RE: Hindi Sex Kahani हवस का जंजाल
मैंने लण्ड पर अपना थूक लगाया ओर रज़िया की गाँड पर रख कर जोर से झटका दिया। अब मेरे लण्ड का टोपा उसकी गाँड में था। रज़िया चींखने को हुई तो अलीशा ने उसका सिर पकड़ कर अपनी चूत पर दबा दिया जिससे रज़िया की चींख अंदर ही रह गयी। रज़िया भी मचल रही थी और अलीशा भी मजे ले रही थी। मैंने मौका देखा और पूरे जोर से लण्ड को धक्का दिया। रज़िया इतने जोर से धक्के के लिये तयार नहीं थी। वो आगे कीओर नीचे गिरी जिससे अलीशा भी पीछे की ओर गिर गयी। रज़िया के ऊपर मेरे नीचे गिरते ही मेरा लण्ड रज़िया की गाँड में पूरा घुस गया। रज़िया जोर से चिल्लायी, “आआआऊऊऊईईईईई….. अम्मीईईईईई, छोड़ो फट गयीऽऽऽ निकालो फट गयीऽऽऽऽ।” मैं कुछ देर शाँत रहा और थोड़ी देर रुककर मैं अपने लण्ड को उसकी गाँड में अंदर-बाहर करने लगा। अब रज़िया को मजा आने लगा। वो बोली, “आआआहहहह, मजा आ रहा है…. थोड़ा जोर से अंदर करो! जोर-जोर से! मजा आ रहा है!”उधर अलीशा रज़िया के मम्मे जोर-जोर से दबा रही थी। कुछ देर बाद मेरे लण्ड ने पानी छोड़ दिया और मैं रज़िया के ऊपर लेट गया। अलीशा उठी और वो पीछे से मेरे ऊपर आ कर लेट गयी। रज़िया बोली, “अलीशा क्या कर रही है? मुझे मारेगी क्या? गाँड में लण्ड है…. ऊपर से ये ओर उसके ऊपर तू!”
कुछ देर बाद हम अलग हुए। मैंने कपड़े पहनने शुरू किये तो कपड़े पहनते-पहनते भी उन दोनों ने मेरे लण्ड को एक-एक बार चूसा। फिर मैं दूसरे दिन का आने का वादा करके अपने कार्ड ले कर वापस आ गया। वो दोनों नंगी ही सिर्फ सैंडल पहने-पहने ही दरवाजे तक मुझे छोड़ने आयीं। उनके चेहरे पर अब भी वासना की झलक थी।
दूसरे दिन मैं दोपहर में तीन बजे मैं अलीशा के घर तय वक्त पर पहुँच गया। उसके पहले मैंने काफी घरों में कार्ड बाँट लिये थे। अलीशा ने दरवाजा खोला और मुझे देख कर मुस्करायी और मुझे खींच कर अंदर ले गयी। अंदर वो अकेली ही थी। मैंने उससे रज़िया के बरे में पूछा तो वो बोली कि वो तो एक घंटा पहले आने वाली थी पर कुछ काम की वजह से नहीं आयी लेकिन थोड़ी में आ जायेगी। दिखने में वो कयामत लग रही थी। उसने काले रंग की सिल्क की झीनी कमीज़ और घूटनों तक का सफेद स्कर्ट पहन हुआ था जिस पर काले फूलों का डिज़ाइन था। उसने कमीज़ नीचे ब्रा भी नहीं पहनी थी जिसके कारण उसके मम्मे झीनी कमीज़ के बाहर से साफ दिख रहे थे।
दूसरे दिन मैं दोपहर में तीन बजे मैं अलीशा के घर तय वक्त पर पहुँच गया। उसके पहले मैंने काफी घरों में कार्ड बाँट लिये थे। अलीशा ने दरवाजा खोला और मुझे देख कर मुस्करायी और मुझे खींच कर अंदर ले गयी। अंदर वो अकेली ही थी। मैंने उससे रज़िया के बरे में पूछा तो वो बोली कि वो तो एक घंटा पहले आने वाली थी पर कुछ काम की वजह से नहीं आयी लेकिन थोड़ी में आ जायेगी। दिखने में वो कयामत लग रही थी। उसने काले रंग की सिल्क की झीनी कमीज़ और घूटनों तक का सफेद स्कर्ट पहन हुआ था जिस पर काले फूलों का डिज़ाइन था। उसने कमीज़ नीचे ब्रा भी नहीं पहनी थी जिसके कारण उसके मम्मे झीनी कमीज़ के बाहर से साफ दिख रहे थे।
