Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
01-19-2018, 01:14 PM,
#21
RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
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सुनीता भाभी अचकचा उठीं- “देवरजी ये क्या करते हो?” और उन्होंने अपनी हथेली चूत के ऊपर रख ली। उनके लिये यह नई बात थी। 

शिशिर ने एक हाथ से बल के साथ उनका पकड़ा और हटा दिया। दूसरे हाथ से उनकी चूत की फांकें खोली और अपना मुंह गड़ा दिया। भाभी ऐतराज में अपनी दोनों टांगें उसकी पीठ पर मारने लगीं और हाथ से शिशिर का सिर उठाने लगीं। लेकिन शिशिर का मुँह उनकी चूत से चिपक गया था तो हटा ही नहीं। वह चटखारे लेकर उनकी चूत के रस को पी रहा था। जैसे ही उसने अपनी जीभ भाभी की क्लिटोरिस के ऊपर रक्खी उनका पैर मारना एकदम रुक गया। 

वो आवाज करने लगीं- “ओओफ्फ्फ… ओ माईई…” और उठाने की जगह उन्होंने उसके सिर को कस के चूत में दबा लिया। 

शिशिर ने भाभी की क्लिटोरिस को दोनों होंठों के बीच ले लिया। 

सुनीता- “ओह्ह… मैं अब और नहीं रुक सकती… मुझे कसके दबा लो लो… लो मैं तो गई…” सुनीता भाभी ने चूत उठाकर के जोर से उसके होंठों से चिपका दी और काफी देर तर उनकी चूत में कंपकंपि बनी रही। शिशिर भाभी की बगल में एक करवट लेट गया और हाथ बढ़ा के उनको खींच लिया। भाभी उससे चिपक गईं और उसके सीने में सिर छुपा लिया।

शिशिर ने उनके सिर पर हाथ रखकर और कसके चिपका लिया। थोड़ी देर वह इसी तरह पड़े रहे एक दूसरे में मगन। 

भाभी फुसफुसाईं- “देवरजी, तुम्हारे प्यार करने का तरीका भी निराला है…”

“हाँ, इसमें लातें पीठ पर खानी पड़ती हैं…”

भाभी ने सिर उसकी छाती पर रगड़ा- “चलो हटो, कहीं ऐसा भी कोई करता है…”

“आपको मजा आया?”

भाभी ने हाँमी में सिर हिला दिया। बोलीं- “देवरजी, ये बाताओ कि कुमुद इतनी अच्छी, लंबी और सुंदर है फिर तुम मेरे पीछे क्यों पड़े रहते थे?” 

शिशिर तुरंत बोला- “भाभी, आपने अपने को पूरे आईने में देखा है आप में ना रुक पाने वाली कशिश है। मैं काबू में ही न रह पाता था। फिर कुमुद सेक्स में चुलबुली नहीं है…” वह फिर बोला- “भाभी आपकी कशिश में कितने लोग खिंचे रहते होंगे…”

सुनीता भाभी बोलीं- “जानती हूँ लेकिन मैं राकेश को पूर्ण समर्पित हूँ, तुम्हारे अलावा…”

शिशिर ने आनंद से उन्हें भींच लिया। धीरे से एक चूचुक मुँह में लेना चाहा तो उन्होंने मना कर दिया- “अब नहीं…” और वह शांत हो गई थीं। 

शिशिर बोला- “बस भाभी, सीने पर मुह रख के लेटने दो…”

वह चित्त हो गई और बड़े प्यार से उसका गाल अपने बायें उभार पर दबा लिया। 

शिशिर गाल को और दबाता गया फिर धीरे-धीरे रगड़ने लगा। थोड़ी देर बाद उसने बगैर दबाव के अपनी दाईं हथेली उनके बायें सीने पर रख दी। भाभी ने मना नहीं किया। उन्हें अच्छा लग रहा था। वह अब अपनी तरफ से उसके सिर पर दबाव बढ़ाती जा रही थीं। शिशिर ने धीरे से अपने होंठ खोलकर दांयें चूचुक को अंदर कर लिया। भाभी ने झुक कर उसके माथे को चूम लिया। सुनीता भाभी अब गर्माने लगीं थीं। मैंने होंठों में चूचुक कसके दबोच लिया और चूसने लगा। 

वह कराही- “उईईईई… माँ… तुम तो काटते हो…” लेकिन सिर को कस के चूची पर दबा लिया। 

अब मैं दांयीं चूची को मज़े से चूस रहा था और बांयीं को कसके मसल रहा था। वह अब चूतड़ हिलाने लगी थीं। शिशिर ने दांयां हाथ चूची से हटाकर उनकी चूत पर रख दिया। उन्होंने दोनों जांघों से कस के दबा लिया। उसका सिर दूसरी चूची की तरफ करतीं हुई बोलीं- “इसको चूसो न…”

शिशिर ने दूसरी चूची मुँह में ले ली और दो ऊँगालियों से चूत की दरार को खोलते हुये तीसरी उंगली छेद में डाल दी। चूत गीली हो रही थी। 

भाभी ने चट से अपनी जांघें खोल दी, बोलीं- “पूरी अंदर डाल दो…”

भाभी ने अपने दांयें हाथ से उसका फड़फड़ाया हुआ लण्ड मुट्ठी बंद कर लिया और कहा- “ओ माई गोड ये तो मेरे हाथ में भी नहीं आ रहा है…”

शिशिर उंगली अंदर बाहर करने लगा। उनकी चूत बुरी तरह रिसने लगी थी। बाहर पानी निकल रहा था। 

“हाय अंदर तक घुसेड़ दो न जल्दी से…” वह पूरी तरह उत्तेजित थीं। वह कसकस के उसके लण्ड पर मुट्ठी चलाने लगीं थीं। 

शिशिर बोला- “भाभी इसकी जगह कोई और भी होती है?” 

