RE: Dost ki Maa ki Chudai दोस्त की नशीली माँ
उनके बोलने से जो मेरी गर्दन पर उनकी गर्म साँसें पड़ रही थीं.. उससे मुझे भी सिहरन सी होने लगी थी।
मैं भी बीच-बीच में उनके सर को सहलाते हुए उनके गले को चूमते और चाटते हुए उनके कान के पास और कान के पास चूम लेता था।
मैं कभी कान के नीचे की ओर हल्का-हल्का धीरे से काट भी लेता था.. तो वो मेरी इस हरकत से मचल सा जाती थीं। जिससे उनकी टाँगे फड़कने लगतीं और वे अपने चूचों को मेरी छाती से रगड़ने लगतीं.. जो कि अब बहुत ही कठोर सी हो गई थीं।
उसके चूचों के निप्पल तो ऐसे चुभ रहे थे.. जैसे कोई रबड़ की गोली.. मेरे और उसके बदन के बीच में अटक सी गई हो।
यह फीलिंग मुझे इतना मस्त किए जा रही थी कि अब मैं भी कुछ समझ नहीं पा रहा था। मुझे बस यही लग रहा था कि ये ऐसे ही चलता रहे।
कभी-कभी ज्यादा उत्तेज़ना मैं अपनी छाती से उसके चूचों को इतनी तेज़ से मसल देता कि उसके मुँह ‘अह्हह्ह.. श्ह्हह्हीईई..’ की आवाज़ फूट पड़ती थी।
इसी तरह कुछ देर चलता रहा और अचानक से माया दोबारा जोश में आ गई और अपने बाएं हाथ से मेरी पीठ को सहलाते हुए मेरे लौड़े को अपने दायें हाथ से सहलाते हुए बोली- जान तुम कितने अच्छे हो.. काश ये समा यही थम जाए.. और हम दोनों इसी तरह एक-दूसरे की बाँहों में रहकर प्यार करते रहें।
मैं बोला- काश.. ऐसा हो पाता.. तो ये जरूर होता.. पर सोचो तुम अगर रूचि की बेटी होती.. तो मैं तुमसे शादी करके हमेशा के लिए अपना बना लेता.. पर क्या तेरी जगह रूचि होती.. तो मेरे ये सब साथ करती?
तो वो बोली- पता नहीं..
तो मैं हँसते हुए बोला- पर सोचो अगर वो करने देती.. तो कितना मज़ा आता.. वो भी बहुत मस्त है।
ये बोलते हुए मैंने उनके गालों को चूम लिया..
उन्होंने बोला- अच्छा तो तुझे मेरी बेटी पसंद है?
तो मैं बोला- तुम पसंद की बात कर रही हो यार… वो तो मुझे बहुत ही ज्यादा अच्छी लगती है।
तो वो बोली- देखो अगर तुम उससे शादी करो.. तो ही उस पर नज़र रखना.. वरना नहीं..
मैं बोला- तुम परेशान मत हो.. जो कुछ भी होगा.. तुम्हें पहले बताऊंगा.. पर अभी जब कुछ ऐसा है ही नहीं.. तो हम क्यों ये फालतू की बात करें।
इस पर वो ‘हम्म्म..’ बोलते हुए.. वो भी मेरी ही तरह मेरे गले.. गाल और कानों को चूमने लगी और मेरे लौड़े को हिलाकर उसकी मालिश सी करने लगी.. जो कि रूचि की बात सोच कर पूरे आकार में आ चुका था।
अब उसे क्या पता.. अगले दिन रूचि ही इसके निशाने पर है। मैंने उसकी सोच छोड़कर.. अब जो हो रहा था.. उस पर सोचने लगा। अब मैं इतना मस्ती में डूब चुका था कि मैं भी नहीं चाह रहा था कि अब ये खेल रुके।
मैं भी पूरी गर्मजोशी के साथ उससे लिपट कर उसे अपने प्यार का एहसास देने लगा।
माया इतनी अदा से मेरे लौड़े को मसल रही थी कि पूछो ही नहीं.. वो अपनी उँगलियों से अपने रस को लेती और मेरे लण्ड पर रस मल देती।
जब मेरा पूरा लौड़ा उसके रस से सन गया. तो वो बहुत ही हल्के हाथों से उसकी चमड़ी को ऊपर-नीचे करते हुए मसाज़ देने लगी। बीच-बीच में वो मेरे लौड़े की चमड़ी को पूरा खोल कर सुपाड़े को सहलाती.. तो कभी उसके टांके के पास सहलाती.. जिससे मेरे पूरे शरीर में हलचल के साथ-साथ मुँह से ‘श्ह्ह्ह्ह्.. ह्ह्ह्हीईई.. अह्ह्ह्ह..’ निकल जाती।
वो मुझसे बोलती- तुम्हें अच्छा लग रहा है न..
मैं ‘हाँ’ बोल कर आँखें बंद करके इस लम्हे का मज़ा लेने लगता।
तभी वो बोली- क्या तुम चाहते हो कि मैं इसी तरह इसे मसाज देते हुए इसे मुँह से भी चूसूँ?
बस मित्रों.. अब अभी के लिए इतना ही काफी है।
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