RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--24
गतान्क से आगे.
"बाप तो हैं पर यहा के मालिक नही & मेरे कार्ड्स ब्लॉक करवाने की बेहूदा हरकत आपने क्यू की?"
"पहले ये पढ़ो,कंपनी के मालिकाना हक़ क्यू काग़ज़ात जिसपे तुम्हारे पति के भी दस्तख़त हैं.",उसने कुच्छ काग़ज़ डेस्क पे आगे सरकाए,"..पेज 4,क्लॉज़ 6..किसी भी एमर्जेन्सी की सूरत मे अगर मिस्टर.समीर मेहरा कंपनी के फ़ैसले लेने मे नाकाम या नाकाबिल हैं तो कंपनी के सारे मालिकाना हक़ अपनेआप ट्रस्ट ग्रूप को चले जाएँगे.",रंभा पे जैसे बिजली गिरी थी.उसे कुच्छ समझ नही आ रहा था.वो धाम से कुर्सी पे बैठ गयी.
"अब इत्तेफ़ाक़ कहो या तुम्हारी बदक़िस्मती की ट्रस्ट का मालिक तो मैं ही हू.",रंभा की ज़िंदगी यू उथल-पुथल हो जाएगी,ऐसा तो उसे अंदेशा ही नही था!
"लेकिन वो पैसे मेरे हैं,आप इस तरह उन्हे मुझसे नही छीन सकते..मेरे पति ने अपनी मर्ज़ी से मुझे वो दिए थे & उनपे केवल मेरा हक़ है.",उसकी हिम्मत ने अभी जवाब नही दिया था.उसने ठान ली की जो हो वो अगर हारती भी है तो बिना पूरी कोशिश किए नही हारेगी.
"वो अकाउंट्स समीर ने इस कंपनी के ज़रिए खुलवाए थे & यहा का मालिक होने के नाते मुझे लगा कि उनकी कोई ज़रूरत नही,वो बस कंपनी का खर्चा फालतू मे बढ़ा रहे हैं,इसीलिए मैने उन्हे ब्लॉक करवा दिया."
"आप जो भी दलीलें दें,मुझे वो पैसे चाहिए ही चाहिए..",वो उठ खड़ी हुई,"..मैं पोलीस स्टेशन जा रही हू,अपने पति की गुमशुदगी के बारे मे उनसे पुच्छने.आपको शायद याद नही कि इस कंपनी का मालिकाना हक़ आपको इसलिए मिला है क्यूकी आपका बेटा लापता है.",रंभा ने विजयंत को मज़किया निगाहो से देखा,"..आपको उसकी फ़िक्र नही होगी पर मुझे है.जब मैं पोलीस स्टेशन से लौटू तो मेरे अकाउंट्स फिर से चालू हो जाने चाहिए."
"बैठ जाओ.",विजयंत का चेहरा सख़्त हो चुका था & आँखो मे अजीब सा ठंडापन आ गया था.रंभा को उन नज़रो की ठंडक & भारी आवाज़ का रोब महसूस हुए & वो बैठ गयी.
"मैं कल रात यहा आया था & जिस वक़्त तुम घर मे आराम से सो रही थी मैं पोलीस से सारी जानकारी ले रहा था.मुझे इस छ्होटे से धंधे का लालची बता रही हो
& खुद मुझसे अपने पैसो के लिए लड़ रही हो!",विजयंत उठके उसके सामने आ खड़ा हुआ था & झुक के बात कर रहा था.रंभा के चेहरे से उसका चेहरा बस कुच्छ ही इंच दूर था.रंभा ने महसूस किया कि उसका दिल बहुत ज़ोरो से धड़कने लगा था & 1 अजीब सी घबराहट हो रही थी.
"तुम्हे तुम्हारे पैसे मिल जाएँगे लेकिन तुम्हे मेरी 1 शर्त माननी पड़ेगी."
"कैसी शर्त?",वो धीमी आवाज़ मे बोली.
