RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
अब उसने अपने दोनों हाथ मेरी केले के तने जैसी जाँघों पर रखे और उन्हें चौड़ा करने लगा. मेरा तो सारा खजाना ही जैसे खुल कर अब उसके सामने आ गया था. वो थोड़ा नीचे झुका और फिर उसने पहले तो मेरी चूत पर हाथ फिराए और फिर उस पतली लकीर पर उंगुली फिराते हुए बोला,'भौजी.. तुम्हारी छमिया तो बहुत खूबसूरत है, लगता है उस राजेश्वर भईया ने इसका पूरा मज़ा नहीं लिया है.'
मैंने शर्म के मारे अपने हाथ अपने चहरे पर रख लिए. अब उसने दोनों फांकों की बालियों को पकड़ कर चौड़ा किया और फिर अपनी लपलपाती जीभ मेरी चूत की झिर्री के नीचे से लेकर ऊपर तक फिरा दी. फिर उसने अपनी जीभ को 3-4 बार ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर फिराया. मेरी चूत तो पहले से ही काम रस से लबालब भरी थी. मैंने अपने आप ओ रोकने की बहुत कोशिश की पर मेरी सीत्कार निकलने लगी. कुछ देर जीभ फिराने के बाद उसने मेरी चूत को पूरा का पूरा मुँह में भर लिया और जोर जोर से चूसने लगा. मेरे लिए यह किसी स्वर्ग के आनंद से कम नहीं था.
राजेश्वर को चूत चाटने और चूसने का बिलकुल भी शौक नहीं है. एक दो बार मेरे बहुत जोर देने पर उसने मेरी चूत को चूसा होगा पर वो भी अनमने मन से. जिस तरह से गजेन्द्र चुस्की लगा रहा था मुझे लगा आज मेरा सारा मधु इसके मुँह में ही निकल जाएगा. उसकी कंटीली मूंछें मेरी चूत की कोमल त्वचा पर रगड़ खाती तो मुझे जोर की गुदगुदी होती और मेरे सारे शरीर में अनोखा रोमांच भर उठता.
उसने कोई 5-6 मिनट तो जरुर चूसा होगा. मेरी चूत ने कितना शहद छोड़ा होगा मुझे कहाँ होश था. पता नहीं यह चुदाई कब शुरू करेगा. अचानक वो हट गया और उसने भी अपने कच्छे को निकाल दिया। 8 इंच काला भुजंग जैसे अपना फन फैलाए ऐसे फुन्कारें मार रहा था जैसे चूत में गोला बारी करने को मुस्तैद हो.उसने अपने लण्ड को हाथ में पकड़ लिया और 2-3 बार उसकी चमड़ी ऊपर नीचे की फिर उसने नीचे होकर मेरे होंठों के ऊपर फिराने लगा. मैंने उसे अपने दोनों हाथों की मुट्ठियों में पकड़ लिया मैंने अपनी दोनों बंद मुट्ठियों को 2-3 बार ऊपर नीचे किया और फिर उसके सुपारे पर अपनी जीभ फिराने लगी तो उसका लण्ड झटके खाने लगा।
'भौजी इसे मुँह में लेकर एक बार चूसो बहुत मज़ा आएगा.'
मैंने बिना कुछ कहे उसका सुपारा अपने मुँह में भर लिया. सुपारा इतना मोटा था कि मुश्किल से मेरे मुँह में समाया होगा.मैंने उसे चूसना चालू कर दिया पर मोटा होने के कारण मैं उसके लण्ड को ज्यादा अंदर नहीं ले पाई. अब तो वो और भी अकड़ गया था। गजेन्द्र ने अपनी आँखें बंद कर रखी थी और दोनों हाथों से मेरा सर पकड़ कर सीत्कार करने लगा. मुझे डर था कहीं उसका लण्ड मेरे मुँह में ही अपनी मलाई ना छोड़ दे. मैं ऐसा नहीं चाहती थी.3-4 मिनट चूसने के बाद मैंने उसका लण्ड अपने मुँह से बाहर निकाल दिया.
अब वो मेरी जाँघों के बीच आ गया और मेरी चूत की फांकों पर लगी बालियों को चौड़ा करके अपने लण्ड का सुपारा मेरी चूत के छेद पर लगा दिया. मैं डर और रोमांच से सिहर उठी. हे भगवान इतना मोटा और लंबा मूसल कहीं मेरी चूत को फाड़ ही ना डाले!
अब उसने अपना एक हाथ मेरी गर्दन के नीचे लगा लिया और दूसरे हाथ से मेरे उरोजों को मसलने लगा. फिर उसने अपनी अंगुली और अंगूठे के बीच मेरे चुचूक को दबा कर उसे धीरे धीरे मसलने लगा. मेरी सिसकारी निकल गई. उसका मोटा लण्ड मेरी चूत के मुहाने पर ठोकर लगा रहा था. मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी यह अपना मूसल मेरीचूत में डाल कर उसे ओखली क्यों नहीं बना रहा. मेरा मन कर रहा था कि मैं ही अपने चूतड़ उछाल कर उसका लण्ड अंदर कर लूँ. मेरा सारा शरीर झनझना रहा था और मेरी चूत तो जैसे उसका स्वागत करने को अपना द्वार चौड़ा किये तैयार खड़ी थी.
अचानक....................................
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