RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--28
धन्नो के बुर से निकला मूत शौचालय के फर्श पर फैल कर अंदर की ओर बहने लगा. पेशाब ख़त्म होने के बाद धन्नो जैसे ही खड़ी हुई की उसकी दोनो चूतड़ फिर आपस मे सॅट गये और दरार फिर काफ़ी गहरी हो गयी और दोनो गोलाईयो के बीच वाली लकीर अब दीखाई नही दे पा रही थी. पंडित जी ने जब धन्नो के मोटे मोटे दोनो जांघों को देखा तो उसकी बनावट और भराव के वजह से धन्नो को चोदने की तीव्र इच्च्छा जाग उठी. तभी धन्नो ने अपनी सारी और पेटिकोट को कमर और पीठ से नीचे गिरा दी और सब कुच्छ धक गया. धन्नो अपनी जगह से हट कर बगल मे खड़ी सावित्री को बोली "चल जल्दी से यहीं बैठ कर मूत ले..." सावित्री जो की धन्नो की गंदी और अश्लील बातों और पंडित जी को चोरी और चलाँकि से गांद दीखाने की घटना से एकदम गर्म और उत्तेजित भी हो चुकी थी. उसकी बुर बहुत गर्म हो गयी थी. पता नही क्यों धन्नो चाची का पंडित जी को गांद दिखाना उसे बहुत अच्च्छा लगा था. जैसे ही उसने धन्नो चाची ने उससे कहा की वहीं मुताना है वह समझ गयी की उसकी भी गांद पंडित जी देख लेंगे और वह भी धन्नो चाची के सामने. इतनी बात मन मे आते ही वह एकदम से सनसना कर मस्त सी हो गयी. पता नही क्यों उसे ऐसा करने मे जहाँ डर और लाज़ लग रही थी वहीं अंदर ही अंदर कुच्छ आनंद भी मिल रही थी. धन्नो चाची ने उसे फिर मूतने के लिए बोली "अरे जल्दी मूत नही तो जाग जाएँगे तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी..." सावित्री समझ रही थी कि पंडित जी जागे हुए हैं. इसी वजह से उसके पैर अपनी जगह से हिल नही पा रहे थे. उसकी नज़रें झुकी हुई थी. धन्नो समझ गयी की सावित्री अब जान चुकी है की पंडित जी जागे हैं और इसी लिए मूत नही रही है. लेकिन वह सावित्री को मुताने पर बाध्या. करना चाह रही थी की उसके अंदर भी निर्लज्जता का समावेश हो जाय. यही सोचते हुए धन्नो ने तुरंत सावित्री के बाँह को पकड़ कर शौचालय के दरवाजे पर खींच लाई और बोली "जल्दी मूत ले..देर मत कर..चल मैं तेरे पीछे खड़ी हूँ ..यदि जाग जाएँगे तो भी नही देख पाएँगे. ." सावित्री ठीक शौचालय के दरवाजे के बीच जहाँ धन्नो ने पेशाब की थी वही खड़ी हो गयी. उसके काँपते हुए हाथ सलवार के नाडे को खोलने की कोशिस कर रहे थे. जैसे ही नाडे की गाँठ खुली की उसने अपने कमर के हिस्से मे सलवार को ढीली की और फिर चड्डी को नीचे सरकाने की कोशिस करने लगी. चड्डी काफ़ी कसी होने के वजह से सावित्री के बड़े बड़े चूतदों पर से नीचे नही सरक पा रही थी.
धन्नो जो ठीक सावित्री के पीछे ही खड़ी थी जब देखी की चड्डी काफ़ी कसी होने के वजह से सावित्री के बड़े बड़े चूतदों पर से नीचे नही सरक पा रही है तब धीरे से फुसफुसा " हाई राम इतना बड़ा चूतड़ है तुम्हारा ..और कपड़े के उपर से तो मालूम ही नही चलता की अंदर दो बड़े बड़े तरबूज़ रखी हो..तेरी चड्डी फट ना जाए..ला मैं पीछे का सरका देती हूँ..." इतना कह कर धन्नो सावित्री के पीछे से थोड़ी बगल हो गयी और अब पंडित जी को सावित्री का पूरा पीच्छवाड़ा दीखने लगा. धन्नो ने काफ़ी चलाँकि से पंडित जी से बिना नज़र मिलाए तेज़ी से अपनी पल्लू को सर के उपर रखते हुए पल्लू के एक हिस्से को खींच कर अपने मुँह मे दाँतों दबा ली और अब उसका शरीर लगभग पूरी तरह से ढक गया था मानो वह बहुत ही शरीफ और लज़ाधुर औरत हो. दूसरे ही पल बिना देर किए झट से सावित्री के समीज़ वाले हिस्से को एक हाथ से उसके कमर के उपर उठाई तो पंडित जी को सावित्री के दोनो बड़े बड़े चूतड़ उसकी कसी हुई चड्डी मे दीखने लगे. धन्नो के एक हाथ जहाँ समीज़ को उसके कमर के उपर उठा रखी थी वहीं दूसरे हाथ की उंगलियाँ तेज़ी से सावित्री की कसी हुई चड्डी को दोनो चूतदों पर से नीचे