Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:34 PM,
#26
RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--26

गतान्क से आगे.

विजयंत ने अब डंठल थामी & गुलाब के फूल को उसके बालो से ढँके चेहरे पे फिराया & फिर नीचे ले आया.गुलाब ने उसकी बाई चूची की गोलाई के गिर्द 1 दायरा बनाया & फिर दोनो चूचियो के बीच पहुँचा & यही हरकत दाई चुची के साथ दोहराई.उसने फूल की पंखुड़ियो से उसके निपल्स को छेड़ा तो वो सिहर उठी.रंभा आँखे बंद कर बस मस्ती मे उड़ रही थी.फूल उसकी चूचियो को चूमने के बाद

नीचे उसके पेट पे आया & उसकी नाभि के गिर्द घुमाने लगा.नाभि के छेद को भी विजयंत ने पंखुड़ियो से छेड़ा.रंभा फिर से च्चटपटाने लगी थी.

फूल नीचे आया & उसकी चूत से सॅट गया,"तुम्हारी चूत की पंखुड़ियो की नज़ाकत,इनकी कोमलता के आगे इस गुलाब का हुस्न भी फीका है.मुझे तो डर है कि कही तुम्हारे इस खूबसूरत अंग से रश्क कर ये बेचारा मुरझा ना जाए!",विजयंत ने गुलाब को बिस्तर पे फेंक दिया & रंभा के दाए पैर के पास घुटनो पे बैठ गया.ऐसे शायराना अंदाज़ मे रंभा की तारीफ किसी ने नही की थी.उसका दिल उसे धिक्कार रहा था कि वो ऐसे आशिक़ का इस्तेक्बाल नही कर रही & ना ही अपनी आहो के ज़रिए उसका शुक्रिया अदा कर रही है!

उसने बालो की लड़ियो के पार देखा तो उसे विजयंत गुटनो पे बैठा नज़र आया.उसने उसके दाए पाँव को उठाके होंठो से ऐसे लगाए जैसे वो हुस्न की देवी हो & उसका ससुर उसकी इबादत कर रहा हो.उसने दोनो होंठो को मुँह के अंदर खींच अपनी आह को रोका.विजयंत उसके दाए पैर की सबसे छ्होटी उंगली को चूस रहा था.जब तक वो अंगूठे तक पहुँचा,रंभा मदहोशी मे बिस्तर पे दाए-बाए सर झटक रही थी.

विजयंत उसके पैरो की उंगलियो की पूजा करने के बाद उसकी मखमली टांग के 1-1 हिस्से को अपने होंठो से चूमता उपर उसकी मोटी जाँघ तक आया.रंभा की भारी जाँघ की कसावट उसे बहुत भाई & उसने वाहा केवल चूमा ही नही बल्कि चूस-2 के अपने होंठो के निशान उनपे छ्चोड़ दिए.रंभा अपने सर के दोनो तरफ की चादर को बेचैनी से खींचते आहे भरते कमर उचका रही थी.उसे बस इंतजार था अपने ससुर के होंठो का अपनी चूत से लगने का.

विजयंत उसकी बाई जाँघ को उठाए अपनी दाढ़ी उसपे रगड़ उसके जिस्म की बेचैनी को & बढ़ा रहा था.उसने उसकी जाँघ & कमर के जोड़ पे चूमा & फिर उसकी बाई जाँघ को उठा लिया.उसकी दाढ़ी ने वाहा भी उसे छेड़ा & उसके होंठो ने वाहा भी अपने दस्तख़त किए & फिर नीचे आ फिर से घुटनो पे बैठ वो उसके बाए पैरो की उंगलियो को पूजने लगा.रंभा बेचैनी से कमर उचका रही थी & जंघे भींच रही थी.उसने बेचैन हो अपनी चूचियो को आप ही दबाया तो विजयंत को ध्यान आया कि हुस्न के देवी के उन बला के खूबसूरत अंगो की इबादत तो उसने की ही नही!

