Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:35 PM,
#29
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--29

गतान्क से आगे.

"तुम्हारी बात सही है लेकिन फिर ब्रिज कोठारी की छनबीन कौन करेगा.बलबीर,इस काम के मुझे तुम्हारे अलावा किसी और पे भरोसा नही है & फिर मैं खुद तो कोठारी की जासूसी कर नही सकता.मैं वाहा समीर की तलाश करूँगा & तुम यहा ये काम सम्भालो.ज़रूरत महसूस होने पे मैं तुम्हे वाहा बुला लूँगा.वैसे मुझे कुच्छ समान चाहिए था.",बलबीर के साथ विजयंत कही गया & 2 घंटे बाद वो वापस दफ़्तर लौटा.वाहा उसने रंभा को नीचे पार्किंग मे खड़ी कार मे जाने को कहा & उसके जाते ही सोनम से मुखातिब हुआ.

"मेरे जाने की खबर तो तुम्हे मिल ही गयी होगी,सोनम.मैं चाहता हू कि तुम मेरे आने तक प्रणव के साथ काम करो.ओके?"

"ओके,सर.",सोनम उसके करीब आई & उसकी टेढ़ी हुई टाइ को ठीक किया.विजयंत ने उसे गोद मे बिठा लिया तो सोनम ने अपनी बाहें उसके गले मे डाल दी.

"सोनम,तुम्हे मेरा 1 बहुत ज़रूरी काम करना है लेकिन उसकी भनक किसी को भी नही लगनी चाहिए."

"क्या सर?",उसने अपने बॉस के बालो मे उंगलिया फिराई.

"मुझे यहा से हर रोज़ की रिपोर्ट मिलेगी,ई-मैल से & फोन से लेकिन मुझे हर रोज़ तुमसे भी 1 रिपोर्ट चाहिए.",सोनम ने सवालीयो निगाहो से उसे देखा.

"मैं चाहता हू कि हर रोज़ तुम मुझे शाम मे अपने घर पहुँच के यहा हुई सभी बातो की जानकारी दो.मैं चाहता हू कि तुम अपने आँख-कान खुले रखो & कोई भी बात हो चाहे वो किसी के बारे मे भी हो..प्रणव के बारे मे भी..तो फ़ौरन मुझे बताओ.ओके?",उसने उसकी गंद थपथपा के उठने का इशारा किया तो वो उसकी गोद से उतर गयी.

"ओके.",उसने विजयंत के गले मे बाहे डाल के उचकते हुए उसे चूमा & विदा किया.सोनम मुस्कुरा रही थी..कितना भरोसा करते थे लोग उसपे!..अब विजयंत के लिए भी जासूसी करनी थी उसे लेकिन सवाल ये था कि क्या उसे ये बात ब्रिज को बतानी चाहिए या नही?उसी वक़्त इंटरकम बजा तो सोनम ने इस बात पे रात को सोचने का फ़ैसला किया.आख़िर उसे ये भी तो देखना था कि उसे किस बात से ज़्यादा फ़ायदा था.

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वो आदमी बौखलाया खड़ा था.सवेरे मेडियावालो की भीड़ के बीच उसने रंभा को अपने ससुर के साथ वाहा से जाते देखा था.वो भी अपनी गाड़ी से उनके पीछे हो लिया था.उसे लगा था कि वो लोग पोलीस स्टेशन या फिर समीर के दफ़्तर जा रहे थे लेकिन जब कार एरपोर्ट की ओर मूडी तो उसका माथा तनका.कुच्छ देर बाद उसे झल्लाता छ्चोड़ वो किसी प्लेन मे सवार पंचमहल से निकल चुके थे.

काफ़ी देर तक वो शहर का चक्कर लगाता रहा.1 रेस्टोरेंट से खाना खा के निकलने के बाद उसने कोट की जेब मे हाथ डाला तो उसे याद आया कि उसकी सिगरेट्स ख़त्म हो गयी हैं.वो 1 पान वाले की दुकान पे गया & 1 पॅकेट खरीदा.अपने लाइटर से 1 सिगरेट जलाके वो घूम ही रहा था कि उसके कानो मे पॅनवाडी के छ्होटे से टीवी पे आ रही 4 बजे की खबरो की आवाज़ सुनाई दी जोकि अभी-2 जारी हुए विजयंत के स्टेट्मेंट के बारे मे बता रहा था.

वो सिगरेट जलाके आगे बढ़ा..इसका मतलब था कि मेहरा वापस यहा ज़रूर आएगा & शायद उसके साथ उसकी बहू भी..भगवान से ऐसा ही होने की दुआ माँगते हुए वो अपनी कार मे बैठा & वाहा से चला गया.

