RE: Village Sex Kahani गाँव मे मस्ती
माँ के होंठों पर अपना मुँह जमाकर मंजू अम्मा का मुँह चूसने लगी और रघू अब अम्मा को ऐसी बेरहमी से चोदने लगा जैसे घोडा घोडी को चोदता है मुझसे अब ना रहा गया मैं वहाँ से भागा और कमरे मे आकर सटासट मुठ्ठ मारी झडा तो इतनी ज़ोर से कि वीर्य सीधा छह फुट दूर सामने की दीवार पर लगा आज का वह कामुक नज़ारा मेरे लिए स्वर्ग का नज़ारा था
मैं फिर जाकर आगे की चुदाई देखना चाहता था पर इतने मीठे स्खलन के बाद कब मेरी आँख लग गयी मुझे पता ही नहीं चला
दूसरे दिन माँ बहुत तृप्त दिख रही थी चलते चलते थोड़े पैर अलग फैला कर चल रही थी मैं स्कूल के लिए तैयार हुआ और जाने लगा तो माँ ने मुझे बुलाया "अनिल बेटे, आज से रघू तुझे साइकिल पर पहुँचा दिया करेगा"
मैं थोड़ा डरा हुआ था काफ़ी सोचने के बाद मुझे कुछ अंदाज़ा होने चला था कि रघू की मुझ मे इतनी दिलचस्पी क्यों थी और उन माँ बेटे ने मिल कर क्यों माँ से अपनी बात कल रात मनवा ली थी रघू की कल की बातें याद करके मैं आनाकानी करने लगा मन ही मन लग रहा था कि रघू ना जाने मेरे साथ क्या क्या करे वैसे माँ को चोदता हुआ उसका लंड मुझे बड़ा प्यारा लगा था एक बार ऐसा भी लगा था कि उसे चूम लूँ
माँ ने मेरी एक ना सुनी वह कामसुख मे पागल थी और मंजू को वचन दे चुकी थी नाराज़ हो कर उसने सीधे मुझे एक तमाचा लगा दिया और डाँट कर बोली "अब मार खाएगा बुरी तरह! चुपचाप रघू के साथ जा और वह जो कहे वैसा कर"
मैं रुआंसा रघू के साथ हो लिया रघू मेरे गाल सहला कर प्यार से बोला "माँ के तमाचे का बुरा नहीं मानते मुन्ना, तू घबराता क्यों है? मैं दुश्मन थोड़े ही हूँ तुम्हारा! बहुत प्यार से स्कूल ले जाऊन्गा अम्मा जानती हैं कि मैं तुझ से कितना प्यार करता हूँ मेरी अम्मा भी बहुत चाहती है तुझे"
मैं कहने वाला था कि मालूम है कैसे तुम दोनों मुझे चाहते हो पर चुप रहा डर के साथ मैं उत्सुक भी था कि अब क्या होगा! आख़िर मैं अपनी रंडी माँ का बेटा जो था उसी का कामुक स्वाभाव मुझे विरासत मे मिला था
मैंने कहा "रघू दादा, अभी तो एक घंटा है स्कूल शुरू होने मे! इतनी जल्दी जा कर मैं क्या करूँगा?"
वह हँस दिया "चलो तो मुन्ना, मज़ा करेंगे, थोड़ी जंगल की सैर कराते हैं तुझे"
रघू ने मेरा बस्ता कैरियर पर लगाया और मुझे साइकिल पर आगे डन्डे पर बिठाकर चल दिया आज वह बहुत मूड मे था और गुनगुना रहा था बार बार झुककर मेरे बालों को चूम लेता था स्कूल जाते समय एक घना जंगल पड़ता था वहाँ वह एक सुनसान जगह पर रुक गया और साइकिल से उतरकर धकेलता हुआ जंगल के अंदर घनी झाड़ी के पीछे ले गया साइकिल खडी करके उसने मुझे उतरने को कहा फिर उसने चादर बिछाई और मुझे उसपर बिठाकर खुद मेरे पास बैठ गया "आओ मुन्ना थोड़े यहाँ छाँव मे बैठकर गपशप करते हैं
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