"तुम्हे मेरे साथ हमबिस्तर होना पड़ेगा.",रंभा को इतनी ज़ोर का झटका लगा की उसकी आवाज़ ही नही निकली.वो बस मुँह खोले विजयंत को देखे जा रही थी.
"क्या कहा आपने?",काफ़ी देर बाद वो वैसे ही हैरत मे डूबी बोली.
"तुम्हे मेरे साथ सोना होगा & फिर तुम्हारे सारे अकाउंट्स चालू कर दिए जाएँगे.",रंभा वैसे ही मूरत की तरह बैठी रही,"..मैं आज रात पंचमहल मे ही रुकुंगा & रात को तुम्हारे घर आऊंगा,अगर तुम्हारा जवाब हां होगा तो ठीक है वरना..",हाथ मे थामे पेन को उसने रंभा के माथे से लेके दाए गाल पे फिराया.
रंभा बुत बनी बैठी रही लेकिन उसके दिल मे ख़यालो का तूफान उमड़ा हुआ था..ये इंसान उसका ससुर था..समीर का बाप..!..& वो उसे चोदने की बात कर रहा था..!..नही वो कैसे मान सकती है ये गलिज़ बात?..लेकिन इसमे हर्ज ही क्या है..क्या उसके दिल मे कभी विजयंत के लिए कोई गुस्ताख ख़याल नही आए थे?..हां..लेकिन वो सब शादी से पहले थे..तो तुम कब से इतनी सती-सावित्री हो गयी..इस रिश्ते से तुम्हारा फ़ायदा ही तो है!
"तुम्हे अभी जवाब देने की ज़रूरत नही है.रात को बता देना.चलो मेरे साथ.",रंभा ने उसे सवालिया नज़रो से देखा,"पोलीस स्टेशन जा रही थी ना,चलो.",रंभा उठी & उसके पीछे चल दी.
पोलीस स्टेशन मे कोई नयी बात नही पता चली थी.पोलीस वाले भी परेशान थे कि आख़िर इस तरह से समीर कार सहित कहा गायब हो गया.पंचमहल से लेके क्लेवर्त तक का सारा इलाक़ा छान मारा था लेकिन कोई सुराग तक नही मिला था.पोलिसेवालो का ये मानना था की उसे अगवा किया गया है लेकिन विजयंत & रंभा का कहना था कि समीर की ना कोई दुश्मनी थी किसी से ना कोई कहा-सुनी हुई थी फिर कौन कर सकता है ये काम!
पोलिसेवाले फिर भी छान-बीन मे लगे हुए थे.अब 1 नयी मुसीबत खड़ी हो गयी थी.लाख कोशिशो के बावजूद इस बात को च्छुपाना तो मुश्किल था.उपर से 300किमी के दायरे मे किसी इंसान की खोज हो बात लीक ना हो ऐसा तो नामुमकिन ही था.मीडीया को भनक लग गयी & ये भी पता चल गया कि इस वक़्त खुद विजयंत मेहरा पोलीस थाने मे बैठा है और उन्होने थाने के बाहर ही अपने तंबू गाढ दिए.
"प्लीज़..शांत हो जाइए..मैं बस 1 स्टेट्मेंट दूँगा..",विजयंत रंभा के साथ थाने के बाहर खड़े रिपोर्टर्स से मुखातिब था जोकि स्कूल के बच्चो से भी ज़्यादा बुरे ढंग से पेश आ रहे थे लेकिन स्टेट्मेंट लफ्ज़ सुनते ही सब कॅमरास & माइक्स तान चुपचाप खड़े हो गये,"..मेरे बेटे की परसो रात से कोई खबर नही है.मेरी बहू..",उसने पास खड़ी आँखो पे चश्मा चढ़ाए रंभा की ओर इशारा किया,"..ने पोलीस मे रिपोर्ट कल दोपहर दर्ज कराई & अब पोलीस उसकी तलाश मे जुटी है..",इसके बाद उसने कुछ सवालो के जवाब दिए & रंभा के साथ वाहा से निकल गया.