"ये रंभा है.",बंगल के हॉल मे बैठी रीता & शिप्रा को विजयंत मेहरा ने रंभा का परिचय दिया.मा-बेटी के चेहरे पे नापसनदगी के भाव सॉफ नज़र आ रहे थे.रंभा आगे बढ़ी & सास के पाँव छुए लेकिन रीता फिर भी वैसे ही खामोश बैठी रही.शिप्रा ने भी बहुत ठण्डेपन से उसकी हेलो का जवाब दिया.रंभा समझ गयी कि ये लोग अभी भी उस से नाराज़ हैं पर जब तक विजयंत उसके साथ था,उसे इस बात की क्या परवाह थी!

1 नौकर ने विजयंत के कहने पे उसका समान समीर के कमरे मे रखवा दिया & फिर अपनी बीवी & बेटी से मुखातिब हुआ,"तुमलोगो ने सुन तो लिया ही होगा की मैं समीर को ढूँडने के काम मे जुटने वाला हू & इसीलिए अभी कुच्छ दिन पंचमहल ही रहूँगा.मैं कल ही रंभा के साथ वाहा जा रहा हू & उसके बाद समीर की तलाश मे जुट जाउन्गा.वाहा की पोलीस को अभी तक कोई सुराग नही मिला है & अब वक़्त आ गया है कि मैं खुद इस काम मे लगु."

"डॅड,समीर ऐसे अचानक कैसे गायब हो गया?आपने पता किया उसकी वाहा किसी से कुच्छ दुश्मनी या अनबन तो नही हो गयी थी?"

"नही शिप्रा,ऐसा कुच्छ भी नही था इसीलिए तो बात & पेचीदा लगती है.",विजयंत ने ब्रिज कोठारी पे शक़ होने की बात & बलबीर को उसकी छान-बीन करने के लिए लगाने की बात खुद तक रखने का ही फ़ैसला किया था.

"तो आपने इस से पुचछा दाद?",रंभा का खून खौल उठा..ये अपने को समझती क्या थी..उसका नाम लेने मे तकलीफ़ हो रही थी उसे तो ज़ुबान खींच लेती हू इस कामिनी की फिर बोलने की ही तकलीफ़ नही होगी कभी!..उसने अपने गुस्से को लफ़ज़ो की शक्ल नही दी,"..मुझे तो लगता है कि मेरे भाई की गुमशुदगी मे इसी का कुच्छ हाथ है?"

"शिप्रा!",विजयंत गरजा.सच तो ये था की रंभा के नज़दीक आने का कारण केवल उसके लिए उसकी वासना नही थी बल्कि ये बात भी थी जो उसकी बेटी कह रही थी.उसने सोचा था कि हर पल उसे अपने करीब रख वो उसपे नज़र रखेगा मगर वो रंभा को इस बात की ज़रा भी भनक नही लगने देना चाहता था,"..ये तुम्हारे भाई की बीवी है.तुम्हे पसन्द हो या ना हो लेकिन इसकी कद्र करनी होगी तुम्हे.माफी माँगो रंभा से."

"डॅड!"

"माफी माँगो,शिप्रा."

"आइ'म सॉरी.",उसने बुरा सा मुँह बनाते हुए कह. रंभा ने बस सिर हिला दिया लेकिन अपनी जलती आँखो से शिप्रा को ये एहसास भी करा दिया कि वो उसे हल्के मे लेने की ग़लती ना करे.रीता की आँखो से आँसू बहने लगे थे.शिप्रा ने उसे गले से लगा लिया,"प्लीज़ मम्मी,रो मत.सब ठीक हो जाएगा.चुप हो जाओ."

"रीता..",विजयंत अपनी बीवी के पास आया & उसका हाथ पकड़ उसे सोफे से उठाया,"आओ.",रीता पति से लिपट गयी & दोनो उपरी मंज़िल पे बने अपने कमरे की ओर चले गये.उनके जाते ही रंभा उठी & अपने कमरे मे चली गयी.

"डॅड ने बोला तो मैने माफी माँग ली मगर ये मत समझना कि तुम इस घर मे आराम से रह सकती हो.जब तक मेरे भाई का पता नही चल जाता तब तक मेरी निगाह तुमपे जमी रहेगी.",शिप्रा उसके पीछे-2 उसके कमरे तक आ गयी थी.

