RE: Chudai ki Kahani अंजानी डगर
अंजानी डगर पार्ट--5 गतान्क से आगे.................... किचन मे ठंडा पानी पीकर मेरा गुस्सा थोड़ा शांत हुआ. दीपा को डाँट तो दिया था पर मेरी समझ मे नही आ रहा था कि अब क्या करू. तब तो दिल दिमाग़ पर हावी हो गया था. पर अब मैं वास्तविकता मे वापस आ गया था. मेरी नौकरी जाना लगभग तय थी. मैने खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली थी. मुझे क्या ज़रूरत थी दीपा से उल्टा-सीधा बोलने की.... मैं इसी उधेड़बुन मे था की दीपा की आवाज़ आई- मुझे कॉलेज जाना है, मेरा ब्रेकफास्ट ले आओ. मैने फ्रिड्ज मे से ऑरेंज जूस एक ग्लास मे भर कर किचन से बाहर चल दिया. दीपा डाइनिंग टेबल पर बैठी मुझे कातिल नज़रो से देख रही थी. मैं नज़रे नीची किए टेबल के पास पहुचा और ग्लास रख कर बोला- आप नाश्ते मे क्या लेंगी ? दीपा (नज़रे घुमा कर)- फ्रिड्ज मे बर्गर और क्रेअमरोल्ल रखे होंगे. वही ले आओ. आशु- जी बर्गर तो ख़तम हो गये, स्प्रिंग्रोल्ल और क्रेअमरोल्ल है, ले आउ ? दीपा- कैसे ख़तम हो गये....चलो वही ले आओ. दीपा की नज़र हटी तो मैने उसे एक पल को देखा. 2 दिन मे पहली बार दीपा इतनी सुंदर लग रही थी. वाइट सलवार-सूट और रेड दुपट्टा कयामत ढा रहे थे. वो इतनी शोख लग रही थी कि जो भी देखे तो बस देखता ही रह जाए. उसके बेदाग हुस्न ने एक पल को मुझे जड़ कर दिया. पर अगले ही पल सिर झटक कर मैं किचन मे चला गया. ओवन मे स्प्रिंग रोल रखे और उसे ऑन कर दिया. मैं सोच रहा था की इतनी सुंदर लड़की को ड्रग्स की लत कैसे लग गयी. ये ड्रग्स इसके जीवन को बर्बाद करके ही छोड़ेगी. ओवन की रिंग बजी तो मेरा ध्यान टूटा और मैने प्लेट मे स्प्रिंग्रोल्ल काट कर क्रेअमरोल्ल भी रख लिए. बाहर दीपा फिर वैसी ही नज़रो से मुझे देख रही थी. मैने नज़रे बचा कर ब्रेकफास्ट सर्व कर दिया. दीपा- आज तो तुम्हारी लॉटरी लग गयी....क्यो ? ये सुन कर मैं सकपका गया.. आशु- जी मैं समझा नही. दीपा- मेरा टवल खिसक गया तो तुम्हारे तो भाग खुल गये..क्यो? दीपा ब्रेकफास्ट करते हुए ही ताने मार रही थी. आशु- आपका टवल खुल गया तो इसमे मेरी क्या ग़लती है. आपको कस कर बांधना चाहिए था. दीपा- टवल खुल गया तो तुम्हे मुझे बताना तो चाहिए था. मुझे इतनी देर तक ऐसे ही देखते रहे. आशु- जी मेरा मूह तो दूसरी तरफ था. जब मैं लास्ट मे घुमा तो आप पूरी नं.... ऐसे ही खड़ी थी. दीपा- तुम्हारा मूह दूसरी तरफ था पर मैं सब जानती हू कि नज़रे कहा थी. जब तुमने देख लिया कि मेरा टवल गिर गया है तो उसी वक्त क्यो नही बताया. आशु- ज...जी मैं क्या बताता, आपको टवल खिसकने का एहसास नही हुआ ? मैने तो देखा भी नही. दीपा के चेहरे पर मुस्कान साफ दिख रही थी पर आवाज़ वैसी ही तीखी थी. दीपा- बात मत घूमाओ. सच-सच बताओ कि तुम क्या देख रहे थे. आशु- जी मैने कुछ नही देखा. मैं सच बोल रहा हू. मैने जैसे ही आपको न्यूड देखा तो मैं शरमा गया था. इसलिए मैं तुरंत वाहा से चला गया. दीपा- तुम और शरम ? हा. कल रात को क्या कर रहे थे ? दीपा की बात की टोन मे अजीब सी कशिश थी. आशु- जी मैं समझा नही. दीपा- तुम इतने नासमझ तो नही दिखते. कल रात को भी तो तुमने मुझे न्यूड देखा था. आशु- ज...