रंभा को वो पंचमहल के वाय्लेट होटेल के रेस्टोरेंट मे ले गया.रंभा अनमानी से खाना खा रही थी,"कोई ज़बरदस्ती नही कि तुम मेरी बात मान लो?..चाहो तो इनकार कर दो & अपने रास्ते चली जाओ.",रंभा ने सर उपर किया & आग बरसाती निगाहो से उसे देखा.विजयंत बस मुस्कुराता हुआ खाना ख़ाता रहा.खाना खाने के बाद दोनो नीचे आए & लॉबी के पास बने स्टोर्स के सामने से बाहर जाने लगे कि तभी विजयंत रुक गया,"रंभा.."
"ये सारी देख रही हो..",उसने शो विंडो मे 1 पुतले पे लिपटी सारी देखी,"..अगर तुम्हारा जवाब हां होगा तो रात तुम यही सारी पहनना.",वो मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ गया.रंभा वही खड़ी उस सारी को घुरती रही.
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रात 9 बजे बंगले के अंदर के दरवाज़े पे दस्तक हुई तो रंभा ने दरवाज़ा खुद खोला.उसने सभी नौकरो को बहुत जल्दी छुट्टी दे दी थी.विजयंत अंदर दाखिल हुआ & रंभा को देखते ही उसके होंठो पे मुस्कान खेलने लगी.रंभा ने वही नारंगी सारी पहनी थी जो उसने उसे होटेल मे दिखाई थी.बॉल जुड़े मे बँधे थे & जब वो घूमी तो उसकी नज़रो के सामने उसकी गोरी पीठ चमक उठी क्यूकी उसने बॅकलेस,हॉल्टर नेक्बलॉवौस पहना था.ब्लाउस की 1 पट्टी किसी माला की तरह उसकी गर्दन मे पड़ी थी & पीछे पीठ पे बस 1 पतली पट्टी हुक्स से जुड़ी उसके सीने को ढँके हुए थी.
विजयंत के हाथ मे 1 पॅकेट था जिसे उसने दरवाज़ा बंद करने के बाद वही हॉल की मेज़ पे रखा.रंभा अपने कमरे मे चली गयी थी.विजयंत ने कोट उतारा & उसके पास पहुँचा & अपना हाथ आगे बढ़ाया.उसके दाए हाथ मे 1 सुर्ख गुलाब था.रंभा ने 1 नज़र गुलाब को देखा & 1 नज़र विजयंत को अपना मुँह घुमा उसकी ओर पीठ कर खड़ी हो गयी.
हुन्न्ञन्..!",वो सिहर उठी थी.वो सुर्ख गुलाब उसके जुड़े के ठीक नीचे उसकी गर्दन के नीचे आ लगा था & बहुत हौले-2 नीचे जा रहा था.गुलाब की कोमल छुअन ने उसके जिस्म को जगा दिया था.गुलाब उसकी कमर के बीचोबीच उसकी सारी तक पहुँचा & फिर डाई तरफ हो उसके दाए हाथ से सॅट गया.उसके नर्म हाथ & पतली कलाई से होता वो उपर उसकी गुदाज़ बाँह की ओर बढ़ा जा रहा था.गुलाब का कोमल एहसास उसे पागल कर रहा था लेकिन वो बस आँखे बंद किए खड़ी थी.
विजयंत उसकी मजबूरी का फ़ायदा उठा रहा था & आत्म-सम्मान से भरी रंभा को ये बात बिल्कुल नागवार गुज़री थी.ये सच था की विजयंत के साथ सोने मे उसे कोई हिचक,कोई परेशानी नही थी लेकिन वो फ़ैसला उसका खुद की मर्ज़ी से लिया हुआ होना चाहिए था & इसीलिए उसने तय कर लिया था क़ि वो विजयंत को कुच्छ करने से नही रोकेगी लेकिन चुद्ते वक़्त अपनी खुशी,अपनी मस्ती का इज़हार कर वो मज़ा वो अपने ससुर को नही देगी.
