RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--27
गतान्क से आगे.
"रंभा,जब मैने तुम्हे पहली बार देखा तभी से तुम्हे पाने की ख्वाहिश मेरे दिल मे पैदा हो गयी थी लेकिन फिर तुमने समीर से शादी कर ली & मुझे लगा कि मेरी ये ख्वाहिश अब कभी हक़ीक़त नही बनेगी,लेकिन तक़दीर का खेल देखो कि समीर की गुमशुदगी ने मुझे ये मौका दे दिया.",रंभा अभी भी हैरत से उसे देखे जा रही थी.
"..तुम सोच रही होगी कि मैं कैसा नीच हू जोकि बेटे के मुसीबत मे होने के वक़्त भी अपनी हवस पूरी करने की सोच रहा है.पर मैं क्या करू?तुम इतनी हसीन हो & मैं हू ही ऐसा!"
"..रंभा,मैं 1 कारोबारी हू & मेरा उसूल है कि नुकसान से भी कुच्छ फ़ायदा तो निकाल ही लेना चाहिए.बस इसी लिए मैने तुमसे आज सवेरे अपनी पेशकश की जिसे तुमने मान लिया.चाहती तो तुम अपने कार्ड्स मेरे मुँह पे मार चली जाती.ऐसा तो नही कि तुम्हारे खुद के पैसे नही हैं लेकिन समीर के पैसे छ्चोड़ने तुम्हे मंज़ूर नही था.तुम भी तो मेरे जैसे ही,1 कारोबारी के जैसे ही सोच रही थी.पर ये मत समझो कि मैं तुम्हारी खिल्ली उड़ा रहा हू.नही,बल्कि मुझे ये बात पसंद आई है.तुम बहुत तरक्की करोगी.."
"रंभा,दूसरी बात जो तुम्हारी मुझे अच्छी लगी वो है तुम्हारी आन,तुम्हारा आत्म-सम्मान.तुम्हारा जिस्म मेरे साथ मज़े ले रहा था लेकिन तुमने 1 बार भी उसका इज़हार नही किया.मैं तुम्हारे इस जज़्बे की कद्र करता हू & माफी माँगता हू कि मेरी वजह से ये मोटी छल्के..",उसने उसके आँसुओ से भीगे गाल अपने हाथो से पोन्छे,"..मेरी तो यही तमन्ना रहेगी की तुम्हारे साथ ये जो रिश्ता अभी जुड़ा है उसे मैं मरते दम तक कायम रखू लेकिन अब इसका फ़ैसला तुमपे छ्चोड़ता हू.अगर तुम भी इस रिश्ते को बरकरार रखना चाहती तो ठीक है नही तो अब मैं तुम्हे हाथ नही लगाउन्गा.",& वो उसके रास्ते से हट गया.रंभा बाथरूम मे चली गयी.
उसने देखा की उसके ससुर का वीर्य उसकी चूत से निकल के उसकी जाँघो पे बह रहा था.आज तक उसकी चूत को किसी मर्द ने ऐसे नही भरा था.उसने चूत को धो के साफ किया & फिर वॉशबेसिन पे मुँह धोने लगी..उसका ससुर तो उसे किसी किताब की तरह पढ़ ले रहा था..& चुदाई भी ऐसी कमाल की की थी कि उसका रोम-2 खुशी से भर उठा था..लेकिन उसने उसे मजबूर किया था..उसके तो दिमाग़ मे ये ख़याल कभी आया ही नही था..झूठ!..गुजरात मे गेस्ट हाउस के बाथरूम मे उसने उसी को सोच के अपनी चूत पे उंगली फिराई थी & बाद मे भी 1-2 बार वो उसके शरीर ख़यालो का हिस्सा बना था..तो क्या उसे अपने ससुर का हाथ थाम लेना चाहिए..हां क्यू नही!..लेकिन उसकी सास,ननद..
वो इन्ही ख़यालो मे डूबी थी की उसके ज़हन मे बिजली सी कौंधी..विजयंत ने माना था कि उसने उसकी मजबूरी का फ़ायदा उठाने के लिए कार्ड्स ब्लॉक करवाए थे तो कही उसके जिस्म की हवस मे अँधा होकर उसी ने तो समीर को गायब नही करवाया?..हां ये मुमकिन है..अब तो ससुर जी से रिश्ता कायम रखना ही होगा!