खिसकाने लगी. सलवार का नाडा ढीला होने के बाद सलवार सावित्री की भारिपुरी जांघों मे जा कर रुक गया था क्योंकि सावित्री ने एक हाथ से सलवार के नाडे को पकड़ी थी और दूसरी हाथ से अपनी चड्डी को नीचे सरकाने की कोशिस कर रही थी. धन्नो के एक निहायत शरीफ औरत की तरह सारी मे खूद को ढक लेने और अपने सर पर पल्लू रखते हुए मुँह पर भी पल्लू के हिस्से डाल कर मानो एक नई नवेली और लज़ाधुर दुल्हन की तरह पल्लू के कोने को अपने दाँतों से दबा लेने के बाद सावित्री की चूतड़ पर से समीज़ को उपर उठा कर चड्डी को जल्दी जल्दी सरकाना पंडित जी को बहुत अजीब लगने के साथ साथ कुच्छ ऐसा लग रहा था की धन्नो खूद तो शरीफ बन कर एक जवान लड़की के शरीर को किसी दूसरे मर्द के सामने नंगा कर रही थी और धन्नो की इस आडया ने पंडित जी को घायल कर दिया. पंडित जी धन्नो की हाथ की हरकत को काफ़ी गौर से अपनी पलकों के बीच से देख रहे थे जो चड्डी को सरकाने के लिए कोशिस कर रही थी. आख़िर किसी तरह सावित्री की कसी हुई चड्डी दोनो चूतदों से नीचे एक झटके के साथ सरक गयी और दोनो चूतड़ एक दम आज़ाद हो कर अपनी पूरी गोलायओं मे बाहर निकल कर मानो लटकते हुए हिलने लगे. तभी धन्नो ने धीरे से फुसफुसा "तेरी भी चूतड़ तेरी मा की तरह ही काफ़ी बड़े बड़े हैं ...इसी वजह से चड्डी फँस जा रही है...जब इतनी परेशानी होती है तो सलवार के नीचे चड्डी मत पहना कर..इतना बड़ा गांद किसी चड्डी मे भला कैसे आएगी..." इतना कह कर धन्नो धीरे से हंस पड़ी और चड्डी वाले हाथ खाली होते ही अपने पल्लू को फिर से ऐसे ठीक करने लगी की पंडित जी उसके शरीर के किसी हिस्से ना देख संकें मानो वह कोई दुल्हन हो. लेकिन सावित्री की हालत एकदम बुरी थी. जिस पल चड्डी दोनो गोलायओं से नीचे एक झटके से सर्की उसी पल उसे ऐसा लगा मानो मूत देगी. वह जान रही थी की पंडित जी काफ़ी चलाँकि से सब कुच्छ देख रहें हैं. अब उसे धन्नो के उपर भी शक हो गया की धन्नो को भी अब यह मालूम हो गया है की पंडित जी उन दोनो की इस करतूतों को देख रहें हैं. लेकिन उसे यह सब कुच्छ बहुत ही नशा और मस्त करने वाला लग रहा था. उसका कलेजा धक धक कर रहा था और बुर मे एक सनसनाहट हो रही थी. लेकिन उसे एक अजीब आनंद मिल रहा था और शायद इसी लिए काफ़ी लाज़ और डर के बावजूद सावित्री को ऐसा करना अब ठीक लग रहा था.
दूसरे पल सावित्री पेशाब करने बैठ गयी और बैठते ही समीज़ के पीछे वाला हिस्सा पीठ पर से सरक कर दोनो गोल गोल चूतदों को ढक लिया. इतना देखते ही धन्नो ने तुरंत समीज़ के उस पीछे वाले हिस्से को अपने हाथ से उठा कर वापस पीठ पर रख दी जिससे सावित्री का चूतड़ फिर एकदम नंगा हो गया और पंडित जी उसे अपने भरपूर नज़रों से देखने लगे. सावित्री की बुर से पेशाब की धार निकल कर फर्श पर गिरने लगी और एक धीमी आवाज़ उठने लगी. सावित्री जान बूझ कर काफ़ी धीमी धार निकाल रही थी ताकि कमरे मे पेशाब करने की आवाज़ ना गूँजे. धन्नो सावित्री के पीछे के बजाय बगल मे खड़ी हो गयी थी और उसकी नज़रें सावित्री के नंगे गांद पर ही थी. तभी धन्नो ने पंडित जी के चेहरे के तरफ अपनी नज़र दौड़ाई और एक हाथ से अपनी सारी के उपर से ही बुर वाले हिस्से को खुजुला दी मानो वह पंडित जी को इशारा कर रही हो. लेकिन पंडित जी अपने आँखों को बहुत ही चलाँकि से बहुत थोड़ा सा खोल रखे थे. फिर भी पंडित जी धन्नो को समझ गये की काफ़ी खेली खाई औरत है. और धन्नो के अपने सारी के उपर से ही बुर खुजुलाने की हरकत का जबाव देते हुए काफ़ी धीरे से अपने एक हाथ को अपनी धोती मे डाल कर लंगोट के बगल से कुच्छ कसाव ले रहे लंड को बाहर निकाल दिए और लंड धोती के बगल से एकदम बाहर आ गया और धीरे धीरे खड़ा होने लगा.
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