RE: Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--17
गतान्क से आगे.
"अब इस से भी अच्छी चीज़ दिखाता हू तुम्हे.आओ.",वो रंभा को लेके रेलिंग के साथ आगे बढ़ा.थोड़ा आगे जाने पे 1 टिकेट बूथ था & उसके बाद कुच्छ सीढ़िया जिनसे नीचे जाने पे उन्हे झील मे 1 नाव खड़ी दिखी.विजयंत बहुत पहुँचा हुआ बिज़्नेसमॅन था.ये सभी नावे कोई 20 मिनिट मे पूरी झील का 1 चक्कर लगाती थी & उन 20 मिनिट्स के लिए .100 रुपये देने वाले जोड़ो की कमी तो थी नही!
वाहा खड़े 1 आदमी ने समीर को वॉकी-टॉकी जैसा कुच्छ थमाया & वाहा से चला गया.समीर नाव पे चढ़ गया & रंभा का हाथ थाम उसे भी नाव मे चढ़ने मे मदद की.रंभा हाइ हील्स की वजह से थोड़ा लड़खड़ाई तो समीर ने उसे थाम लिया & उसके साथ सीट पे बैठ गया.नाव की सीट भी प्रेमी जोड़ो को ध्यान मे रख के बनाई गयी थी & इसलिए छ्होटी थी.रंभा समीर से बिल्कुल सॅट के बैठी थी.
वो वॉकी-टॉकी दरअसल उस नाव का एमर्जेन्सी रिमोट था.समीर ने उसे दबाया तो नाव चल पड़ी.सामने झील के पार बहुत दूर शहर की रोशनीया झिलमिला रही थी.कुच्छ दूर जाने के बाद समीर ने नाव रोक दी,"रंभा,आज मैं तुम्हे यहा 1 बहुत ज़रूरी बात कहने के लिए लाया हू.",रंभा जानती थी कि उसका बॉस अब उसके नज़दीक आने की कोशिश करेगा लेकिन उसने मन के भाव चेहरे पे नही आने दिए.
"रंभा,तुम पहली मुलाकात से ही मुझे बहुत अच्छी लगी & तुम्हारे साथ काम करने मे भी मुझे बहुत अच्छा लगता है लेकिन इधर कुच्छ दिनो से कुच्छ अजब हाल हो गया है मेरा..शाम को जब दफ़्तर से घर जाने लगता हू तो 1 अजीब सी मायूसी मुझे घेर लेती है & रात भर रहती है पर जब सवेरे उठता हू तो दिल उमंग से भरा रहता है.जानती हो मेरे इस हाल के लिए कौन ज़िम्मेदार है?",रंभा ने इनकार मे सर हिलाया.
"तुम..तुमसे बिच्छाड़ता हू तो मायूसी मे डूब जाता हू & सवेरे तुमसे मिलने के ख़याल से दिल उमंग से भर जाता है.",उसने हाथ से सामने देखने का इशारा किया.झील के किनारे 1 बड़े से बोर्ड पे लेड्स लगे थे.समीर ने अपने मोबाइल को कान से लगाया,"ऑन करो.",& रख दिया.
सामने लेड्स 1-1 करके जल उठे..आइ लव यू.
रंभा को ये तो पता था कि समीर उसके करीब आने की कोशिश करेगा मगर यू मोहब्बत का इज़हार कर देगा ये उसने सोचा भी ना था & वो चौंक गयी & मुँह पे हाथ रख लिया.
"रंभा,बोलो क्या तुम्हे मेरी मोहब्बत कबूल है?",समीर ने उसके दोनो हाथ थाम उसकी काली,गहरी आँखो मे झाँका.रंभा ने मुँह घुमा लिया.उसके चेहरे पे ऐसा भाव था मानो वो बड़े पशोपेश मे हो जबकि उसका दिमाग़ बहुत तेज़ी से दौड़ रहा था..अगर उसने अपने पत्ते सही तरीके से खेले तो वो बहुत फ़ायदे मे रह सकती है लेकिन 1-1 कदम उसे फूँक-2 के उठाना होगा.
"क्या बात है रंभा कोई और है तुम्हारी ज़िंदगी मे?"
