RE: Hindi Porn Stories संघर्ष
संघर्ष--25
धन्नो ने अपनी साड़ी से अपनी दोनो छातिओ को ढँक तो रखी थी लेकिन सारी के पतले होने के कारण उसकी ब्लॉज़ मे दोनो बड़ी बड़ी चुचियाँ का आकार सॉफ समझ मे आ रहा था. पंडित जी की नज़रों को पढ़ते हुए धन्नो ने एक शरीफ औरत की तरह वैसे ही बैठी रही और अपनी नज़रे दूसरी ओर फेर ली जिससे पंडित जी अब अपनी आँखो से उसके शरीर को ठीक तरीके से तौलने लगे. फिर पंडित जी की बात का जबाव देते हुए धन्नो ने पंडित जी से बिना नज़रें मिलाए ही बोली "मुस्किल तो बहुत हो जाएगा बेटी की शादी करना पंडित जी ..क्योंकि सारा गाओं ही मेरे पीछे पड़ा है .....मुझे और मेरी बेटी को बदनाम करने के लिए...क्योंकि सीधे साधे को तो सभी परेशान करतें हैं ....सबको मालूम है की मा बेटी किसी का क्या बिगाड़ लेंगी.......... सो जो मन मे आया झूठ या सच बोलने मे देरी नही करते हैं....अब आप ही बताइए की गाओं की ही करतूत पर मेरी बेटी की शादी टूटी और अब गाओं वाले कहते हैं की मेरी बेटी ही ठीक नही है और इधेर उधेर घूम घूम कर ......हरामी सब और क्या कह सकतें है मेरी बेटी के बारे मे जब वो कुत्ते मेरे उपर भी कलंक लगाते देर नही करते और यहाँ तक बोलते हैं कि मुझे नये उम्र के लड़के पसंद............भगवान इंसबको एक दिन ज़रूर सज़ा देगा जो मुझे भी बदनाम करने मे लगे रहते हैं.......मन तो करता है की गाओं को ही छोड़ कर कहीं और चली जाउ..."
इतना सुनकर पंडित जी ने अपने धोती के उपर से ही लंगोट मे उठते हुए तनाव को एक हाथ से हल्के से मसल दिए जो धन्नो ने अपनी तिर्छि नज़र से देख ली और फिर धोती पर से हाथ हटाते हुए बोले "अरे धन्नो तुम इतनी सी बात को लेकर गाओं छोड़ने की सोच रही हो...ये सब तो होता रहता है........ और जिन लोंगो की खूद की इज़्ज़त नही होती वो ही दूसरे शरीफ लोंगो को बदनाम करते हैं...और जो भी तुमको और तुम्हारी बेटी को बदनाम करते हैं उन सालों का खूद का तो इज़्ज़त होगा ही नही और उन सबकी मा बहनो की आग सारा गाओं मिलकर बुझाता होगा..." पंडित जी के मुँह से लगभग गालियाँ देते हुए ऐसी बात सुनकर धन्नो एकदम लज़ा सी गयी अगले पल अपने हाथ से सारी का पल्लू पकड़ कर मुँह को ढँकते हुए धीरे से हंसते हुए लाज़ भरी मुँह से सावित्री के आँखों मे देखते हुए बोली "हाई राम कैसी बात बोलते हैं बड़ी लाज़ लगती है सुनकर........लेकिन ये सब हरामी ऐसी ही गाली लायक हैं ही जो दूसरों की इज़्ज़त को मिट्टी मे मिलाते रहते हैं...." और इतना कह कर धन्नो सावित्री की ओर देख कर अपनी हँसी रोकने की कोशिस करने लगी. पंडित जी धन्नो का जबाव सुनते ही उन्हे विश्वास हो गया की धन्नो खूब खेली खाई औरत है. और मस्ती की एक लहर पंडित जी के बदन मे उठने लगी और फिर हल्की मुस्कुराहट से बोले "मैं सच कहता हूँ धन्नो ...ये झूठे बदनाम करने वाले कमीने अपनी मा बहनो को नही देखते की दिन और रात हमेशा कुतिया की तरह पूरा गाओं घूमती रहती हैं और पूरा माहौल ही गंदा करने पर लगी रहती हैं..." धन्नो किसी तरह अपनी मुँह को पल्लू मे ढाकी हुई हँसी को रोकते हुए आगे बोली "क्या बताउ पंडित जी मेरे गाओं मे तो कुच्छ औरतें और लड़कियाँ इतनी बेशर्म हो गयी हैं कि उनकी करतूत सुनकर शरीर लाज़ से पानी पानी हो जाता है...आप समझिए की इनका करतूत अपने मुँह से किसी से बताने लायक नही है...." धन्नो इतना कह कर पंडित जी के बालिश्ट शरीर पर तिरछि नज़र से देखते हुए आगे बोली "मानो अब लाज़ और डर तो ख़त्म ही हो गया है इन गाओं की कुत्तिओ के अंदर से..बस रात दिन मज़ा लेने के चक्केर मे अपने साथ साथ अपनी बेटिओं को भी लेकर पूरे गाओं का चक्केर लगाती हैं की कोई तो उनके जाल मे ....मुझे तो इन सबकी ऐसी हरकत देखकर बड़ी ही लाज़ लगती है की आप से क्या कहूँ...ऐसे माहौल मे तो रहना ही बेकार है और मैं चाहती हूँ की अपनी बेटी की शादी कर के जल्दी ससुराल भेंज दूं नही तो इस गाओं का गंदा हवा कही उसे भी लग गया तो मैं तो उजड़ ही जाउन्गि.....
