RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
मिसेज़ संगीता अग्रवाल की कहानी:
यह घटना शादी के काफी बाद की है। शादी के पहले मैं गाँव में पली बढ़ी। वहां ऐसा कुछ खास नहीं घटा सिवाये इसके कि मेरी बगल में एक लड़का रहता था। जब मैं छत पर जाती थी तो वह अपना लण्ड खोलकर के खड़ा हो जाता था। शादी होने के बाद मैं शहर में आ गई। संयुक्त परिवार था।
सास ससुर थे, दो जिठानियां थीं। मैं सबसे छोटी थी, सबसे सुंदर और सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी। परिवार मैं सब लोग मेरी सुनते, थे लाड़ भी करते थे, खासतौर पर बड़ी जेठानी। पति भी बात मान लेते थे क्योंकी चुदाई में मैं उनको खुश कर देती थी। मैं बहुत सेक्सी थी। सेक्स की कहानियां पढ़कर मन बहलाती थी। मैं काफी दबंग हो गई थी। जो चाहती थी कर लेती थी।
गर्मियों के दिन थे। बड़ी जेठानी के मैके में उनके छोटे भाई की शादी थी। बड़ी जेठानी मैके जाने के लिये बहुत उत्साहित थीं। उनको लिवाने उनके भाई आ रहे थे। हमारे यहां का रिवाज था कि शादी व्याह के मौके पर खास रिश्तेदारों को लिवाने के लिये उनके मैके से कोई आता था। उनका वही भाई आया जिसका व्याह था। ऊँचा अच्छा खासा गबरू जवान, नाम था प्रदीप। मैके जाने के उत्साह मैं सीढ़ियां उतरते हुये जेठानी का पैर फिसला और उनके पैर की हड्डी टूट गई। अब वह तो जा नहीं सकतीं थीं, इसलिये तय हुआ कि उनकी जगह मैं जाऊँगी।
हम लोगों के यहां यह भी रिवाज है बल्की इसको अच्छा भी माना जाता है। इससे यह भावना बनती है कि परिवार की सब बहुयें बहनें हैं। उनका अपना घर ही मायका नहीं है बल्की देवरानियों जिठानियों के घर भी उनके मायके हैं।
ट्रेन का लंबा सफर था। ग्वालियर से दोपहर में ट्रेन चलती थी और दूसरे दिन दोपहर में जबलपुर पहुँचती थी। मेरे मन में शरारत सुझी कि क्यों न सफर का मजा लिया जाये। सबसे पहले मैंने संबोधन ठीक किया। कहा- “मैं तुमसे छोटी होऊँगी, मुझे संगीता कहकर पुकारो…” और खुद मैं उसे प्रदीप जी कहने लगी।
टू-टियर में हम दोंनों का रिजर्वेशन था लेकिन दिन में तो हम लोग नीचे की बर्थ पर ही बैठे। जगह ज्यादा थी फिर भी मैं उससे सटकर बैठी। गरमी होने का बहाना करके मैंने अपना पल्लू गिरा दिया। सामने की बर्थ पर बूढ़े आदमी औरत बैठे थे जो आराम कर रहे थे। वैसे भी मुझे उनकी चिंता नहीं थी। मेरे बड़े-बड़े मम्मे ब्लाउज़ को फाड़ते हुये खड़े थे। मैंने नीचे तक कटा ब्लाउज़ पहन रखा था जिसमें से मेरी गोलाइयां झांक रही थीं। वह दबी आँखों से मेरे गले के अंदर झांक रहा था। मुझे छका कर मजा आ रहा था। सामान उठाने रखने के लिये झुकने के बहाने मैं अपनी चूचियां उससे चिपका देती थी।
पहले तो वह सिमट जाता था। पर थोड़ी देर में प्रदीप की झिझक जाती रही कि मैं उसकी बहन की देवरानी हूँ और उसकी बहन की जगह जा रही हूँ। उससे मेरी रिश्तेदारी तो थी नहीं। उसे भी मजा आने लगा और वह अपनी बांहों से ही मेरी चूचियां रगड़ने लगा। सोने का बहाना कर उसने आँखें बंद कर रखी थीं।