उसने मुझे सोफे पर बिठाया और बोली, “क्या पियोगे तुम… व्हिस्की… बियर..?” मैंने कहा, “जी बस एक छोटा सा पैग व्हिस्की का ले लुँगा!” ऊँची पतली हील के सैंडल खटखटाती हुई अलीशा किचन में चली गयी। अलीशा की लड़खड़ाती चाल और हाव-भाव से मुझे अंदाज़ा हो गया कि उसने आज पहले से ही कुछ ज्यादा शराब पी रखी थी। उसके कदमों के साथ-साथ ज़ुबान भी थोड़ी सी बहक रही थी। वो व्ह्सिकी और सोडे की बोतलें, बर्फ की बाल्टी और दो ग्लास ले आयी और दोनों के लिये पैग बनाये। फिर वो मुझसे सट कर बैठ गयी और हम ड्रिंक पीने लगे। उसने मुझे सिगरेट पेश की तो मैंने मना कर दिया कि मैं स्मोक नहीं करता। वो अपनी सिगरेट जलाती हुई बोली, “अच्छी बात है… पहले मैं भी स्मोक नहीं करती थी और ड्रिंक भी कभी-कभार ही लेती थी लेकिन जब से मेरे हसबैंड दुबई गये हैं, तो कुछ अकेलेपन की वजह से और कुछ रज़िया जैसी सहेलियों की सोहबत में ये सब आदतें पड़ गयीं।“
हमारे ग्लास खाली हुए तो अलीशा मुझसे और चिपक गयी और मेरी जाँघ सहलाने लगी और उसका हाथ मेरी पैंट की जेब में रखे कंडोम के पैकेट पर पड़ा। “ये क्या है?” उसने पूछा।“जी वो आपने कहा था ना… इसलिये आज मैं कंडोम लेकर लाया हूँ!”मैंने कहा तो उसने मेरी जेब में हाथ डाल कर कंडोम का पैकेट बाहर निकाला और फिर बे-परवाही मेज पर पटक दिया और मुझसे चिपकते हुए बोली, “इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी!” मैंने चौंक कर हैरान नज़रों से उसे देखते हुए पूछा, “आपने ही तो कल…” मेरी बात बीच में ही काट कर अलीशा चहकते हुए बोली, “वो क्या है कि कल हम दोनों पहले ही अपनी चूत टायसन… उम्म्म मेरा मतलब है कल हमारा मन गाँड मरवाने का था इसलिये कंडोम का बहाना बनाया था!”अपनी समझ में तो उसने बात तो संभाल ली पर मैं समझ गया कि पिछले दिन मेरे आने के पहले ही दोनों कुत्ते से चुद चुकी थीं। तो इसी लिये कल वो कुत्ता इतना थका हुआ और सुस्त सा लग रहा था।
इतने में उसने पैंट के ऊपर से ही मेरा लंड दबोच लिया और वो बोली, “अरे ये तो हरकत कर रहा है!” मैंने कहा, “आपकी चूत भी तो हरकत कर रही है!” वो बोली, “तुझे कैसे मालुम…? और ये आप-आप क्या लगा रखा है तूने?” तो मैं बोला, “तुम्हारे निप्पल जो खड़े हो रहे हैं! वो तुम्हारी पोल खोल रहे हैं!” वो अपने निप्पल दबाते हुए बोली, “तू तो छुपा रुस्तम है… रखता है तू!”