Desi Kahani Jaal -जाल
12-19-2017, 10:25 PM,
#1
Desi Kahani Jaal -जाल
जाल पार्ट--1

दोस्तो आपकी सेवा मे मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ

"और अब आपके सामने है आज की नीलामी की सबसे आख़िरी मगर सबसे खास पेशकश..",डेवाले के क्लॅसिक ऑक्षन हाउस के मेन हॉल मे स्टेज पे खड़ा इंसान 1 पैंटिंग से परदा हटा रहा था.उसके सामने 20-20 कुर्सियो की 2 कतारो मे 40 आदमी बैठे थे.अभी तक 10 चीज़ो की नीलामी हुई थी मगर सबका ध्यान इसी पैंटिंग पे था.ये पैंटिंग मशहूर पेंटर गोवर्धन दास की थी जोकि अभी कुच्छ ही दिनो पहले 1 आर्ट कॉलेज की लाइब्ररी मे पड़ी मिली थी.सभी जानकरो का मानना था कि ये दास बाबू की है,जिन्हे गुज़रे 70 से भी ज़्यादा साल हो चुके थे,सबसे उम्दा तस्वीरो मे से 1 है.

"..इस तस्वीर की नीलामी की शुरुआती कीमत 10 लाख तय की गयी है.क्या कोई है जो इस रकम से ज़्यादा बोली लगा सकता है?",सामने बाई कतार मे बैठे 1 शख्स ने अपना हाथ उपर उठाया.

"15 लाख..और कोई?",इस बार दाई कतार मे बैठे 1 शख्स ने हाथ उठाया.नीलामी करने वाला आक्षनियर मुस्कुराया.वो जानता था कि दोनो शख्स खुद के लिए नही बल्कि अपने मालिको के लिए बोली लगा रहे हैं.हॉल मे बैठे बाकी लोग भी हल्के-2 मुस्कुरा रहे थे.खेल शुरू जो हो चुका था & उन्हे ये देखना था कि इस बार कौन जीतता है!

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होटेल वाय्लेट शहर की सबसे ऊँची इमारत थी & उसकी 25वी मंज़िल पे खड़ा विजयंत मेहरा फ्लोर तो सीलिंग ग्लास से डेवाले को देख रहा था.शीशे की उस दीवार से उसे डेवाले शहर का बिल्कुल बीच का हिस्सा दिख रहा था जहा की आसमान छुति इमारतो की क़तारे लगी थी.वो उनमे से ज़्यादातर इमारतो का मालिक था & होटेल वाय्लेट का भी.विजयंत मेहरा ट्रस्ट ग्रूप का मालिक था.इस ग्रूप ने अपने कदम इनफ्रास्ट्रक्चर यानी कि सड़के,इमाराते,एरपोर्ट,बंदरगाह और ऐसी ही बुनियादी चीज़ो को बनाने के कारोबार से जमाए थे मगर आज ट्रस्ट ग्रूप ना केवल ये सब बनाता था बल्कि उसके मुल्क के 15 शहरो मे होटेल्स भी थे & पिच्छले 5 बरसो से वो फिल्म बनाने के भी धंधे मे उतर चुका था.

विजयंत के होंठो पे हल्की मुस्कुराहट खेल रही थी.यहा खड़े होके उसे अपनी ताक़त का एहसास होता था.इस शहर का बड़ा हिस्सा उसका था सिर्फ़ उसका.जहा वो खड़ा था वो वाय्लेट होटेल के उस सूयीट का बेडरूम था जिसे उसने खास खुद के लिए बनवाया था.ट्रस्ट ग्रूप का दफ़्तर होटेल से 300मीटर की दूरी पे 1 12 मंज़िला इमारत मे था.विजयंत वही से अपना कारोबार संभालता था मगर जब भी वो उस इमारत से उकता जाता था तो अपने इस सूयीट मे आ जाता था.सूयीट क्या 1 छ्होटा सा फ्लॅट ही था.1 बेडरूम,1 सा गेस्ट रूम जहा की 6-7 लोगो की मीटिंग करने का भी इंतेज़ाम था,1 अटॅच्ड बाथरूम & उसके साथ 1 किचेन थी.

