाते और भी मजेदार होती गई, दो घंटे कब गुज़रे पता ही नही चला और इन दो घन्टो में मुश्किल से 5 मिनट ही बिज़्नेस की बात हुई होगी.
‘गॉड! 6 बजने वाले हैं. मुझे जाना पड़ेगा, मेरी बेटी ट्यूशन से वापस आने वाली होगी.’ आख़िर में मिनी ने कहा. कुछ ही क्षण सोचने के बाद उसने जोड़ा ‘ मुझे नही लगता कि डील के बारे में हमे कुछ और डिसकस करना है, क्यूंकी हम तुम्हारे प्लान बी को फॉलो कर रहे हैं. और जहाँ तक रिलीस ऑर्डर का सवाल है. वो कुछ दिनो में तुम्हे मिल जाएगा.’
‘स्योर’
राजेश खोया हुआ दिख रहा था. उनका वार्तालाप इतनी गहराइयों तक गया कि एकदम उसमे से बाहर निकलना आसान नही था.
आश्वस्त करने वाले वातावरण, के अलावा, ताज़गी भरी खूबसूरती, अतुल्निय ज्ञान वाले जिस इंसान के साथ उसने पिछले 2 घंटे गुज़रे वो अब भी उसकी चेतना पे हावी थे.
वेटर बिल ले के आ गया. र्स. 300 का बिल था. राजेश बिल पे करने लगा और मिनी उसे करने नही दे रही थी.
‘मेडम , ये मेरी ट्रीट थी, आप नही जानती ये डील हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण है’
‘लेकिन बुलाया मैने था- ठीक?’
दोनो में थोड़ी देर हल्की झड़प हुई. मिनी ने उसे वर्क आउट किया.
‘ओके. हम शेर करते हैं, लेकिन मैं 200 पे करूँगी’
‘लेकिन ये शेरिंग नही है’
‘यही है. ये मत भूलो मैं तुम से बड़ी हूँ, और तुम्हें अभी से बचना शुरू कर देना चाहिए, अगर तुम अनिश्चित पॉलिटिक्स की दुनिया में उतरना चाहते हो’
मिनी का यूँ हल्के से मज़ाक के साथ राजेश की टाँग खींचने से दोनो के बीच का तनाव फुर्र हो गया. मिनी का रक्षात्मक अभिप्राय जब उसने अपने बड़े होने की बात करी, राजेश के अवलोकन से ना बच सका.
‘लेकिन आप र्स.200 के फिगर तक कैसे पहुँचे’
‘वेल , 2/3 ऑफ दा अमाउंट, तो अगर फिर कभी भी हम एक साथ कॉफी पिएँगे मैं तुम्हारी 2/3 पार्ट्नर रहूंगी.’
राजेश हैरान था कि उसके जानूं का कोई तरीका था, कितनी आसानी से उसे 1/3 पार्ट्नर बना लिया.
तत्काल उसने विषय बदल रोमॅंटिक कर दिया.
‘तुम जानते हो, इन हल्की हल्की फुहारों से बड़ी खूबसूरत यादे जुड़ी हैं. जब मैं पहली बार विवेक से मिली थी, तब भी ऐसे ही फुहार बरस रही थी’
‘विवेक?’
“ह्म मेरा पति”
राजेश के चेहरे की हँसी गायब हो गई. पता नही किस वजह से इस औरत के लिए संबंधवाचक भावनाएँ उसमे जनम ले चुकी थी. ऐसा क्यूँ हुआ, वो नही जानता था.
उस दिन रात को बिस्तर पे लाते हुए राजेश इस मीटिंग के बारे में सोच रहा था, उसे महसूस हुआ ये तो डेट थी, उसने कभी सोचा ही ना था.
अगर ये डेट थी, तो वो इससे बहुत समय तक याद रखेगा. अब वो मिनी से फिर मिलना चाहता था. वो भी बहुत जल्द. वो सोच रहा था ये कैसे मुमकिन होगा.
