RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--29
पंडित जी दोनो चुचिओ को मीसते हुए धन्नो के मांसल और भरे हुए शरीर का जायज़ा लेने लगे. धन्नो जब पंडित जी दोनो हाथों को अपनी चुचों पर से हटा नही पाई तो लाज़ दीखाते हुए अपनी दोनो हाथों से चेहरे को ढक ली. लेकिन पंडित जी अगले पल अपने एक हाथ से उसके हाथ को चेहरे पर से हटाते हुए अपने मुँह धन्नो के मुँह पर टीकाने लगे. इतना देख कर धन्नो अपने सर को इधेर उधेर घुमाने लगी और पंडित जी के लिए धन्नो के मुँह पर अपने मुँह को भिड़ना मुश्किल होने लगा. इतना देख कर पंडित जी उसके चुचिओ पर से हाथ हटा कर तुरंत अपने एक हाथ से धन्नो के सर को कस कर पकड़ लिए और दूसरे हाथ से उसके गाल और जबड़े को कस कर दबाया तो धन्नो का मुँह खूल सा गया और पंडित जी तुरंत अपने मुँह को उसके मुँह पर सटा दिया और धन्नो के खुले हुए मुँह मे ढेर सारा थूक धकेलते हुए अपने जीभ को धन्नो के मुँह मे घुसेड कर मानो आगे पीछे कर के उसके मुँह को जीभ से ही पेलने लगे. धन्नो का पूरा बदन झनझणा उठा. दूसरे पल धन्नो के ओठों को भी चूसने लगे. और अब हाथ फिर से चुचिओ पर अपना काम करने लगे. धन्नो की सिसकारियाँ दुकान वाले हिस्से मे खड़ी सावित्री को सॉफ सुनाई दे रहा था. सावित्री का कलेजा धक धक कर रहा था. थोड़ी देर तक ऐसे ही धन्नो के होंठो को कस कस कर चुसते हुए पंडित जी ने दोनो चुचिओ को खूब मीसा और नतीज़ा यह हुआ की पेटिकोट के अंदर गुदाज बुर की फांकों मे लार का रिसाव सुरू हो गया. सिसकिओं को सुन सुन कर सावित्री की भी बुर मे मस्ती छाने लगी. लेकिन वह जैसे की तैसे दुकान वाले हिस्से मे खड़ी थी और अंदर क्या हो रहा होगा यही सोच कर सिहर जा रही थी.
तभी पंडित जी ने धन्नो के पेटिकोट के उपर से ही उसके जांघों को पकड़ कर मसल्ने लगे. धन्नो समझ गयी की पंडित जी अब उसके शरीर के अंतिम चीर को भी हरने जा रहे हैं. और अगले पल जैसे ही उनके हाथ धन्नो के पेटिकोट के नाडे को खोलने के लिए बढ़े ही थे की वह उठ कर बैठ गयी और मानो सावित्री को सुनाते हुए फिर से गिड़गिदाने का नाटक सुरू कर दी "मान जाइए ...आप जो कहिए मैं करूँगी लेकिन मेरी पेटिकोट को मत खोलिए.. उपर की इज़्ज़त पर तो हाथ फेर ही दिए हैं लेकिन पेटिकोट वाली मेरी अस्मत को मत लूटीए...मैं मोसाम्मि के पापा के सामने कैसे जाउन्गि...क्या मुँह दिखाउन्गि...ये तो उन्ही की अमानत है......अरी मान जाइए मेरा धर्म इस पेटिकोट मे है...ऊ राम..." लेकिन पंडित जी के हाथ तबतक अपना काम कर चुका था और धन्नो की बात ख़त्म होते ही पेटीकोत कमर मे ढीला हो चुका था. धन्नो इतना देखते ही एक हाथ से ढीले हुए पेटिकोट को पकड़ कर चौकी से नीचे कूद गयी. पंडित जी भी तुरंत चौकी से उतरकर धन्नो के पकड़ना चाहा लेकिन तबतक धन्नो भाग कर दुकान वाले हिस्से मे खड़ी सावित्री के पीछे खड़ी हो कर अपने पेटिकोट के खुले हुए नाडे को बाँधने की कोशिस कर ही रही थी कि तब तक पंडित जी भी आ गये और जैसे ही धन्नो को पकड़ना चाहा की धन्नो सावित्री के पीछे जा कर सावित्री को कस कर पकड़ ली और सावित्री से गिड़गिदाई "अरे बेटी ...मेरी इज़्ज़त बचा लो ....अपने पंडित जी को रोको ...