उसकी आँखें खोलने के लिये मैंने कहा- “ओह कितनी गरमी है…” और ब्लाउज़ के ऊपर का बटन खोल दिया। अब मेरे फूले-फूले चूचुक भी दिखाई देने लगे थे।
वह टकटकी लगाकर मेरे हिलते हुये मम्मे देख रहा था। उसकी टांगों के बीच में भी हलचल दिखाई दे रही थी। और ज्यादा चिढ़ाने के लिये मैंने कहा- “प्रदीप जी मैं तो अंदर तक भीग गई हूँ…” और उसके सामने ही साड़ी में हाथ डालकर चड्ढी बाहर खींच ली।
वह अचकचा गया। गोद में हाथ रखकर उसने अपने लण्ड के उठान को छुपा लिया।
मैं भी मानने वाली नहीं थी। जब उसने हाथ हटा लिये तब हाथ में पकड़ी मैगजीन को उसकी गोद में गिराकर उठाने के बहाने उसके मोटे लण्ड को अच्छी तरह टटोल लिया। अब स्थिति साफ थी। उसके खड़े पोल से टेंट जैसा बन गया। मैंने इशारा करते हुये कहा- “ये क्या है? अपने को काबू में भी नहीं रख सकते, ऐसी बेशरमी करते हो…”
झेंपने के बजाये उसने चट से जवाब दिया- “जब उसकी अपनी चीज़ सामने हो तो मिलने को बेकरार तो होगा ही…”
मैंने चोट की- “उसकी चीज़ 16 तारीख तक दूर है…” 16 तारीख को उसकी शादी थी।
उसने कहा- “उससे भी अच्छी चीज़ सामने है…”
मैंने कहा- “मुँह धोकर रखो…”
लेकिन हम छूने छुलाने का उपक्रम करते रहे। रात के करीब आठ बजे गाड़ी बीना पहुँची। प्रदीप सामान उठाते हुये बोला- “यहां उतरना है…”
मैंने सोचा यहां ट्रेन बदलानी है। हम लोग नीचे उतर आये। कुली से सामान दूसरे प्लेटफार्म पर ले जाने की बाजाये प्रदीप सामान स्टेशन से बाहर निकाल ले गया। एक आटो से हम लोग कहीं चल दिये। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। जब आटो एक होटल के सामने रूका तो मेरी समझ में कुछ आया।
प्रदीप बोला- “आज की रात यहीं रुकेंगे…” उसने अचानक प्रोग्राम बदल दिया था। नहले पर दहला लगा दिया था। कहां तो मैं मजा चखा रही थी अब वह मजा चखा रहा था।
मैंने पूछा- “यहां क्यों रुक गये हैं?”
तो मुश्कुराके बोला- “तुमको ज्यादा गरमी लग रही है, उसको निकालना है…”
मैं तो सोच भी नहीं सकती थी कि प्रदीप ऐसा कर सकता है। कमरा उसने मिस्टर और मिसेज़ प्रदीप के नाम से बुक कराया। खाना कमरे में ही मंगाया। अपने लिये शराब भी।
मैंने शराब के लिये मना कर दिया। मैंने कहा- “मैं नहा लूं…”
तो बोला- “संगीता डार्लिंग एक राउंड नहाने के पहले हो जाये फिर नहाने के बाद में। आज तो रात भर जश्न मनायेंगे…” फिर मुझे पकड़कर मम्मे दबाते हुये बोला- “तुम्हारे इन रस कलसों ने ट्रेन में बड़ा तड़पाया है इनसे तृप्ति तो कर लूं…”
उसने मेरा ब्लाउज़ और अंगिया उतार फेंकी। कस-कस के चूची मर्दन करने लगा। मैं धीमी धीमी आवाजें करने लगी। चूचियां मेरी कमजोरी हैं। उन पर मुँह रखते ही मैं काबू में नहीं रहती। कोई भी मेरी इस कमजोरी को जानकर मुझे चोद सकता है। प्रदीप ने मेरे चूचुक मुँह में लिये तो मैं उत्तेजना से ‘उंह उंह’ करने लगी और उसका लण्ड थाम लिया। उसने नाड़ा खींचकर मुझे पूरा नंगा कर दिया। और खुद ही अपने सब कपड़े उतार फेंके।
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