"क्या भाई-2 लगा रखा है?हैं!",रंभा उसके बिल्कुल करीब आ गयी & अपनी अँगारे बरसाती नज़रें उसकी आँखो से मिला दी,"..वो मेरा भी पति है & तुमसे ज़्यादा मुझे फ़िक्र है उसके हाल की & 1 बात और.तुम्हारे भाई मुझसे शादी करने को पागल हो रहा था मैं नही & आइन्दा से इस बात का ख़याल रखना कि मेरे सामने तुम अपनी तमीज़ ना भूलो.",शिप्रा उसके कमरे के दरवाज़े पे खड़ी थी.रंभा ने दरवाज़ा पकड़ा & उसके मुँह पे बंद कर दिया.अपनी मा के घर मे ऐसी बेइज़्ज़ती होने से उसकी आँखे भर आई & वो दनदनाती हुई वाहा से अपने बंगल पे चली गयी.

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सोनम ने तय कर लिया था कि वो ब्रिज को ये बात नही बताएगी की विजयंत ने उसे ट्रस्ट ग्रूप मे अपना जासूस बना दिया है.उसने तय कर लिया था कि उसे दोनो तरफ खेल खेलना चाहिए & आख़िर मे बाज़ी जिसके हक़ मे जाती दिखेगी वो भी उसी तरफ हो जाएगी.

बलबीर मोहन अपने दफ़्तर मे बैठा अपने पाइप के कश खींचता ये सोच रहा था कि ब्रिज की जासूसी कैसे की जाए.उसने सेक्यूरिटी कंपनी पैसे कमाने के लिए खोली थी & जासूसी वो अपने दिल की तसल्ली के लिए करता था & इस बात के बारे मे उसकी बीवी & कंपनी के 2-3 लोगो के अलावा & कोई नही जानता था.उसने इंटरनेट ऑन किया & सबसे पहले ब्रिज & कोठारी ग्रूप के बारे मे जानकारी जुटाने लगा.

पंचमहल मे वो शख्स 1 होटेल के कमरे मे बैठा सिगरेट फूँक रहा था.बिस्तर पे उसके पास ही रखी अश्-ट्रे जोकि वेटर ने थोड़ी देर पहले ही सॉफ की थी ,फिर से 4-5 टोटो & राख से भर गयी थी.वो शख्स अपनी ज़िंदगी के बारे मे सोच रहा था.आज वो 1 अंजान शहर मे 1 होटेल मे बैठा अपने फेफड़ो को सुलगा रहा है लेकिन सिगरेट की जलन उसके दिल की बेचैनी की आग के आगे कुच्छ भी ना थी....बस 1 बार वो इस बात को पक्का कर ले की रंभा वही है जो वो समझ रहा है तो बस उसकी तलाश पूरी हुई समझो!..उसने सिगरेट को बुझाया & अपना कोट पहना.रात हो चुकी थी & उसे ये देखने जाना था कि कही विजयंत मेहरा अपनी बहू को लेके अभी ही तो वापस नही आ गया.

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"मेरा बेटा..विजयंत..",खाना खाने के बाद रीता फिर से समीर की याद मे आँसू बहाने लगी थी.विजयंत ने उसे बाहो मे भरा & बिस्तर पे ले गया & लिटा दिया.उसने कमरे-अब उसे कमरा कहना तो ग़लत होगा,था तो वो 1 विशाल हॉल-की सारी बत्तिया बुझा दी सिवाय 1 मध्हम लॅंप के & अपने बड़े से पलंग पे आ अपनी बीवी को आगोश मे भर उसे समझाने लगा.

चुदाई इंसान कयि बातो के लिए इस्तेमाल करता है.सबसे पहला तो होता है अपने महबूब के करीब आ उसके दिल से जोड़,अपने इश्क़ का इज़हार करने का.कुच्छ गलिज़ लोग इसे किसी ना चाहते हुए इंसान के साथ कर अपनी गंदी हवस को पूरा करते हैं & कयि बार इंसान इसे अपने या अपने साथी के घाव पे मरहम लगाने के लिए भी इस्तेमाल करता है.

इस वक़्त विजयंत ने भी कुच्छ ऐसा ही किया.बीवी को ये तसल्ली देते हुए कि वो उसकी औलाद को ढूंड के ला के ही दम लेगा,उसने उसके जिस्म को सहलाया & उसके होतो को चूमा.पति की बाहो मे रीता को भी हौसला मिला & उसका जिस्म उस जाने-पहचाने एहसास से जागने भी लगा.थोड़ी ही देर मे दोनो बिल्कुल नंगे उस बड़े से पलंग पे रीता की पसंदीदा पोज़िशन मे चुदाई कर रहे थे.रीता अपने घुटनो & हाथो पे अपनी गंद निकाले हुए थी & विजयंत पीछे से उसकी कमर थाम उसकी चूत मे धक्के लगा रहा था.

