RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--27
धन्नो के इस तगड़े प्रहार का असर सावित्री की मन और दिमाग़ दोनो पर एक साथ पड़ा. वह सोचने लगी की पंडित जी ने पहले ही उसे बता दिया था की लक्ष्मी का दूसरा लड़का उनके शरीर से पैदा है. फिर भी लक्ष्मी को सावित्री की मा सीता और खूद सावित्री भी काफ़ी शरीफ मानती थी लेकिन अब सावित्री को महसूस होने लगा की जैसा वह सोचती थी वैसी दुनिया नही है और लक्ष्मी भी दूध की धोइ नही है. धन्नो की बातें उसे सही और वास्तविक लगने लगी. सावित्री मानो और अधिक सुनने की इच्च्छा से चुप चाप बैठी रही. धन्नो अंदर ही अंदर खुश हो गयी थी. उसे पता था की जवान लड़की के लिए इतनी गर्म और रंगीन बात उसे बेशरामी के रश्ते पर ले जाने के लिए
ठीक थी. सावित्री भी अब धन्नो की बात को सुनने के लिए बेताव होती जा रही थी लेकिन अभी भी उसे बहुत ही लाज़ लग रही थी इस वजह से अपनी नज़रें झुकाए चुपचाप बैठी थी. फिर धन्नो ने धीरे से आगे बोली "नये उम्र का लंड तो औरतों को काफ़ी जवान और ताज़ा रखता है और इसी लिए तो लक्ष्मी आज कल गाओं मे कुच्छ नये उम्र के लड़कों के पानी से अपनी मुनिया को रोज़ नहलाती है..वो भी धीरे धीरे बहुत मज़ा ले रही है..लेकिन ये बात गाओं के अंदर केवल मैं और कुच्छ उसकी सहेलियाँ ही जानती हैं...और दूसरों को जानने की क्या ज़रूरत भी है..बदनामी किसी को पसंद थोड़ी है..वो भी तो बेचारी एक औरत ही है..बस काम हो जाए और शोर भी ना मचे यही तो हर औरत चाहती ही" धन्नो ने इतना कह कर सावित्री के तेज सांस पर गौर करते हुए बात आगे बढ़ाई "वैसे लक्ष्मी काम ही ऐसा करती है की .साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटेबहुत ही चलाँकि से और होशियारीसे अपनी मुनिया को लड़कों का पानीपिलाती है...मुझे तो उसके दिमाग़ पर काफ़ी अस्चर्य भी होता है...बहुत ही चालाक और समझदारी से रहती है..अब ये ही समझ की तेरी मा सीता उसकी बहुत करीबी सहेली है और उसे खूद ही नही पता की लक्ष्मी वास्तव मे कितनी चुदैल है..और तेरी मा उसे एक शरीफ औरत समझती है. लेकिन सच पुछो तो मेरे विचार मे वह एक शरीफ है भी...बहुत सावधानी से चुदति है...क्योंकि उसकी इस करतूत मे उसकी कुच्छ सहेलियाँ मदद करती हैं और इसी कारण उसके उपर कोई शक नही करता...और होता भी यही है यदि कोई एक औरत किसी दूसरे औरत का मदद लेते हुए मज़ा लेती है तो बदनामी का ख़तरा बहुत ही कम होता है...और आज कल तो इसी मे समझदारी भी है..." सावित्री इस बात को सुनकर फिर एक अलग सोच मे पड़ गयी की धन्नो उससे ऐसी बात कह कर क्या समझना चाह रही थी. सावित्री के दिमाग़ मे धन्नो द्वारा लंड का इंतज़ाम और फिर एक औरत की मदद से मज़ा लूटने का प्लान बताने के पीछे का मतलब समझ आने लगा. अब वह बहुत ही मस्त हो गयी थी. मानो धन्नो उसे स्वर्ग के रश्ते के बारे मे बता रही हो. सावित्री ने महसूस किया की उसकी बुर कुच्छ चिपचिपा सी गयी थी. फिर आगे धन्नो ने सावित्री के कान के पास धीरे से कुच्छ गंभीरता के साथ फुसफुससाई "मेरी इन बातों को किसी से कहना मत...