ये मेरे साथ क्या कर रहे हैं...." सावित्री ऐसा नज़ारा देखते ही मानो बेहोश होने की नौबत आ गयी. और लंड खड़ा किए हुए पंडित जी भी अगले पल धन्नो के पीछे आ गये और पेटिकोट के नाडे को दुबारा खींच दिया और दूसरे पल ही धन्नो का पेटिकोट दुकान के फर्श पर गिर गया. सावित्री पंडित जी के साथ साथ धन्नो चाची को भी एकदम नंगी देख कर एक झटके से धन्नो से अलग हुई दुकान के भीतर वाले कमरे मे भाग गयी. फिर एकदम नंगी हो चुकी धन्नो भी उसके पीछे पीछी भागती हुई फिर सावित्री के पीछे जा उसे कस कर पकड़ ली मानो अब उसे छ्होरना नही चाहती हो. दूसरे पल लपलपाते हुए लंड के साथ पंडित जी भी आ गये. सावित्री की नज़र जैसे ही पंडित जी खड़े और तननाए लंड पर पड़ी तो वा एक दम सनसना गयी और अपनी नज़रे कमरे के फर्श पर टीका ली. अगले पल पंडित जी धन्नो के पीछे आने की जैसे ही कोशिस किए धन्नो फिर सावित्री को उनके आगे धकेलते हुए बोली "अरे सावित्री मना कर अपने पंडित जी .को ...तू कुच्छ बोलती क्यूँ नही..कुच्छ करती क्यों नही...मेरी इज़्ज़त लूटने वाली है...अरे हरजाई कुच्छ तो कर....बचा ले मेरी इज़्ज़त....." सावित्री को जैसे धन्नो ने पंडित जी के सामने धकेलते हुए खूद को बचाने लगी तो सावित्री के ठीक सामने पंडित जी का तननाया हुया लंड आ गया जिसके मुँह से हल्की लार निकलने जैसा लग रहा था और सुपादे के उपर वाली चमड़ी पीछे हो जाने से सूपड़ा भी एक दम लाल टमाटर की तरह चमक रहा था. सावित्री को लगा की पंडित जी कहीं उसे ही ना पेल दें. सावित्री भले अपने समीज़ और सलवार और दुपट्टे मे थी लेकिन इतना सब होने के वजह से उसकी भी बुर चड्डी मे कुच्छ गीली हो गयी थी. धन्नो सावित्री का आड़ लेने के लिए उसे पकड़ कर इधेर उधेर होती रही लेकिन पंडित जी भी आख़िर धन्नो के कमर को उसके पीछे जा कर कस कर पकड़ ही लिया और अब धन्नो अपने चूतड़ को कही हिला नही पा रही थी. सावित्री ने जैसे ही देखा एकदम नगी हो चुकी धन्नो चाची को पंडित जी अपने बस मे कर लिए हैं वह समझ गयी अब पंडित जी धन्नो चाची चोदना सुरू करेंगे. सावित्री को ऐसा लगा मानो उसकी बुर काफ़ी गीली हो गयी है और उसकी चड्डी भी भीग सी गयी हो. और सावित्री अब धन्नो से जैसे ही अलग होने की कोशिस की वैसे धन्नो ने सावित्री के पीछे से उसके गले मे अपनी दोनो बाँहे डाल कर अपने सर को सावित्री के कंधे पर रखते हुए काफ़ी ज़ोर से पकड़ ली और अब सावित्री चाह कर भी धन्नो से अलग नही हो पा रही थी और विवश हो कर अपनी दोनो हाथों से अपने मुँह को च्छूपा ली. इधेर पंडित जी भी धन्नो के कमर को कस कर पकड़ लिए थे और धन्नो के सावित्री के कंधे पर कुच्छ झुकी होने के वजह से धन्नो का चूतड़ कुच्छ बाहर निकल गया था और पंडित जी का तन्नाया हुआ लंड अब धन्नो की दोनो चूतदों के दरार के तरफ जा रहा था जिसे धन्नो महसूस कर रही थी. पंडित जी के एक हाथ तो कमर को कस कर पकड़े थे लेकिन दूसरा हाथ जैसे ही लंड को धन्नो के पीछे से उसकी गीली हो चुकी बुर पर सताते हुए एक ज़ोर दार धक्का मारा तो धक्का जोरदार होने की वजह से ऐसा लगा की धन्नो आगे की ओर गिर पड़ेगी और सावित्री के आगे होने की वजह से वह धन्नो के साथ साथ सावित्री भी बुरी तरह हिल गयी और एक कदम आगे की ओर खिसक गयी और लंड के बुर मे धँसते ही धन्नो ने काफ़ी अश्लीलता भरे आवाज़ मे सावित्री के कान के पास चीख उठी "..आआआआआआआआआआ ररीए माआई रे बाआअप्प रे बाप फट गया.... फट गया ................फ..अट गाइ रे बुरिया फट फाया ...फट गया रे ऊवू रे बाप फाड़ दिया रे फाड़ दिया ......अरे मुसाममी के पापा को कैसा मुँह देखाउन्गा मुझे तो छोड़ दिया रे......श्श्सश्..........अरे. ..बाप हो.....मार ....डाला ...बुर मे घूवस गया रे ..हरजाइइ...तेरे पंडित ने ...चोद दिया मेरी ...बुर....उउउहहारे अरे हरजाई रंडी....तेरे पंडित ने मुझे चोद दिया..रे ...आरे बाप रे बाप मैं किसे मुँह दिखाउन्गि....आजज्ज तो लूट लिया रे.....मैं नही जानती थी ....आज मेरी बुर ....फट जाएगी.....ऊवू रे मा रे बाप ...मेरी बुर मे घूस ही गया..रे..मैं तो बर्बाद हो गयी...रे.अयाया " पंडित जी का लंड का आधा हिस्सा बुर मे घुस चुका था.
|