RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--19
गतान्क से आगे.
"क्या बात है!",जैसे ही रंभा सोनम के पास आके बैठी & अपना लंच-बॉक्स खोला,उसने उसे छेड़ा,"..आजकल लंच करने देर से आने लगी है,छ्चोड़ता नही क्या तेरा बॉस?",उसने उसे कोहनी मारी,"..उपर से सुना है कि आजकल शाम को अकेली रहती है उसके साथ.कही आजकल उसके दफ़्तर के साथ-2 उसके दिल का भी ख़याल तो नही रखने लगी?",बात तो सच थी & रंभा के गाल शर्म से लाल भी हो गये.
"चुप कर!",उसने सोनम का डब्बा अपनी ओर खींच लिया & उसकी सब्ज़ी खाने लगी,"..तुझे तो बस यही सूझता रहता है.काम बहुत है आजकल,कोई नये प्रॉजेक्ट की शुरुआत के चलते."
"कौन सा प्रॉजेक्ट है?"
"अभी शुरू नही हो रहा,अभी तो बस उसके टेंडर के फिगर्स तैय्यरी हो रही है."
"अच्छा,तो टेंडर के साथ-2 कही तेरा फिगर तो नही नापने लगता वो?",उसने उसे फिर छेड़ा.बात फिर सही थी.समीर मौका पाते ही उसे दबोच लेता था & प्यार करने लगता था.रंभा का दिल भी मदहोश हो जाता लेकिन उसने बड़ी मुश्किल से खुद को रोका हुआ था.वो अभी समीर को और तड़पाना चाहती थी.
"अच्छा!तेरा बॉस नपता है क्या तेरा फिगर?",उसने सहेली को वापस छेड़ा.
"अरे यार,कहा!हम तो चाहते हैं कि हुज़ूर ऐसा कुच्छ करें लेकिन वो तो साला देखता ही नही मेरी तरफ.अब सोचा की चलो वो नही सोचता तो उसे सोचने पे मजबूर करो तो साला बॅंगलुर भाग गया!वैसे टेंडर की रकम फाइनल हो गयी क्या?"
"नही यार अभी कहा & वैसे भी वो काम तो तेरे बॉस का है.",काम तो विजयंत का था लेकिन सोनम को डर था कि कही विजयंत रकम वाले काग़ज़ को उसकी आँखो तक पहुचने ही ना दे क्यूकी ऐसे मामलो मे वो कुच्छ ज़्यादा ही सावधान रहता था & इसीलिए वो रंभा से ये बात जानना चाह रही थी,"..अच्छा ये बता सोनम,कैसे सोचने पे मजबूर करती उसे?",उसने शरारत से पुछा.
"अरे यार! बस ये 2 बटन खोल के..",उसने अपनी शर्ट की ओर इशारा किया,"..उसके सामने थोड़ा झुक के कॉफी सर्व कर देती बस अपनेआप मेरा फिगर नापने लगता..आँखो से!",दोनो सहेलिया हंसते हुए खाना खाने मे मशगूल हो गयी.
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"उफफफफ्फ़..छ्चोड़ो ना!तुम्हे तो बस हर वक़्त यही सब सूझता रहता है!",शाम का काम ख़त्म हो चुका था & ऑफीस के सोफे पे समीर & रंभा साथ-2 बैठे थे.समीर ने बाई तरफ बैठी रंभा को बाहो मे कसा हुआ था & उसे चूम रहा था.उसका दाया हाथ रंभा की शर्ट के उपर से ही उसकी कमर को सहला रहा था.
"तुम्हे देख & कुच्छ सूझ सकता है भला!",आज रंभा को समीर के इरादे और दिनो से ज़्यादा बुरे लग रहे थे.आज उसके हाथ उसकी कमर & पीठ पे कुच्छ ज़्यादा ही फिसल रहे थे.उसने उसकी कमर को जकड़ा & फिर से चूम लिया.उसके होंठ रंभा के चेहरे से घूमते हुए उसके गालो पे आए & वाहा से उसकी गर्दन पे.रंभा को बहुत अच्छा लग रहा था यू अपने महबूब से प्यार करवाना कि तभी उसने महसूस किया की समेर के होंठ उसकी गर्दन से नीचे पहुँच गये हैं & उसकी शर्ट के बंद बटन के उपर पहुचने वाले ही हैं.ठीक उसी वक़्त समीर का हाथ भी उसकी पीठ से आगे आने लगा.रंभा उसका इरादा समझ गयी & उसे धकेल के उठ खड़ी हुई.
