RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
शिशिर ने रजनी को प्यार से चूम लिया- “रजनी भाभी भी तो अपनी हैं…” फिर सुनीता को और भींचते हुये बोला- “भाभी शुरूआत तो मैं आप से ही करूंगा लेकिन तुम दोनों इतनी अच्छी लग रही हो कि मैं कुछ भी नहीं उतारना चाहता…”
लेकिन रजनी उसका पैंट उतार चुकी थी। अंडरवेर खींचकर रजनी ने उसके लण्ड को मुट्ठी में बांधा तो जैसे लोहे की गरम राड पर हाथ रख दिया हो। शिशिर का बड़ा मोटा और लंबा लण्ड सांप की तरह ऊपर मुँह बाये खड़ा था। पत्थर की तरह सख्त। उसको देखते ही रजनी के मुँह से निकल गया- “ओ माई गुडनेश… अब समझी कि सुनीता इतनी दिवानी क्यों हो रही थी…” फिर रजनी शिशिर की बांहों से खिसक कर नीचे घुटनों के बल बैठ गई। मुट्ठी में बाँधकर उसका लण्ड सीधा अपने सामने कर लिया और मुँह खोलकर अपने नरम होंठ उसके ऊपर रख दिये।
होंठ लगते ही शिशिर की वासना एकदम जाग उठी। हाथ बढ़ाकर शिशिर ने रजनी को उठा लिया और सुनीता की कमर में हाथ डालकर उन्हें खींचता हुआ बेड तक ले गया। रजनी को बेड के पैताने कारपेट पर बैठा दिया और सुनीता को बेड पर चित्त गिरा दिया। शिशिर ने सुनीता की साड़ी ऊपर तक उलट दी। बाहर के ही नहीं अंदर के कपड़े भी उसने कीमती पहन रखे थे। लेस लगी डिजाइनर पैंटी पर चूत के पानी से एक बड़ा धब्बा बन गया था। शिशिर ने पैंटी अलग की तो सामने दो चिकनी सपाट जांघें थीं, संतरे की रसभरी फांक की तरह सूजी-सूजी चूत की पंखुड़ियां थीं जिनके भीतर से गुलाबीपन झांक रहा था, अर्ध-गोल सुडौल नितम्ब थे जिनके बीच में गहरी दरार थी।
उसके मुँह से निकल गया- “भाभी तुम बाकई बहुत खूबसूरत हो…”
दोनों हाथों से उसने सुनीता को खींच लिया और उसकी जांघें अपने कंधों पर धर लीं। सुनीता का धड़ पलंग पर था, नितम्ब पलंग से ऊपर उठे हुये थे और मुँह खोले चूत शिशिर के मुँह से सटी हुई। सुनीता की चूत से मदमस्त सुगंध निकल रही थी। शिशिर ने अपने होंठ सुनीता की चूत की पंखुड़ियों से सटा दिये और चूतड़ आगे करके अपना लण्ड पलंग से टिकी बैठी रजनी के होंठों से लगा दिया।
रजनी ने सिर ऊंचा करके उसका लण्ड अपने होठों में ले लिया।
जैसे ही शिशिर ने चूत के अंदर के उभार को होंठों में दबोचा, सुनीता के मुँह से एक सीत्कार निकल गई और वह तनकर के धनुष की तरह हो गई। वह चूत की उठान को होंठों से इस तरह चूसने लगा जैसे संतरे की फांक चूस रहा हो।
नीचे बैठी रजनी शिशिर के लण्ड को जड़ से दायें हाथ की मुट्ठी में बांधे लालीपोप की तरह चटखारे लेकर चूस रही थी।
शिशिर दोहरे मज़े ले रहा था।
रजनी ने मुट्ठी को लण्ड के सिरे तक फिसलाकर उसके ऊपर की खाल को हटा दिया तो लण्ड का सुपाड़ा निकल आया। जैसे लालीपोप खा रही हो, उसने सुपाड़ा अपने मुँह में लेकर हलके से दांत लगा दिये।
शिशिर उत्तेजना से कराह उठा और उसने सुनीता की चूत की उठान पर हलके से दांत लगा दिये।
सुनीता के मुँह से चीख निकल गई, बोली- “ओ देवरजी तुम तो काटते हो…”
शिशिर क्लिट पर जीभ फेरने लगा। सुनीता की सिहरन बढ़ गई। उसने शिशिर के सिर पर हाथ रखकर और कस के उसका मुँह चूत पर दबा लिया। शिशिर ने साथ ही चूतड़ आगे करके और जोर से लण्ड चूत के मुँह में पेला। रजनी ने चूत के होंठों की पकड़ और बढ़ा दी।
जब रजनी जोर बढ़ा देती थी तो शिशिर सुनीता की चूत पर कसर निकालता था और जब सुनीता रगड़ बढ़ा देती की तो शिशिर रजनी पर कसर मिटाता था। शिशिर सुनीता और रजनी के बीच माध्यम बन हुआ था।
सुनीता जोरों से- “उईईई… आआआह्ह…” करे जा रही थी।
रजनी के मुँह से निकल रहा था- “उहूँहूँहूँ हूँहूँहूँ हूँ…” जैसे बड़ी स्वादिष्ट चीज़ चाट रही हो।
शिशिर की जीभ चूत की गहराइयों तक घुस जाती थी और सुनीता तड़प-तड़प जाती थी। शिशिर दोनों हाथों से सुनीता की दोनों चूचियों को मसल रहा था। उसके दोनों चूचुक ब्लाउज़ के ऊपर ही एक-एक इंचा उभर आये थे।
रजनी उंगली और अंगूठे की रिंग बना के शिशिर के लण्ड को उसमें ले रही थौ साथ ही मुँह से चूसती जाती थी।
काफी देर तक वे मज़े लेटते रहे। सुनीता की गुलाबी तितली तनकर सख्त हो गयी थी। शिशिर ने उसके ऊपर अंगूठा रखा।
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