फिर वो मेरी शर्ट के बटन खोलने लगी। एक-एक करके उसने मेरी शर्ट के सारे बटन खोल दिये ओर मेरी शर्ट निकाल दी। अब उसका हाथ मेरी पैंट पर था। वो घुटनों के बल नीचे बैठ गयी। उसने मेरी पैंट का हुक खोला और अपना मुँह आगे करके ज़िप को अपने मुँह से खोलने लगी। ज़िप खोलते ही पैंट नीचे गिर गयी। मेरा लण्ड और भी हरकत में आ गया जो अंडरवीयर को फाड़ने की कोशिश कर रहा था। उसने अंडरवीयर के ऊपर से ही लण्ड को किस किया ओर मुँह से अंडरवीयर उतारने लगी। मुँह में दाँतों से पकड़ कर उसने मेरे अंडरवीयर खींच कर उतार दी।
अलीशा की कातिल अदा
मेरा लण्ड टन्ना गया था। वो खड़ी हुई और अपने साथ मुझे भी खड़ा करके मेरा सिर पीछे से पकड़ कर मेरे होंठ अपने मुँह में ले लिये और चूसने लगी। मैंने भी उसकी गर्दन के पीछे उसके बालों को पकड़ लिया। हम दोनों की साँसें जोर-जोर से चल रही थी। मैंने उसकी कमीज़ के हुक खोल कर कमीज़ उतार दी। अब वो ऊपर से पूरी नंगी थी उसके मम्मे मेरे सीने से टकरा रहे थे। उसको मैंने और नज़दीक किया ओर उसकी स्कर्ट की पीछे की ज़िप खोल दी। स्कर्ट के नीचे कुछ नहीं था। अब वो ओर मैं दोनों बिल्कुल नंगे थे। उसने बस ऊँची पेंसिलहील वाले काले सैंडल पहन रखे थे। मेरा लण्ड उसकी चूत के आसपास टकरा रहा था। उसके गुलाबी होंठ मेरे मुँह में थे। दोनों की साँसें एक दूसरे से टकरा-टकरा कर आवाज़ कर रही थीं। मैं एक हाथ उसकी गाँड पर रख कर फेरने लगा और दूसरे हाथ से उसकी चूची दबा रहा था। उसकी नशीली साँसें और भी तेज हो गयी। उसकी आँखें बंद हो गयीं और उसकी चूत भी गीली हो गयी जिसका एहसास मेरे लण्ड को हो रहा था।
उसने मुझे सोफे पर बिठाया और खुद नीचे बैठ कर मेरे लण्ड को चूसने लगी। बीच में रुककर उसने एक ग्लास में व्हिस्की भरी और फिर मेरा लण्ड उसमें डुबो-डुबो कर चूसने लगी। उसकी इस हरकत से मेरा लण्ड लोहे की रॉड की तरह सख्त हो गया था और मेरा पानी छूटने ही वाला था कि तभी दरवाजे की घंटी बज गयी। मेरे तो होश गुम हो गये। वो भी डर गयी। मैंने इशारे से पूछा कि कौन है तो वो बोली, “पता नहीं इस वक्त कौन मादरचोद मर गया… रज़िया होती तो आवाज़ देती… युँ घंटी ना बजाती!” उसके मुँह से गाली सुनकर मुझे थोड़ा अजीब लगा।
दरवाजे की घंटी लगातार बज रही थी। अलीशा अपने कपड़े पहनने के लिये उठाये और मुझे भी अपने कपड़े लेकर दूसरे कमरे मे जाने को कहा। वो अपने कपड़े पहन ही रही थी कि तभी बाहर से आवाज़ आयी, “अलीशा डार्लिंग! मैं रज़िया… दरवाजा खोल!” हम दोनों की जान में जान आ गयी। अलीशा सैंडलों में लड़खड़ाती दरवाजे तक नंगी ही गयी और दरवाजे की आड़ लेकर दरवाज़ा खोला ओर रज़िया अंदर आ गयी। उसने बुर्का पहन रखा था लेकिन चेहरे पर से नकाब उठा रखा था। सिर्फ उसके पैर दिख रहे थे जिनमें उसने सुनहरी रंग के काफी ऊँची पेंसिल हील के सैंडल पहने हुए थे।
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