गुलाब अब उसके नंगे कंधे पे आ गया था & उपर बढ़ रहा था.विजयंत ने गुलाब को उसके दाए कान पे फिराया & वाहा से वो उसको उसके दाए गाल पे लाते हुए उसके सामने आ खड़ा हुआ.रंभा ने आँखे बंद ही रखी थी लेकिन वो समझ गयी थी की उसका ससुर अब उसके सामने खड़ा है.गुलाब अब उसके हसीन चेहरे पे घूम रहा था.गुलाब ने पहले उसके माथे को चूमा & फिर उसकी नाक को,उसके बाद वो उसके गुलाबी गालो से मिला & फिर उसकी पंखुड़ियो ने अपने ही जैसी उसके होंठो की पंखुड़ियो को छेड़ा.रंभा के जिस्म मे बिजली दौड़ गयी & उसकी चूत मे कसक उठने लगी.उसे बहुत अच्छा लग रहा था यू प्यार करवाना लेकिन उसकी आन उसे इस मज़े के इज़हार से रोक रही थी.
गुलाब उसके बाए कान पे गया & फिर उसकी ठुड्डी से फिसलता उसकी गर्दन पे आया & फिर उसके नीचे.रंभा की धड़कने तेज़ हो गयी.गुलाब उसकी छातियो की ओर बढ़ रहा था.विजयंत की निगाह अपनी बहू के चेहरे से ही चिपकी हुई थी.उसके सुर्ख गाल,बंद पलके उसके जिस्म मे उठ रही तरंगो से पैदा हुई मस्ती दास्तान कह रहे थे.
गुलाब नीचे आया & उसकी बाई छाती के बाहरी हिस्से को ब्लाउस के उपर से च्छुटा हुआ उसकी बाई बाँह से आ लगा फिर वो हौले-2 उसकी मांसल,रेशमी बाँह पे नीचे फिसलने लगा & उसकी कलाई तक जा पहुँचा.उसके बाद ने रंभा को अपनी आह को आवाज़ देने पे मजबूर कर ही दिया.गुलाब कलाई से सीधा उसके नर्म पेट पे आ गया & उसकी नाभि की ओर बढ़ने लगा.रंभा की आह निकल गयी थी & उसे खुद पे गुस्सा आया कि उसने क्यू अपने ससुर को उस आह का मज़ा दिया & उसने गुलाब की डंठल को दाए हाथ से पकड़ वही फर्श पे गिरा दिया.
विजयंत उसके बिल्कुल करीब आ गया,इतना करीब की उसकी गर्म सांसो को रंभा अपने चेहरे पे महसूस करने लगी.उनकी तपिश ने उसकी चूत की कसक & बढ़ा दी.उसके दिल मे अरमान अंगडायाँ ले जागने लगे लेकिन उसने आँखे नही खोली.उसका दिल चीख-2 के कह रहा था कि विजयंत को बाहो मे भर उसके होंठ चूम ले & उन गर्म सांसो की गर्मी अपने पूरे जिस्म पे महसूस करे मगर ऐसा करना उसकी आन के खिलाफ था & उसने अपनी आँखे नही खोली.
उसने महसूस किया कि उसकी साँसे उसकी आँखो के बाद नाक & फिर दोनो गालो के बाद अब वो अपनी गर्दन पे महसूस कर रही थी.विजयंत अपनी खूबसूरत बहू के चेहरे को बहुत करीब से देखने के बाद नीचे झुक रहा था & उसकी गर्दन के बाद वो उसके बहाली की दास्तान कहते उपर-नीचे होते बड़े से सीने पे झुका हुआ था.रंभा के दिल मे तो ये हसरत पैदा हुई कि वो अपना चेहरा डूबा ले उन गोलाईयो के बीच & नही तो वो खुद ही उसका सर भींच दे अपनी छातियो मे लेकिन उसने खुद को रोके रखा.
