RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
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सुनीता की कहानी
होली के आनंद के बाद जब भी शिशिर की मुझे भोगने की तबीयत होती तो कह देता- “भाभी, परांठे सेंकने हैं 24 घंटे का उपवासा रखना…”
जब मेरी तबीयत मचलती तो मैं शिशिर से कहती- “हथौड़ा लूगीं…” मैं पूरी तरह संतुष्ट थी। राकेश भरपूर चोदता था। स्पेशल चुदाई शिशिर से कराती रहती थी। ग्रुप की महफिल के बाद खासतौर पर मुझे हथौड़े की जरूरत पड़ती थी। शिशिर का व्यवहार मेरी तरफ कोमल बना हुआ था केवल चोदते समय वह कोई लिहाज़ नहीं करता था। मैं बहुत खुश रहती थी।
गर्मियां शुरू हो गईं थीं। गर्मियों में 10 या 15 दिन के लिये या तो हम लोग रजनी के यहां जाते थे या रजनी और रूपेश हमारे यहां आ जाते थे। इस बार वह लोग हमारे यहां आये। रजनी और मैं कालेज़ के जमाने की सहेलियां थीं, पक्की दोस्त। एक दूसरे के बारे में सब कुछ जानती थीं। हम दोनों ही खूबसूरत समझी जाती थीं। रजनी मेरे से ज्यादा लंबी थी और दुबली भी। मेरा शरीर शुरू से ही सांचे में ढला हुआ था। रजनी तबीयत की मस्त थी। खुलकर सेक्स की बातें करती और आगे बढ़ने के लिये भी तैयार। मैं इस बारे मैं बिल्कुल पक्के खयालों की।
अब रजनी के सीने और कूल्हों पर मांस चढ़ गया था लेकिन बदन उसका इकहरा ही था, आकर्षक। मेरी शादी रजनी से दो साल पहले हो गई थी। रजनी की शादी हुई तो उसके पति रूपेश मेरे ऊपर दीवाने हो गये। हमें चोदने के लिये बेचैन रहने लगे। रजनी को भी उन्होंने तैयार कर लिया। शादी के थोड़े दिनों बाद ही रजनी ने मेरे से कहा- “रूप तेरी चूत की सैर करना चाहता है बदले में राकेश को मैं अपनी नई नवेली का रस चखा दूंगी…”
मैंने दो टूक जवाब दिया- “मैं राकेश को पूरी तरह समर्पित हूँ ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी…” जानबूझ कर मैंने पता नहीं किया कि राकेश को रजनी ने रसपान कराया या नहीं। रजनी के आने पर राकेश की खुशी देखकर लगता था कि वह स्वाद चख चुके थे। इस बात पर इसके बाद पर्दा पड़ गया था।
जैसे ही रजनी मुझसे मिली तो कह उठी- “लगता है तुम्हें यह जगह रास आ गई है, बड़ी खुश दिखती हो…”
जल्दी ही रजनी और रूपेश सबसे घुलमिल गये। शिशिर से रूपेश की भी पटने लगी। ग्रुप की महफिलों में भी दोनों ने खूब बढ़-बढ़ के भाग लिया। रजनी ने तो ऐसे किस्से सुनाये कि उस रात जरूर लोगों ने बीवियों से जम कर कसर निकाली होगी। ज्यादा दिन तो सैर सपाटों में ही निकल गये। जब तब शिशिर और कुमुद या अकेला शिशिर भी सामिल हो जाते थे।
जो बात कोई न जान पाया था रजनी इतनी जल्दी भांप गई, बोली- “अब तुम्हारी खुशी का राज समझ में आया। शिशिर से इश्क लड़ाया जा रहा है…”
मैं लाल हो गई, बोली- “तुम भी रजनी गजब हो… शिशिर मेरा देवर है…”
रजनी बोली- “सब जानती हूँ…”
उसके बाद मैं कुछ चोकन्नी रहने लगी।
लेकिन इस बीच ही शिशिर परांठे सेंकने की फरमाइश कर बैठा। मैंने समझाया कि अभी रजनी रूपेश हैं। लेकिन वो नहीं माना। दिन में ही समय निकालकर उसने मुझे बहुत ही जबरदस्ती से चोदा। मैं त्राहि-त्राहि कर उठी। चूत पर इतनी चोटें पड़ी थीं कि मैं ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। अपनी दोनों टांगें फैला- फैलाकर चल रही थी। शाम को रजनी ने देखा तो मेरी चूत पर चिउंटी काटी।
मेरे मुँह से जोर से ‘ओह्ह’ निकल गई।
रजनी बोली- “इसकी कसके रगड़ाई हुई है क्या?” लेकिन राकेश तो ऐसा नहीं करता। क्या बात है शिशिर से लगवा के आई हो…”
उसने मेरी चोरी पकड़ ली थी। मैं बोली- “क्या करूं रजनी, वह माना ही नहीं…”
रजनी ने उलाहना देते हुये कहा- “जब रूप ने मांगी थी तो साफ मना कर दिया था कि मैं तो बस राकेश को ही देती हूँ…”
मैं- “हाँ… मैं केवल राकेश की हूँ। शिशिर स्पेशल है हमारा ही…”
रजनी- “अरे जाओ, ऐसे लोग जिस किसी पर भी फिसलाते रहते हैं…”
मैं- “न रजनी, यह केवल मेरा और शिशिर का संबंध है, भाभी और देवर का…”
रजनी- “अगर मैंने शिशिर को फँसा के दिखा दिया तो?”
मैं- “तो जो चाहोगी दूंगी। लेकिन क्या सबूत दोगी?”
रजनी- “शिशिर का अंडरवेर दूंगी मेरी चूत के रस से पोंछा हुआ चाहो तो सूँघ के देख लेना…” रजनी को अब एक मिशन मिल गया था, शिशिर को बहकाने का।
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