RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
लेकिन धन्नो के इस अस्वासन से काफ़ी राहत मिली की वह किसी से कुच्छ नही कहेगी और वह अपनी जवानी के समय की मुनिया के रस वाली बात खूद ही बता कर यह भी स्पष्ट कर दी थी कि धन्नो का सावित्री के उपर भी बहुत विश्वास है. अब धन्नो ने पूरे हथियार सावित्री के उपर चला दी थी और सावित्री वैसे ही एक मूर्ति की तरह जस की तस बैठी थी. चेहरे पर एक लाज़ डर और पसीने उभर आए थे. साथ साथ उसके बदन मे एक मस्ती की लहर भी तेज हो गयी थी. धन्नो चाची उसे अपना असली रूप दिखा चुकी थी.
धन्नो का काम लगभग पूरा हो चुका था. वह सावित्री के साथ जिस तरह का संबंध बनाना चाह रही थी अब बनती दीख रही थी. सावित्री की चुप्पी इस बात को प्रमाणित कर रहा था की अब धन्नो के किसी बात का विरोध नही करना चाह रही थी. फिर धन्नो ने पीठ पर हाथ रखते धीरे से फुसफुससाई "कल मेरी बेटी को देखने के लिए लड़के वाले आ रहे हैं ..शगुन चाचा के घर ..और मैं सोचती हूँ की तुम भी दुकान के बहाने मेरे साथ शगुन चाचा के यहाँ चलती तो बहुत अच्च्छा होता..." इतना कह कर धन्नो चाची सावित्री के चहरे पर देखते हुए उसके जबाव का इंतज़ार करने लगी. सावित्री के समझ मे नही आ रहा था की आख़िर कैसे दुकान का काम छोड़ कर अपनी मा को बिना बताए वह ऐसा कर सकती है. इसी लिए चुप रही. फिर धन्नो ने थोड़ा ज़ोर लगा कर सावित्री से कुच्छ अनुरोध के अंदाज मे बोली "तुझे किसी तरह की कोई परेशानी नही होगी..मैं पंडित जी से बात कर लूँगी की कल मेरी बेटी मुसम्मि को देखने आ रहे हैं और इस कारण वह दुकान पर नही आएगी और मेरे साथ शगुन चाचा के घर जाएगी..बोल बेटी..." इतना सुनकर सावित्री की परेशानिया बढ़ गयीं और धीरे से बोली "लेकिन मेरी मा मुझे आपके साथ कहीं नही जाने देगी.." धन्नो तुरंत बोली "जब तुम दुकान के लिए आओगी तब मैं खूद तुम्हे गाओं के बाहर मिल लूँगी और फिर मेरे साथ शगुन चाचा के घर चलना..और शाम को जिस समय दुकान से घर जाती हो ठीक उसी समय मैं तुम्हे गाँव के बाहर तक छ्चोड़ दूँगी...तो मा को कैसे मालूम होगा?..." धन्नो के समझाने से सावित्री चुप रही और फिर कुच्छ नही बोली. अब दुकान के अंदर वाले हिस्से मे चौकी पर सो रहे पंडित जी का नाक का बजना बंद हो गया था. सावित्री और धन्नो दोनो को यह शक हो गया था की पंडित जी अब जाग गये हैं. धन्नो सावित्री से पुछि "पेशाब कहाँ करती हो...चलो पेशाब तो कर लिया जाय नही तो पंडित जी जाग जाएँगे ..." सावित्री ने अंदर एक शौचालय के होने का इशारा किए तो धन्नो ने तपाक से बोली "जल्दी चलो ...