जी उसमे मेरी क्या ग़लती है. मैने तो आपको उन लड़को से बचाया था. दीपा- हा. पर उसके बाद क्या किया था तुमने ? आशु- ज...जी कमरे की सफाई. दीपा- हा. बहुत स्मार्ट हो, क्यो. दीपा मेरे ही अंदाज मे मुझे ताने मार रही थी और मैं चुपचाप सुन रहा था. दीपा- मुझे नंगा बेड पर पड़ा देख कर कुछ किया था ? आशु- जी आपके उपर चादर डाल दी थी. दीपा- ओह..हो तुमने मुझे छुआ क्यो था ? आशु- जी आपको कपड़े पहनाते वक्त छू गया होगा. दीपा- केवल चादर डाल देते. कपड़ो की क्या ज़रूरत थी. आशु- आप एकदम न्यूड पड़ी थी...कोई आ जाता तो. दीपा- मेरे शरीर को छूने के लिए तुमने मुझे कपड़े पहनाने का नाटक किया. मेरा टॉप पहनाते वक्त तुम्हारी नज़रे कहा थी और तुम्हारे हाथ क्या कर रहे थे, मैं सब जानती हू. आशु- ज..जी वो टॉप पहनाते समय हाथ लग गया होगा. दीपा- लग गया होगा क्या मतलब ? आशु- मैने एक हाथ से आपका टॉप पकड़ा था और दूसरे से .... दीपा- और दूसरे से मेरे बूब्स को छेड़ रहा था...क्यो ? आशु- जी आपका टॉप इतना छोटा था कि उसमे वो घुस ही नही रहे थे. इसलिए मुझे उन्हे दबा कर घुसाना पड़ा. दीपा- वाह. किसी लड़की की बूब्स को दबाने का क्या लेटेस्ट बहाना बनाया है. आशु- जी..सॉरी...आप तब क्या होश मे थी ? दीपा के चेहरे पर कातिल मुस्कान तेर गयी. पर वो इतने से ही नही मानी. दीपा- होश मे थी या नही, तुम ये देखो कि तुमने क्या किया. आशु- जी...सॉरी..आगे से नही होगा. दीपा- ठीक है, आगे देखते है कि क्या होगा और क्या नही. मैं कॉलेज जा रही हू. ये शब्द सुन कर मेरी जान मे जान आई. फिर दीपा उठकर बाहर जाने लगी और मैं उसके कुल्हो की हरकत देखता रहा. मैने कान पकड़े की आगे से दीपा से बच कर रहना है. दीपा के जाने के बाद मैं पूरे घर मे फिर अकेला था. मैने पूरे घर का मुआयना किया. घर मे एक से एक एलेक्ट्रॉनिक आइटम पड़ी थी. स्कल्प्चर्स और पेंटिंग्स भी हर दीवार पर थी. बाथरूम तो कमरो से ज़्यादा बड़े थे. हर एक मे जेक्यूज़ी था. इतने शानदार बंगले मे मालकिन के बगल के सूयीट मे रहना, 50000 की तन्खा और सबसे बढ़कर मेडम का शानदार जिस्म. मुझे बिन माँगे इतना मिल गया था कि अपनी किस्मत रश्क हो रहा था. मेडम का ख़याल आते ही लंड मे जोश भरने लगा. ये मेडम ही थी जिन्होने मेरी जिंदगी मे इतने रंग भर दिए थे. उन्होने ही मुझे लड़के से आदमी बनाया था. मेरा पहला वीर्यापात उनकी ही कृपा से हुआ था. अचानक ही उस पहले वीर्यापात के पल को याद करके मेरे शरीर मे एक मीठी सी चीस मार गयी. ये सब सोचते हुए मैं दीपा के कमरे मे पहुच चुका था. वाहा दीपा की बड़ी सी तस्वीर देख कर उसके हुस्न मे खो गया. ऐसा बेदाग सौन्दर्य मैने अपने जीवन नही देखा था. उसकी आवाज़ की खनक मेरे कानो मे गूँज रही थी. सफेद सलवार सूट मे उसके चित्र को मेरे मन ने सज़ा लिया था. पर मैं उसके त्रिया-चरित्र को समझ नही पा रहा था. अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए मेरी शुक्रगुज़ार होने की बजाए उसने मुझे ही कटघरे मे खड़ा कर दिया था. दीपा की इज़्ज़त को बचाते वक़्त मेरे मन मे वासना का रत्ती भर भी ख़याल नही था. उसे नंगी देख कर भी मेरा मन नही डोला था. पता नही मुझे क्या हुआ था.... इन्ही ख़यालो मे खोया हुआ मैं अपने नये कमरे मे जाकर सो गया. पता नही इस