RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
संगीता कुछ ही झटके झेल पाई। फिर कराह उठी लेकिन उसे बहुत ही मजा आ रहा था। जैसे-जैसे लौड़ा धकापेल कर रहा था उसकी कराह बढ़ रही थी। चूत पानी-पानी हो रही थी- “ओओ ओओओ आआआ ओ मेरी मम्मी ओ माईई गोड उईईई माँ मैं मरीईई… उउउउइइइइ रीईईइ…”
शेखर बाहर तक बाहर खींचता।
संगीता दांतों के ऊपर दांत जकड़े हुये अंदर खींचती लंबी सांस- “ओ मेरे शेखर ऊऊऊऊऊ हुहुहु…”
और शेखर सीधा खटाक से अंदर कर देता।
जब चोट पड़ चुकती तो जोर से संगीता की सांस बाहर होती- “उफ्फ्फ्फ…”
शेखर भी चरम आनंद में भर गया था- “ओ मेरी संगीता डार्लिंग… मेरा और ले ले… तुम्हारे जैसी चूत कोईईई नहींईइ…” उसने लण्ड को मुट्ठी मैं पकड़ा और लण्ड घुसेड़ा तो साथ में एक उंगली भी छेद में डालता ही गया।
संगीता और न ठहर सकी- “ओ मेरी माँ… मैं तो गईई… लगा दोओ कस के…” उसकी चूत फड़क उठी चूत के ज्वालामुखी ने लावा छोड़ दिया और छोड़ती गई।
शेखर बहुत कस-कस के झटके लगाते हुये बोला- “ओ मेरी संगीता मैं भी झड़ा… अब लो मेरे को…”
मैंने जल्दी से कहा- “शेखर, अंदर मत झड़ना…”
और शेखर ने लण्ड बाहर खींच लिया। उसका सफेद लावा उफन-उफन कर मेरी चूत पर फैलता रहा और वह मेरे ऊपर ढेर हो गया। काफी देर तक हम एक दूसरे की बांहों में लेटे रहे। मैंने उसे बड़े प्यार से हटाया।
तो बोली- “बहुत देर हो गई है गनीमत है कि वो देर से आते हैं…” फिर अपनी पैंटी से चूत के ऊपर से शेखर का रस साफ किया और कपड़े पहनकर जाने के पहले उसकी तरफ देखकर शरारत से बोली- “लाला जी आपका आज रात का खाना हमारे यहां है जिसकी दावत देने के लिये ही मैं यहां आई थी…”
मैं चुदी थी, चुदी थी और खूब चुदी थी। न चुदाई कराके भागने की जल्दी थी और न आवाज करने, चिल्लाने पर बंदिश जो मुझे वर्षों से नशीब नहीं हुआ था।
जब मैं ऊपर जा रही थी तो एकदम हल्की थी जैसे हवा में उड़ रही हूँ।
उस दिन के बाद शेखर से हमरो संबंध और गाढ़े हो गये। मैं उसकी भाभी और वह मेरा देवर था सिवाय उस समय के जब वह मुझे पकड़ के अपनी कसर निकालता था। उस समय वह मुझे संगीता कहता था। कम से कम महीने में एक दिन तो ऐसा आता ही था। इसमें कोई पछतावे की बात नहीं थी। वह सच्चे देवर की तरह वर्ताव और कर्तव्य करता था। मैं उसे चाहती थी।
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***** THE END समाप्त *****
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