RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
लेकिन पंडित जी अपने लंड को बाहर निकालने के बावजूद अपनी आखों को काफ़ी थोड़ा सा ही खोल रखा था मानो सो रहे हों. अभी भी सावित्री मूत ही रही थी की धन्नो की नज़रें दुबारा जैसे ही पंडित जी के तरफ पड़ी तो उसके होश ही उड़ गये. वह समझ गयी की पंडित जी उसकी करतूत का जबाव दे दिया है. अब पंडित जी का गोरा और मोटा लंड एक दम खड़ा था और मानो सुपाड़ा कमरे की छत की ओर देख रहा था. धन्नो के शरीर मे बिजली दौड़ गयी. उसने दुबारा अपनी नज़र को लंड पर दौड़ाई तो गोरे और मोटे लंड को देखते ही उसकी मुँह से पानी निकल आया. तभी इस घटना से बेख़बर सावित्री पेशाब कर के उठी और चड्डी उपर सरकाने लगी. धन्नो ने अपने काँपते हाथों से सावित्री की चड्डी को उपर सरकाते हुए धीरे से बोली "अरे जल्दी कर हर्जाइ...बड़ा गड़बड़ हो गया...हाई राम...भाग यहाँ से .." इतना सुनते ही सावित्री ने सोचा की कहीं पंडित जी जागने के बाद उठ कर बैठ ना गये हों और जैसे ही उसकी घबराई आँखें चौकी के तरफ पड़ी तो देखी की पंडित जी अभी भी आँखें मूंद कर लेटे हुए हैं. लेकिन दूसरे पल जैसे ही उसकी नज़र धोती के बाहर निकल कर खड़े हुए लंड पर पड़ी वह सर से पाँव तक काँप उठी और अपने सलवार के नाडे को जल्दी जल्दी बाँधने लगी. धन्नो मानो लाज़ के कारण अपने मुँह को भी लगभग ढक रखा था और सावित्री के बाँह को पकड़ कर एक झटका देते हुए बोली "जल्दी भाग उधेर..मैं मूत को पानी से बहा कर आती हूँ.." सावित्री तुरंत वहाँ से बिना देर किए दुकान वाले हिस्से मे आकर चटाई पर खड़ी हो गयी और हाँफने लगी. उसे समझ मे नही आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है. धन्नो ने तुरंत बगल मे एक बाल्टी मे रखे पानी को लोटे मे ले कर शौचालय के फर्श पर पड़े मूत को बहाने लगी. धन्नो कमर से काफ़ी नीचे झुक कर पानी से मूत बहा रही थी. इस वजह से धन्नो का बड़ा चूतड़ सारी मे एक दम बाहर निकल आया था. पंडित जी चौकी पर उठ कर बैठ गये. और जैसे ही पानी से मूत बहाकर धन्नो पीछे मूडी तो देखी की पंडित जी चौकी पर बैठे हैं और उनका लंड एक दम खड़ा है. इतना देखते ही लाज़ के मारे अपने दोनो हाथों से अपने मुँह को ढँक ली और धीरे धीरे दुकान वाले हिस्से की ओर जाने लगी जहाँ सावित्री पहले ही पहुँच गयी थी. धन्नो जैसे ही कुच्छ कदम बढ़ायी ही थी की पंडित जी ने चौकी पर से लगभग कूद पड़े और धन्नो के बाँह को पकड़ना चाहा. धन्नो पहले से ही सजग थी और वह भी तेज़ी से अपने बाँह को छुड़ाते हुए भागते हुए दुकान के हिस्से के पहले लगे हुए दरवाजे के पर्दे के पास ही पहुँची थी की पंडित जी धन्नो की कमर मे हाथ डालते हुए कस के जाकड़ लिया. धन्नो अब छूटने की कोशिस करती लेकिन कोई बस नही चल पा रहा था. पंडित जी धन्नो के कमर को जब जकड़ा तो उन्हे महसूस हुआ की धन्नो का चूतड़ काफ़ी भारी है और चुचियाँ भी बड़ी बड़ी हैं जिस वजह से धन्नो का पंडित जी के पकड़ से च्छुटना इतना आसान नही था. पंडित जी धन्नो को खींच कर चौकी पर लाने लगे तभी धन्नो ने छूटने की कोशिस के साथ कुच्छ काँपति आवाज़ मे गिड़गिदाई "अरे...पंडित जीइ...ये क्या कर रहे हैं...कुच्छ तो लाज़ कीजिए...