घर मे आकर मुझे इतनी नींद क्यो आ रही थी. या मैं ही इतने ऐश-ओ-आराम पाकर आलसी हो गया था. जब भी खाली होता हू तो सोने का मन करता. दीपा के जाने के बाद आँख लगी तो सीधे शाम के 6 बजे खुली. इतना सोने के बाद भी आलस आ रहा था. दीपा का ख़याल आया तो मैं उठ कर दीपा के कमरे मे गया वो खाली था. फिर मैने इंटरकम से नरेश को बात की. आशु- अरे यार वो दीपा मेडम अभी तक नही आई है. नरेश- तुझे क्यो चिंता हो रही है. दीपा अभी नही आएगी. वो रात को 10 बजे के बाद ही आती है. आशु- अच्छा ठीक है. ये कौन सा कॉलेज है जो सुबह से रात तक चलता है. फिर मुझे ख़याल आया कि वो गयी होगी अपने नशे की प्यास के लिए. सुबह मैने उसका माल तो गायब कर दिया था. मैने कुछ रुपये उठाए और किचन आदि का सामान लेने बाजार चल दिया. वापस आने मे 9 बज गये थे और बादल भी गरज रहे थे. मैं तेज कदम बढ़ने लगा. मैं मेनगेट से करीब 50 मीटर की दूरी पर था कि अचनांक तेज बरसात पड़नी शुरू हो गयी. तभी एक गाड़ी सीधे गेट के साथ वाले पेड़ से जा टकराई. जोरदार आवाज़ थी पर सड़क सुनसान थी. मैं भाग कर वाहा पहुचा. नरेश पहले ही गेट खोल कर बाहर आ चुका था. अंदर एक लड़की ड्राइविंग सीट पर बैठी थी और स्टियरिंग वील पर बेहोश पड़ी थी. एरबॅग्स खुल गये थे नही तो बचना मुश्किल था. मैने उसकी हालत देखने को ज़रा सा पलटा, वो दीपा थी. मेरे पैरो के नीचे से ज़मीन खिसक गयी. मैने उसे हिलाने डुलाने की कोशिश की पर वो होश मे नही आई. गनीमत थी की कही से खून नही निकला था. मैने तुरंत उसे अपनी दोनो बाँहो मे उठाया और बिल्डिंग की और भागा. दीपा एकदम फूल की तरह हल्की थी. उसका वेट 45 केजी से ज़्यादा नही था. तेज बरसात हो रही थी. मेनगेट से बिल्डिंग लगभग 150 मीटर दूर थी. बरसात की बूंदे दीपा के चेहरे पर पड़ रही थी. मैने उसका चेहरा ढकने के लिए उसका दुपट्टा उपर कर दिया. पर शायद मुझसे ग़लती हो गयी थी. अब बरसात से उसका सूट भीगने लगा. बिल्डिंग तक पहुचते-पहुचते हम दोनो पूरी तरह भीग चुके थे. मैं सीधे उसे उसके कमरे मे ले गया. बेहोशी मे भी उसका चाँद सा चेहरा दमक रहा था. मैने पानी के छींटे उसके चेहरे पर मारे पर कोई फायेदा नही हुआ. दीपा के शरीर मे कोई हुलचल नही थी. मैने उसकी नब्ज़ चेक की, वो चल रही थी. मैने डॉक्टर को बुलाने के लिए फोन उठाया पर वो डेड पड़ा था. बाहर इक्लोति कार का भी आक्सिडेंट हो चुका था. बारिश मे कोई कन्वेयन्स मिलने की आशा नही थी. मेरी समझ मे नही आ रहा था कि क्या करू. अब मुझे भी ठंड लग रही थी, इसलिए मैने अपनी गीली टी शर्ट और जीन्स निकाल दी. अब मैं अंडरवेर और संडो मे ही था. मैने एक नज़र दीपा को देखा. वो बेचारी भी पूरी तरह भीगी हुई थी. उसके कपड़े बदलना ज़रूरी थे नही तो सरदी होने का ख़तरा था. मैने उसके कपड़ो को हाथ लगाया ही था कि किसी ताक़त ने मुझे रोक दिया. मैं बड़े धरम-संकट मे फँस गया था. दीपा ने मुझे कपड़े पहनाने के लिए इतना झाड़ दिया था कि अब उसके कपड़े उतारने की हिम्मत ही नही हो रही थी. दूसरी ओर दीपा को इस हालत मे भी नही छोड़ सकता था. थोड़ी देर था अंतर्द्वंद चलता रहा पर अंत मे दिमाग़ पर दिल की जीत हुई. क्रमशः............
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