Antarvasnasex बैंक की कार्यवाही
06-09-2018, 02:10 PM,
#3
RE: Antarvasnasex बैंक की कार्यवाही
बैंक की कार्यवाही मजे लेकर आई--3
गतांक से आगे ...........
अभी मैं थोड़ी दूर ही चला था कि एक गली में से फास्ट ड्राइव करते हुए दो लड़के बाईक पर हमारे सामने से निकले, मैंने टक्कर होने से बचाने के लिए तेज ब्रेक लगा दिये, जिससे अपूर्वा सीधी मेरे से आकर चिपक गई। उसके प्यारे-प्यारे बूब्स मेरी कमर में दब गये। उसके बूब्स का स्पर्श एकदम इतना नर्म था कि मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया। बूब्स के दबने से अपूर्वा के मुंह से आह निकल गई, अब पता नहीं वो आह मजे की थी या उसे बूब्स दबने से दर्द हुआ था। पर मुझे तो बहुत मजा आया।
अपूर्वा: देखकर नहीं चला सकते! ठतनी तेज ब्रेक लगाते हैं।
मैं: अरे यार तो मैं क्या करूूं वो एकदम से गली से निकल आये।
अपूर्वा वापिस पीछे हटकर आराम से बैठ गई और मैं ड्राइव करने लगा।
हम एक लो-फ्रलोर बस के पीछे-पीछे चल रहे थे, क्योंकि रोड़ पर बहुत रस था, सभी ऑफिस से घर जा रहे थे। अचानक बस ने ब्रेक लगाये। मेरा धयान बस की तरफ नहीं था, तो मुझे भी एकदम से ब्रेक लगाने पड़े। ब्रेक ज्यादा हैवी तो नहीं लगाए थे, पर अपूर्वा निश्चिंत होकर बैठी थी तो इतने से ब्रेक से ही वो वापिस मेरी पीठ से आकर चिपक गई और फिर से उसके बूब्स मेरी पीठ में दब गये। मुझे वापिस काफी मजा आया और फिर से अपूर्वा के मुंह से आंह निकली। पर वह बोली कुछ नहीं। और मेरे कंधे पर हाथ रखकर वैसे ही बैठी रही।
बस अपने स्टैंड पर खड़ी होकर स्वारियां उतार रही थी।
मैं: अरे यार वो धयान नहीं था और बस ने एकदम से ब्रेक लगा दिये तो इसलिए।
अपूर्वा: तो मैंने क्या कहा है? (अपूर्वा की आवाज मुझे थोड़ी भारी व थरथराती हुई लगी)
मैंने स्कूटी को बस के साइड से निकाल लिया और हम चल पड़े। अपूर्वा वैसे ही मेरे कंधे पर हाथ रखकर मुझसे सटकर बैठी थी। थोड़ी दूर चलने पर अपूर्वा वापिस कुछ पीछे हो गई, पर उसके हाथ अभी भी मेरे कंधे पर थे। मुझे उसकी गरम सांसे अपने गले में पीछे महसूस हो रही थी, जिसका मतलब वो मुझसे ज्यादा दूर नहीं बैठी थी। मुझे बैक मिरर में देखा तो अपूर्वा का चेहरा लाल लग रहा था और वो काफी खुश लग रही थी। मैंने वापिस ड्राइव पर धयान देते हुए आगे देखने लगा। थोड़ी दूर चलने पर अपूर्वा ने अपना सिर मेरी पीछ पर रख दिया।
मैं: क्या हुआ नींद आ रही है?