"आइ'म सॉरी,डार्लिंग!",समीर फ़ौरन उसके पास आ गया & उसका चेहरा थाम लिया.
"समीर,मुझे ये सब पसंद नही.",रंभा ने सफाई से झूठ बोला.
"आइ'म सॉरी,रंभा.मैं बहक गया था पर क्या करू प्यार करता हू तुमसे!"
"मैं जानती हू..",रंभा ने मुँह उसकी तरफ किया & उसके चेहरे को अपने कोमल हाथो मे भर लिया,"..मैं भी तुम्हे बहुत चाहती हू..तुमसे दूर जाना मुझे भी अच्छा नही लगता..दिल करता है बस यू ही तुम्हारी बाहो मे बैठी रहू..मगर डर लगता है..",उसने संजीदा शक्ल बना के मुँह 1 तरफ घुमा लिया,"..शादी से पहले मुझे ये सब ठीक नही लगता समीर.तुम्हारे लिए शायद बहुत बड़ी बात नही मगर मैं तो 1 लड़की हू,मुझे तो सोचना पड़ता है.",उसने सर झुका लिया.
"ओके!मेडम..",उसने उसकी कमर मे हाथ थाम आगे खींचा & बाँहो मे भर लिया तो रंभा ने उसके सीने पे सर रख दिया,"..अब इस सब से आगे सुहागरात को ही बढ़ुंगा.तो बोलो कब करनी है शादी?"
"क्या?!",रंभा चौंक पड़ी & अपना सर सीने से उठाया.
"हां..कब करनी है शादी?"
"देखो,मज़ाक मत करो."
"अच्छा भाई!",उसने उसे बाहो से आज़ाद किया & कमरे के 1 कोने मे रखे कोट हॅंगर पे टाँगे अपने कोट की अंदर की जेब से कुच्छ निकाला & रंभा के करीब आया,उसका बाया हाथ अपने हाथ मे लिया & उसकी रिंग फिंगर पे हीरे की 1 बड़ी सी अंगूठी पहना दी,"..अब बोलो कब करनी है शादी?"
"समीर..",रंभा ने चौंक के मुँह पे हाथ रख दिया,"..ये..मैं..मेरी समझ मे नही आता..ये तो बहुत कीमती है.."
"तुमसे ज़्यादा नही मेरी जान..जल्दी जवाब दो कब करनी है शादी?"
"समीर,मैं इसे कैसे लू?"
"ले तो ली..तुम मेरी मगेतर हो अभी से इस वक़्त से समझी & ये अंगूठी तुम्हारा हक़ है..अब जल्दी जवाब दो यार ..कब करनी है शादी?"
"समीर..",रंभा की आँखे भर आई थी.समीर की हरकत से वो हैरान तो सच मे हुई थी लेकिन ये आँसू तो बस उसकी अदाकरी का कमाल थे.समीर ने उसे सीने से लगा लिया & कुच्छ पलो बाद जब उसे लगा कि वो संभाल गयी है तो अपना सवाल दोहराया.
"जब तुम्हारे मम्मी-डॅडी चाहें.",रांभ मुस्कुराइ & अपने होंठ उपर कर दिए.समीर ने अपनी मंगेतर के होंठो को अपने होंठो से भिगोना शुरू किया & दोनो प्रेमी 1 दूसरे के आगोश मे बँधे अपनी दुनिया मे खो गये.
"नही!हरगिज़ नही..तुम्हारा दिमाग़ खराब हो गया है!",विजयंत मेहरा 1 शांत स्वाभाव का इंसान था & शायद ही उसे किसी ने आपा खोते देखा था लेकिन समीर की बात ने आज उसके सब्र को तोड़ दिया था,"..वो 1 मामूली सेक्रेटरी है,उसे इस घर की बहू बनाओगे तुम!"
