XXX CHUDAI नौकरी के रंग माँ बेटी के संग
09-20-2017, 11:41 AM,
#40
RE: XXX CHUDAI नौकरी के रंग माँ बेटी के संग
मैं वैसे ही लगातार उसकी चूचियों को चूसता रहा और अपने लंड को चूत की गहराइयों में दबाये रखा। मैंने अपने एक हाथ को वंदना के हाथों से छुड़वा कर उसकी दूसरी चूची पे रख दिया और एक को चूसने तथा दूसरे को मसलने लगा।
वंदना का जो हाथ मैंने छोड़ा था उस हाथ से उसने मेरे सर के बालों को सहलाना शुरू किया और सहसा ही नीचे से उसकी कमर भी हौले-हौले हिलने लगी।
यह प्रमाण था इस बात का कि अब वो झटके खाने को तैयार थी। मैंने इस इशारे को समझते हुए अपनी कमर को हौले-हौले हिलाना शुरू किया और लंड को अन्दर रख कर ही रगड़ना चालू किया।
उसकी चूत ने थोड़ा सा रस छोड़ा और अन्दर चिकनाई बढ़ गई, अब धीरे-धीरे धक्के लगाने का वक़्त आ गया था, मैंने अपनी कमर को थोड़ा ऊपर उठाया और अपने लंड को आधा बाहर खींच कर एक ज़ोरदार सा धक्का दिया।
‘आआह्ह्ह्ह… उईईईईइ माँ…’ एक और सिसकारी निकली उसके मुँह से!
मैंने यह धक्का इसलिए दिया था ताकि उसकी चूत की झिल्ली फटने का बाकी बचा दर्द भी वो झेल सके और अब मेरी बारी थी कि मैं इस दर्द को सँभालते हुए उसे ज़न्नत की सैर करवाऊँ।
मैंने उस धक्के के साथ ही अपने लंड के आगे-पीछे होने की गति बढ़ाई और लगभग अपने आधे लंड को बाहर निकलने और फिर उतना ही अन्दर डाल कर चुदाई चालू की।
मंद-मंद गति से चोदते हुए मैंने वंदना को अपने बाहुपाश में भर लिया और उसके होठों को चूसते हुए उसे चुदाई का परम सुख देने लगा।
जगह पर्याप्त नहीं थी… वहाँ कुछ ज्यादा करने की गुंजाइश नहीं थी। मैंने अपनी गति बढ़ाई और अब अपने बदन को थोड़ा सा ऊपर उठा आकर तेज़ी से झटके लगाने शुरू किया।
‘आःहह्ह… स्स्स्समीर.. मुझे ऐसे ही प्यार करो… .बस ऐसे ही… उफ्फ्फ… हम्म्म्म… आह!’ उन्माद से भरे वंदना के बोल मेरा हौसला बढ़ा रहे थे…
‘ओओह… वंदु… मेरी प्यारी वंदु… ह्म्म्म…’ बस ऐसे ही प्यार और मनुहार के छोटे छोटे शब्दों और हम दोनों की सिसकारियों ने एक बड़ा ही मदहोश समां बना दिया था उस वक़्त…
मैंने अपनी स्थिति और वंदना की स्थिति को बदलने के बारे में सोचा… मुश्किल लग रहा था… लेकिन जहाँ चाह वहाँ राह!
मैंने अपना लंड उसकी चूत से बाहर खींचा…
‘फक्क…’ एक मस्त धीमे सी आवाज़ के साथ मेरे नवाब साब बाहर आये… 
बाहर आकर मेरा लंड ऐसे ठनकने लगा मानो मुझपे अपना गुस्सा निकाल रहा हो… और ये तो सही भी था, मैंने उसे एक रसदार गरम और तंग भट्टी से निकाल दिया था जहाँ वो मज़े से मौज कर रहा था।
खैर मैंने अब धीरे से अपने हाथों को संतुलित करते हुए वंदना की टांगों में नीचे से फंसाया और ऊपर उठा दिया। वंदना का बदन इतना लचीला था और वो छरहरी भी थी इसलिए उसके पैरों को उठाते ही उसका शरीर कमर से मुड़ कर एकाकार हो गए। मैंने आहिस्ते से उसके पैरों को अपने कंधे पे रखा और एक बार फिर से अपने नवाब को उसकी मुनिया के मुँह पर रख कर ज़ोरदार धक्का दिया।
‘आआआईईईईईई… मर गई… समीर… थोड़ा धीरे…’ यूँ अचानक लंड जाने से वंदना एक पल को कराह उठी।
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