अपूर्वा: नहीं! बस थोड़ा रिलेक्स कर रही हूं, ऑफिस में इतना काम होता है तो थक गई हूं।
मैं: ओके! (और मैंने स्कूटी को धीरे कर लिया ताकि अपूर्वा चैन से रिलेक्स कर सके।
उसने अपने दोनों हाथों को मेरे पेट पर रखकर बांध लिया और मुझसे सटकर बैठ गई और सिर को मेरे कंधे पर रख लिया।
अपने पेट पर लड़की के नर्म हाथों को महसूस करके मेरे पप्पू ने अपनी गर्दन उठानी शुरू कर दी। मेरे शरीर में रह रह कर आनंद की तरंगे उठ रही थी। अपूर्वा के इस तरह चिपक कर बैठने से मुझे आश्चर्य भी हो रहा था और मजा भी आ रहा था। मैं इस पल का भरपूर मजा लेना चाहता था, इसलिए मैंने स्कूटी की स्पीड और कम कर दी और धीरे धीरे चलाने लगा। अपूर्वा के बूब्स मेरी कमर में दबे हुए थे और मुझे अपनी कमर में चुभते हुए महसूस हो रहे थे। मतलब कि वह गर्म हो चुकी थी। 15 मिनट में हम मेरे घर पहुंच गये। आंटी (मकान मालकिन) बाहर मेन गेट पर खड़ी पड़ोस वाली आंटी से बात कर रही थी। मुझे देखकर वो मुस्कराई और साइड में हो गई। मैंने स्कूटी गेट के अंदर लाकर रोकी। अपूर्वा अभी भी वैसे ही मुझे कसके पकड़कर चिपक कर बैठी हुई थी। शायद वो सो चुकी थी। मैंने उसे हल्की आवाज लगाई, पर उसने कोई हलचल नहीं कि तो मैंने धीरे से अपने हाथ को उसके सिर पर रखकर उसके थोड़ा सा हिलाया तो वो जाग गई।
अपने आप को इस तरह मुझसे चिपका हुआ देखकर उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया।
अपूर्वा: प---प----पहुं----पहुंच ----पहुंच गये। ये हम कहां हैं?
मैं: मेरे घर पर हैं, तुम सो रही थी। बड़ी जल्दी नींद आ गई।
अपूर्वा (नजरे चुराते हुए): हां! पता ही नहीं चला कब आंख लग गई। ओके मैं चलती हूं।
मैं: अरे! चाय पीके जाना, नींद खुल जायेगी।
अपूर्वा: नहीं! मेरी नींद खुल गई, लेट हो जाउंगी तो मम्मी डाटेगी।
मैं: चुपचाप उपर चल, चाय पीके जाना, नहीं तो फिर सोच लियो।
अपूर्वा: ओके! पर जल्दी से।

मैं और अपूर्वा उपर आ गये। (मेरा रूम दूसरी मंजिल पर है) ग्राउंड फलोर पर पार्किंग है, फर्स्ट फलोर पर मकान मालिक रहते हैं, और दूसरी मंजिल पर मैं रहता हूं।
उपर आकर मैंने लॉक खोला और अंदर आ गया। मैंने पीछे देखा तो अपूर्वा नहीं थी। मैं वापिस बाहर आया तो अपूर्वा मुंडेर के पास खड़ी होकर आसपास के घरों को देख रही थी। मौसम बहुत ही सुहावना हो रखा था। मंद मंद शीतल हवा चल रही थी।
मैं: अरे अंदर आओ ना, वहीं क्यों रूक गई।
अपूर्वाः हां, वो देख रही थी कि कैसी कॉलोनी में रहते हो। यहां तो चारों तरफ लड़किया ही दिखाई दे रही हैं छतों पर, लड़के तो कम ही हैं।
मैं: क्यों किसी के साथ सैटिंग करनी है क्या, साइड वाले घर में ही दो लड़के रहते हैं। शायद अभी गांव गये हुए होंगे।
अपूर्वा: बकवास ना करो। मैं तो बस ऐसे ही कह रही थी।
मैं वापिस अंदर आ गया और चाय बनाने लगा। अपूर्वा भी मेरे पीछे-पीछे अंदर आ गई और रसोई में मेरे पास आकर खड़ी हो गई।
मैंने चाय में दूध डाला तो चाय फट गई। शायद दूध खराब हो गया था, सुबह गर्म करना भूल गया था।
अपूर्वा (मेरी तरफ देखते हुए): मुझे नींद आ रही है, चाय पिलाओ।
मैं: हूं, मजाक बना रही हो, अभी आंटी से दूध लेकर आता हूं। और मैं नीचे आंटी से दूध लेने चल दिया।