"सर..",दरवाज़े पे दस्तक दे 1 लड़की अंदर दाखिल हुई.उसने ग्रे कलर की घुटनो तक की कसी फॉर्मल स्कर्ट & सफेद ब्लाउस पहना था.पैरो मे हाइ हील वाले जूते थे & बॉल 1 कसे जुड़े मे बँधे थे.ये लड़की देखने से होटेल की कर्मचारी नही लग रही थी,उनकी पोशाक वैसे भी अलग थी,"..1 घंटे मे वो शुरू होने वाला है.",वो आगे आई & हाथो मे पकड़ा फोन उसने बिस्तर पे रख दिया.विजयंत उसकी ओर पीठ किए खड़ा था.उसने बिना घूमे सर हिलाया अपनी बाहे उपर कर दी.लड़की मुस्कुराते हुए आगे आई.विजयंत ने 1 सफेद कमीज़ पहनी & काली पतलून थी.लड़की ने कमीज़ की बाजुओ के कफलिंक्स खोले & फिर विजयंत की कमीज़ के बटन खोलने लगी.अगले ही पल विजयंत का नंगा सीना उसके सामने था.

विजयंत मेहरा की उम्र 53 बरस थी मगर शायद ही उसे देख कोई उसकी असली उम्र बता सकता था.वो कही से भी 45 से ज़्यादा नही लगता था.उसका रंग इतना गोरा था की केयी लोगो को उसके विदेशी होने की ग़लतफहमी हो जाती थी.उसके बाल भी काले नही बल्कि कुच्छ भूरे रंग के थे जोकि कभी-2 सुनहले भी लगने लगते थे.चेहरे पे हल्की दाढ़ी & मूँछ थी.उसका कद 6'3" था & उसका कसरती जिस्म बहुत मज़बूत दिखता था.चमकते बालो से भरे उसके ग़ज़ब के चौड़े सीने को देख उस लड़की ने हल्के से अपने निचले होंठ को दांतो से दबाया.विजयंत मेहरा मर्दाना खूबसूरती की जीती-जागती मिसाल था.लड़की की धड़कने तेज़ हो गयी थी & उसके गाल भी लाल हो गये थे.उसने काँपते हाथो से विजयंत की पतलून उतारी.उसका बॉस अब केवल 1 अंडरवेर मे उसके सामने खड़ा था.उसने हाथ से उसे रुकने का इशारा किया.

"नीशी..",1 रोबिली & बहुत गहरी भारी,भरकम आवाज़ ने नीशी को जैसे नींद से जगाया.

"ज-जी.."

"क्या हुआ?ये कोई पहली बार तो नही.",विजयंत मुस्कुराया.

अफ!..इतनी दिलकश मुस्कान..& ये आवाज़..वो तो दफ़्तर मे उस से लेटर्स की डिक्टेशन लेते हुए ही अपनी टाँगो के बीच गीलापन महसूस करने लगती थी.

"नही सर.वो बात नही.",उसने अपनी पीठ विजयंत की तरफ की & अपने कपड़े उतारने लगी.लड़की का जिस्म बिल्कुल वैसा था जैसा विजयंत को पसंद था.बड़ी छातियाँ,चौड़ी गंद मगर सब कुच्छ कसा हुआ.2 साल से नीशी उसकी सेक्रेटरी थी & नौकरी जाय्न करने के 4 दिनो के अंदर ही वो अपने बॉस के बिस्तर मे भी ड्यूटी करने लगी थी.

"आहह..!",विजयंत ने उसे पीछे से बाहो मे भर लिया था & उसके पेट को सहलाते हुए उसके दाए कान मे जीभ फिरा दी थी.वो भी पीछे हो उसके जिस्म से लग गयी.उसने महसूस किया कि उसकी निचली पीठ पे उसके बॉस का गर्म लंड दबा हुआ था.उसका दिल और ज़ोर से धड़क उठा.ना जाने कितनी बार वो लंड उसकी चूत मे उतार चुका था मगर हर बार वो उसके एहसास से रोमांचित हुए बिना नही रहती थी.ये विजयंत के लंड का जादू था या उसकी शख्सियत का?..इस सवाल का जवाब ढूँढते हुए उसे 2 बरस हो गये थे मगर वो तय नही कर पाई थी & आज शायद आख़िरी बार वो उसके साथ हमबिस्तर हो रही थी.