"नही.",रंभा ने फ़ौरन सर घुमाया मगर वैसे ही परेशान बनी रही.
"तो फिर मैं पसंद नही तुम्हे?"
"नही ये बात नही है."
"तो फिर क्या बात है रंभा?",वो खामोश रही,"..देखो,रंभा.मुझे तुम्हारी खामोशी की वजह नही पता.मेरी जगह कोई और होता यहा तो कहता कि तुम जितना मर्ज़ी वक़्त लो,मैं पूरी ज़िंदगी तुम्हारा इंतेज़ार करूँगा मगर मैं तुम्हारा पूरी ज़िंदगी इंतेज़ार नही कर सकता..",रंभा ने 1 बार फिर चेहरा उसकी ओर किया & सवालिया निगाहो से उसे देखा,"..क्यूकी मैं तुम्हारे इंतेज़ार मे नही बल्कि तुम्हारे साथ अपनी बाकी ज़िंदगी गुज़ारना चाहता हू.रंभा,तुम सोचती रहोगी & मैं इंतेज़ार करता रहूँगा & ये कीमती वक़्त हम खो देंगे.प्लीज़,रंभा मुझे बताओ कि आख़िर क्या परेशानी है तुम्हे मेरी मोहब्बत कबूल करने मे?"
"देखिए,मैं इस दुनिया मे बिल्कुल अकेली हू लेकिन फिर भी मुझे दुनिया की तकलीफो से ना डर लगता है ना घबराहट होती है लेकिन अगर कल को आपका दिल मुझसे भर गया & आपने मुझे छ्चोड़ दिया तो मैं शायद ये दर्द बर्दाश्त ना कर पाऊँ."
"रंभा,अगर मुझे ज़रा भी शक़ होता कि मैं तुम्हारे साथ अपनी बाकी उम्र नही गुज़ार सकता तो मैं तुमसे आज अपने इश्क़ का इज़हार ही नही करता,इतना भरोसा है मुझे खुद पे.तुम कल को मुझसे भले ही ऊब जाओ लेकिन मैं तुम्हारा साथ कभी नही छ्चोड़ूँगा.",रंभा के नाज़ुक हाथो पे उसकी पकड़ मज़बूत हो गयी थी.
"& हमारे बीच का फासला कैसे दूर करेंगे आप?"
"कैसा फासला?"
"आप सबसे ऊँचे तबके से हैं जबकि मैं 1 आम,मामूली लड़की.आपका परिवार भी तो है..उन्हे ये रिश्ता मंज़ूर ना हुआ तो?"
"रंभा,चाहे कुच्छ भी हो जाए मैं तुम्हारा साथ नही छ्चोड़ूँगा.देखो,तुम घबराती रहोगी & सवाल करती रहोगी.मैं जवाब देता रहूँगा लेकिन तुम्हारी घबराहट सवाल पैदा करना बंद नही करेगी.मैं बस इतना कहूँगा कि मेरा वादा है ये कि मैं आज से लेके मरते दम तक तुम्हारे साथ रहूँगा.बोलो,अब तुम्हे कबूल है मेरी मोहब्बत?",रंभा ने सर झुका लिया & बहुत धीरे से इकरार मे हिलाया.
"ओह्ह..रंभा..आइ लव यू..!..आइ लव यू..!",खुशी से पागलो हो समीर ने उसे बाहो मे भर लिया & दिल ही दिल मे हँसती रंभा ने उसके सीने मे चेहरा च्छूपा लिया.उसे अपनी किस्मत पे यकीन ही नही हो रहा था..मेहरा खानदान का एकलौता वारिस उसके इश्क़ मे पागल हो गया था!
"रंभा,तुम्हे पता नही कि मेरी मोहब्बत कबूल के तुमने मुझे कितनी खुशी दी है!",उसने रंभा का चेहरा हाथो मे भर लिया,"..इस वक़्त मैं इतना खुस हू..इतना खुश हू कि जी करता है कि चिल्ला-2 के पूरी दुनिया को बताऊं की रंभा मेरी है सिर्फ़ मेरी!"
"पागल हो गये हैं क्या,सर!",रंभा शरमाते हुए हंसते हुए बोली.
