RE: Village Sex Kahani गाँव मे मस्ती
मुझे कुछ समझ मे नहीं आ रहा था पर अब इतनी ज़ोर से पिशाब लगी थी कि मैं रघू के मुँह मे मूतने लगा रघू के चेहरे पर एक त्ऱुप्ति का भाव उमड आया मेरी कमर मे बाँहें डाल कर उसने कस कर मुझे चिपटा लिया और अपना चेहरा मेरी रानों मे दबा कर वह मेरा मूत पीने लगा
मूतना खतम होते होते मैं उत्तेजित हो गया रघू जिस प्यार से स्वाद लेकर मेरा मूत पी रहा था, मुझे बहुत अच्छा लगा उधर यह कल्पना करके कि मा कैसे मंजू बाई को अपना मूत पिला रही होगी, मुझे और मज़ा आ रहा था आख़िर मे मूतना खतम होने पर मैं रघू का मुँह चोदने लगा पर उसने मुझे झडने नहीं दिया मुँह से लंड निकालकर खड़ा हो गया और मुझे गोद मे लेकर प्यार करने लगा
"मज़ा आ गया छोटे मालिक, प्रसाद मिल गया लंड अब खड़ा रखो साली मेरी अम्मा की कस कर गान्ड मारो रात भर आज रात भर इन दोनों औरतों की गान्ड मार मार कर फुकला करनी है"
मैने पूछा "बताओ ना रघू, ऐसा क्यों करते हो?"
"अरे मज़ा आता है असल मे बहुत पहले से मेरी मा तेरी मा का मूत पीती है उसकी दीवानी है कहती है मालकिन का प्रसाद मिलता है आख़िर तुम लोग हमारे मालिक हो तुम्हारा नमक खाते हैं पर इस तरह से नमक पीने मे और मज़ा आता है"
"तो क्या रोज पीती है मंजू बाई मा का मूत?" मैने आश्चर्य चकित होकर पूछा
"हाँ करीब करीब रोज, ख़ासकर जब मस्त चुदाई होती है तेरी मा भी बड़े मज़े से मूतती है रुक रुक कर बहुत देर प्यार से अपनी नौकरानी को पिलाती है और एक दो बार मैने भी पिया है असल मे मेरी मा मुझे पीने नहीं दे रही थी, कहती थी सिर्फ़ उसका हक है मैने ज़िद करके पी लिया मज़ा आ गया जब फर्श पर मुझे लिटाकर मेरे सिर के उपर उकड़ू बैठकर तेरी मा मेरे मुँह मे मूतती है तो लगता है जैसे देवी माँ का प्रसाद पा रहा हूँ पर यह वरदान बस कभी कभी मिलता है हाँ अपनी मा का मूत मैं रोज पीता हूँ पर मेरे मन मे हमेशा तेरा मूत पीने की इच्छा थी तू मुझे इतना प्यारा लगता है मैं तो बचपन मे ही शुरू हो जाता पर मा बोली, चुदाई शुरू हो जाने दे, फिर पिया कर अब सही है मैं अपने मालिक, तेरा मूत पीऊँगा और मेरी मा अपनी मालकिन का मूत पिएगी"
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