RE: Hindi Porn Stories दो आर्मी नर्सों की चुदाई
उसके बाद एक मुश्किल वक्त गुज़ार कर मैं ३० दिसंबर को वापस कराची अपनी यूनिट में आया। अगले दिन ३१ दिसंबर थी और हम चारों मिल कर सिनेमा गये और वहाँ पर फ़िल्म देखी। उसके बाद चारों वापस अहमद के फ़्लैट पर आये और खूब शराब पी और ग्रुप सैक्स किया। उस दिन की अहम बात ये थी कि पहली बार हमने शाज़िया और फौज़िया की चूत और गाँड में एक साथ लंड डाला। पहले शाज़िया की गाँड में अहमद ने लंड डाला और मैंने शाज़िया की चूत में लंड डाला। उस दौरान फौज़िया, शाज़िया के बूब्स को चूसती रही। उसके बाद अहमद ने फौज़िया की चूत में लंड डाला और मैं फौज़िया कि गाँड में लंड डालने की तैयारी कर रहा था। मैं तो शाज़िया की पहले भी गाँड मार चुका था इसलिये उसको इतनी मुश्किल नहीं हुई थी मगर बेचारी फौज़िया की गाँड में जब मैं लंड डाल रहा था और अहमद ने चूत में ढकेला तो उसको काफी तकलीफ़ हुई। मगर इस दौरान शाज़िया ने उसकी काफी मदद की और उसकी गाँड के सुराख को चाट कर उस पर अपना थूक लगाया और उसको हौंसला दिया। थोड़ी मुश्किल से लेकिन आखिरकर फौज़िया की गाँड और चूत में हमने अपने लंड एक साथ डाले। शराब के नशे ने भी फौज़िया को दर्द झेलने में मदद की। बाद में उसको भी काफी मज़ा आया और हमने नये साल को एक नये स्टाईल से वेलकम किया। उसके बाद हमने उन दोनों को तोहफे दिये। अहमद ने उन्हें स्कॉच व्हिस्की की चार बोतलें भी तोहफे में दीं तो दोनों बहुत खुश हुईं।
नया साल सुरू हुआ और वो साल पूरा मैंने बहुत इंजॉय किया और हम चारों ने बहुत ही ज़्यादा चुदाई कि। मैंने शाज़िया और फौज़िया को नये-नये तरीकों से चोद और हमने नये-नये स्टाईल से ग्रुप सैक्स किया। मैंने उनको कार में चोदा और काफी जगहों पर कार में सैक्स किया। मेरे पास आर्मी का कार्ड था इसलिये कभी पुलीस का खौफ़ न था। एक दिन मैं कार से बाहर था और अहमद अंदर कार में फौज़िया को चोद रहा था कि एक पुलीस मोबाइल करीब से गुज़री। मेरे साथ शाज़िया थी जोकि बहुत डरती थी मगर मैंने उसको कहा कि हौंसला रखो। जब पुलीस मोबाइल करीब आयी तो दो पुलीस वाले हमारे करीब आये और पूछने लगे हमारे बारे में। मैंने रोब से अपना आर्मी कार्ड निकाल कर दिखाया और कहा, "कैप्टेन नोमान! पाकिस्तान आर्मी स्पेशल ब्राँच।" मेरा रोब देख कर वो डर गये और ‘सर ,सर’ करने लगे। मैंने इंगलिश में उनसे पूछा, "कैन आई सी योर ड्यूटी पर्मिट? शी इज़ माय वाईफ एंड यू आर नॉट अलाऊड टू आस्क मी।" वो चूँकि सिर्फ़ पैसे लेने के चक्कर में गश्त कर रहे थे, इस पर वो ज़रा डर गये और फौरन वहाँ से गुम हो गये।
अहमद की बात सच थी कि उन दोनों को अकेले एक मर्द पुरी तसल्ली नहीं दे सकता था। जब भी मैं अकेला उन दोनों के साथ चुदाई करता तो वो मिलकर मेरा लंड और मेरी पुरी ताकत निचोड़ लेती थीं। शराब के नशे में तो दोनों शेरनियाँ बन जाती थीं और जंगलीपन से चुदवाती थीं पर मज़ा बहुत आता था। हमारी ज़िंदगी के ना-भूलने वाले दिन गुज़रते रहे लेकिन हर बात का एंड होता है। इस दौरान अहमद का यूके से विज़ा आ गया और वो यूके चला गया। हमने उसकी आखिरी शाम बहुत ही रोमांचक और आला तरीके से पार्टी की। उसका सारा खर्च शाज़िया और फौज़िया ने उठाया। उसके बाद हमने ना भूलने वाला ग्रुप सैक्स अहमद के फ़्लैट पर आखिरी बार किया, जिसको याद करके मैं बहुत तड़पता हूँ। उसके बाद हम सारे अहमद को सी-ऑफ करने कराची एयरपोर्ट आये।
मुझे बहुत दुख हो रहा था लेकिन क्या कर सकता था खैर शाज़िया और फौज़िया भी दोनों काफी उदास थीं क्योंकि हम चारों में चुदाई के साथ-साथ बहुत प्यार हो गया था। खैर हमने कईं तोहफों के साथ अहमद को सी-ऑफ किया। अहमद ने एयरपोर्ट पर बगैर खौफ के शाज़िया और फौज़िया को बहुत किस किया और अलविदा हो गया। एयरपोर्ट से वापस मैं अहमद की कार चला करके ला रहा था और काफी उदास था। फिर मैंने उन दोनों को होस्टल छोड़ा और फिर खुद अपनी यूनिट चला गया। मैं अहमद को बहुत मिस कर रहा था। उसके फ़्लैट की चाबियाँ मेरे पास थी और उसकी कार भी मेरे पास थी लेकिन मैं फिर भी उसको और वो गुज़रे हुए समय को मिस कर रहा था।
उसके बाद तकरीबन पंद्रह दिन मैंने कार इस्तमाल की और शाज़िया और फौज़िया को इकट्ठे लेकर जाता था और दोनों की एक साथ चुदाई करता था। अहमद भी हमारी कंपनी को मिस कर रहा था और मुसलसल मोबाइल पर फोन करता था।
पंद्रह दिनों बाद अहमद के पेरेंट्स कराची अपने फ़्लैट में शिफ़्ट हो गये और मैंने चाबियाँ और कार उनको वापिस कर दीं। अहमद के पेरेंट्स मुझे काफी अच्छी तरह जानते थे और मेरी काफी इज्जत करते थे। मैं भी उनकी काफी इज्जत करता हूँ। अहमद के चले जाने के बाद मैं उनका काफी ख्याल रखता था और वो भी मुझे अपने बेटे की तरह ट्रीट करते थे।
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