वो उसके दाई तरफ बाई करवट पे लेटा & दाया हाथ उसके पेट पे रख सहलाते हुए अपने नाक & होंठो से उसके बालो की लड़ियो को हटा उसके कोमल चेहरे & गुलाबी होंठो को चूमने लगा.रंभा की भी तारीफ थी कि इतनी मस्ती,ऐसे रोमानी गर्म, माहौल के बावजूद उसने अभी तक 1 बार भी खुद अपनी ज़ुबान ना तो विजयंत के मुँह मे घुसाइ थी ना ही अपने हाथ उसके जिस्म पे लगा उसे इस बात का एहसास दिलाया था कि वो उसकी हर्कतो से मस्ती मे बावली हो गयी है.ये दूसरी बात थी कि कोई अँधा भी बता देता कि रंभा जोश के सातवे आसमान मे उड़ रही थी.

विजयंत ने अपनी दाढ़ी उसके सीने पे रगडी & उसकी नाभि को कुरेदा तो रंभा ने चादर भींचते हुए आह भरी & कमर उचकाई & जैसे ही उसकी बाई चूची के निपल को जीभ से चाटते हुए उसके ससुर ने उसे मुँह मे भरा & उसकी नाभि कुरेदी वो 1 बार और झाड़ गयी.विजयंत ने अपने दोनो हाथ अपनी बहू की चूचियो पे लगा दिए.उसकी छातियाँ देख मर्द पागल हो जाते थे & कई बार इतने बदहवास की रंभा को तकलीफ़ होने लगती थी.

विजयंत को भी जैसा जोश आज की रात चढ़ा था वैसा पूरी ज़िंदगी नही चढ़ा था लेकिन फिर भी रंभा ने उसके चूमने मे वो बदहवासी नही महसूस क़ी.वो जानती थी कि उसका ससुर उसके हुस्न को देख जोश से पागल हो गया है लेकिन फिर भी उसकी गर्मजोशी से भरी ज़ुबान & आतुर हाथ उसे तकलीफ़ नही पहुँचा रहे थे बल्कि जो मज़ा उसे अभी आ रहा था ऐसा उसे ना ही अपने किसी प्रेमी & ना ही पति के साथ आया था.

पता नही कितनी देर तक वो उसकी छातियो के मस्ताने उभारो से खेलता रहा & वो मदहोश होती रही.अपने हाथो को अपने ससुर के बालो को भींचने,उसके गथिले बदन को अपने आगोश मे भरने से उसने अपनी आन से मजबूर हो कैसे रोका था ये वोही जानती थी.

विजयंत ने उसके सीने से सर उठाया तो रंभा ने उसे अधखुली,नशे से बोझल पॅल्को से देखा.वो उसकी जंघे फैला के उनके बीच लेट रहा था.उसने आँखे बंद की & 1 बार फिर अपनी छातियाँ दबाने लगी.विजयंत ने उसकी चूत मे जीभ फिराई तो उसने कमर उचकाई.विजयंत ने उसकी जाँघो मे बाँह फँसा के उसके पेट को दबाते हुए उसकी चूत चाटना शुरू किया & वो अपनी चूचियाँ दबाते हुए आहे भरने लगी.उसकी कमर खुद बा खुद उच्के जा रही थी.

विजयंत उसके दाने को चाट रहा था &वो मस्ती मे उड़ रही थी.उसने अपने हाथ आगे बढ़ा उसकी चूचियो पे रखे तो रंभा ने अपने हाथ वहाँ से खीच लिए & 1 बार फिर बिस्तर की चादर की सलवटो मे इज़ाफ़ा करने लगी.

विजयंत की जीभ ने बहुत जल्द ही उसे झाड़वा दिया लेकिन उसकी चूत से अलग नही हुई.चूत से रस बहे जा रहा था & उसका ससुर उसे चाते जा रहा था.1 मुद्दत के बाद उसे 1 बार & झाड़वाने के बाद विजयंत ने अपना चेहरा उसकी गोद से लगा किया & उसकी टाँगे फैला उनके बीच खड़ा हो गया.रंभा ने अधखुली आँखो से उसे अंडरवेर उतारते देखा & जब उसका लंड बाहर आया तो उसकी आँखे हैरत से फैल गयी.

इतना बड़ा लंड!..रंभा ने ऐसा लंड केवल नंगी फ़िल्मो मे देखा था & उसे हमेशा यही लगता था कि वो फ़िल्मे बनानेवाले कोई कारस्तानी करते होंगे वरना असला ज़िंदगी मे वैसा लंबा लंड होना नामुमकिन है..लेकिनाज़ उसे पता चल रहा था कि वो ग़लत थी.विजयंत उसकी फैली जाँघो के बीच घुटनो पे बैठ गया..लंड 9 इंच से लंबा लगता है..वो नज़रो से उसके लंड को नाप रही थी & मोटाई तो 2.5 इंच से भी ज़्यादा लगती है.

