RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--39
गतान्क से आगे.
"ओह..प्रणव..ये ठीक नही है..",रीता अपने बिस्तर पे बैठी थी & उसके सामने घुटनो पे बैठा प्रणव उसके ब्लाउस खोल उसके ब्रा को उपर कर उसकी चूचियाँ चूस रहा था,"..छ्चोड़ो ना!..कही शिप्रा ना आ जाए!"
"उसे अभी थोडा वक़्त लगेगा.अभी तो नहाने गयी है.",प्रणव ने अपनी सास को पीछे धकेला & उसके घुटने उपर मोड़ते हुए उसके पाँव बिस्तर पे रखे.ऐसा करने से रीता की सारी अपनेआप उसकी चीनी जाँघो से फिसल उसकी कमर पे हो गयी.प्रणव ने जल्दी से उसकी पॅंटी खींची तो रीता की टाँगे खुद ब खुद थोड़ी फैल गयी.उसे अपने जिस्म की इस हरकत पे शर्म आई & उसने आँखे बंद कर मुँह बाई तरफ फेरा & टाँगे बंद कर ली.
"खोलिए ना,मोम!",प्रणव ने अपनी पॅंट नीचे सर्कायि & अपना तना लंड थामे सास की टाँगे फैलाने लगा.
"प्लीज़,प्रणव.मत करो.",रीता की ज़ुबान इनकार रही थी जबकि उसका जिस्म चीख रहा था प्रणव के लंड को अपने अंदर लेने के लिए.प्रणव ने ज़बरदस्ती उसकी टाँगे फैलाई & झुकते हुए अपनी सास मे सामने लगा.
"आहह..!",रीता कराही & अपने दामाद को अपने बाजुओ मे जाकड़ लिया & चूमने लगी,"..पागल कर दिया है तुमने मुझे..",प्रणव बहुत तेज़ धक्के लगा रहा था & रीता भी उसकी कमर पे टाँगे कसे कमर उचका रही थी.दोनो ही जानते थे कि शिप्रा के आने से पहले अपने जलते जिस्मो को सकून पहुचाने के लिए वक़्त बहुत कम है,"..कल रात जो हुआ ठीक नही हुआ...हाईईईई..शिप्रा के साथ नाइंसाफी है ये..उउन्न्ञणनह..हान्णन्न्....चूसो उन्हे...आन्न्न्णनह.....ऐसे धीरे नही....हाँ ज़ोर से......ऊव्ववववववव..!",1 तरफ बेटी के साथ बेईमानी करने से उसका ज़मीर उसे कचोट रहा था तो दूसरी तरफ दामाद की बेसब्र जवानी उसके जिस्म को मज़े मे डूबा रही थी.
"फिर वही बात!मैं आपको प्यार करता हू & आप भी मुझे चाहती हैं & हम दोनो को 1 साथ खुश रहने का हक़ है..& मैं शिप्रा को छ्चोड़ नही रहा.उसे भी खुश रख रहा हू तो नाइंसाफी कैसी?..ये सब छ्चोड़िए मोम.मैं आपके साथ हर पल को भरपूर जीना चाहता हू.आप भी ऐसा ही चाहती हैं,आपका रोम-2 यही बात कह रहा है लेकिन आप इसे मान नही रही..आहह..!",रीता झाड़ गयी थी & उसने अपने नाख़ून प्रणव के कंधो पे गढ़ा दिए थे.उसने धक्को की रफ़्तार बढ़ा दी.
"ओह..प्रणव..आइ लव यू..आइ लव यू......अब मैं भी जियूंगी हर पल तुम्हारे साथ..तुमने मुझे फिर से जवान कर दिया है..आननह..!",प्रणव ने सास की चूचियाँ मसली & उसे चूम लिया.
