RE: Hindi Sex Story ठाकुर की हवेली
"मेरे देवर राजा तुम जीतने चूतिए हो उतने ही तुम गान्डू भी हो. वह साला मेरे वाला भादुआ तो सुखी ही मार देता है, सामने वाली को मज़ा आ रहा है या नही उसे कोई मतलब नही.
"हां अब अछा लग रहा है, "अब सूमी भी समझ गयी थी की गंद मे लंड कैसे पिलवाया जाता है.
अब वा जब गंद ढीली छोड़ती तब खुद पीछे तेल गंद मे लंड लेने लगी और रणबीर का पूरा 9' का लंड उसकी गंद मे समा गया.
'अब देख साली मेरा गान्डू पना.....ले झेल... अरे साली ये सूखा कुँवा नही ये तो तो तेरी केशर क्यारी है. अरे भोसड़ी की आज तक तूने एक भद्वे से गंद मरवाई है. कभी उसने मारी तेरी इस तरह से. " अब रणबीर उसे गालियाँ देते हुए पूरा बाहर खींच फिर एक ही धक्के मे जड़ तक पेल सूमी की गंद मार रहा था.
हाय.. मेरे राजा मुझे अपनी बना लो... मुझे लेके भाग जाओ... फिर दिन मे खूब गंद मारना और रात मे खूब चुदाई करना ..... ओह बहुत मज़ा आ रहा है...... कस के धक्के लगाओ में तो वैसे ही डर रही थी..... " सूमी ने पहले एक उंगल चूत मे डाली और बाद मे दो उंगल चूत मे डाल अंदर बाहर करती जा रही थी. उंगलियाँ फ़च फ़च करती उसकी चूत के अंदर बाहर हो रही थी.
तभी रणबीर के लंड ने सूमी की गंद के अंदर गरम गरम ढेर सारा वीर्य गिरा दिया. सूमी भी जोश मे आ अंगुल चूत मे और ज़ोर ज़ोर से पेलने लगी और उसकी चूत ने भी पानी छोड़ दिया. सूमी की गंद से वीर्या चू रहा था. कुछ देर वो बिस्तर पर लेटी रही फिर घाघरे से गंद पौंचती हुई उठी और बोली.
"तुम भी नहा धो कर फ्रेश हो जाओ, तुम्हारा हवेली जाने का समय हो रहा है और हाआँ... अपनी इस भाभी... सूमी को भूल मत जाना."
शाम 5.00 बजे रणबीर नहा धो कर रामानंद से आशीर्वाद लेके अपने नये मुकाम पर चल पड़ा.
हवेली पहुँचने पर रणबीर को उसका नया आशियाना बता दिया गया. यह हवेली की चारदीवारी के भीतर ही बना हुआ एक कमरा और रसोई का मकान था. कमरे और रसोई के बीच एक बड़ा सा बरामदा था. बरामदे के बाहर कुछ पेड़ थे और एक तरफ एक कुँवा था पास ही एक बड़ा सा पठार की शीला थी जिस पर नाहया और कपड़ों की धुलाई की
जेया सकती थी. वहीं पास सर्विस टाय्लेट भी बना हुआ था.
फिर हवेली के मैं गेट के पास बना एक छोटा सा कमरा उसे समझा दिया गया. यही उसकी कर्म भूमि थी जहाँ रहते हुए उसे हवेली मे शाम 6.00 बजे से सुबह 6.00 बजे तक हर आने जाने वाले पर नज़र रखनी थी. हवेली की सुरक्षा की देख भाल करनी थी. उसे दो वर्दियाँ दी गयी थी, बंदूक, कारतूस भरा पड़ा था, एक टोपी एक सीटी और कुछ ज़रूरी सम्मान भी दिया गया. हवेली के नियम और क़ायदे उसे समझा दिए गये थे.
रणबीर ने बड़ी मुस्तैदी से अपना काम संभाल लिया. बहादुर चौकन्ना और आछा निःशाने बाज तो वह पहले से ही था.
फिर वर्दी का रुबाब और ख़ास चौकीदार के रुतबे ने देखते देखते उसे हवेली का ख़ास आदमी बना दिया. फिर ठाकुर साहब भी उस पर मेहर बन थे., जो जल्दी ही और नौकरों पर उसका हुमकुम भी चलने लगा था.
हालाँकि उसकी ड्यूटी रात की थी और दिन वो आराम कर सकता था पर रणबीर सुबह तक अपनी ड्यूटी बजा 11 बजे तक सोता था. फिर नहा धो कर वो अपने लिए खाना बनाता और खाना खाने के बाद फिर हवेली मे आ जाता.
हवेली के मुख्य द्वार पर उसकी ड्यूटी 6.00 बजे से शुरू होती इसलिए वो अस्तबल मे चला जाता, वहाँ उसने सभी से अछी दोस्ती कर ली थी. इन सब का नतीज़ा ये हुआ की वो बीस दिन मे ही एक अक्च्छा घुड़सवार भी बन गया हा. इन्ही दीनो मे उसने जीप चलना भी सीख लिया था.
ठाकुर को जब इन सब बातो का पता चला तो ठाकुर खुश हुआ और ये सब उसकी अलग से काबिलियत समझी गयी और उसी हिसाब से उसकी तरक्की भी हो गयी. जहाँ दूसरे नौकर हवेली के घोड़ों पर सवारी करने के ख्वाब भी नही देख सकते थे और ना ही जीप के आस पास फटक सकते थे.
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