"आज तुम्हारा आख़िरी दिन है ट्रस्ट ग्रूप के साथ,नीशी.",विजयंत ने कान के बाद उसके तपते गालो को चूमा था & फिर उसके नर्म लबो को & फिर उसे आगे जाने की ओर इशारा किया.नीशी आगे बढ़ी & बिस्तर पे पेट के बल लेट गयी,"सभी तैय्यारियाँ हो गयी शादी की?"

"जी.",10 दिन बाद नीशी की शादी थी & वो चेन्नई जा रही थी.हर लड़की की तरह वो भी बहुत खुश थी मगर 1 अफ़सोस था कि अब वो कभी उस बांके मर्द की चुदाई का लुफ्त नही उठा पाएगी,"उउन्न्ञन्....!",विजयंत ने उसके पैरो को उपर उठाया & बाए हाथ से थाम उसकी पिंदलियो को चूमने लगा,उसका दया हाथ निश्ी की मोटी गंद को सहला रहा था.निश्ी बिस्तर की चादर को बेचैनी से भींचते हुए हल्की-2 आहे ले रही थी.विजयंत का हाथ उसकी गंद की दरार को सहला रहा था.सहलाते हुए उसने हाथ को दरार मे तोड़ा अंदर घुसाया तो अपना सर उपर झटकते हुए निश्ी ने ज़ोर से आ भारी & उसकी जंघे खुद बा खुद फैल गयी.विजयंत ने उन्हे धीरे से तोड़ा और फैलाया & नीचे झुक गया.

"आन्न्न्नह.....उउन्न्ञणनह.....!",निश्ी की आहो के साथ-2 उसके हाथो तले बिस्तर की चादर की सलवटें बढ़ने लगी.विजयंत अपनी सेक्रेटरी की चिकनी चूत को पीछे से चाट रहा था.उसकी लपलपाति ज़ुबान उस नाज़ुक अंग से बह रहे रस को सुड़कते हुए उसके दाने को छेड़ रही थी.नीशी के जिस्म मे बिजली दौड़ रही थी.रोम-2 मे 1 अजीब सा मज़ा भर गया था.उसकी गंद की फांको को दबा के फैलाता हुआ विजयंत बड़ी गर्मजोशी से उसकी चूत पे अपनी जीभ चला रहा था & जब उसने उसने अपने होंठो को उसकी चूत पे दबा ज़ोर से चूसा तो नीशी चीख मारते हुए झाड़ गयी.तभी बिस्तर पे रखा फोन बज उठा.खुमारी मे झूमती नीशी ने थोड़ी देर बाद उसे उठाया & फिर सुन के रख दिया,"शुरू हो गया.",उसने जिस्म थोड़ा बाई तरफ मोड़ के सर पीछे घुमा के अपने बॉस को नशीली नज़रो से देखा.

उसकी फैली टाँगो के बीच विजयंत घुटनो पे खड़ा था.उसके चौड़े फौलादी सीने के सुनहले बालो & उसके मज़बूत बाजुओ को देख नीशी का जिस्म 1 बार फिर से कसक से भर उठा.बड़े-2 हाथो से विजयंत उसकी गंद को सहला रहा था & उस हल्की सी हरकत से भी उसके बाजुओ की मांसपेशिया फदक रही थी.उसने थोडा नीचे देखा & उसकी निगाह विजयंत के सपाट पेट पे गयी.पेट के बीचोबीच बालो की 1 मोटी लकीर नीचे जा रही थी.जब नीशी की नज़र वाहा पहुँची तो उसकी कसक 1 बार फिर चरम पे पहुँच गयी.टाँगो के बीच बालो से घिरा विजयंत का लंड अपने पूरे शबाब पे था.9.5 इंच लंबा & बहुत ही मोटा लंड 2 बड़े-2 आंडो के उपर सीधा तना खड़ा था.

नीशी अब तक 3-4 मर्दो से चुद चुकी थी जिनमे उसका मंगेतर भी शामिल था मगर उसने विजयंत जैसा लंड किसी के पास नही देखा था.उसने 1 बार फिर निचले होंठ को दाँत से दबाया & अपना सर बिस्तर मे च्छूपाते हुए अपनी कमर उपर कर अपनी गंद को हवा मे उठा दिया.हर बार ऐसा ही होता था.बंद कमरे मे विजयंत के साथ वो सब कुच्छ भूल जाती थी केवल अपने जिस्म की खुशी का ख़याल उसके ज़हन पे हावी रहता था.मुस्कुराते हुए विजयंत ने अपना तगड़ा लंड हाथ मे पकड़ा & उसे नीशी की जानी-पहचानी चूत मे घुसने लगा.