अगले दिन सुबह राजेश ऑफीस पहुँचा, वो सीधा समीर के पास गया.
‘समीर तुम्हें मुझ पे एक अहसान करना होगा’
‘क्या?’
‘तुम्हें मिनी के उपर एक स्टोरी करनी होगी’
समीर इस निवेदन की आकस्मिकता से हैरान था.
‘मना मत करना, और कारण भी नही पूछना, बस किसी भी तरहा करो. तुम्हें मेरे लिए ये करना ही होगा’
संमीर इस का कारण जानता था, पर उसे न्यायसंगत कैसे करे, समझ नही आ रहा था. दोनो बहुत सोच रहे थे जब अचानक राजेश को एक आइडिया आया.
‘तुम ये स्टोरी इस सेक्षन में करो – पखवाड़े का युगल.’
समीर ने अभी रिएक्ट करना था जब राजेश आगे बोला – ‘इसे कहो – एक खुश परिवार’
मिनी अभी भी सो रही थी, जब उसे बड़े प्यार से अपने गालों पे कुछ सहलाना सा महसूस हुआ.कुछ उंगलियाँ अनुग्रहपूर्वक उसके गालों पे छाए उसके बलों को हटा रही थी, जो उसकी मुखाक्रुति को छुपाए हुए थी, उसकी मासूमियत नींद से अज्ञान कई गुणना बड़ी हुई थी.
ये वो दृश्य था जिसकी सम्मोहन शक्ति से विवेक बच नही पाता था. विवेक उसमे खो जाता था और उसके बाद शुरुआत होती थी कुछ प्यार भरे गीले चुंबनो की उसके गालों पे उसके होंठों के आसपास.
पिछले कुछ सालों से मिनी इस रिवाज़ की आदि हो गई थी, जैसे ही ये कृत्या शुरू होता उसका अवचेतन मस्तिष्क आगे होने वाले कृत्य की प्रेटिस्कीट करने लगता.
पहले चुंबन के बाद कुछ ही क्षणों में दूसरा होता , दोनो एक एक गाल पर. ये कृत्य उसके लिए एक अलार्म की भाँति दिमाग़ में बस गया था.
इस कृत्य के शुरू होने का मतलब है सुबह के 7 बज गये हैं. अगर दूसरे चुंबन पे भी वो नही उठती तो तीसरे चुंबन के साथ विवेक अपनी थोड़ी बढ़ी हुई शेव उसके गालों पे अच्छी तरहा रगड़ता और उस दर्द के अहसास के साथ वो झटके से उठ जाती और विवेक पे नाराज़ होती.
उसकी शतिपूर्ति करने के लिए विवेक के होंठ उसके होंठों से जुड़ जाते और एक मधुर गहरा स्मूच शुरू हो जाता. मिनी ये स्मूच बहुत ही एंजाय करती, ये उसे सारा दिन विवेक से दूर रहने के लिए तयार कर देता.
समय गुजरने के साथ साथ, मिनी को विवेक का अपनी उभरी हुई शेव का चुबना अच्छा लगने लगा, क्यूंकी उसके बाद जो होता था वो सच में उत्कृष्ट होता था.
जबकि उसे कुछ दर्द होता था, पर वो उस दर्द को भी झेलने को तयार हो गई थी, एक आश्वासन स्थापित हो चुका था एक जादुई राहत का जो सामाणर्थि रूप से आएगा.
लेकिन आज विवेक की उंगलियाँ जैसे ही अपने कृत्य की तरफ बड़ी उसने एक तेज़ गति का अनुभव किया और रोज मर्रा की तरहा जो वो करता था उसे छोड़ सीधा अपनी पत्नी के होंठों पे अपने होंठ रख दिए. मिनी एक दम जाग गई, और विवेक की आँखों में देखने लगी और उस चमक का अर्थ समझने की कोशिश करने लगी.
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