RE: Train Sex Stories रेल यात्रा
"ए अब यहाँ मुनादी करनी जरूरी है क्या? ड्राईवर को बोल होर्न बंद कर देने
का। साला इस सायरन से इतनी चिढ़ है की! " एक बार फिर पाटिल की आवाज उसके
हलक में ही रह गयी। अगले ही पल पुलिस के आदमी पूरे मकान में फ़ैल गए।
घबराकर पाटिल ने बूढ़े का कालर पकड़ लिया- "साले। बूढ़े। यहाँ धंधा करता है।
मेरे इलाके में। चल ठाणे तेरी अकड़ निकालता हूँ। " पाटिल ने कहा और अन्दर
आ चुके इंस्पेक्टर को देखते ही गला छोड़ कर सलाम ठोका- "सलाम साहब! आपने
क्यूँ तकलीफ की। मैं पहले ही आ गया था इसको पकड़ने। खैर। अब आप आ गए हो तो
संभालो। मैं चलता हूँ। "
"तुम कहीं नहीं जाओगे पाटिल? इंस्पेक्टर ने अपनी टोपी उतारते हुए कहा-
"तुम्हारे ही खिलाफ शिकायत हुई है। यहीं खड़े रहो! " इंस्पेक्टर ने कहा और
पूछा- "आशीष कौन है!?"
"जी मैं। मैंने ही फ़ोन किया था।!" आशीष ने रहत की सांस ली!
"हम्म। वैरी गुड! पर तुम ये कैसे कह रहे हो की लोकल पुलिस कार्यवाही नहीं
कर रही। क्या पहले भी तुमने शिकायत की है?" इंस्पेक्टर ने पूछा।
"जी नहीं। इस लड़की ने बताया है। " आशीष ने अन्दर इशारा किया।
"हम्म....बाहर बुलाओ जरा इसको!" इंस्पेक्टर ने अन्दर देखते हुए कहा।
आशीष के इशारा करने पर डरी सहमी सी वो लड़की बाहर आ गयी। बाहर आते ही उसने
आशीष का हाथ पकड़ लिया।
"घबराओ नहीं बेटी। खुल कर बताओ। क्या पुलिस तुम्हे बचाने के लिए नहीं आ
रही।?" इंस्पेक्टर ने प्यार से पूछा।
आशीष के साथ खड़े होने और इंस्पेक्टर के प्यार से बोलने के कारण लड़की में
हिम्मत बंधी। उसने कडवी निगाह से पाटिल की और देखा- "ये ये पुलिस वाला तो
यहाँ रोज आता है। ये ये कुत्ता मुझे गन्दी गन्दी गालियाँ देता है और
उल्टा इन लोगों की बात मानने को कहता है। इसी ने इन लोगों को बोला है की
मैं जब तक इनकी बात मानने के लिए तैयार नहीं होती मेरा खाना बंद कर दो।
मैंने इसको हाथ जोड़ कर कहा था की मैं यहाँ नहीं रह सकती। ये कहने लगा की
मेरे साथ कर लो। फिर मैं तुझे छुडवा दूंगा......थू है इस पर "
इंस्पेक्टर की नजरें पुलिस वाले की तरफ लड़की को इस तरह थूकता देख शर्म से
झुक गयी।- "क्या नाम है बेटी तुम्हारा?"
"रजनी!" कहते हुए लड़की ने सर उठा कर आशीष के चेहरे की और देखा। मनो कह
रही हो। मैं तुम्हे बताने ही वाली थी। पहले ही।
"हम्म....बेटा, ऐसे गंदे लोग भी पुलिस में हैं जो वर्दी की इज्जत को यूँ
तार तार करते हैं। ये जान कर मैं शर्मिंदा हूँ। पर अब फिकर मत करो!" फिर
आशीष की और देखते हुए बोला- "और कुछ मिस्टर आशीष!"
"जी। इस बूढ़े ने मेरा पर्स छीन लिया है। और उसमें से 2000 रुपैये आपके इस
पाटिल ने निकाल लिए हैं। "
पाटिल ने तुरंत अपनी जेब में ऊपर से ही चमक रहे नोटों को छिपाने की कोशिश
की। इंस्पेक्टर ने रुपैये निकाल लिए।
"नहीं! जनाब ये रुपैये तो मेरी पगार में से बचे हुए हैं। वो आज मैडम ने
कुछ समान मंगाया था। माँ कसम। " पाटिल ने आखिर आते आते धीमा होकर अपना सर
झुका लिया।
इंस्पेक्टर ने बूढ़े के हाथ से पर्स लिया। उसमें कुछ और भी हज़ार के नोट
थे। इंस्पेक्टर ने कुछ देर सोचा और फिर बोले- "शिंदे।!"
"जी जनाब!" शिंदे पीछे से आगे आ गया!
रजनी बिटिया का बयान लो और पाटिल को अन्दर डालो। बूढ़े को और जो लोग इसके
साथ हैं। उनको भी ले लो। सारी लड़कियों का घर पता करके उन्हें घर भिजवाओ
और जिनका घर नहीं है। उनको महिला आश्रम भेजने का प्रबंध करो!" इंस्पेक्टर
ने लम्बी सांस ली।
इंस्पेक्टर की बात सुनते ही रानी अन्दर से बाहर आई और रजनी से आशीष का
हाथ छुडवा कर खुद पकड़ने की कोशिश करने लगी। पर रजनी ने हाथ और भी सख्ती
से पकड़ लिया। इस पर रानी आशीष के दूसरी तरफ पहुँच गयी और उसका दूसरा हाथ
पकड़ लिया।
आशीष ने हडबडा कर अपने दोनों हाथ पकडे खड़ी लड़कियों को देखा और फिर
शर्मिंदा सा होकर इंस्पेक्टर की और देखने लगा।
"वेल डन माय बॉय! यू आर हीरो!" इंस्पेक्टर ने पास आकार आशीष का कन्धा
थपथपाया और मुड़ गया।
रेलवे स्टेशन पर पहुँच कर आशीष ने रहत की सांस ली। हीरो बनने का ख्वाब
अधूरा छोड़ वह वापस अपने घर जा रहा था। बेशक वह हीरो नहीं बन पाया। पर
इंस्पेक्टर के 'वो' शब्द उसकी छाती चौड़ी करने के लिए काफी थे!
"वेल डन माय बॉय! यू आर हीरो!"
इन्ही रोमांचक ख्यालों में खोये हुए तत्काल की लाइन में आशीष का नम्बर कब
खिड़की पर आ गया। उसको पता ही नहीं चला!
"अरे भाई बोलो तो सही!" खिड़की के अन्दर से आवाज आई।
"थ्री टिकट टू दिल्ली!" आशीष ने आरक्षण फाम अन्दर सरकते हुए जवाब दिया!
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