"प्लीज़,विजयंत.शांत हो जाओ.",रीता उसके कंधे को थाम उसे समझाने लगी,"..हम सब समझाएँगे इसे.",शिप्रा & प्रणव खामोशी से सब देख रहे थे,"समीर बेटा,ये क्या बच्पना है?"
"मोम,मैने सब सोच-समझ के ये फ़ैसला लिया है.",समीर बिल्कुल शांत था.
"कुच्छ सोचा-समझा नही है तुमने!",विजयंत फिर चीखा.उसे यकीन नही हो रहा था कि समीर जैसा समझदार लड़का ऐसा काम कर रहा था मगर क्या उसके गुस्से का कारण सिर्फ़ समीर का 1 मामूली हैसियत की लड़की से शादी करने का फिसला था?..नही.वो बौखला गया था कि जिस लड़की पे उसकी निगाह थी उसे उसका अपना बेटा उड़ा ले जा रहा था.
"डॅड,मुझे समझ नही आ रहा कि आख़िर रंभा मे ऐसी क्या कमी है जो आप इतना नाराज़ हो रहे हैं!"
"समीर,अब मैं और बहस नही करूँगा.हम सब इस शादी के खिलाफ हैं.क्या अब भी तुम्हारा फ़ैसला वही है?",विजयंत अब खुद पे काबू पाता दिख रहा था.
"जी हां."
"तो फिर इस घर मे तुम्हारे लिए कोई जगह नही है."
"ओके."
"और ट्रस्ट के दरवाज़े भी तुम्हारे लिए बंद हो जाते हैं."
"डॅडी,प्लीज़ ये क्या कह रहे हैं आप?",देर से खामोश बैठा प्रणव विजयंत के पास आ गया."
"हां,डॅड.समीर मान जाएगा.प्लीज़ ऐसे मत कहिए!",शिप्रा भी अपने पिता को समझाने लगी.
"प्लीज़ शिप्रा,मेरी वकालत मत करो.मुझे इनका हर फ़ैसला मंज़ूर है."
"पर भाई,तुम..तुम क्या करोगे?..कहा जाओगे?",उसी वक़्त रीता रोने लगी & शिप्रा मा को समझाने चली गयी.
"मुझे आप दादाजी के पंचमहल वाले अग्री बिज़्नेस के काग़ज़ात दे दीजिए,मैं यहा से चला जाऊँगा."
"तो सब सोचा हुआ है तुमने.",विजयंत के अंदर जैसे कुच्छ टूट गया.
"समीर,पागल हो गये हो क्या!",प्रणव ने साले को समझाने की कोशिश की.
"ठीक है.कल सारे काग़ज़ात तुम्हे दे दिए जाएँगे."
"डॅडी,प्लीज़..समीर समझ जाएगा..& अभी ये कैसे जा सकता है..मानपुर वाले टेंडर की तैयारी करनी है इसे..अब वक़्त ही कितना बचा है..प्लीज़ तब तक का वक़्त दीजिए इसे!"
"वो टेंडर अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी है,प्रणव.कल मिस्टर.समीर मेहरा ग्रूप को छ्चोड़ेंगे & अब पंचमहल का अग्री बिज़्नेस संभालेंगे.उनकी सारी ज़िम्मेदारिया अब तुम उठाओगे.",विजयंत की भारी आवज़ मे फौलाद की खनक थी & सभी जानते थे की अब उसका फ़ैसला बदलना नामुमकिन है.
"थॅंक्स.",समीर वाहा से चला गया.शिप्रा रोती हुई मा को गले से लगाए खड़ी थी,विजयंत घुमा & अपने कमरे मे चला गया.उस तनाव भरे माहौल मे प्रणव ने अपनी बीवी को देखा & शिप्रा ने प्रणव को & दोनो 1 साथ मुस्कुरा दिए.
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"समीर,ये क्या कर आए हो तुम!",रंभा बहुत परेशान हो गयी,"..इस तरह से घर नही छ्चोड़ सकते तुम!"