मुझे ज़ोर से लगी है और तुम भी कर लो." इतना कहते हुए धन्नो चटाई पर से उठ कर एक शरीफ औरत की तरह अपने सारी का पल्लू अपने सर पर रखी और फिर सावित्री भी उठी और अपने दुपट्टे को ठीक कर ली. धन्नो पर्दे को हटा कर अंदर झाँकी तो पंडित जी चौकी पर सोए हुए थे और उनके पैर के तरफ शौचालय का दरवाज़ा था जो की खुला हुआ था. धन्नो को पर्दे के बगल से केवल पंडित जी का सर ही दिखाई दे रहा था. लेकिन नाक ना बजने के वजह से धन्नो और सावित्री दोनो ही यह सोच रही थी की पंडित जी जागे हो सकते हैं. और ऐसे मे जब दोनो शौचालय के तरफ जाएँगी तब पंडित जी जागे होने की स्थिति मे बिना सर को इधेर उधर किए सोए सोए आराम से देख सकते हैं. सावित्री इस बात को सोच कर डर रही थी. लेकिन तभी धन्नो ने पर्दे को एक तरफ करते हुए अपने कदम अंदर वाले कमरे मे रखते हुए फुसफुसा "अभी पंडित जी नीद मे हैं चल जल्दी पेशाब कर लूँ नही तो जाग जाएँगे तो मुझे बहुत लाज़ लगेगी उनके सामने शौचालय मे जाना...और सुन शौचालय के दरवाज़े को बंद करना ठीक नही होगा नही तो दरवाज़े के पल्ले की चर्चराहट या सिटकिनी के खटकने की आवाज़ से पंडित जी जाग जाएँगे...बस चल धीरे से बैठ कर मूत लिया जाय..." धन्नो के ठीक पीछे खड़ी सावित्री का कलेजा धक धक कर रहा था. वह सोच रही थी की कहीं पंडित जी जागे होंगे तो पेशाब करते हुए दोनो को देख लेंगे. धन्नो क्कुहह दबे कदमो से अंदर वाले कमरे मे चौकी के बगल से शौचालय के दरवाज़े के पास पहुँच गयी. लेकिन जैसे ही पीछे देखी तो सावित्री अभी भी पर्दे के पास खड़ी थी. क्योंकि सावित्री को अंदाज़ा था की पंडित जी का नाक बाज़ना बंद हो गया है और अब वे जागे होंगे ऐसे मे शौचालय का दरवाज़ा बिना बंद किए पेशाब करने का मतलब पंडित जी देख सकते हैं. धन्नो ने पर्दे के पास खड़ी सावित्री को शौचालय के दरवाज़े के पास बुलाने के लिए धीमी आवाज़ मे बोली "अरी जल्दी आ और यही धीरे से पेशाब कर लिया जाय....नही तो पंडित जी कभी भी जाग सकते हैं..जल्दी आ......" धन्नो ने इतना बोलते हुए अपनी तिरछि नज़रों से पंडित जी के आँख के. बंद पलकों को देखते हुए यह भाँप चुकी पंडित जी पूरी तरह से जाग चुके हैं लेकिन पेशाब करने की बात उनके कान मे पड़ गयी है इस वजह से जान बुझ कर अपनी पॅल्को को ऐसे बंद कर लिए हैं की देखने पर मानो सो रहे हों और पलकों को बहुत थोड़ा सा खोल कर दोनो के पेशाब करते हुए देख सकते हैं. पंडित जी के कान मे जब ये बात सुनाई दी की धन्नो शौचालय के दरवाज़े को बंद नही करना चाहती है क्योंकि उसे इस बात का डर है की दरवाज़ा बंद करने पर दरवाज़े के चर्चराहट और सिटकिनी के खटकने के वजह से उनकी नीद खुल सकती है तो पंडित जी अंदर ही अंदर मस्त हो उठे और सोने का नाटक कर अपने आँख के पलकों को इतनी बारीकी से सुई की नोक के बराबर फैला कर देखने लगे. धन्नो के दबाव के चलते सावित्री भी धीरे धीरे दबे पाँव शौचालय के पास खड़ी धन्नो के पास आकर खड़ी हो गयी. उसे यह विश्वास था की पंडित जी जागे होंगे लेकिन उसकी हिम्मत नही थी की वह सोए हुए पंडित जी के चेहरे पर अपनी नज़र दौड़ा सके इस वजह से अपनी नज़रे