आंटी अभी भी नीचे खड़ी पड़ोस वाली आंटी से बात कर रही थी तो मैंने फर्स्ट फलोर से ही उनको आवाज लगाई और दूध के लिए कहा।
आंटी: अभी आती हूं बेटा। और पड़ोस वाली आंटी को 2 मिनट में आने के लिए कहकर उपर आ गई।
मैं आंटी से दूध लेकर वापस उपर आ गया।
(आंटी के घर में आंटी और उनकी दो बेटियां ही हैं अंकल 5 साल पहले एक्सिडेंट में गुजर गये थे। दोनों बेटियां बड़े वाली बेटी जिसका नाम रीत है अमेरिका में अपनी पढ़ाई कर रही है। मैंने वो कभी नहीं देखी है, बस फोटो ही देखी है, फोटो में तो बहुत खूबसूरत दिखती है और दूसरी बेटी सोनल आंटी के साथ ही रहती है, वो एमटेक कर रही है। सुबह 8 बजे निकलती है तो शाम को 7 बजे ही घर आती है। पता नहीं पूरे दिन बाहर क्या करती रहती है। वैसे वो भी बला की खूबसूरत है, पर मेरी और उसकी मुलाकात कभी-कभी ही होती है)
अपूर्वा: वाह जी! आपकी आंटी तो बहुत अच्छी है। तुरंत दूध दे दिया।
मैं: और क्या! मैं तो जब कभी खाना बनाने का मूड नहीं होता तो खाना भी आंटी के यहीं पर खा लेता हूं।
अपूर्वा: इम्प्रैस होते हुए, वाह जी। आजकल ऐसे मकान मालिक मुश्किल से ही मिलते हैं।
मैंने चाय बनाई और दो प्यालियों में डालकर एक अपूर्वा को दी और दूसरी खुद ले ली। एक कटोरी में मां के बनाये हुए लड्डू डाल कर अपूर्वा को खाने के लिए।
अपूर्वा: ये क्या है?
मैं: लड्डू।
अपूर्वा: मैं नहीं खाती, बहुत ज्यादा घी होता है इनमें।
मैं: अरे खा ले खा ले शरमा मत। मम्मी ने बनाये हुए हैं, बहुत स्वादिष्ट हैं।
और एक लड्डू मैंने उठा लिया और अपूर्वा ने भी एक लड्उू ले लिया।
चाय पीकर अपूर्वा कहने लगी, अब मैं चलती हूं नहीं तो देर हो जायेगी, और मम्मी की डांट खानी पड़ेगी।
मैं: ओके, चलो मैं तुम्हें छोड़ देता हूं।
अपूर्वा: हां! और फिर मैं तुम्हें छोड़ने आ जाउंगी, फिर तुम मुझे छोड़ने चलना। ऐसे ही सुबह हो जायेगी और फिर साथ में ही ऑफिस के लिए निकल पडेंगे।
उसकी बात सुनकर मैं मुस्कराने लगा।
अपूर्वा: ठीक है, अब चलती हूं। ओह माई गोड साढे छः हो गए। आज तो जरूरी मम्मी की डांट खानी पड़ेगी।
मैं अपूर्वा को नीचे तक छोड़ने के लिए आया। अपूर्वा ने अपनी स्कूटी निकाली और बायें बोलकर चली गई। आंटी अभी भी बाहर ही खड़ी हुई थी। पड़ोस वाली आंटी चली गई थी।
आंटी: कौन थी ये बेटा?
मैं: आंटी वो अपूर्वा है, मेरे साथ ही काम करती है, कम्पनी में, वो आज जब ऑफिस से निकले तो मेरी बाईक में पंक्चर हो गया, तो मुझे छोड़ने के लिए आई थी।
आंटीः बेटा! अच्छी लड़की है, नहीं तो आजकल कौन किसकी परवाह करता है, और वो भी लड़की। लगता है वो तुझे पसंद करती है।
मैं: अरे नहीं आंटी ऐसी कोई बात नहीं है, बस हम अच्छे दोस्त हैं तो, इसीलिए।
आंटी: अच्छे दोस्त। हां वो तो पता चल रहा था जिस तरह से वो बैठी थी तेरे पीछे।
आंटी की बात सुनकर मैं शरमा गया और अपना चेहरा नीचे कर लिया।
तभी सोनल अपनी स्कूटी को फरफराती हुई आ गई और गेट के पास आकर हॉर्न देने लगी।
आंटी: कितनी बार कहा है तुझसे, आराम से चला लिया कर। कभी कुछ हो गया ना।
सोनल: मॉम, दरवाजा तो खोलो। आते ही शुरू हो गये।
आंटी: हां खोलती हूं। कुछ कहो भी नहीं इनको तो। एक तो इतनी तेज स्कूटी चलाती है।
सोनल: हाय, समीर कैसे हो?