बाथरूम से बाहर निकली तो देखा की विजयंत 2 खाने की तालिया लेके बैठा है.जब वो घर मे दाखिल हुआ था तो उसके हाथ मे जो पॅकेट था उसमे खाना ही था.रंभा की तो सवेरे की ससुर से मुलाकात के बाद भूख ही मर गयी थी लेकिन अब उसकी कारस्तानियो के बाद उसकी भूख जाग गयी थी.विजयंत ने उसे उसकी थाली थमायी & दोनो खामोशी से खाना खाने लगे.खाना ख़त्म होने पे रंभा ने ससुर के हाथ से थाली ली & झूठे बर्तन रसोई मे रखने चली गयी.
जब वो कमरे मे लौटी तो देखा की विजयंत ने वाहा बाकी बत्तियाँ बुझा के सिर्फ़ 1 मद्धम रोशनी वाला लॅंप जला रखा है & वो पलंग के हेआडबोर्ड से टेक लगाके टाँगे फैलाए,कमर तक चादर डाले बैठा है.रंभा अपने बाल ठीक करती धीरे-2 बिस्तर तक आई & उसके दाई तरफ बैठ गयी.विजयंत की बाँह पे उसके नखुनो की खरोन्चे दिख रही थी.उसने उसपे उंगलिया फिराई & फिर 2 पलो के बाद झुक के बहुत हल्के से चूम लिया.
विजयंत समझ गया कि रंभा को उन दोनो का ये रिश्ता मंज़ूर था & उसने उसे दाई बाँह के घेरे मे ले लिया.रंभा ने भी चादर मे घुसते हुए बाया हाथ उसके सीने पे रखा & अपनी छातियाँ उसकी बगल मे दबाते हुए उसके कंधे पे सर रख उसके पहलू मे आ गयी.उसका ससुर उसकी गुदाज़ दाई बाँह को प्यार से सहला रहा था.विजयंत के चौड़े सीने के घने बालो मे उंगलिया फिराना रंभा को बहुत भला लग रहा था.कितनी देर से उसने खुद को ऐसा करने से रोका था मगर अब नही,अब तो वो जितनी मर्ज़ी उतनी देर तक इस मज़बूत जिस्म से खेल सकती थी.
"समीर के साथ क्या हुआ है?..आपको क्या लगता है?",रंभा के दाए हाथ की उंगली ससुर के सीने से उसकी दाढ़ी पे आ गयी थी.उसने विजयंत की ठुड्डी चूमि & फिर उसके होंठो पे उंगली फिराई.विजयंत उसकी कलाई थामे था.उसने पहले उसकी उंगली को चूमा & उसे खुद से थोड़ा & चिपका लिया.रंभा ने भी दाई टांग उठा के ससुर की टांगो पे चढ़ा दी.
"कुच्छ समझ नही आता..",विजयंत के चेहरे पे चिंता नज़र आ रही थी,"..कोई हादसा हुआ होता तो उसकी कार मिलती या फिर..",उसके जैसा मज़बूत दिल वाला शख्स भी बेटे की मौत के बारे मे बोलने से घबरा रहा था,"..& ऐसी दुश्मनी भी नही किसी से कि कोई उसे नुकसान पहुँचाए.",रंभा गौर से उसे देख रही थी....या तो ये आदमी झूठ बोलने मे माहिर है या ये बिल्कुल सच्चा है.
"तो अब क्या करेंगे?",उसका हाथ वापस ससुर के सीने पे फिसलने लगा था & अब धीरे-2 नीचे बढ़ रहा था.उसने अपनी मुलायम तंग से विजयंत की टाँगो के उपर धीरे-2 सहलाना शुरू कर दिया था.उसने नीचे देखा तो चादर मे तंबू बन गया था.उसने चादर को हटा के नीचे फेंक दिया & सामने ताज़ा सॉफ की गयी झांतो की वजह से & लंबा दिखता विजयंत का लंड देख उसकी आँखे चमक उठी.
"सोचा है मैने कुच्छ..उउम्म्म्म..",उसकी बहू उसके सीने को चूम रही थी & चूमते हुए उसके पेट के बिल्कुल निचले हिस्से पे जहा बाल ख़त्म हो रहे थे वाहा पे सहला रही थी.रंभा को अपनी टाँगो पे विजयंत की टाँगो के बालो की छुअन मस्त कर रही थी.उसने अपने होंठो मे उसका बाया निपल लिया & चूस लिया.उसके ससुर ने आह भरते हुए उसके बालो मे उंगलिया फिरा दी.रंभा ने दूसरे निपल को भी थोड़ी देर चूसा & उसके बाद चूमते हुए नीचे जाने लगी,"..लेकिन उस से पहले कल सुबह हम डेवाले जाएँगे."