फर्श पर झुका कर खड़ी हो गयी. तभी धन्नो ने अपना मुँह शौचालय के अंदर की ओर करते हुए ठीक शौचालय के दरवाज़े पर ही खड़ी हो गयी और वह ना तो शौचालय के अंदर घुसी ना ही शौचालय के बाहर ही रही बल्कि ठीक दरवाज़े के बीचोबीच ही खड़ी हो कर जैसे ही अपने सारी और पेटिकोट कमर तक उठाई उसका सुडौल चौड़ा और बड़ा बड़ा दोनो चूतड़ जो आपस मे सटे हुए थे और एक गहरी दरार बना रहे थे एक दम नंगा हो गया और नतीज़ा की पंडित जी अपनी आँखो के पलकों को काफ़ी हल्के खुले होने के कारण सब कुच्छ देख रहे थे. धन्नो का चूतदों की बनावट बहुत ही आकर्षक थी. दोनो चूतर कुछ साँवले रंग के साथ साथ मांसल और 43 साल की उम्र मे काफ़ी भरा पूरा था. दोनो चूतदों की गोलाइयाँ इतनी मांसल और कसी हुई थी और जब धन्नो एक पल के लिए खड़ी थी तो ऐसे लग रहा था मानो चूतड़ के दोनो हिस्से आपस मे ऐसे सटे हों की उन्हे
जगह नही मिल रही हो और दोनो बड़े बड़े हिस्से एक दूसरे को धकेल रहे हों. धन्नो के चूतड़ के दोनो हिस्सों के बीच का बना हुआ दरार काफ़ी गहरा और खड़ी होने की स्थिति मे काफ़ी सांकरा भी लग रहा था. धन्नो ने सारी और पेटिकोट को कमर तक उठा कर लगभग पीठ पर ही रख लेने के वजह से कमर के पास का कटाव भी दीख जा रहा था. पंडित जी इतना देख कर मस्त हो गये. धन्नो के एक पल के ही इस नज़ारे ने पंडित जी को मानो धन्नो का दीवाना बना दिया हो. तभी दूसरे पल धन्नो एक झटके से पेशाब करने के लिए बैठ गयी. पंडित जी का मुँह शौचालय के दरवाज़े की ओर होने की वजह से वह बैठी हुई धन्नो को अपनी भरपूर नज़र से देख रहे थे. सावित्री एक पल के लिए सोची की वह धन्नो के पीछे ही जा कर खड़ी हो जाए जिससे पंडित जी उसे देख ना सकें. लेकिन उसकी हिम्मत नही हुई. सावित्री को जैसे ही महसूस हुया की धन्नो चाची के नंगे चूतदों को पंडित जी देख रहें हैं वह पूरी तरह सनसना गयी. उसे ऐसा लगा मानो उसकी बुर मे कुच्छ चुलबुलाहट सी होने लगी है. जैसे ही धन्नो बैठी की उसके दोनो गोल गोल चूतड़ हल्के से फैल से गये मानो वो आपस मे एक दूसरे से हल्की दूरी बना लिए हों और इस वजह से दोनो चूतदों के बीच का काफ़ी गहरा और सांकरा दरार फैल गया और कमर के पास से उठने वाली दोनो चूतदों के बीच वाली लकीर अब एक दम सॉफ सॉफ दीखने लगी. धन्नो ने जब अपनी सारी और पेटिकोट को दोनो हाथों से कमर के उपर करते हुए जैसे ही झटके से पेशाब करने बैठी की उसके सर पर रखा सारी का पल्लू सरक कर पीठ पर आ गया और नंगे चूतदों के साथ साथ उसके पीठ के तरफ जा रही सिर के बॉल की चोटी भी पंडित जी को दीखने लगी. धन्नो के पीठ का ज़्यादा हिस्सा पेटिकोट से ही ढक सा गया था क्योंकि धन्नो ने बैठते समय सारी और पेटिकोट को कमर के उपर उठाते हुए अपनी पीठ पर ही लहराते हुए रख सी ली थी. धन्नो यह जान रही थी की पंडित जी के उपर इस हमले का बहुत ही गरम असर पड़ गया