मैं: झक्कास, आज इतनी जल्दी कैसे आना हो गया?
सोनल: बस, ऐसे ही सोचा आज समीर जी से थोड़े गप्पे लड़ा लूंगी तो जल्दी आ गई।
मैं: अच्छा जी! ते चलो जल्दी से उपर आ जाओ।
आंटी: अब इस फटफटी को अंदर भी करेगी या बाहर ही फर फर करती रहेगी।
सोनल: करती हूं ना! बिगड़ती क्यो हों।
और सोनल ने अपनी स्कूटी अंदर खड़ी कर दी।
बाहर गली में सब्जी वाला आया था, तो मैं जाकर उससे सब्जी लेने लग गया।
सब्जी लेकर मैं उपर आ गया, सोनल पहले से ही उपर पहुंची हुई थी और मुंडेर के पास खड़ी होकर पड़ोस वाले घर में छत पर खड़ी अपनी सहेली से बात कर रही थी।
मैं भी सब्जी अंदर रसोई में रखकर बाहर आ गया।
मैं: क्या बात हो रही, लड़कियों में।
सोनल: आपके लिए नहीं है, हमारी आपस की बात है।
मैं: ओह! गर्ल्स टू गर्ल्स। लगता है बॉयफ्रेंड के बारे में बातें हो रही हैं।
सोनल: बकवास नहीं। मैं बॉयफ्रेंड वगैरह के चक्कर में नहीं पड़ती।

मैं: ओके बाबा! तभी मेरा फोन बज उठा, जो अंदर रूम में रखा था।
मैंने अंदर आकर फोन उठाकर देखा तो नया लेंडलाइन का नम्बर था।
मैंने उठाकर हैल्लो कहा तो दूसरी तरफ से किसी लड़की की आवाज आई - हैल्लो।
मैं: हैल्लो जी! कौन बोल रहे हैं आप।
फोन वाली लड़की: वाह जी! क्या बात है, आप तो लगता है भूल गये हमें।
मैं: जी नहीं ऐसी बात नहीं है, आवाज जानी पहचानी तो लग रही है, पर ये नम्बर सेव नहीं है तो इसलिए पता नहीं चल रहा कि कौन हो आप।
फोन वाली लड़की (मेरे मजे लेते हुए): लगता है कोई और मिल गई जो मुझे भूल गये।
मैं (भी मजे लेते हुए): अब वो तो जी ये पता चले कि कौन बोल रहे हैं आप तभी कुछ डिसीजन हो कि कोई और मिल गई या वो कोई और आप ही हो।
फोन वाली लड़की: मैं तो बता नहीं रही कि कौन हो, पहचान सकते हो तो पहचान लो।
मैं: जी वो मैं अनजान लड़कियों से ज्यादा बातचीत नहीं करता तो इसलिए फोन रख रहा हूं।
तभी मुझे फोन में से पीछे से किसी लेडीज की आवाज सुनाई दी - अपूर्वा बेटी, तेरे पापा बुला रहे हैं।
मैं: आप बड़ी जल्दी पहुंच गये घर पर।
अपूर्वा: हां, मम्मी बोल पड़ी नही ंतो खूब मजे लेती आपके।
मैं: मेरे मजे लेना इतना आसान नहीं है।
अपूर्वा: हां, वो तो पता चल जाता, अगर मम्मी ना बोलती तो।
मैं: अच्छा ये नम्बर किसका है।
अपूर्वा: घर का नम्बर है।
मैं ठीक ही सेव कर लेता हूं, नही ंतो अबकी बार तो कोई और मिल गई का ताना मारा है, अगली बार पता नही क्या ताना मारा जायेगा। वैसे आपको बता दूं कि मुझे अभी कोई और नहीं मिली है। आपका चांस है, मार लो बाजी।
अपूर्वा: बकवास मत करो। वो तो मैं मजे लेने के लिए कह रही थी।
क्रमशः.....................
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