रंभा ने अपना खाना कमरे मे ही मंगवा लिया था & खाना खाने के बाद कपड़े बदल रही थी.उसने पीच कलर की बस गंद के नीचे तक की सॅटिन की नेग्लिजी पहनी थी कि किसी ने कमरे का दरवाज़ा खटखटाया.दरवाज़ा बस भिड़ा हुआ था & खटखटनेवाले के हाथ की थाप से वो खुल गया.रंभा उसी वक़्त घूमी & उसी वक़्त दरवाज़ा यू खुलने से चौंकते प्रणव ने अंदर देखा & उसकी निगाहें सामने खड़ी हुस्न की हसीन मूरत से चिपक गयी.

1 पल मे ही उसकी नज़रो ने अपने साले की बीवी के जिस्म को सर से पाँव तक पूरा देख लिया.सुडोल टाँगे & कसी जंघे रोशनी मे चमक रही थी & नेग्लिजी मे उसके सीने का बड़ा सा उभार बड़ा दिलकश लग रहा था.रंभा ने उसके नीचे ब्रा तो पहना नही था & उसके निपल्स की नोक नेग्लिजी के कपड़े मे से झलक रही थी.रंभा के गुलाबी गाल शर्म से & सुर्ख हो गये & उसने जल्दी से पास मे बिस्तर पे रखा अपना ड्रेसिंग गाउन उठाके पहन लिया.

"आइ'म सॉरी!",प्रणव होश मे आया,"..वो दरवाज़ा खुला था & मैं..-"

"-..इट'स ओके.",रंभा & प्रणव 1 दूसरे से नज़रे मिलाने मे हिचकिचा रहे थे.

"आपने खाना खा लिया?"

"हां.",रंभा ने बालो को हाथो से ठीक किया.

"गुड.यहा कैसा लग रहा है आपको?",रंभा बस मुस्कुरा दी,"मैं समझता हू लेकिन क्या करें ये 1 मुश्किल वक़्त है & मम्मी बहुत परेशान हैं & शिप्रा भी.."

"..मैं अभी आया तो शिप्रा ने मुझे शाम को हुई बातें बताई.रंभा,मैं उसकी ओर से आपसे माफी माँगता हू.वो दिल की बुरी नही है मगर क्या करें बहुत बचपाना है उसमे & तैश मे आ वो ऐसी हरकतें कर बैठती है.प्लीज़,आप उसे ग़लत मत समझिएगा.1 बार ये परेशानी दूर हो जाए फिर सब ठीक हो जाएगा."

"प्लीज़,मुझे शर्मिंदा मत कीजिए.छ्चोड़िए अब उस बात को."

"थॅंक्स.",प्रणव मुस्कुराया,"..ओके,गुड नाइट!"

"गुड नाइट!",प्रणव गया तो रंभा ने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद किया & अपना गाउन उतार बिस्तर पे लेट गयी.प्रणव ने उसे नेग्लिजी मे देख लिया था & 1 पल को उसकी आँखो मे उसके जिस्म की तारीफ & वही मर्दाना भूख चमक उठी थी जिस से वो अच्छी तरह से वाकिफ़ थी.

वो बिस्तर पे लेटी & अपना जिस्म सहलाने लगी.उसे अपने ससुर की याद आ रही थी.कल की रात उसकी ज़िंदगी की सबसे हसीन & मस्तानी रात थी.विजयंत का गतिला जिस्म,उसके हाथो की च्छुअन,होंठो की तपिश & लंड की रगड़ याद आते ही उसकी चूत कसमसाने लगी & उसका हाथ अपनी पॅंटी मे घुस गया & खुद से खेलने लगा.पॅंटी उसे इस काम मे रोड़ा अटकाती नज़र आई तो उसने जल्दी से घुटने उपर उठाते हुए मोड & उसे उतार दिया & ज़ोर-2 से अपने दाने पे गोलाई मे उंगली चलाने लगी.कुच्छ ही पॅलो मे वो झाड़ गयी लेकिन उसके जिस्म की आग ठंडी नही हुई.काफ़ी देर तक बिस्तर पे करवटें बदलने & तकियो को अपने जिस्म पे दबाने के बाद वो बेचैनी से उठ बैठी & सोचा की 1 बार चेक किया जाए की विजयंत सच मे सो गया या अभी जगा हुआ है.

ड्रेसिंग गाउन पहन वो कमरे से निकली तो देखा की बुंगले मे बस 1-2 धीमी बत्तियाँ जल रही हैं & सभी नौकर भी अपने क्वॉर्टर्स मे जा चुके हैं.उसे ये तो पता था नही कि उसके ससुर का कमरा है कौन सा.उसे बस इतना पता था कि वो कमरा उपरी मंज़िल पे है.

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क्रमशः.......
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