समझी की नही ..." धन्नो ने सावित्री के कंधे पर एक हाथ रख कर मानो उससे हामी भरवाना चाहती थी लेकिन सावित्री अपनी आँखे एकदम फर्श पर टिकाए बैठी रह गयी. वह हाँ कहना चाहती थी लेकिन उसके पास अब अंदर से ताक़त नही लग रही थी क्योंकि वह इतनी गंदी और खुली हुई बात किसी से नही की थी. और चुप बैठी देख धन्नो ने उसके कंधे को उसी हाथ से लगभग हिलाते हुए फिर बोली "अरे पगली मेरी इन बातों को किसी से कहेगी तो लोग क्या सोचेंगे की मैं इस उम्र मे एक जवान लड़की को बिगाड़ रही हूँ...ये सब किसी से कहना मत ...क्यों कुच्छ बोलती क्यों नही..." दुबारा धन्नो की कोशिस से सावित्री का हिम्मत कुच्छ बढ़ा और काफ़ी धीरे से अपनी नज़रें झुकाए हुए ही फुसफुसा "नही कहूँगी" इतना सुनकर धन्नो ने सावित्री के कंधे पर से हाथ हटा ली और फिर बोली "हां बेटी तुम अब समझदार हो गयी हो और तुझे मालूम ही है की कौन सी बात किससे करनी चाहिए किससे नहीं....और आज से तुम मेरी एक बहुत ही अच्छी सहेली भी है और वो इसलिए की सहेली के रूप मे तुम हमसे खूल कर बात कर सकोगी और मैं ही एक सहेली के रूप मे जब तेरा मन करेगा तब उस चीज़ का इंतज़ाम भी धीरे से करवा दूँगी...तेरी मुनिया की भी ज़रूरत पूरी हो जाएगी और दुनिया को पता भी नही चलेगा..." इतना कह कर धन्नो हँसने लगी और सावित्री के पीठ पर धीरे एक थप्पड़ भी जड़ दी और सावित्री ऐसी बात दुबारा सुनने के बाद मुस्कुराना चाह रही थी लेकिन आ रही मुस्कुराहट को रोकते हुए बोली "धात्त्त...छ्चीए आप ये सब मुझसे मत कहा करें..मुझे कुच्छ नही चाहिए..." धन्नो ने जब सावित्री के मुँह से ऐसी बात सुनी तो उसे बहुत खुशी हुई और उसे लगा की आज की मेहनत रंग ला दी थी. फिर हँसते हुए बोली "हाँ तुम्हे नया या पुराना कोई औज़ार नही चाहिए ..मैं जानती हूँ क्यों नही चाहिए ...आज कल पंडित जी तो खूद ही तुम्हारी मुनिया का ख्याल रख रहे हैं और इस बुड्ढे के शरीर की ताक़त अपनी चड्डी मे भी पोत कर घूम रही हो...और उपर से यह बूढ़ा तुम्हे दवा भी खिला रहा है.....अरे बेटी यह मत भूलो की मैं भी एक समय तेरी तरह जवान थी और ...अब तुमसे क्या छुपाना मेरी भी मुनिया को रस पिलाने वाले बहुत थे...और झूठ क्या बोलूं...मेरी मुनिया भी खूब रस पिया करती थी..." अब तक का यह सबसे जबर्दाश्त हमला होते ही सावित्री एकदम से कांप सी गयी और दूसरे पल उसकी बुर के रेशे रेशे मे एक अजीब सी मस्ती की सनसनाहट दौड़ गयी. सावित्री को मानो साँप सूंघ गया था. अब उसे विश्वास हो गया था की उस दिन घर के पीच्छवाड़े पेशाब करते समय चड्डी पर लगे चुदाई के रस और सलवार पहनते समय समीज़ की जेब से गिरे दवा के पत्ते को देखकर धन्नो चाची सब माजरा समझ चुकी थी. और शायद इसी वजह धन्नो के व्यवहार मे बदलाव आ गया था.
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