रंभा अब उसके पहलू से निकल उसकी टाँगो को फैला के उसके लंड को देख रही थी.इतना बड़ा,इतना तगड़ा लंड देख के ही उसे मस्ती चढ़ने लगी थी.उसने लंड के नीचे लटक रहे गोल्फ बॉल जैसे आंडो को थपथपाया..कितने दिनो से वो किसी मर्दाने अंग से इस तरह नही खेली थी.आज वो जी भर के खेलेगी अपने ससुर के लंड से!
उसने लंड को हाथ मे पकड़ा.वो इतना मोटा था कि उसकी मुट्ठी के घेरे मे नही आ रहा था सो उसने दूसरा हाथ भी उसपे कस दिया.अभी भी लंड का काफ़ी बड़ा हिस्सा उसके छ्होटे-2 हाथो की पकड़ के बाहर था.लंड की गर्मी ने उसके जिस्म की तपिश भी बढ़ा दी थी.वो झुकी & गुलाबी सूपदे पे पहली बार अपने होंठो की मोहर लगाई.विजयंत ने मस्ती मे आँखे बंद कर ली.
रंभा उसके लंड को हिलाते हुए सूपदे को चूस रही थी.कुच्छ देर चूसने के बाद उसने सूपदे को मुँह से निकाला & उसपे जीभ फिराई & फिर लंड को पकड़ उसे अपने दोनो गालो & होंठो पे फिराने लगी.उसने नाक लंड & आंडो के बीच की जगह पे दबाते हुए उसके 1 अंडे को मुँह मे भर के चूसा तो विजयंत अपनी कमर उचकाते हुए सीधा बैठ गया & उसके सर को थाम लिया.
रंभा उसकी मस्ती से बेपरवाह उसके दूसरे अंडे को चूस रही थी कि उसकी नज़र पास पड़े गुलाब के फूल पे पड़ी.उसके ससुर ने उस गुलाब से ही उसे पागल कर दिया था.अब उसकी बारी थी.उसने लंड को छ्चोड़ दिया & गुलाब को हाथ मे ले उसे सुपादे पे रखा.गुलाब की बड़ी सी पंखुड़ी से जब उसने विजयंत के लंड के छेद को छेड़ा तो विजयंत ने आँखे बंद करते हुए ज़ोर से आह भारी.सूपदे की नाज़ुक स्किन पे फिसलती पंखुड़ी 1 अजीब सा मज़ा उसके जिस्म मे भर रही थी.
रंभा ने गुलाब को नीचे सरकाते हुए उसके लंड को फूल से सहलाया & फिर उसके आंडो पे उसी फूल से हल्के से मारा & ससुर को देख मुस्कुराइ.विजयंत ने उसे उपर खींचा & बाहो मे भरते हुए उसके होंठो से अपने होंठ सटा दिए.जब तक वो अपनी ज़ुबान आगे करता,रंभा की ज़ुबान उसके मुँह मे दाखिल हो चुकी थी.वो उसकी मांसल कमर को दबाते हुए उसकी किस का लुत्फ़ उठा रहा था.रंभा उसके चेहरे को पकड़े उसे शिद्दत से चूमे जा रही थी.काफ़ी देर तक दोनो उस मस्तानी किस का लुत्फ़ उठाते रहे,तब तक जब ताकि सांस लेने के लिए उन्हे अलग ना होना पड़ा.
रंभा लंबी-2 साँसे लेती अपने सीने के उभारो को ससुर के मुँह से सटाने लगी.विजयंत ने उसकी गंद की फांको को दबोचा & उसकी चूचियों को चूसने लगा.जब उनके बीच की वादी मे अपना मुँह घुसा के अपनी नाक उसने रगडी तो रंभा ने मस्ती & खुशी से मुस्कुराते हुए आह भरी & अपना सर पीछे झटका.उसके ससुर ने चूत को च्छुआ भी नही था & वो बुरी तरह से कसमसाते हुए रस बहाने लगी थी.
रंभा ने अपनी छातियाँ विजयंत के मुँह से खींची & पीछे हो अपने दोनो घुटने उसकी कमर के दोनो ओर जमाए & चूत को लंड पे झुकाने लगी.उसने बाया हाथ पीछे ले जाके लंड को थामा & फिर चूत को झुका के उसके मत्थे पे रखा & बैठने लगी.उसकी आँखे बंद हो गयी & चेहरा पे बस जोश दिखने लगा.इस पोज़िशन मे लंड 7-8 इंच तक अंदर घुस गया था & उसकी चूत को पूरा भर दिया था.
