RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
रजनी
मुझे यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि सुनीता ने शिशिर को तैयार कर लिया है। सुनीता का साथ रहना भी मुझे भा रहा था। सुनीता ने जब प्रश्न उठाया कि- लेकिन राकेश और रूप से बचाकर मिलोगी कैसे?
तो मैंने उसको चैलेंज जैसा लेते हुये कहा- “तुम इसकी फिक्र न करो, मेरे ऊपर छोड़ दो…” लेकिन यह बड़ी समस्या थी। हम लोग छुट्टियों में थे और सब लोग साथ ही निकलते थे। उनसे अलग रहकर एक रात निकल पाना टेढ़ी खीर था। मैंने एक प्लान बनाया। सुनीता को नहीं बताया नहीं तो वह मना कर देती। मैंने सोचा कि रूप और राकेश को किसी और के संग लगा दें। ठीक भी था जब हम लोग मज़े ले रहे थे तो उनको भी मज़े ले लेने दें। सबके ऊपर नजर दौड़ाई तो मिसेज़ अग्रवाल ठीक लगीं। अच्छा भरा बदन था। खूब उभार लिये सीने थे, भारी सेक्सी चूतड़ थे, और उनके जल्दी राजी हो जाने की उम्मीद भी थी। मैंने प्लान पर काम करना चालू कर दिया।
सबसे पहले मिसेज़ अग्रवाल का तैयार करना था। मैं उनसे अकेले में मिली तो सेक्स की बातों के साथ उनके सेक्सी शरीर की बड़ी तारीफ कर दी और कहा- “बुरा न मानो तो एक बात कहूँ… रूप तो तुम्हारे ऊपर मर मिटा है। जब भी मुझे करता है तो तुम्हारा नाम ले-लेकर ही लगाता है…”
मिसेज़ अग्रवाल शर्माती हुई बोलीं- “ओ माँ… बड़े बुरे हैं वो…”
मैंने उनके हाथ को दबाते हुये कहा- “बुरे नहीं, जब तुम्हारे नाम का लगाते हैं तो मुझे तारे नजर आ जाते हैं। तुम लगवाके देख लो न…”
मिसेज़ अग्रवाल- “तुम उन्हें परमिशन दे दोगी?”
मैं- “वो जिस शुख को लेना चाहते हैं, मैं क्यों रोकूं। तुम अपनी बाताओ तुम्हें मंजूर है?”
उन्होंने आँखों से हामी भर दी।
उसी रात मैंने रूप से चुदाई कराई। उसकी मन की बात करके तबीयत खुश कर दी। जब वह धक्के लगा रहा था तो मैंने बात छेड़ी- “रूप, मिसेज़ अग्रवाल का दिल है तुम्हारे ऊपर… तुमसे मजा लेना चाहती हैं…”
रूप ने पूछा- “तुमको कैसे मालूम हुआ?”
मैंने कहा- “खुद उन्होंने मुझसे इशारों में कह दिया। तुमसे कहने की हिम्मत नहीं हुई कि तुम मना न कर दो…”
यह बातें करते हुये रूप के धक्के की रफ्तार बढ़ गई।
मैंने बात जारी रखी- “लेकिन रूप एक बात है, उनका ज्यादा माल खाने का मन है। तुम्हारा और तुम्हारे दोस्त राकेश दोनों का साथ-साथ खाना चाहती हैं…”
रूप का मन थोड़ा बुझ गया- “पता नहीं राकेश का? वह उसकी बीवी पता नहीं…”
मैंने चूत कस कर लण्ड पर जमाते हुये उसको उकसाया- “तुम्हारा दोस्त है तैयार करो उसको। तर माल खाने को मिल रहा है…”
रूप ने जवाब में पूरा पेलते हुये कहा- “करता हूँ उसको तैयार…”
मैंने चूत उसकी झांटों से रगड़ते हुये कहा- “डार्लिंग जल्दी करना, वह मुझसे पूछेगी…”
उसके बाद रूप के चोदने में बहुत उत्साह आ गया।
दूसरे दिन ही जवाब मिल गया। राकेश बाखुशी तैयार हो गया। मुझे अब फिर से संगीता अग्रवाल से बात करनी थी। मैं पुराने जमाने की कुटनी का रोल कर रही थी। पत्नियां चुदवाना चाहती थीं, पति चोदने को बेकरार थे, लेकिन कितनी अजीब बात थी की दोनों ही किसी और के लिये दीवाने हो रहे थे। किसी और को चूत देने के नशे मैं मैंने कैसी-कैसी चालें चलीं थीं।
मिसेज़ अग्रवाल से मिली तो अलग ले जाकर चिउंटी काटती हुई मैं फुसफुसा के बोली- “तेरे मज़े हैं, रूप और राकेश दोनों ही लगाना चाहते हैं…”
संगीता अग्रवाल समझी नहीं बोली- “अभी तो एक बार मिलना बहुत है…”
मैंने कान में कहा- “एक साथ ही दोनों हाँ…” और मैंने उसका हाथ दबा दिया।
संगीता के चेहरे पर घबड़ाहट थी बोली- “न बाबा न… ऐसा कैसे हो सकता है?”
मैं झूठ बोली- “बड़ा मजा आता है, मैं तो कई बार करा चुकी हूँ। सोचे दो लण्डों का अलग-अलग स्वाद मिलेगा…”
संगीता के चेहरे पर वासना नाचा उठी- “सच… क्या मैं करा पाऊँगी?”
मैंने हाथ दबाकर उसके तसल्ली दे दी। वह भी लगवाने के लिये उत्तेजित हो गई। भाग्य से मिस्टर अग्रवाल को दो दिन बाद बाहर जाना था। उस दिन की रात मिसेज़ अग्रवाल के यहां रूप और राकेश के लिये बुक हो गई। मिसेज़ अग्रवाल खाना बड़ा जायकेदार बनाती थीं और खुद भी जायकेदार थीं। रूप और राकेश की बड़ी दावत पक्की थी। हम लोगों के लिये मैदान साफ हो गया।
मैंने सुनीता को सुझाया कि वह घर में इंतेजाम न करे। किसी भी कारण से रूप और राकेश वापिस आ पहुँचे तो हम लोग रंगे हाथों पकड़े जायेंगे। सुनीता ने शिशिर को खबर कर दी।
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