काफ़ी देर तक उसने उसकी गर्म सांसो को अपने सीने पे महसूस किया लेकिन उसकी हालत तब और बुरी हो गयी जब उन सांसो ने अपना निशाना उसके चिकने पेट को बना लिया.उसकी सारी के बगल से विजयंत उसकी गहरी नाभि को देख रहा था.बस उसके नीचे ही तो उसकी चूत थी जो मस्ती मे पागल हो रही थी.रंभा के लिए बात अब बर्दाश्त से बाहर हो रही थी & वो घूम गयी & अपनी पीठ विजयंत की ओर कर दी लेकिन अभी भी उसे राहत नही मिली.अब विजयंत की साँसे उसकी मांसल कमर को तपा रही थी.
विजयंत ने रंभा के कदमो मे पड़ा फूल उठाया & फिर उसकी पीठ को अपनी गर्म सांसो से आहत करता उपर उठा.उसका चेहरा अब रंभा के दाए कंधे के उपर झुका हुआ था.रंभा ने अपना मुँह बाई ओर फेर लिया तो विजयंत ने अपने बाए हाथ मे पकड़े फूल को उसके बाए गाल से लगा उसे दाई ओर धकेला.उस नाज़ुक से फूल के धकेलने के पीछे विजयंत की हसरत ने उसे चेहरा उसकी ओर करने पे मजबूर किया मगर ज्यो ही वो उसके दाए कंधे के उपर से उसके चेहरे की ओर झुका वो घूमी & लड़खड़ाते कदमो से उस से दूर जाने लगी.
विजयंत ने दाया हाथ बढ़ा के जाती हुई रंभा की दाई कलाई थाम ली.रंभा थोड़ा आगे जा चुकी थी & अब उसकी बाँह पूरा पीछे की ओर खींची हुई थी.वो रुकी लेकिन घूमी नही & 1 बार फिर उसके होंठो मे क़ैद 1 आह बरबस आज़ाद हो गयी.विजयंत के तपते होंठ उसके दाए हाथ की उंगलियो से आ लगे थे & उन्हे चूस रहे थे.विजयंत ने उसकी नर्म गुलाबी हथेली पे अपने आतुर होंठो से चूमा & फिर वो होंठ उसकी कलाई से होते हुए उसकी बाँह की ओर बढ़ने लगे.
उसकी हर किस पे वो सिहर उठती थी.वो बाँह छुड़ाने की बहुत मामूली सी कोशिश कर रही थी.सच तो ये था कि उसका जिस्म इस खेल मे बहुत गर्मजोशी के साथ शरीक था & उसका दिल भी लेकिन उसकी आन ही थी जिसने उसे इस बात को मानने से रोका हुआ था.विजयंत उसकी बाँह को दाई तरफ फैलाए चूमते हुए उसके कंधे तक आ पहुँचा.बहाल रंभा ने फिर से छूटने की कोशिश की तो विजयंत ने वैसे ही उसकी कलाई पकड़े हुए उसका बाया कंधा थामा & घूमके 1 दीवार से सटा दिया.
अब वो उसके & दीवार के बीच क़ैद थी.विजयंत ने उसके दोनो हाथ उपर दीवार से लगा दिए & उसके दाए कंधे से चूमते हुए उसकी गर्दन के पिच्छले हिस्से पे आया.रंभा के जिस्म की मादक खुश्बू उसे दीवाना कर रही थी.वो उसकी रीढ़ पे चूमता हुआ नीचे गया & फिर उसकी संगमरमरी पीठ को उसने अपने होंठो से तब तक भिगोया जब तक रंभा की सारी की सारी आहें आज़ाद ना हो गयी.
वो उसकी मांसल कमर को जिभर के चूमने के बाद उपर आने लगा & उसके होंठ रंभा के बाए कंधे पे आके रुक गये. & फिर आगे का सफ़र का रुख़ बाई बाँह की ओर किया.ये सफ़र उसके बाए हाथ की उंगलियो पे रुका जहा की उसके होंठो ने उन्हे बारी-2 से अंदर खींच के खूब चूसा.रंभा का जिस्म दीवार से लगा रोमांच से थरथरा रहा था.उसने महसूस किया कि विजयंत के होंठ अब वापस उसकी उपरी बाँह की ओर बढ़ रहे थे.
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क्रमशः.......
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