रंभा उसके सीने पे हाथ जमाए उसे मस्ती भरी निगाहो से देखती कूदने लगी.1 बार फिर चुदाई शुरू हो गयी थी & इस बार दोनो प्रेमी बिना किसी उलझन के उसका लुत्फ़ उठा रहे थे.विजयंत के बड़े हाथ रंभा के पूरे जिस्म पे घूम रहे थे.जब वो उसकी गंद के उभारो को नही दबा रहे होते तो वो उसकी चूचियो की गोलाई नाप रहे होते.उसकी चूचियो को भींचते हुए विजयंत ने अपने दोनो हाथो को उनके बीच की वादी से नीचे किया & उसके पेट को सहलाया.
विजयंत ने बगल मे पड़ा फूल उठाया & इस बार उसकी डंठल को सीधा रंभा के दाने पे लगा दिया.
"आननह....!",रंभा के चेहरे पे मस्तानी शिकाने पड़ गयी & वो मुस्कुराते हुए पीछे हो गयी ताकि उसकी चूत & उसका दाना उसके ससुर को आसानी से दिखें.उसने अपने हाथ विजयंत के पेड़ के तने सरीखी टाँगो पे टिकाए & कमर हिलाने लगी.विजयंत उसकी नज़र से नज़रे मिलाता हुआ उसके दाने पे डंठल रगड़ता रहा.
रंभा की आँखे अब नशे के बोझ तले आधी ही खुली रह पा रही थी.विजयंत की ये हरकत उसे मदहोशी के आलम मे ले गयी थी & अब वो उसे देख चूमने का इशारा करती हुई उसकी जाँघ पे हाथ टिकाए बहुत ज़ोर से कमर हिला रही थी.तभी उसकी चूत ने वही हरकते शुरू कर दी जो वो झड़ने के वक़्त करती थी & विजयंत के चेहरे पे भी उसकी बहू की तरह मस्ती भरी शिकन पड़ गयी & वो आहे भरने लगा लेकिन उसने दाने पे डंठल की रगड़ को नही रोका.
"आन्न्न्नह..डॅड.....!",रंभा झड़ी & उसे अब डंठल की रगड़ नकबीले. बर्दाश्त लगी.उसने फूल को पकड़ के किनारे फेंका & अपने ससुर के उपर झुक गयी.अपनी भारी-भरकम चूचिया उसके बालो भरे सीने पे दबाते हुए वो आहे भरती सुबक्ती हुई उसे दीवानो की तरह चूमने लगी.विजयंत ने उसे बाहो मे भर लिया & उसकी किस का जवाब देता रहा.
जब रंभा थोड़ा संभली तो विजयंत ने उसे बाहो मे भरे-2 पलटा & अपने नीचे कर लिया.रंभा ने सरसुर के बालो मे उंगलिया फिराते हुए उसके सर को थाम लिया & उसकी दाढ़ी पे अपने गाल रगड़ने लगी.
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1 कार रंभा & समीर के बंगल के बाहर खड़ी थी.उसमे 1 शख्स बैठा उपरी मंज़िल की ओर देख रहा था.वो काफ़ी देर से उस बुंगले पे नज़र रखे था.उसने विजयंत को आते देखा था लेकिन अभी उसकी समझ मे ये नही आ रहा था कि उपर अभी कौन जगा था.पहले निचली मंज़िल & उपरी मंज़िल पे बत्तिया जल रही थी लेकिन अभी कुच्छ देर पहले सारे घर की बत्तिया किसी ने बुझाई मगर उपर के कमरे मे तेज़ रोशनी बंद कर मद्धम रोशनी कर दी गयी थी.
उस शख्स ने 1 सिगरेट सुलआगाई. & लाइटर की रोशनी मे उसका चेहरा दिखा जिसपे बाए गाल पे 1 निशान था,लगभग 2 इंच बड़ा.निशान किसी बड़ी पुरानी चोट का लगता था.वो आदमी लगभग 50-55 बरस का होगा & उसके बॉल डाइड थे.सिगरेट पीते हुए वो सोच रहा था..इतनी मुश्किल से उसे इस लड़की का पता मिला था.उसने सोचा था कि अब तलाश ख़त्म हुई & वो उस से बात कर लेगा लेकिन यहा तो और ही कहानी चल रही थी.अब पता नही कब उसका पति मिलेगा & कब वो उस से बात कर पाएगा!..उसने सिगरेट को खिड़की से बाहर फूटपाथ पे फेंका & पॅकेट से दूसरी निकाल के सुलगाई.
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क्रमशः.......
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