RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
रजनी की कहानी
सुनीता को उकसाना तो एक बहाना था। सुनीता को देखकर मेरी चूत भी शिशिर से चुदवाने के लिये बेकरार हो रही थी। शर्त के बाद मुझे खुला मौका मिल गया। डोरे डालने के लिये मैंने स्त्री सुलभ हथियारों का इश्तेमाल किया जिसमें शरीर की भाषा, नैनों की भाषा और प्रेम की भाषा शामिल थी। मैं बड़ी सेक्स भरी आवाज में उससे बातें करने लगी। आँखों में रस भर के कहती- “मैं भी तो तुम्हारी भाभी हूँ। सुनीता जैसा मेरा भी तो अधिकार है…”
कभी बदन को ऐंठकर कुटिलता से कहती- “रात को तो मेरी हालत खराब हो गई…” आफिस फोन कर देती कहीं ले जाने या लंच पर ही ले जाने के लिये। रेस्टोरेंट में बड़े टाइट कपड़े पहनकर जाती जिनसे मेरे चूचुक के आकार साफ दिखाई देते, चूतड़ के उभार साफ नजर आते। बात-बात पर उस पर गिर पड़ती, कंधे पर सिर रख देती, साथ मैं सेक्स भरी बातें भी करती जाती। इन सबका असर यह हुआ कि शिशिर मेरे से बहुत खुल गया। दो मतलब लिये हुये सेक्स भरा मजाक भी करने लगा। जल्दी ही एक दिन शिशिर के आफिस में ही मैंने हाव-भाव से साफ जाहिर कर दिया कि अब क्यों देर करते हो लगाओ न मुझमें और उससे सटकर मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। ले
किन शिशिर पीछे हट गया। उसने एकदम हाथ नहीं झटका न ही मुझे। धकेला बल्की बाहर चलते हुये बोला- “चलो घर चलें, कुमुद इंतजार कर रही होगी…”
मैं समझ गई कि लोहा पूरी तरह गरम करने के लिये शारीरिक तरीके से बढ़ने की जरूरत है। मैं शरीर का मजा देने के लिये मौके की तलाश में थी और वह मौका मुझे मिल गया। शहर में नुमायश लगी थी। सुनीता, राकेश, शिशिर, कुमुद, मैं, रूप सब लोग गये।
मैं टाइट सलवार-सूट में थी। एक जगह स्टेज पर गाने बजाने हो रहे थे। लोग घेरा बना के जमा थे। अंथेरा हो रहा था और वह जगह ज्यादा ही अंधेरी थी। हम सब लोग भी गाने सुनने के लिये खड़े हो गये। मैं शिशिर के सामने खड़ी हो गई। अनजानी सी पीछे हुई और अपने पीछे का हिस्सा उसके सामने से चिपका दिया। मेरी चूतड़ों की गोलाइयां उसकी जांघों में पूरी तरह फिट हो गईं थीं।
मैं चूतड़ों की दरार में उसके सख्त होते हुये लण्ड को महसूस करने लगी थी कि तभी वह वहां से हट गया और सुनीता के पीछे जाकर खड़ा हो गया। सुनीता के चेहरे पर एक मुश्कान उभरी जो मुझे चिढ़ाने के लिये भी थी और शिशिर की उसको लण्ड लगाने की मक्कारी पर भी।
मैंने सीधी खुराक देने की ठान ली क्योंकी मेरे वहां रहने में कुल छह दिन और रह गये थे जिनमें मुझे अपनी मनमानी करनी थी। अगले ही दिन पिकनिक थी। मैंने उस दिन साड़ी पहनी लेकिन अंदर पैंटी नहीं पहनी। पिकनिक में चादर पर मैं शिशिर के सामने बैठी थी, घुटनों को ऊपर करके। जब देखा कि लोग नहीं देख रहे हैं तो मैंने अपनी टांगें थोड़ी चौड़ी कर दीं जिससे अंदर का नजारा दिख सके। मैंने नोट किया कि शिशिर के ऊपर असर पड़ा है।