"आप तो हमेशा से ही जवान थी बस भूल गयी थी इस बात को..आपका दिल भी जवान है & जिस्म भी..ये हुस्न तो किसी कमसिन लड़की को रश्क़ का एहसास करा दे!",रीता ने दामाद के मुँह से तारीफ सुन शर्म & खुशी से आँखे बंद कर उसे अपनी बाहो मे & कस लिया & उचक के उसके दाए कान मे जीभ फिराने लगी.दोनो 1 दूसरे की बाहो मे गुत्थमगुत्था बहुत जल्द ही अपनी मंज़िल तक फुँछ गये.रीता प्रणव की पीठ को नोचती कांप रही थी & प्रणव का लंड उसकी चूत मे अपना वीर्य गिरा रहा था.
"पर 1 सवाल है मोम.",सास के सुकून & खुमारी से भरे चेहरे पे से बाल हटा के उसने उसका माथा चूमा.
"क्या?",रीता ने उचक के दामाद के लबो पे 1 किस जड़ी.
"जब डॅड लौटेंगे तब हम कैसे मिलेंगे?",रीता के चेहरे पे 1 परच्छाई सी आई & उसने प्रणव के चेहरे को अपनी चूचियो पे दबा दिया.
"हम मिलेंगे,प्रणव.ज़रूर मिलेंगे.",रीता के चेहरे पे जो भाव था वो समझ नही आ रहा था पर हाँ,इतना ज़रूर था कि उसी पल उसने कोई बहुत अहम फ़ैसला अपने दिल मे ही ले लिया था.
"नाराज़ हो?",रंभा होटेल सूयीट के अपने कमरे के बेड पे बैठी थी जब विजयंत मेहरा उसके बाई तरफ आ बैठा.रंभा ने कोई जवाब नही दिया & दूसरी तरफ घूम गयी.विजयंत ने अपने होटेल मॅनेजर को बोल के ये सूयीट अपने लिए ठीक करवाया था जिसमे 2 बेडरूम & 1 छ्होटा सा लाउंज था.मॅनेजर को उसने सख़्त ताकीद की थी कि किसी को भी ये ना बताया जाए कि वो यहा है क्यूकी कल रात के बाद वो अपनी बहू को किसी और ख़तरे मे नही डाल सकता.
"आइ'एम सॉरी!",विजयंत उठ के उसके दाई तरफ बैठा & इस बार जब वो फिर से मुँह फेरने लगी तो उसने उसकी बाई बाँह को थाम उसे रोक दिया,"..रंभा,मेरी बात को समझो.यहा ख़तरा है & मैं तुम्हे मुसीबत मे नही डाल सकता."
"ख़तरा आपके लिए भी तो है!",रंभा की आँखो से शोले बरस रहे थे मगर साथ ही कुच्छ शबनम की बूंदे भी चमक रही थी.
"रज़ा की बात गौर से नही सुनी तुमने..",विजयंत का हाथ उसकी गुदाज़ बाँह पे उपर चढ़ता उसके बाए कंधे पे आ गया था,"..कोई मुझे घर से बाहर भेजना चाहता था ताकि तुम अकेली पड़ जाओ.हो सकता है केवल मुझे डराने के लिए किया हो उसने ऐसा लेकिन उस सूरत मे भी ख़तरे मे तो तुम ही रहती ना!",रंभा ने आँखे बंद कर अपना चेहरा बाई ओर घुमाया तो विजयंत का हाथ उसके कंधे से उठ उसके बाए गाल पे आ गया.
"मैं आपको छ्चोड़ के नही जाना चाहती.",शबनम की बूँदो ने उसकी पॅल्को के नीचे से उसके गालो को चूमने का रास्ता ढूंड ही लिया.विजयंत के दिल मे कुछ भर आया.ऐसा पहले कभी महसूस नही किया था उसने.रंभा के लिए भी ये एहसास नया था.ये प्यार तो नही था ये दोनो जानते थे क्यूकी दोनो ही जितना प्यार अपनेआप से करते थे उतना शायद कभी किसी & इंसान से नही कर सकते थे-1 दूसरे से भी नही लेकिन ये जो भी था उस खूबसूरत एहसास के बहुत करीब था.