"क्यू नही छ्चोड़ सकता?जहा तुम्हारी कद्र नही वो जगह मेरा घर नही है रंभा!",अजीब मुसीबत आ गयी थी रंभा के सर पे.कहा तो वो मेहरा खानदान की बहू बनने के ख्वाब देख रही थी & कहा अब उनका बेटा ही घर छ्चोड़ आया था!
"देखो,समीर.तुम नही समझ सकते मगर मैं समझती हू परिवार की मा-बाप की अहमियत.मुझे जानते हुए तुम्हे बस 4 दिन हुए हैं & 4 दिन के इस रिश्ते के लिए तुम उन्हे छ्चोड़ रहे हो!..नही..मैं तुम्हारे परिवार के टूटने का कारण नही बनना चाहती."
"प्लीज़,रंभा.अब तुम तो मेरा साथ ना छ्चोड़ो.तुम्हारे बिना मैं जी नही सकता.",उसने उसे बाहो मे भर लिया,"..& तुम्हारे लिए ही उन्हे छ्चोड़ आया हू."
"मगर अब करोगे क्या?..हू जाएँगे कहा?"
"पंचमहल. मेमेरे दादाजी का 1 अग्री-बिज़्नेस था जो उन्होने अपनी वसीयत मे मेरे नाम कर दिया था.अब उसी को संभालूँगा.उस धंधे का ट्रस्ट के कारोबार से कोई सरोकार नही है & हम वाहा चैन से रहेंगे.",उसने उसके चेहरे को हाथो मे भरा,"..वादा है मेरा,तुम्हे कोई तकलीफ़ नही होने दूँगा.",इस बात से रंभा को थोड़ा चैन पड़ा,यानी उसके सपने अभी भी पूरे हो सकते थे.
"तकलीफो से नही डरती लेकिन यू तुम्हारा घर छ्चोड़ना..-",समीर ने उसके होंठो पे उंगली रख दी.
"मेरे साथ पंचमहल चलने को तैय्यार हो?",रंभा ने हां मे सर हिलाया.
"तो फ़ैसला हो गया.हम कल ही वाहा चले जाएँगे."
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"ये मीटिंग अचानक बुलाई गयी है क्यूकी मुझे 1 एलान करना है.",विजयंत ट्रस्ट के दफ़्तर के कान्फररन्स हॉल मे ग्रूप के सभी आला अफसरो से मुखातिब था,"..आज से मिस्टर.समीर मेहरा हमारे ग्रूप को छ्चोड़ के जा रहे हैं..",हॉल मे सवालो & हैरत का शोर गूँज उठा.
"वो पंचमहल जा रहे हैं अग्री-बिज़्नेस संभालने.",उसने हाथ उठाके संबको शांत रहने का इशारा किया,"..आप सभी को ये चिंता है कि उनकी जगह लेगा कौन..है कोई इतना काबिल..तो मेरा जवाब है कि है 1 ऐसा इंसान उस से ज़्यादा काबिल जो पिच्छले कुच्छ सालो से हमारे साथ काम कर रहा है.लॅडीस & गेंटल्मन,आज से मिस्टर.मेहरा की जगह मिस्टर.प्रणव कपूर लेंगे.",विजयंत ने ताली बजाई तो इशारा समझ सभी ने उसका साथ दिया.
"मिस्टर.कपूर..",प्रणव खड़ा हुआ & ससुर के पास आया,"..ये सारे प्रॉजेक्ट्स अब आपकी ज़िम्मेदारी हैं..",उसने अपने सामने टेबल पे रखे फाइल्स & पेन ड्राइव्स की ओर इशारा किया,"..& मानपुर के टेंडर की तैय्यारि भी अब आप ही करेंगे."
रंभा ने . को फोन कर सब बता दिया था & कुच्छ ही देर मे पूरे ऑफीस & फिर शहर मे ये बात जंगल की आग की तरह फैल गयी थी कि समीर मेहरा ने 1 सेक्रेटरी के लिए ग्रूप को लात मार दी.
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क्रमशः.......
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