विजयंत ने फॉरेस्किन पीछे की तो उसके 9.5इंच की गोरे लंड का गुलाबी सूपड़ा प्रेकुं से चमकता सामने आ गया..झांते सॉफ कर रखी है इसने.अफ!..रंभा ने आँखे बंद कर ली.उसके ससुर ने यहा आने से पहले अपने होटेल के कमरे मे अपनी झांते सॉफ की थी क्यूकी अपनी खूबसूरत बहू को चोद्ते वक़्त वो बीच मे ज़रा सी भी रुकावट नही चाहता था.

"उउन्न्ह..!",उसने अपने निचले होंठ को दाँत से काटा & चादर पे बेचैनी से हाथ चलाए.विजयंत अपना लंड उसकी चूत की दरार पे फिरा रहा था.रंभा की कमर अब उसके काबू मे नही थी & अपने आप उचकने लगी थी मानो उसकी चूत खुद ही लंड को अंदर लेना चाहती हो.विजयंत चूत की दरार पे लंड को चला उसे पागल कर रहे था & उभरे हुए उसके दाने को अपने सूपदे से छेड़ रहा था.रंभा ने अपने सर के बगल मे दोनो तरफ की चादर को हाथो मे भर के नोचा & ज़ोर से कमर उचकाई & अपना सर पीछे फेंकते हुए जिस्म कमान की तरह मोड़ा.वो लंड की हर्कतो से झाड़ गयी थी.

वो कमर उचकाते हुए झाड़ ही रही थी कि विजयंत ने सूपदे को चूत मे धकेल दिया.कुच्छ उसके धक्के कुच्छ उसकी चूत ने ही उचक के उसके सूपदे को अंदर ले लिया.रंभा के माथे पे शिकन पड़ गयी & उसने दर्द के एहसास से आँखे मींच ली.उसकी चूत को विजयंत का लंड बुरी तरह फैला रहा था.वो बेचैनी से बिस्तर की चादर को पकड़े हुए थी.उसकी आन अभी भी उसे अपने ससुर को उसकी गर्म हर्कतो से पैदा हुई मस्ती के इज़हार से रोक रही थी.

विजयंत ने उसकी चूत के गीलेपन का फ़ायदा उठा के लंड 7 इंच तक अंदर घुसा दिया.वो भी उसकी चूत की कसावट से आहत हुआ था & ज़िंदगी मे पहली बार उसे लगा था कि वो बिना लड़की को झड़वाए खुद पहले झाड़ जाएगा.रंभा को अब दर्द नही हो रहा था.विजयंत ने घुटने पे बैठे-2 ही उसकी चुदाई शुरू की.रंभा को पता ही ना चला & अपने आप उसकी जंघे हवा मे उठ गयी.विजयंत ने उन्हे अपने हाथो मे समेटा & टाँगे फैलाते हुए अपनी बहू के उपर झुक गया.

वो धक्के लगाए जा रहा था & मस्ती मे डूबी रंभा आहे भरे जा रही थी.उसकी कमर उसके ससुर के हर धक्के का जवाब दे रही थी.तभी विजयंत को अपने उपर से काबू हटता महसूस हुआ.रंभा चीख रही थी & 1 बार फिर जिस्म को कमान की तरफ उपर मोदते,सर को पीछे झटकते,बिस्तर की चादर को नोचते झाड़ रही थी & उसकी चूत झाड़ते वक़्त सिकुड-फैल रही थी.

विजयंत ने अपनी ज़िंदगी मे ना जाने कितनी लड़कियो को चोदा था मगर झाड़ते वक़्त ऐसी मस्त हरकत उसने कभी महसूस नही की थी.उसका लंड उस अनूठे एहसास की खुमारी मे खोता अपना रस उगल ही देता लेकिन उस लंड के मालिक ने अपने पे किसी तरह काबू कर ही लिया.

