RE: Village Sex Kahani गाँव मे मस्ती
जब से मैं आया था तब से मंजू और रघू मेरी ओर ख़ास ध्यान देने लगे थे मंजू बार बार मुझे पकडकर सीने से लगा लेती और चूम लेती "मुन्ना, बड़ा प्यारा हो गया है तू, बड़ा होकर अब और खूबसूरत लगने लगा है बिलकुल छोकरियों जैसा सुंदर है, गोरा चिकना"
माँ यह सुनकर अक्सर कहती "अरे अभी कच्ची उमर का बच्चा है, बड़ा कहाँ हुआ है" तो मंजू कहती "हमारे काम के लिए काफ़ी बड़ा है मालकिन" और आँखें नचाकर हँसने लगती माँ फिर उसे डाँट कर चुप कर देती मंजू की बातों मे छुपा अर्थ बाद मे मुझे समझ मे आया
रघू भी मेरी ओर देखता और अलग तरीके से हँसता कहता "मुन्ना, नहला दूँ? बचपन मे मैं ही नहलाता था तुझे"
मैं नाराज़ होकर उसे डाँट देता वैसे बात सही थी मुझे कुछ कुछ याद था कि बचपन मे रघू मुझे नंगा करके नहलाता मुझे तब वह कई बार चूम भी लेता था मेरे शिश्न और नितंबों को वह खूब साबुन लगाकर रगडता था और मुझे वह बड़ा अच्छा लगता था एक दो बार खेल खेल मे रघू मेरा शिश्न या नितंब भी चूम लेता और फिर कहता कि मैं माँ से ना कहूँ मुझे अटपटा लगता पर मज़ा भी आता वह मुझे इतना प्यार करता था इसलिए मैं चुप रहता
वैसे मंजू की यह बात सच थी कि अब मैं बड़ा हो गया था माँ को भले ना मालूम हो पर मंजू ने शायद मेरे तने शिश्न का उभार पैंट मे से देख लिया होगा इस कमसिन अम्र मे भी मेरा लंड खड़ा होने लगा था और पिछले ही साल से मेरा हस्तमैथुन भी शुरू हो गया था शहर मे मैं गंदी किताबें चोरी से पढता और उनमे की नंगी औरतों की तस्वीरें देखकर मुठ्ठ मारता बहुत मज़ा आता था औरतों के प्रति मेरी रूचि बहुत बढ़ गयी थी ख़ास कर बड़ी खाए पिए बदन की औरतें मुझे बहुत अच्छी लगती थीं
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