मेरा धर्म मत लूटीए...मैं वैसी औरत नही हूँ जैसी आप समझ रहे हैं...मुझे जाने दीजिए.." धन्नो की काँपति आवाज़ सावित्री को सुनाई पड़ा तो वह एक दम सिहर उठी लेकिन उसकी हिम्मत नही पड़ी कि वह पर्दे के पीछे देखे की क्या हो रहा. है. वह चटाई पर एकदम शांत खड़ी हो कर अंदर हो रहे हलचल को भाँपने की कोशिस कर रही थी. धन्नो का कोई बस नही चल रहा था. धन्नो के गिड़गिदाने का कोई असर नही पड़ रहा था. पंडित जी बिना कुच्छ जबाब दिए धन्नो को घसीट कर चौकी पर ले आए और चौकी पर लिटाने लगे " धन्नो जैसे ही चौकी पर लगभग लेटी ही थी की पंडित जी उसके उपर चाड. गये. दूसरे ही पल धन्नो ने हाथ जोड़ कर बोली "मेरी भी इज़्ज़त है ...मेरे साथ ये सब मत करिए..सावित्री क्या सोचेगी ...मुझे बर्बाद मत करिए...पंडित जी मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ..." और इतना कह कर जैसे ही अपनी चेहरे को दोनो हाथों से च्छुपाने की कोशिस की वैसे ही पंडित जी ने अपने धोती को खोलकर चौकी से नीचे गिरा दिए. ढीली लंगोट भी दूसरे पल शरीर से दूर हो गया. अब पूरी तरह नंगे पंडित जी का लंड लहरा रहा था. धन्नो के शरीर पर पंडित जी अपने पूरे शरीर का वजन रखते हुए सारी को ब्लाउज के उपर से हटा कर चुचियो को मीसना सुरू कर दिए. चुचिओ का आकार सावित्री की चुचिओ से कुच्छ बड़ा ही था. वैसे ही धन्नो 43 साल की हो गयी थी. धन्नो ने अब कोई ज़्यादा विरोध नही किया और अपने मुँह को दोनो हाथों से च्छुपाए रखा. इतना देख कर पंडित जी धन्नो के शरीर पर से उतर कर एक तरफ हो गये और धन्नो के कमर से सारी की गाँठ को छुड़ाने लगे. तभी धन्नो की एक हाथ फिर पंडित जी के हाथ को पकड़ ली और धन्नो फिर बोली "पंडित जी मैं अपने इज़्ज़त की भीख माँग रही हूँ...इज़्ज़त से बढ़कर कुच्छ नही है.मेरे लिए..ऊहह" लेकिन पंडित जी ताक़त लगाते हुए सारी के गाँठ को कमर से बाहर निकाल दिए. कमर से सारी जैसे ही ढीली हुई पंडित जी के हाथ तेज़ी से सारी को खोलते हुए चौकी के नीचे गिराने लगे. आख़िर धन्नो के शरीर को इधेर उधेर करते हुए पंडित जी ने पूरे सारी को उसके शरीर से अलग कर ही लिए और चौकी के नीचे गिरा दिए. अब धन्नो केवल पेटिकोट और ब्लाउज मे थी. दूसरे पल पंडित जी ब्लाउज को खोलने लगे तो फिर धन्नो गिड़गिदाई "अभी भी कुच्छ नही बिगड़ा है मेरा पंडित जी...रहम कीजिए ...है ..रामम.." लेकिन ब्लाउज के ख़ूलते ही धन्नो की दोनो बड़ी बड़ी चुचियाँ एक काले रंग की पुरानी ब्रा मे कसी हुई मिली. पंडित जी बिना समय गवाए ब्लाउज को शरीर से अलग कर ही लिए और लेटी हुई धन्नो के पीठ मे हाथ घुसा कर जैसे ही ब्रा की हुक खोला की काफ़ी कसी हुई ब्रा एक झटके से अलग हो कर दोनो चुचिओ के उपर से हट गयी. पंडित जी ने तुरंत जैसे ही अपने हाथ दोनो चुचिओ पर रखने की कोशिस की वैसे ही धन्नो ने उनके दोनो हाथ को पकड़ने लगी और फिर गिड़गिदाई "अरे मैं किसे मुँह दिखाउन्गि ...जब मेरा सब लूट जाएगा...मुझे मत लुटीए..." लेकिन पंडित जी के शक्तिशाली हाथ को काबू मे रखना धन्नो के बस की बात नही थी और दोनो हाथ दोनो चुचिओ को मसल्ने लगे.
क्रमशः...........
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