"ऊन्नह.....!",आज तक नीशी को उस लंबे,मोटे लंड की आदत नही पड़ी थी & आज भी शुरू मे उसे हल्का दर्द होता था लेकिन उसकी चूत की आख़िरी गहराइयो मे उतार वो लंड जब अपना कमाल दिखाता तो सारा दर्द हवा हो जाता & रह जाता सिर्फ़ मज़ा,बहुत सारा मज़ा!विजयंत ने अपनी सेक्रेटरी की नाज़ुक कमर थामी & धक्के लगाने शुरू कर दिए.वो बहुत गहरे मगर धीमे धक्के लगा रहा था.लंड बड़े हौले-2 नीशी की चूत को पूरे तरीके से चोद रहा था.वो मस्ती मे पागल हो चुकी थी.पूरे सूयीट मे उसकी आहें गूँज रही थी.बिस्तर की चादर को तो शायद वो अपने बेचैन हाथो से तार-2 कर देना चाहती थी.अपने बॉस के हर धक्के का जवाब वो अपनी कमर हिला अपनी गंद को पीछे धकेल के दे रही थी.

विजयंत को भी बहुत मज़ा आ रहा था.पिच्छले 2 बरसो मे नीशी की चूत ज़रा भी ढीली नही हुई थी.उसके धक्को की रफ़्तार बढ़ी तो नीशी की मस्तानी आहे भी साथ मे बढ़ी.विजयंत ने उसकी कमर को थाम अपनी ओर खींचते हुए ज़ोर से धक्के लगाए तो नीशी 1 बार और झाड़ गयी & बिस्तर पे निढाल हो गिर गयी.विजयंत उसके उपर लेट गया & फिर उसे लिए-दिए उसने दाई करवट ली.लंड अभी भी चूत मे था,विजयंत ने अपनी दाहिनी बाँह नीशी की गर्दन के नीचे लगाई & बाई को उसके पेट पे डाला.नीशी ने गर्दन पीछे घुमाई & अपने बॉस को चूमने लगी.उसका दिल करा रहा था कि वो बस ऐसे ही पड़ी उसे चूमती रही.1 बार फिर विजयंत ने हल्के धक्को के साथ उसकी चुदाई शुरू कर दी.

नीशी को मजबूरन किस तोड़नी पड़ी क्यूकी चुदाई की वजह से उसका जिस्म झटके खा रहा था लेकिन उसके होंठो की प्यास बुझी कहा थी.उसने बिना लंड को निकलने देते हुए अपनी पीठ को बिस्तर पे जमा लिया & अपने हाथो मे विजयंत के चेहरे को भर उसे चूमने लगी.विजयंत भी उसकी मोटी छातियो को दबाते हुए उसकी ज़ुबान से ज़ुबान लड़ा रहा था.विजयंत ने अपने बाए बाज़ू को नीशी की भारी जाँघो के नीचे लगा के उन्हे 1 साथ हवा मे उठा दिया & उसे चोदने लगा.इस पोज़िशन मे उसका लंड जड़ तक तो उसकी चूत मे नही जा रहा था मगर फिर भी दोनो को मज़ा बहुत आ रहा था.तभी 1 बार फिर फोने बजा.नीशी ने बिना अपने बॉस के होंठो को आज़ाद किए अपने दाए हाथ से टटोलते हुए बिस्तर पे फोन को ढूंड लिया & उसे कान से लगाया,"उम्म..हेलो.....ओके."

"आप जीत गये.",उसने विजयंत के चेहरे को थाम चूम लिया.उसकी बात ने विजयंत को जोश को मानो दुगुना कर दिया.उसने अपनी दाई बाँह जोकि नीशी की गर्दन के नीचे पड़ी थी & बाई जो उसकी जाँघो को थामे थी,दोनो को मोड़ लेते हुए उसके जिस्म को अपनी ओर घुमा लिया,जैसे लेते हुए उसे गोद मे ले रहा हो & नीचे से बड़े क़ातिल धक्के लगाने लगा.नीशी की मस्ती का तो कोई हिसाब ही नही रहा,वो अपने बॉस के खूबसूरत चेहरे को चूमते हुए आहे भरते हुए उसकी चुदाई का मज़ा लेने लगी.

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क्रमशः.......
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