"मैं भी तुमसे दूर नही रहना चाहता..",विजयंत की आवाज़ & भारी लगी तो रंभा ने आँखे खोली,"..मगर हालात की यही माँग है.",शबनम उसके बहू के गाल पे रखे हाथ पे ढालाक आई थी.
"ठीक है.आप कहते हैं तो मैं डेवाले चली जाती हू मगर मुझे पल-2 की खबर चाहिए.",रंभा ने अपना बाया हाथ ससुर के अपने गाल पे रखे हाथ के उपर रख दिया.
"थॅंक्स,रंभा.",विजयंत आगे झुका & उसके दाए गाल से चिपकी शबनम की बूंदे चखने लगा.
"एनितिंग फॉर यू,डॅड.",रंभा ने होंठो को ज़रा सा दाई तरफ घुमाया & विजयंत के लबो से लगा दिया.दोनो 1 दूसरे की ज़ुबानो से खेलने लगे.शाम ढाल रही थी & दोनो के दिलो ने सोच लिया था कि रंभा की रवानगी से पहले-2 जितना हो सके 1 दूसरे की बाहो मे वक़्त गुज़ारेंगे ताकि जुदाई के पॅलो को इन रंगीन यादो के सहारे काट सकें.
दोनो 1 दूसरे के चेहरे को थामे बड़ी शिद्दत से चूम रहे थे.रंभा ने अपनी जीभ विजयंत के मुँह मे घुसा रखी थी & विजयंत भी उसे चूस रहा था.उसके हाथ बहू के चेहरे से नीचे उसकी पीठ पे आए & उसने उसे अपने सीने से लगा लिया.रंभा की भारी छातियो विजयंत के चौड़े सीने से टकराई तो उसका जिस्म खुशी से भर उठा & उसकी चूत लंड की हसरत से कसकने लगी.
"तुमसे 1 बात पुच्छू,बुरा मत मानना.",दोनो ने हाफ्ते हुए किस तोड़ी.विजयंत बहू के चेहरे को थामे था & रंभा भी उसकी दाढ़ी सहला रही थी.
"पुच्हिए,डॅड.",उसने उसकी कंज़ी के 3 बटन्स खोले & नीचे झुक सीने के घने बालो मे नाक घुसा के रगड़ा.
"मुझे तुम्हारी ज़िंदगी के बारे मे जानना है,सबकुच्छ.",रंभा ने सीने से मुँह उठाया & सवालिया नज़रो से ससुर को देखा.
"देखो,रंभा.मैं ये पक्का करना चाहता हू कि कही कोई तुमसे तो बदला नही लेना चाहता."
"मुझसे?",रंभा के हाथ विजयंत की जाँघो पे थे.विजयंत ने उसे अपने & करीब खींचा तो उसकी बैंगनी सारी का पल्लू गिर गया & मॅचिंग स्लीव्ले ब्लाउस के गले मे से उसका गोरा क्लीवेज झलकने लगा.
"देखो,रंभा.जब समीर गायब हुआ था & मैं पंचमहल आया तो मुझे तुमपे ही शक़ था..-"
"-..मुझे पता है.",रंभा के होंठो पे 1 उदास सी मुस्कान तेर गयी.विजयंत ने उसे आगोश मे भींचा & उसके चेहरे को हाथो मे थाम उसकी आँखो मे झाँका.
"इतने दीनो मे मुझे एहसास हो गया है कि मैं ग़लत था.मेरे सवाल का मक़सद सिर्फ़ अपने परिवार को मुसीबत से निकालना है,रंभा!",विजयंत की आँखो मे सच्चाई झलक रही थी.रंभा ने अपनी बाहे उसकी पीठ पे कस दी & उसे चूम लिया.
