RE: Sex Kahani चाचा बड़े जालिम हो तुम
सच मे हरी को एरेक्षन का मतलब नही मालूम था. पर रहमान मे कुछ प्राब्लम है और उस वजह से रज़िया मा नही बन सकती यह बात वो समझा. रज़िया के पास खड़े होते उसका गोरा सीना देखते वो बोला, "बेटी डॉक्टरी जहा काम नही करती वाहा तजुर्बा काम आता है, कई बार जब डॉक्टरो ने हार मानी तजुर्बे ने जीत दिलवाई है. और यह तू एरेक….. एलेक्षन क्या बोली? मैं समझा नही, ज़रा मुझे ठीक से बता."
हरी के सवाल से शरमाते रज़िया बोली, "कुछ नही चाचा.****का अर्थ तो मुझे भी मालूम नही. डॉक्टर से मैने पूछा था पर उन्होने भी यही बताया था कि मुझे वो जानने की ज़रूरत नही. और चाचा बोहुत सारे तजुर्बेदार लोगो से इस इलाज का पूछा है लेकिन सभी ने हाथ उपर कर दिए, इसलिए अब उप्परवाले पे छोड़ दो."
रज़िया यह कहते पल्लू से छेड़खानी करती है जिससे अब हरी को उसके लो कट ब्लाउस की नेक से एक चौथाई मम्मा दिखता है. ब्रा का एक स्ट्रॅप पूरा ब्लाउस के बाहर था और उस ब्रा कप से एक निपल तन के ब्लाउस पे अपनी छाप दिखा रहा था. बींदास वो निपल देखते हरी बोला, " अरे बेटी यह आजकल के डॉक्टर पैसे देके सीखे है. इनको क्या मालूम, बड़े - बड़े शब्द इस्तामाल करके सामने वाले को घबरा देते है. तू चिंता मत कर, देख मेरे पास इसका इलाज़ है, पर उसके लिए तेरा साथ चाहाए. मेरे पास इलाज़ भी है और तजुर्बा भी, वो बाजुवाले बिल्डिंग मे जागृति का इलाज़ भी मैने किया था और देख उसको अब 2 बच्चे है."
क्रमशः.......
Raj-Sharma-stories
चाचा बड़े जालिम हो तुम--2
गतान्क से आगे......
हरी की यह बात सुनके रज़िया कुछ सोचके बोली, "मैं कुछ समझी नही चाचा.जागृति का इलाज आपने किया? मुझे तो सुनाई आया कि किसी डॉक्टर ने किया उसका इलाज. मुझे बताओ ना कैसा इलाज़ किया आपने उसका? " रज़िया का पल्लू सारी से खिसक गया था, उसे फिर अपनी पोज़िशन पे लाते रज़िया बोली, "चाचा मुझे बड़ी नींद आ रही है." रज़िया ने एक मस्त अंगड़ाई ली जिससे नीचे से कमर पे बँधा पल्लू निकलता है और नीचे से ब्लाउस भी थोड़ा उपर चला जाता है. नशीली आँखो से हरी को देखते रज़िया बोली, "चाचा क्यूँ ना हम कल इसके बारे मे बात करे. दोपहर काफ़ी हो चुकी है..या आप कहो तो रात को बात करते है. क्या कहते हो चाचा?"
रज़िया जब अंगड़ाई लेती है तब पूरा जिस्म देखके हरी का लंड खड़ा हुआ, ब्लाउस के नीचे से ज़रा मम्मे बाहर आते है, कमर टाइट होती है, पॅंटी की आउटलाइन दिखती है, नवल दिखता है, सब आराम से देखके बनियान से अपना नंगा सीना और रगड़ते पोछते वो बोला, "ठीक है बेटी, तू कहे तो रात को आके समझाता हूँ कि जागृति का इलाज कैसे किया और ठीक वैसे ही इलाज तेरा भी कर डालूँगा. वैसे भी मेरा टाइम हो गया है, तू आराम कर, रात को समझाने मैं बहुत वक़्त लगेगा." अपनी उमर का फ़ायदा उठाके रज़िया के आधे नंगे कंधे पे ब्रा स्ट्रॅप पे हाथ रखते हरी ने बोला, "पर बेटी रात मे तेरा मिया रहेगा घर मे, फिर कैसे समझा सकता हूँ?"
रज़िया को हरी के कड़क हाथ का अहसास होता है. उसके हाथ को ब्रा स्ट्रॅप से खेलते देख वो बोली, "चाचा आज से एक हफ्ते तक मैं अकेली हूँ..मैं अकेली हूँ चाचा." रज़िया 'अकेली' शब्द पे स्ट्रेस करके कहती है.
रज़िया के ब्रा स्ट्रॅप सहलाते उसमे उंगली डालते हरी बोला, "वाह यह अछी बात है, हम दोनो अकले है, मैं आता हूँ रात को, तू चाहे तो मेरे लिए खाना बना,खाना ख़ाके हम बात करंगे."
अब रज़िया हरी का हाथ पकड़के, उसे हटाते, उसकी आँखो मे देखते ब्रा स्टाप ब्लाउस मे डालते बोली, "पर चाचा, हम नोन - वेज खाते है और घर मे नोन वेज पकते भी है, क्या आप ख़यांगे नोन – वेज?"
जवाब मे हरी ने उसका पल्लू कंधे पे ठीक करते कहा, " आरे बेटी तू जो बनाएगी वोही खा लूँगा, अगर मैं खाना बनाने बैठा तो रात के 11 बज़ेंगे और फिर तुझे नींद आएगी."
दो कदम पीछे होते हुए रज़िया कुछ सोचके स्माइल करते बोली, "हां चाचा,ठीक है. लेकिन चाचा मे खाना जल्दी खाती हूँ और पकाती भी थोड़ा हूँ. हमारे घर मे बसी खाना नही चलता इसलिए थोड़ा ही पकाते है. तो अगर आपको आधा पेट खाना मिला तो मुझे माफ़ करना. अगर आपको रात को भूक लगी तो खाने कुछ नही मिलेगा पर हां सिर्फ़ रात को दूध पीने मिल सकता है."
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