होगा जो उस पहलवान और मजबूत शरीर के मर्द को फँसाने के लिए काफ़ी था. दूसरी तरफ बगल मे खड़ी सावित्री के भी बेशर्म और अश्लीलता का मज़ा देने के लिए काफ़ी था. धन्नो जानती थी की सावित्री काफ़ी सीधी और शरीफ है और उसे बेशर्म और रंगीन बनाने के लिए इस तरह की हरकत बहुत ही मज़ेदार और ज़रूरी है. धन्नो जैसी चुदैल किस्म की औरतें दूसरी नयी उम्र की लड़कियो को अपनी जैसे छिनाल बनाने की आदत सी होती है और इसमे उन्हे बहुत मज़ा भी आता है जो किसी चुदाइ से कम नही होता है. इस तरह धन्नो सावित्री को यह दीखाना चाह रही थी की कोई भी ऐसी अश्लील हरकत के लिए हिम्मत की भी ज़रूरत होती है साथ साथ रिस्क लेने की आदत भी होनी चाहिए. अब तक सावित्री को यही पता था की किसी दूसरे मर्द को अपने शरीर के अंद्रूणी हिस्से को दिखाना बेहद शर्मनाक और बे-इज़्ज़त वाली बात होती है लेकिन धन्नो की कोशिस थी की सावित्री को महसूस हो सके की इस तरह के हरकत करने मे कितना मज़ा आता है जो अब तक वह नही जानती थी. इधेर धन्नो के मन मे जब यह बात आई की पंडित जी उसके चूतड़ ज़रूर देख रहे होंगे और इतना सोचते ही वह भी एक मस्ती की लहर से सराबोर हो गयी. धन्नो बैठे ही बैठे जैसे ही अपनी नज़र बगल मे खड़ी सावित्री पर डाली तो देखी की वह अपनी नज़रें एक दम फर्श पर गढ़ा ली है और उसके चेहरे पर पसीना उभर आया था. जो शायद लाज़ के वजह से थी. तभी पेशाब करने बैठी हुई धन्नो ने सावित्री की ओर देखते हुए काफ़ी धीरे से फुसफुसा "देख कहीं जाग ना जाएँ..." धन्नो के इस बात पर सावित्री की नज़रें अचानक सामने चौकी पर लेटे हुए और शौचालय की ओर मुँह किए पंडित जी के चेहरे पर चली गयी और जैसे ही देखी की उनकी आँख की पलकें बंद होने के बावजूद कुच्छ हरकत कर रही थीं और इतना देखते ही एक डर लाज़ से पूरी तरह हिल उठी सावित्री वापस अपनी नज़रे फर्श पर गढ़ा ली. धन्नो ने सावित्री के नज़रों के गौर से देखी की पंडित जी के चेहरे पर से इतनी झटके से हट कर वापस झुक गयी तो मतलब सॉफ था की पंडित जी जागे और देख रहे हैं जो अब सावित्री को भी मालूम चल गया था. धन्नो ने आगे बिना कुछ बोले अपने नज़रों को सावित्री के चहरे पर से हटा ली और काफ़ी इतमीनान के साथ मुतना सुरू कर दी. दोपहर के समय दुकान के अंदर वाले हिस्से मे एक दम सन्नाटा था और धन्नो के पेशाब के मोटी धार का फर्श पर टकराने की एक तेज आवाज़ शांत कमरे मे गूंजने लगी. पंडित जी अब धन्नो के चूतड़ को देखने के साथ साथ धन्नो के मुतने की तेज आवाज़ कान मे पड़ते ही एकदम मस्त हो गये और उनकी धोती के अंदर लंगोट मे कुच्छ कसाव होने लगा. एक पल के लिए उन्होने सावित्री के लाज़ से पानी पानी हुए चहरे को देखा जो एकदम से लाल हो गया था और माथे और चेहरे पर पसीना उभर आया था.
क्रमशः.....................
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