"मुझे नही पता की मेरे पिता कौन हैं..",उसने अपनी ज़िंदगी की दास्तान सुनानी शुरू कर दी.विजयंत ने उसे बाहो मे कसे हुए बिस्तर पे लिटा दिया.वो उसके चेहरे & गले को चूम रहा था.रंभा भी उसके बालो मे उंगलिया फिराती उसके चेहरे पे बीच-2 मे चूम रही थी.
विजयंत का दाया हाथ उसके चिकने पेट पे घूम रहा था & उसकी गहरी नाभि को कुरेद रहा था.रंभा ने उस से कुच्छ भी नही च्छुपाया,अपने प्रेमियो की बात भी नही.उसने उसे रवि,विनोद & परेश,तीनो के बारे मे बताया.विजयंत का हाथ उसकी कमर मे अटकी सारी के अंदर घुसना चाह रहा था.
"उन तीनो मे से कोई तो नही हो सकता इस सब के पीछे?",वो बहू के चेहरे के उपर झुका हुआ था & वो उसकी कमीज़ उतार रही थी.विजयंत का हाथ अभी उसकी सारी मे घुसा उसकी पॅंटी के ठीक उपर के पेट के हिस्से को सहला रहा था.
"मैं डेवाले पहुँच के परेश & विनोद के बारे मे तो पता लगा लूँगी लेकिन रवि के बारे मे मैं कुच्छ नही कर सकती..उउम्म्म्म..!",वो उचकी & विजयंत को नीचे गिराया & फिर उसे बाहो मे भर उल्टा कर दिया & उसके उपर चढ़ उसके सीने को चूमने लगी,"..वैसे मुझे लगता नही कि वो गधा इतना बड़ा काम कर सकता है.वो तो वही अपने बाप की दुकान संभाल रहा होगा.",उसने विजयंत के निपल को वैसे ही चूसा जैसे वो उसके निपल्स को चूस्ता था.
"आहह..उसके बारे मे तो पता लगवा लूँगा..!",विजयंत ने उसके बालो मे हाथ घुसा दिए.रंभा उसके सीने को चूमती नीचे उसके पेट पे हाथ फिरा रही थी.कुच्छ देर बाद वो उठी तो झुके होने की वजह से उसके ब्लाउस मे से उसकी छलकने & छलकती दिखने लगी.विजयंत उसे बाहो मे भरता उठ बैठा & दोनो प्रेमी 1 बार फिर बड़ी शिद्दत से 1 दूसरे को चूमने लगे.
"लेकिन वो शख्स था कौन जो आज सवेरे बंगल मे घुसा था?",विजयंत बिस्तर से टाँगे लटकाए बैठा था & रंभा उसकी गोद मे थी.विजयंत उसकी सारी खोल रहा था & रंभा उसके बालो को पकड़ उसकी दाढ़ी पे अपने गाल रगड़ रही थी.विजयंत ने कमर मे अटकी सारी को खींचा तो रंभा फर्श पे खड़ी हो गयी & फिर विजयंत ने खड़े होके सारी को उसके बदन से जुदा कर दिया.
"यही तो समझ नही आ रहा..",दोनो खड़े हो फिर से 1 दूसरे की बाहो मे समा गये.विजयंत ब्लाउस के उपर से ही उसकी चूचियाँ मसल रहा था,"..झरने पे जो भी था अगर समीर उसके क़ब्ज़े मे है तो उसकी माँग तो ये है की मैं अपना बिज़्नेस आगे ना बढ़ाऊं लेकिन फिर मेरे घर मे घुस मेरी बहू को क्यू नुकसान पहुचाना चाहता है वो ये समझ मे नही आ रहा मेरी..नुकसान पहुचाना है तो वो डेवाले क्यू नही जाता मेरे बाकी परिवार के पीछे?"