.क्योंकि मेरे पास बस एक इज़्ज़त ही है जिसे मैं बचा के रखी हूँ.." पंडित जी इस बात का जबाव देते हुए बोले "धन्नो तुम शादी की चिंता मत करो भगवान चाहेगा तो तेरी बेटी की शादी बहुत जल्द ही हो जाएगी...बस उपर वाले पर भरोसा करते हुए अपना प्रयास जारी रखो. ..अब मेरे खाना खाने और आराम करने का समय हो गया है और मैं चलता हूँ अंदर वाले कमरे मे और तुम दोनो बातें करो.." इतना कह कर पंडित जी अपनी जगह से उठे और दुकान का बाहरी दरवाज़ा बंद करके दुकान के अंदर वाले कमरे मे चले गये.
दुकान वाले हिस्से मे अब धन्नो और सावित्री चटाई पर बैठी ही थी की पंडित जी के अंदर वाले हिस्से मे जाते ही धन्नो चटाई पर लेट गयी और सावित्री से बोली "तुम भी आराम कर लो..आओ मेरे बगल मे लेट जाओ.." सावित्री चटाई पर बैठी हुई यही सोच रही थी कि धन्नो आज की दोपहर को दुकान पर ही रहेगी तो पंडित जी के साथ कैसे मज़ा लेगी. शायद इस बात को सोच कर सावित्री को धन्नो के उपर गुस्सा भी लग रहा था. वह यही बार बार सोच रही थी की आख़िर धन्नो पंडित जी से इतनी ज़्यादे बातें क्यों कर रही है और दुकान पर क्यों रुक गयी. लेकिन धन्नो चटाई पर लेटी हुई सावित्री के मन की बात समझ रही थी की उसके रुकने की वजह से आज पंडित जी के लंड का मज़ा सावित्री नही ले पाएगी शायद इसी वजह से कुच्छ अंदर ही अंदर गुस्सा कर रही होगी.
धन्नो के दुकान मे रुकने के वजह से सावित्री से भी बातें करने का मौका मिल गया था और वह सावित्री को अपने करीब लाना चाहती थी जो की बात चीत से ही हो सकती थी. यही सोच कर धन्नो ने फिर सावित्री से कहा "पंडित जी तो अंदर चले गये तुम अब आओ और आराम कर लो............की आराम नही करना चाहती हो..शायद तुम जवान लड़कियो को तो थकान होती ही नही चाहे जितना भी मेहनत कर लो..क्यों ?" इतना सुनकर सावित्री चटाई के एक किनारे बैठी हुई बस मुस्कुरा दी और धन्नो की बात का जबाव देते हुए बोली "नही चाची ठीक है...आप आराम करो..मैं बैठी ही ठीक हूँ" फिर धन्नो ने सावित्री की ओर देखते हुए पंडित जी के बारे मे धीरे से पुछि "खाना खाने के बाद कितनी देर तक पंडित जी आराम करते हैं..और तुम कहाँ आराम करती हो?" सावित्री भी काफ़ी धीरे से बोली "यही कोई एक या दो घंटे और फिर दुकान खुल जाती है" लेकिन सावित्री ने दूसरे सवाल का जबाव देना पसंद नही की और इस वजह से चुप रही लेकिन धन्नो ने फिर पुचछा "जब वे आराम करते हैं तो तुम क्या करती हो?" इस सवाल को सुनकर सावित्री एक दम घबरा सी गयी और कुच्छ पल बाद जबाव मे बोली "मैं भी इसी चटाई पर यहीं लेट जाती हूँ" इतना कह कर सावित्री धन्नो के सवालों से पीचछा छुड़ाई ही थी की धन्नो ने दूसरा सवाल फिर रखते बोली "लेकिन पंडित जी के जागने से पहले ही जाग जाती हो या वो आ कर तुम्हे जगाते हैं.? " सावित्री इस सवाल के पुच्छने के पीछे धन्नो चाची की सोच पर गौर करती हुई कुच्छ परेशान सी हुई और बोली "अरे नही चाची वी क्या मुझे जगाएँगे...मैं सोती ही कहा हूँ दिन मे बस ऐसे ही चटाई पर लेट कर दोफर गुज़ार लेती हूँ.." इतना सुन कर धन्नो कुच्छ सलाह देती हुई बोली "हाँ बेटी बाहरी मर्दों से बहुत ही दूरी बना कर रहना चाहिए..इसी मे इज़्ज़त है..बस अपने काम से काम ..आज का जमाना बहुत खराब हो गया है.............. और वैसे ही मर्दों की नियत तो औरतों के उपर हमेशा गंदी ही रहती है बस मौका मिला नही की ..अपने मतलब के चक्केर मे पड़ जातें हैं ...अब रोज़ दोपहर मे तुम यहाँ अकेली ही रहती हो..लेकिन पंडित जी तो बड़े ही भले आदमी हैं इस लिए कोई चिंता की बात नही है ..और इनकी जगह कोई दूसरा आदमी होता तो ज़रूर दोपहर मे तुम्हे अकेले पा कर परेशान करता.." सावित्री चटाई के एक किनारे बैठ कर अपनी नज़रें झुकाए धन्नो की बातें चुप चाप सुन रही थी.
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