"क्या यार!सारे रोमॅंटिक मूड का सत्यानाश कर दिया!..इतना अच्छा नाम दिया है मा-बाप ने मुझे.उस से पुकारो ना!",रंभा ने शरमाने का नाटक करते हुए अपना चेहरा घुमा लिया तो समीर ने उसकी ठुड्डी पकड़ उसका चेहरा अपनी ओर घुमाया,बोलो ना,रंभा!"
"समीर.."रंभा ने आँखे बंद कर बहुत धीमी आवाज़ मे अपने प्रेमी का नाम लिया.
इश्क़ 1 दिली जज़्बात है मगर कब ये जज़्बात जिस्मानी एहसास मे बदल जाता है इसका पता कभी किसी आशिक़ को नही चलता.यही हाल इन दोनो का भी था.रंभा की ठुड्डी पकड़ समीर उसके गुलाबी,रसीले होंठो को चूमना चाह रहा था मगर लजाने का ढोंग करती रंभा उसे उसके इरादे मे नाकाम कर रही थी.थोड़ी मान-मनुहार के बाद उसने उसके होंठो को अपने लबो से मिलवा ही दिया लेकिन जब उसने उनपे जीभ फेरी तो रंभा ने फिर से उन्हे पीछे खींच लिया.मर्द का दिल तो ऐसा ही होता है,महबूबा को बस छुने की ख्वाहिश रखने वाला दिल उसके बाहो मे समाते ही बस उसके जिस्म को अपने जिस्म से जोड़ने के फिराक़ मे लग जाता है.
समीर फिर से उसे बाहो मे भर बस होंठो से उसे चूमने लगा.अब रंभा भी उसका साथ दे रही थी.दिन मे दफ़्तर मे हुई घटना अभी भी उसके ज़हन मे ताज़ा थी & उसका दिल तो कर रहा था कि समीर उसके फूल जैसे जिस्म के हसीन अंगो से भी खिलवाड़ करे लेकिन वो उसे ज़रा भी शक़ नही होने देना चाहती थी कि वो 1 भोली,नादान लड़की नही है"ओहो!कितनी देर हो गयी है.चलिए ना!",समीर के गले मे डाली बाँह की कलाई पे बँधी घड़ी पे उसकी नज़र पड़ गयी तो वो उस से अलग हो गयी.
"अरे हमारा तो इरादा पूरी उम्र यही यू ही तुम्हारी बाहो मे गुज़ारने का था!"
"ओफ्फो!बहुत हो गया रोमॅन्स.अब चलिए!",उसने प्यार से उसे झिड़का.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
"उउम्म्म्मम..समीर...उउन्न्ञनणणन्...प्लीज़......उउन्न्ह..!",ड्राइवर को दफ़ा कर समीर खुद रंभा को छ्चोड़ने आया था & इस वक़्त उसकी बिल्डिंग के नीचे गाड़ी खड़ी कर वो अपनी महबूबा को बाहो मे भर उसे शिद्दत से चूम रहा था,कुच्छ ही पॅलो मे उसने आखिकार रंभा से उसके गुलाबी होंठो के पार जाने की इजाज़त ले ही ली थी & अब उसकी ज़ुबान से अपनी ज़ुबान लड़ा रहा था.रंभा का जोश से बुरा हाल था मगर वो उसे जता नही सकती थी.उसका दिल तो कर रहा था की समीर को चूमते हुए उसके लंड को दबोच ले मगर वो मजबूर थी.
"अब बहुत हो गया..",उसने लंबी साँसे लेते हुए उसे अलग किया,"..अब घर जाइए."
"तुम भी चलो ना वही.",समीर ने उसे फिर से बाहो मे खींचना चाहा.
"धात!खुद भी पागल हैं & मुझे भी बना देंगे.",उसनेशोखी से मुस्कुराते हुए उसे प्यार से झिड़का & गाड़ी से उतर गयी.