शिशिर दबी आँखों से मेरी साड़ी के अंदर झांक रहा था। ऐसा मैं कभी-कभी ही कर पा रही की क्योंकी इतने लोगों के बीच में बैठी थी, लेकिन उनको शक भी नहीं हो सकता था कि मैंने पैंटी नहीं पहनी है। अबकी बार मौका मिला तो मैंने टांगें पूरी खोल दी, इतनी कि मेरी चूत का मुँह भी खुल गया होगा। अब नजारा उसके सामने था और वह भी जैसे सब कुछ भूलकर आश्चर्य से घूरे जा रहा था। मैं भी उसकी तरफ देखकर मक्कारी से मुश्कुरा रही थी।
शिशिर सोच रहा था- “ओ माइ गोड कैसी फूली-फूली रसभरी चूत है… सुनीता भाभी से कम नहीं…”
सुनीता की नजरों से यह खेल छुपा न था। जब सुनीता ने शिशिर को रजनी की चूत को घूरते हुये देखा तो हैरानी भी हुई और शिशिर पर गुस्सा भी आया। उसने आवाज देकर शिशिर को कार से खेल का सामान लाने को भेज दिया।
जब अकेले में शिशिर भाभी-भाभी करता हुआ सुनीता के पास आया तो सुनीता बोली- “देवरजी बड़ी लार टपक रही थी। ये समझ लेना कि कहीं और मुँह मारा तो अपनी भाभी से परांठे कभी भी नहीं खा पाओगो…”
मैंने सुनीता की चालाकी जान ली थी, जब उन्होंने शिशिर को हटा दिया। उसके बाद उन लोगों को कुछ घुसपुस करते हुये भी देखा। समझ गई कि मान मनौवल चल रही होगी, क्योंकी सुनीता को अपना कंट्रोल खतम होते हुये दिख रहा है। मुझे अपनी चूत की ताक़त पर भरोसा था। जानती थी कि ऐसी चूत देखने के बाद कोई भी अपने को काबू में नहीं रख सकता। उस रात मैंने उथेड़बुन करके कैसे भी शिशिर से अकेले में मिलने का समय निकाला।
मैं शिशिर से झूठी नाराजी दिखाती हुई बोली- “क्या देखे जा रहे थे। आज मैं पैंटी पहनना भूल गई तो तुमको शर्म नहीं आती, अंदर ताक-झाँक करते हो…”
शिशिर- “जब देखने लायक चीज़ होगी तो आँखें अटकेंगी ही…”
मैं- “तो फिर चाहिये है उसको?”
शिशिर- “उसके दावेदार तो और भी हैं। आप मेरी भाभी की सहेली हैं हमें आपकी इज्जत करनी है…”
मैं कुछ बौखला सी गई, बोली- “सुनीता और हम एक हैं। तुममें और सुनीता में क्या है मुझे सुनीता ने सब बता दिया है फिर हमको लेने में क्यों परहेज करते हो?”
शिशिर मेरा हाथ पकड़कर अनुनया भरे स्वर में बोला- “जब आप सब जानती ही हैं तो इन संबंधों को हम लोगों के बीच में ही रहने दीजिये न। सेक्स छोड़ दीजिये बाकी सब बातें मैं आपकी सुनीता भाभी की ही तरह मानूंगा। आप को कोई शिकायत नहीं होगी…”
उसकी तरफ देखकर कहने को कुछ और नहीं रह गया था। मैं सोच भी नहीं सकती की कि मेरी जैसी औरत देने को तैयार हो और कोई आदमी लेने से मना कर दे।
सुनीता भी शायाद नहीं सोच सकती थी क्योंकि जब मैंने बताया तो अचानक खुशी से वह उछल पड़ी और मेरे गले लग गई।
सब कुछ बता देने के बाद मैंने सुनीता से कहा- “अच्छा भाई, मैं भाभी भक्त देवर को मान गई लेकिन जाने के पहले उसका मजा तो चखा दो जिसने मेरी सहेली की यह हालत कर दी है…”
सुनीता पहले तो मुकर गई। जब बहुत मिन्नतें की तो बोली- “अच्छा देखेंगे…”
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