RE: Nanad ki training--ननद की ट्रैनिंग
गुड्डी हँसते हुए उठी और रीमिक्स गर्ल्स की तरह कस के मटकते हुए चली गयी.
दुलारी ने अल्पना से कहा, अरे तुम्हारी भी खोज हो रही है, भैया ढूँढ रहे है. जब वो जाने लगी तो दुलारी ने छेड़ा,
" अरे तुम भी तो ज़रा अपने ये मोटे मोटे चूतड़ मटका के दिखाओ."
अल्पी पीछे रहने वाली नही थी. उसने अपनी पतली कमर और टाइट जीन्स से छलकते बड़े बड़े चूतड़ यों मटकाए की बस,
" हाई क्या मस्त चूतड़ है आज रात को ज़रूर गाने के समय, तुम्हारी गांद बिना मारे छोड़ूँगी नही"
" और क्या तुम्हारी बच जाएगी " मूड कर अपने जोबन उभार कर बड़ी अदा से अल्पी ने जवाब दिया और खिलखिलाते हुए राजीव से मिलने चली गयी.
शाम होते ही मेहमानों का आने का सिलसिला बढ़ गया. मेरे ननदोइ जीत की बहन हेमा भी अपने माता पिता के साथ आ गयी थी. खूब चहल पहल थी. आज गाने के लिए बरामदे मे परदा लगाने का इंतज़ाम था, जिससे मर्दों को कम से कम दिखाई तो ना पड़े कि अंदर औरतें क्या कर रही है. जितनी प्राउड औरते थी या काम करने वालिया थी वो और खुल कर सिर्फ़ गाली मे मज़ाक कर रही थी और दुलारी और गुलाबो सबसे आगे थी. काम भी बहोत था. मेरी सास ने मुझे बुलाकर कहा की उपर छत पे मर्दों के खाने का इंतज़ाम करवा दू और हाँ सबसे पहले ननदोइ और लाली के ससुराल वालों को खिला दू.
सब इंतज़ाम हो गया और मैने गुड्डी और अल्पी को भी बुला लिया, खाना परोसने के लिए. दोनों ने अपने दुपट्टे कमर मे बाँध लिए. जीत चिढ़ा कर बोल रहे थे, अरे ज़रा ठीक से झुक के दो.
मैं उनके द्विअर्थि बात का मतलब तो समझ गयी और ये भी कि झुकने से उभार और क्लीवेज़ उनको सॉफ दिखते, और
चिढ़कर बोली," अरे ठीक से डालो, ना नंदोई जी की कटोरी मे पूरा भर के हाँ और बगल मे उनकी बहन को." मेरा इशारा काफ़ी था,
गुड्डी ने कुल्हड़ मे पानी डालते हुए, सीधे, हेमा की जांघों के बीच गिरा दिया और दोनो हंस के बोली, " अरे आप को इत्ति ज़ोर से आ रही थी तो बाथ रूम मे चली जाती, यही अपने भैया के सामने खाना कही भागा तो जा नही रहा था."
अल्पी ने हंस के बोला, अरे गुड्डी इनके यहाँ भाई बहन के बीच सब कुछ खोल के होता है, कोई परदा नही और हेमा को तौलिया देने के लिए उसके साथ नीचे चली गयी.
तभी मेरी सास उपर आई और बोली, "अरे बहू, तुम्हारे नंदोई खाना खा रहे है और वो भी सूखे सूखे ज़रा कुछ गाली वाली तो सूनाओ"
मैने चारो ओर देखा, मेरी जेठानी, गुलाबो, दुलारी मेरा साथ देने के लिए कोई नही था. सिर्फ़ मैं और मेरी ननद गुड्डी थे.
मौका देख कर मेरे नंदोई जी भी चहके, " अरे, आपकी बहू को कुछ आता वाता तो है नही?. गाली क्या सुनाएँगी, नये
जमाने की बहुएँ"
मुझे भी जोश आ गया. मैने गुड्डी से कहा, " आजा, चल सुनाते है तुम्हारे जीजा को उनका और उनकी बहनों का हाल."
जीत ने फिर छेड़ा, " अरे फिल्मी गाने की बात नही हो रही...गाली की बात हो रही है"
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