अपने फ्लॅट मे घुस खुशी से गुनगुनाते हुए वो कपड़े उतारने लगी.आज उसकी खुशी का ठिकाना नही था..अगर सब कुछ ठीक रहा तो बहुत जल्द वो मेहरा खानदान की एकलौती बहू बन जाएगी!कपड़े उतारते हुए उसकी निगाह ड्रेसिंग टेबल के शीशे मे दिख रहे अपने अक्स पे पड़ी तो वो नंगी हो मुस्कुराती हुई शीशे के सामने आ गयी.उसे अपनी खूबसूरती पे गुमान हो आया..आख़िरकार उसका हुस्न ही उसे उसकी मंज़िल की ओर ले जा रहा था.
उसने अपनी भारी-भरकम चूचियाँ अपने दोनो हाथो मे भरके दबाई.उसके बदन मे आग लगी हुई थी & उसे शांत करने के रास्ता उसे नज़र नही आ रहा था.समीर के साथ जाने की वजह से उसने विनोद को भी फोन नही किया था & इस वक़्त तो उसके यहा आने का सवाल हुई नही उठता था.
"ट्र्र्र्रररननगगगगगगगग..!",दरवाज़े की घंटी ने उसके ख्यालो को तोड़ा..इस वक़्त कौन हो सकता है..उसने पास पड़ी चादर जिस्म पे डाली & दरवाज़े पे गयी & इहोल से देखा,सामने परेश खड़ा था.
"अरे आप अभी इस वक़्त!",उसने चैन लगाके दरवाज़े को खोल उसके किनारे से उसे देखा.
"सॉरी,अभी आपको तकलीफ़ दे रहा हू..",परेश की आँखो मे रंभा के जिस्म की भूख सॉफ दिख रही थी,"..मगर कल मुझे जाना है & मैं अपने कुच्छ ज़रूरी काग़ज़ात यही भूल गया हू.",रंभा जानती थी कि ये सब 1 बहाना है.असल मे वो बस उसे चोदना चाहता था लेकिन उसे भी तो अभी 1 मर्दाने जिस्म की ज़रूरत थी.
"अच्छा,मैं ज़रा कपड़े पहन लू."
"अरे,बस 2 मिनिट लगेंगे!",रंभा मन ही मन मुस्कुराइ & चैन खोल दी.परेश अंदर घुसा & रंभा को ललचाई नज़रो से सर से पाँव तक देखने लगा.
"जाइए ले लीजिए.",रंभा घूम के कमरे मे जाने लगी तो परेश ने उसे पकड़ लिया,"अरे क्या कर रहे हैं!छ्चोड़िए!!छ्चोड़िए!!",वो छॅट्पाटेने लगी.
"प्लीज़,रंभा..बस 1 बार मुझे चोद लेने दो..फिर तो मैं जा रहा हू..फिर पता नही कब नसीब हो ये नशीला जिस्म!",परेश चादर के उपर से ही उसकी चूचियाँ दबाते हुए उसकी गर्दन चूम रहा था.रंभा को बहुता अच्छा लग रहा था लेकिन उसने उसे थोड़ा तड़पाने की सोची.
"प्लीज़..परेश जी..उस रोज़ मैं बहक गयी थी..ऊव्ववव..काटिए मत..दर्द होता है..प्लीज़..मैं वैसी लड़की नही हू..हाईईइ..ना..ना..चादर नही....हटाइए....प्लीज़..!",उसके बाए कान पे काटने के बाद परेश ने उसकी चादर खीच उस नंगा कर दया था.रम्भा ने पहले तो हाथो से अपनी छातिया ढँकने की कोशिश की लेकिन जब देखा कि परेश की निगाह उसकी गुलाबी चूत से चिपक गयी है तो उसने हाथो से चूत को ढँक लिया मगर ऐसा करने से परेश के सामने उसकी चूचिया नुमाया हो गयी.
"रंभा.जानेमन..बस आज की रात फिर तो पता नही किस्मत मे मिलना हो या नही.",परेश उसे बाहो मे भर उसके चेहरे को चूमने लगा तो वो ना-नुकर करती मुँह फेरने लगी.परेश के होंठ उसे फिर से मस्त कर रहे थे.दिन भर का उबलता जोश अब उसके जिस्म से फूटने को तैयार था.परेश उसे बाहो मे भरे उसके कमरे मे ले गया.रंभा वैसे ही ना-नुकर का ढोंग करती रही.
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
क्रमशः.......
|