RE: Kamukta Stories ससुराल सिमर का
माँ आख़िर लस्त होकर सुख से रोने लगी "चलो, मेरी बेटी खुश तो है! मैं ही जानती हू कि ये चूत की खुजली क्या जानलेवा होती है और सिमर तो मुझसे भी बढ़ कर है चलो मेरा नाम रोशन कर रही है ससुराल में"
मैंने केला उठा लिया और खाने लगा माँ की चूत के रस से लिबलिबा केला खाने में मुझे बचपन से मज़ा आता था जब छोटा था तब माँ कई बार जान बुझ कर मुझे खिलाती थी, बिना बताए कि उस केले से उसने किया क्या है अपने छोटे से बेटे को अपनी चूत का रस चखा कर मन ही मन खुश होती थी बाद में जब मैं जवान हुआ और माँ और दीदी को चोदने लगा, तब मेरे और दीदी के सामने ही केले से मुठ्ठ मारती थी और हम दोनों को खिलती थी
केला खाते हुए मैंने कहा "असली बात तो तुमने सुनी ही नहीं समधनजी ने हम दोनों को बुलाया है, दो हफ्ते के लिए उनके साथ रहने को कहा है"
माँ चकरा कर बोली "मैं क्या करूँगी उधर बेटा? सब के सामने अपनी बिटिया से कुछ कर भी नहीं पाऊन्गि तू यहीं ले आता तो अच्छा होता"
"अरे माँ, तू कितनी भोली है उन्होंने बुलाया है हमें अपनी रास लीला में शामिल करने को तेरे बारे में सुनकर तो वे सब लोग मेरे पीछे ही लग गये कि जाओ, माँ को ले आओ"
"अरे उन्हें पता चल गया हमारे बारे में? कुछ गडबड ना हो जाए बेटा" माँ चिंतित होकर बोली
"खुद दीदी ने सब को बताया है कि उसकी माँ कितनी सुंदर और रसीली है मेरे बारे में भी बताया तो सब ने मेरे हुनर तो देख लिए अब सब को तुझसे मिलना है, ख़ास कर शन्नो जी को, तेरी समधन को बड़ी मतवाली हैं वे माँ और जीजाजी और जेठजी भी आस लगाए बैठे हैं कि उनकी सास आएँ तो उनकी खातिरदारी करें"
माँ को समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करे मन में खुशी के लड्डू फूल रहे थे पर थोड़ी परेशान भी थी आज तक उसने बस अपने परिवार में, अपने बेटे और बेटी से संभोग किया था अब दूसरों के साथ करने में जहाँ वह सकुचा रही थी वहीं गरमा भी रही थी मैंने समझाया कि यहाँ तो बस एक लंड मिलता है, वहाँ तो दो और नये लंड मिलेंगे फिर बेटी के अलावा एक और बुर भी मिलेगी मज़ा करने को
माँ जल्द ही मान गयी इतना ही नहीं, फिर गरम होकर मुझपर चढ बैठी जब वह मुझे उपर से चोद रही थी तो मैंने उसे बताया कि समधन ने क्या कहा था "माँ, अभी चोद ले, अब दो दिन उपवास करना उधर वे लोग भी करने वाले हैं अब दावत शुरू होगी जब हम वहाँ पहूचेंगे, और उपवास के बाद और ज़ायक़ा आएगा साथ साथ खाने का
दो दिन हमने आराम किया कठिन था पर माँ ने अपने आप पर काबू रखा जब सामान क्या ले जाना है इसकी तैयारी करने लगी तो मैने बताया "अम्मा, बस दो जोड़ी कपड़े ले चलेंगे वे भी नहीं लगेंगे वहाँ कौन हमे कपड़े पहनने देगा?" माँ शरमा गयी चहरा लाल हो गया इतने दिन बाद माँ को शरमाते हुए देख कर बहुत अच्छा लगा
हम शनिवार सुबह निकलकर दोपहर को वहाँ पहूचे हमारा स्वागत जोरदार हुआ जीजाजी और जेठजी ने माँ के पैर छुए, इतना ही नहीं, लेट कर उसके पाँव चूम भी लिए माँ सकुचा गयी, वैसे माँ के पैर बहुत सुंदर हैं, एकदमा गोरे और नाज़ुक, किसी का भी मन करे उन्हें प्यार करने को, मैं तो अक्सर खेलता रहता हू माँ के चरणों से
दीदी माँ से गले मिली शरमाई हुई माँ ने बस उसका गाल चूम कर उसे अलग कर दिया "अरे समधनजी, इतने दिन बाद मिली हो, ज़रा बेटी की बालाएँ लो, उसे प्यार करो" शन्नो जी ने मज़ाक में कहा जीजाजी बोले "अरे माँ, वे अपनी बेटी से अकेले में मिलना चाहेंगी"
शन्नो जी माँ को गले लगाकर बोलीं "अब तो सब के सामने ही मिलना पड़ेगा भाई हम भी तो देखें माँ बेटी का मिलन" फिर शन्नो जी ने माँ को चूम लिया पहले गालों पर और फिर होंठों पर कस कर उसे बाँहों में जकडकर वे माँ की पीठ को प्यार से सहलाने लगीं माँ शरम से पानी पानी हो रही थी
रजत बोले "अरे अम्मा, अभी से ना जुट जाओ, इन्हें आराम कर लेने दो सिमर, इनको अपने कमरे में ले जाओ आप लोग नहा धो कर आराम कर लो"
क्रमशः………………
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