"आईईईईईययययईई......!",रंभा बहुत ज़ोर से चीखी.उसकी चूत की मस्तानी हरकत से आहत हो विजयंत ने ज़ोर का धक्का मारा था & लंड जड़ तक उसकी चूत मे समाता उसकी कोख से जा टकराया था.रंभा के चेहरे पे दर्द की लकीरें खिंच गयी & वो च्चटपटाने लगी.विजयंत झुक के उसके चेहरे को चूमने लगा & चुदाई रोक दी.रंभा छटपटाती रही.विजयंत के होंठ उसके होंठो के करीब आते तो वो अपने होंठ पीछे खींच लेती क्यूकी वो जानती थी कि 1 बार दोनो के लब टकराए तो वो सारी आन भूल के अपने ससुर को चूमती हुई उस से लिपट जाएगी.

कुच्छ देर बाद उसका दर्द ख़त्म हो गया तो विजयंत ने दोबारा चुदाई शुरू की.रंभा का जिस्म हर धक्के पे मज़े से कांप उठता क्यूकी लंड सीधा उसकी कोख पे चोट करता.ऐसा अनूठा मज़ा उसे आज तक नही आया था.वो बस आहें भरे जा रही थी.उसकी मदहोशी का कोई हिसाब नही था लेकिन अभी भी वो अपने ससुर को अपने होंठो का स्वाद चखने नही दे रही थी.

विजयंत उसके गाल से होठ पे पहुँचता तो वो मुँह फेर लेती.विजयंत ने उसकी चूचियो का रुख़ किया & उन्हे चूस्ते हुए अपनी बहू को चोदने लगा.रंभा ने अपनी टाँगे उसकी कमर पे लपेट दी थी लेकिन आपने हाथ अपने सर के दोनो तरफ बिस्तर की चादर पे ही लगाए रखे थे.

विजयंत अब उसकी चूचियो से उठा के अपने हाथ बिस्तर पे जमा के धक्के लगा रहा था.रंभा भी तेज़ी से कमर उचका रही थी.विजयंत भी उसकी कसी चूत के जलवे से आहत हो आहें भर रहा था.अचानक रंभा जिस्म को कमान की तरह मोदते चीखने लगी,उसकी कमर भी बुरी तरह उचक रही थी.रंभा ने झड़ने की शिद्दत इतनी इंतेहा के साथ कभी महसूस नही की थी & वो मदहोशी मे डूबी हुई बस चीखे जा रही थी.

विजयंत भी अब बहुत तेज़ी से धक्के लगा रहा था & झड़ती रंभा की चूत ने जैसे ही सिकुड़ना-फैलना शुरू किया उसके लंड ने देर से अण्दो मे उबाल रहा गर्म वीर्य उसकी चूत मे उदेलना शुरू कर दिया.विजयंत का जिस्म झटके खा रहा था & वो आहें भर रहा था.उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो रंभा की चूत उसके लंड को पकड़ उसके वीर्य को निचोड़-2 के निकाल रही हो.वही रंभा ने उसके वीर्य को सीधा अपनी कोख मे गिरते महसूस किया & उसके झड़ने की मस्ती दुगुनी हो गयी.

विजयंत का लंड रस बहाते ही चला जा रहा था & रंभा झाडे चले जा रही थी.

"आन्न्‍न्णनह..!",वो चीखी & बिस्तर से उठते हुए उसने ससुर के मज़बूत उपरी बाजुओ मे अपने नाख़ून धंसा दिए.

"आहह..!",नखुनो के धँसने से हल्का सा खून निकला & विजयंत कराहा & उसने 1-2 धक्के और लगा दिए & 1 बार फिर उसके लंड से वीर्य छूटने लगा.वो इतनी देर तक पहले कभी नही झाड़ा था.

रंभा झड़ने की शिद्दत से आहत हो या फिर अपनी आन की वजह से अपने ससुर का पूरे जोश के साथ साथ ना देने की मजबूरी,उसकी आँखे छलक गयी & वो रोने लगी & झाड़ के उसके उपर पड़े हान्फ्ते विजयंत को उसने खुद से अलग किया & सुबक्ती हुई बिस्तर से उतर गयी.

"इन आँसुओ की वजह क्या है?",बाथरूम की ओर जाती रंभा का रास्ता बिस्तर से उतर के विजयंत मेहरा ने रोक लिया था,"..ये कि मैने तुम्हारी मजबूरी का फ़ायदा उठाया या ये कि तुम्हारी आन ने तुम्हे खुल के हम दोनो की चुदाई का मज़ा नही लेने दिया!",रंभा की रुलाई रुक गयी & उसने हैरत से विजयंत को देखा..क्या उसने उसका मन पढ़ लिया था?

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क्रमशः.......
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