RE: XXX Stories ऐसा भी होता है
"आआहह" उसके मुँह से आवाज़ आई और मेरे गले में बाहें डाले वो मेरे गले को चूमने लगी. मेरे लिए ये जैसे ग्रीन सिग्नल जैसा था. अब सारे पर्दे उठ चुके थे, हर मर्यादा ख़तम हो चुकी थी. मैने उसकी गांद को अच्छे से पकड़ा, अपने घुटने थोड़ा नीचे किए और अपने लंड को सीधा कपड़ो के उपेर से उसकी चूत
पर दबाने लगा.
इस सारे दौरान उसने एक बार भी मुझे रोकने या कुच्छ कहने की कोशिश नही की. वो चुप चाप मुझसे लिपटी खड़ी रही और मैने अपना लंड उसकी चूत पर दबाता रहा, घिसता रहा.
"साहिल मैं गिर जाऊंगी" उसने कहा तो मैने ध्यान दिया के जोश जोश में मैं उसकी गांद पकड़ कर उसको हल्का सा हवा में उठा दे रहा था.
"नही गिरगी. तुम मेरी बाहों में हो" कहते हुए मैने उसे पेड़ से लगाया और फिर लंड को उसकी चूत पर घिसने लगा.
"साहिल, कुच्छ चुभ रहा है" वो बोली पर मैने ध्यान नही दिया
जब उसने फिर से यही बात कही तो मैं रुका. मुझे लगा वो कह रही है के पीठ पर पेड़ से लगे हुए कुच्छ चुभ रहा है.
"क्या है? मैं पेड़ की तरफ देखता हुआ बोला
"यहाँ नही. नीचे कुच्छ चुभ रहा है" उसका इशारा मेरे लंड की तरफ था
मैने कोई जवाब नही दिया और इस बार उसको घुमा दिया. अब वो पेड़ की तरफ मुँह किए खड़ी थी और मैं उसकी जाँघो को पकड़े अपना लंड उसकी गांद पर रगड़ रहा था.
मेरे हाथ उसकी चूत के काफ़ी करीब थे और अब तक सिर्फ़ यही हिस्सा रह गया था जो मैने च्छुआ नही था.
मैने अपना हाथ धीरे से उपेर करते हुए उसकी टाँगो के बीच सलवार के उपेर से उसकी चूत पकड़ ली.
वो ऐसे उच्छली के हम दोनो ही गिरते गिरते बचे.
"नही प्लीज़. यहाँ हाथ मत लगाओ" कहते हुए वो फिर से नीचे बैठ गयी.
मैने कुच्छ कहना या सुनना ज़रूरी नही समझा. उसके साथ नीचे बैठे हुए मैने उसके गले में पड़ा दुपट्टा हटा कर साइड में रख दिया.
"क्या कर रहे हो?" वो बोली
मैं खिसक कर उसके करीब हुआ और एक हाथ उसके कमीज़ के गले में डालते हुए उसकी एक चूची पकड़ कर उपेर से ही बाहर निकाल ली.
"साहिल" उसने फ़ौरन अपनी चूची अंदर घुसा ली.
"प्लीज़" मैने कहा "देख तो ली ही है मैने. एक बार अच्छे से देखने दो"
मैने फिर उसकी चूची पकड़ कर कमीज़ के गले से बाहर निकाल ली.
"साहिल दोनो बाहर नही आएँगे. कमीज़ टाइट है." जब मैने दूसरी चूची बाहर निकालने की कोशिश की तो वो धीरे से बोली.
उसकी बात अनसुनी करते हुए मैने उसकी दोनो चूचियाँ जितनी हो सकी कमीज़ से बाहर निकाल ली. वो भी शायद जानती थी के अब मैने क्या करूँगा इसलिए अपनी कोहनियाँ टिकाते हुए घास पर हल्की से लेट सी गयी.
और तब मुझे वो निशान नज़र आया.
उसके निपल के चारो तरफ बने हुए ब्राउन कलर के एरोला से थोड़ा सा परे काले रंग का निशान. एक गोल निशान जो पूरा काला था पर एक तिहाई लाल.
"ये क्या है?" मैने पुछा
"बचपन से है" वो बोली
मुझे समझ नही आया के क्या करूँ या क्या कहूँ. मेरे कानो में अपने पापा की आवाज़ गूँज उठी."हमने जहाँ से तुम्हें गोद लिया था उन्ही लोगों ने हमें बताया था के यू वर ट्विन्स पर तुम दोनो में से एक को किसी ने गोद ले लिया था. लड़की थी शायद. दूसरे बचे थे तुम तो तुम्हें हम ले आए थे. ये निशान तुम्हारी छाती पर तबसे ही है और आश्रम वालो ने बताया था के ऐसा निशान तुम्हारे ट्विन की छाती पर भी था."
दोस्तो जिंदगी मे ऐसा भी हो जाता है आपको कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त......
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