भाभी- “तो डालो न उस जगह…” फिर शिशिर के कुछ कहने के पहले उन्होंने पलट के अपनी चूत उसके लण्ड के ऊपर कर ली और हाथ से लण्ड पकड़कर सुपाड़ा चूत में घुसेड़ लिया।

अब शिशिर के पास और कोई चारा नहीं था। उसने सुनीता भाभी को पलटा। उनकी टांगों के बीच में घुटनों के बल बैठ गया। उन्होंने उतावली में टांगें पूरी चौड़ा दी और चूत ऊपर उठा दी। चूत की पंखुड़ियां अलग-अलग थीं, गुलाबी छेद खुला हुआ था, अंदर पानी चमक रहा था। शिशिर ने लण्ड का सुपाडा चूत के मुँह पर रखा और धीरे-धीरे घुसाने लगा। 

सुनीता भाभी की सहमी सी आवाज निकली- “देवरजी धीरे से डालियेगा, आपका बहुत बड़ा और मोटा है…” लेकिन उनकी चूत लण्ड को पूरा का पूरा लील गई। भाभी के मुँह से निकला- “हाय…” 

उसने लण्ड बाहर किया और घच्च से अंदर… वह और जोर से “हाय…” कर उठीं। उसने फिर बाहर किया फिर और जोर से घच्च… उनकी सीत्कार और ऊँची हो गई। शिशिर का सीधा खड़ा लण्ड सुनीता भाभी की चूत में सड़ाक से पूरा घुस जाता था। 

जैसे-जैसे घच्च-घच्च की गति बढ़ती गई भाभी की- “हायय… उईईई… माँ मरी…” की सीत्कार भी। 

कुछ देर तक झटके लगाने के बाद शिशिर पलंग के नीचे खड़ा हो गया। सुनीता भाभी को दोनों टांगों से खींचकर पलंग के किनारे कर लिया। उनकी टांगें चौड़ी करके उनके बीच में खड़ा हो गया। अब खड़े-खड़े उसका लण्ड भाभी की चूत के सामने था। उसने लण्ड चूत के मुँह पर लगाया और कहा- “अपनी दोनों टांगें मेरी कमर पर बाँध लो…” 

भाभी की दोनों चूचियों को दोनों हाथों से मसलाते हुये शिशिर ने एक चोट में सड़ाक से लण्ड अंदर कर दिया तो भाभी हिल गईं और मुँह से चीख निकल गई। शिशिर ने चूत के सामने काफी बाहर तक लण्ड निकालकर एकदम से चोट मारी। 

भाभी और जोर से चीखीं- “ओ माँ… मैं मर जाऊँगी…” उन्होंने कस के शिशिर के कंधे दोनों हाथों से जकड़ लिये और अपना मुँह उसकी छाती में गड़ा लिया। 

शिशिर ने जब चोट मारी तो वह बुदबुदाईं- “शिशिर ये तुम्हारी है, जैसे चाहे लो इसको…” पहली बार उन्होंने उसे शिशिर कह के बुलाया था। 

शिशिर धकाधक चोद रहा था। उसका लण्ड चूत की गहराइयों तक जा रहा था। हर चोट में लण्ड की जड़ चूत के ऊपर धप्प से पड़ती थी। 

भाभी आपे मैं नहीं थीं- “आआह्ह… आआह्ह… ऊंऊंह्ह… हाय ऊईईईइ… ओ शिशिर ये तुम्हारी है फाड़ डालो इसको उफ्फ्फ… ओ शिशिर…”

हर झटके में उसी वेग से सुनीता भाभी बढ़-बढ़ के लण्ड को झेल रही थीं। जोरों से चूत से फच्च-फच्च की आवाज निकल रही थी। अचानक भाभी ने उसकी कमर में टांगें एकदम जकड़ लीं- “ओह्ह… मैं और नहीं ले सकती… मैं तो गईईई मेरे शिशिर…” और भाभी ने अपना ज्वालामुखी उगल दिया। 

उनकी चूत इतनी जोर की कांपी कि शिशिर भी न ठहर पाया- “भाभीईई… मैं भी आया… ये लोओ…” उसने गहराई तक ले जाके पानी छोड़ दिया और देर तक छोड़ता रहा। जब उसने अपना लण्ड बाहर निकाला तो भाभी की चूत से गाढ़ा-गाढ़ा सफेद फेन सा फैलता रहा। 

भाभी ने पैंटी से उसे पोंछा भी नहीं जैसी उनकी आदत थी, बस निढाल पड़ी रही। 

शिशिर ने उनका हाथ पकड़ा। 

तो भाभी शिकायत के लहजे में बोलीं- “देखो तुमने इसकी क्या हालत कर दी है? हथौड़ा सा चलाते हो, अब मैं अब राकेश को रात मैं कैसे दूंगी। इसे देखकर उन्हें शक हो गया तो?”
शिशिर ने कोमलता से उनका हाथ थाम लिया। सुनीता भाभी ने उसे दोनों बाहों में लाड़ से भर लिया और अपने सीने में छुपा लिया।
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