"उउन्न्ह..डेवाले मे घर पे,दफ़्तर मे कड़ी सेक्यूरिटी है.कोई भी ऐसे घुस नही सकता.यहा तो हम आसान निशाना थे....ऊहह..!",विजयंत के हाथ उसकी गंद को मसलते हुए उसके पेटिकोट के हुक्स को खोल रहे थे & उसकी ज़ुबान रंभा के क्लीवेज पे घूम रही थी.
"ये भी सही बात है लेकिन फिर भी उस शख्स का मक़सद क्या था आख़िर?",उस सवाल से जूझते विजयंत ने रंभा को बाहो मे भर लिया & उसकी मांसल कमर को हाथो से दबाते हुए उसके होंठ चूमने लगा.रंभा भी उसके मज़बूत जिस्म को अपने हाथो मे हसरत से भरती उसकी किस का पूरी गर्मजोशी से जवाब देने लगी.पेट पे दबा ससुर का तगड़ा लंड उसके बदन की आग को & भड़का रहा था.वो बेचैनी से कमर हिलाने लगी क्यूकी उसकी चूत की कसक बहुत बढ़ गयी थी.विजयंत ने उसकी गंद को हाथो मे दबोच उसके जिस्म को अपने जिस्म के साथ दबके पीस दिया तो वो उसके लाबो से जुड़े लाबो से आहें भरती काँपते हुए झाड़ गयी & खुद को उसकी मज़बूत बाहों के सहारे छ्चोड़ दिया.विजयंत उसे थामे,उसके बालो को चूमता तब तक खड़ा रहा जब तक की वो खुमारी से बाहर नही आ गयी.
"उसे छ्चोड़िए..",उसने ससुर के होंठो पे बाए हाथ की 1 उंगली फिराई,"..सवेरे झरने पे जो भी आया था उसे आप नही पहचान पाए थे?",विजयंत ने रंभा की आँखो मे झाँका.उसके हाथ रंभा की पीठ पे ब्लाउस के हुक्स को खोल रहे थे.
"नही,पहचान लिया था.",उसने हुक्स खोल रंभा को अपने आगोश से आज़ाद किया & ब्लाउस को आगे खींचा.रंभा ने भी बाहें फैलाक़े ससुर की ब्लाउस उतरने मे मदद की.
"वो ब्रिज कोठारी था.",विजयंत ने दाई बाँह उसकी कमर मे डाली & बाई को उसके सीने के उभारो को दबाते हुए पीछे ले गया & अगले ही पल रंभा की चूचियाँ काले ब्रा की क़ैद से आज़ाद थी.
"क्या?!",विजयंत दाए हाथ से उसकी कमर थाम झुका & उसकी चूचियाँ चूमने & चूसने लगा.उसका बाया हाथ बहू के मुलायम पेट & उसकी कमर के दाई तरफ घूम रहा था,"..आपने ये बात पोलीस को क्यू नही बताई?..& फिर कुच्छ कर क्यू नही रहे?..ऊन्नह..!",ससुर की ज़ुबान उसे मस्त कर रही थी.विजयंत झुक के उसकी बाई चूची चूस रहा था.रंभा ने दाए हाथ मे दाई चूची को थामा & विजयंत के बाल पकड़ उसका सर उठाके उसके मुँह को दाई चूची से लगा दिया.
"कुच्छ बातें है जो मुझे परेशान कर रही हैं.",विजयंत ने जम के उसकी चूचियो को चूसा & जब अपना सर उठाया तो वाहा पहले से ही बने उसके होंठो के निशानो मे इज़ाफ़ा हो गया था & निपल्स बिल्कुल कड़े हो गये थे,"..पहली तो ये की कोठारी इतना बेवकूफ़ नही की ऐसा काम करे & अपना चेहरा भी दिखा दे.वो तो ऐसा जाल बुनने वाला मकड़ा है की किसी को पता भी नही चले कि ये उसकी कारस्तानी है.",रंभा ने उसकी पॅंट खोल दी थी & अंडरवेर के उपर से ही उसके लंड को दबा रही थी.
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क्रमशः.......
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