Incest Stories in hindi रिश्तों मे कहानियाँ
09-13-2017, 10:59 AM,
#41
RE: Incest Stories in hindi रिश्तों मे कहानियाँ
मैं, मेरे जेठ और जेठानी--1
मैं शहनाज़ हूँ। एक २६ साल की शादीशुदा औरत। गोरा रंग, खूबसूरत नाक-नक्श और जिस्म ऐसा कि कोई एक बार देख ले तो पाने के लिये तड़प उठे। मेरा फिगर ३६-२८-३८ है। मेरा निकाह जावेद से दो साल पहले हुआ था। जावेद एक बिज़नेसमैन है और निहायत ही हेंडसम और काफी अच्छी फितरत वाला आदमी है। वो मुझे बहुत मोहब्बत करता है। 



कुछ दिनों पहले मेरे जेठ और जेठानी हमारे पास आये थे। जावेद ज्यादा से ज्यादा समय घर में ही रहने की कोशिश करते थे। बहुत मज़ा आ रहा था। खूब हंसी मजाक चलता। देर रात तक नाच-गाने और पीने-पिलाने का प्रोग्राम चलता रहता था। फिरोज़ भाईजान और नसरीन भाभी काफी खुशमिजाज़ थे। उनके निकाह को पांच साल हो गये थे मगर अभी तक कोई औलाद नहीं हुई थी। ये एक छोटी सी कमी जरूर थी उनकी ज़िंदगी में मगर फिर भी वे खुश ही दीखते थे। एक दिन दोपहर को खाने के साथ हम सब वाइन पी रहे थे। मैंने कुछ ज्यादा ही पी ली। मुझे बेडरूम में जा कर लेटना पड़ा। बाकी तीनों ड्राइंग रूम में गपशप कर रहे थे। शाम तक यही सब चलना था इसलिये मैंने अपने कमरे में आकर फटाफट अपने सारे कपड़े उतारे और एक हल्का सा फ्रंट ओपन गाऊन डाल कर बिस्तर पर गिर पड़ी। पता नहीं नशे में चूर मैं कब तक सोती रही। अचानक कमरे में रोशनी होने से नींद खुली। मैंने अलसाते हुए आँखें खोल कर देखा तो बिस्तर पर मेरे पास जेठ जी बैठे मेरे खुले बालों पर मोहब्बत से हाथ फ़िरा रहे थे। मैं हड़बड़ा कर उठने लगी तो उन्होंने उठने नहीं दिया।



“लेटी रहो, शहनाज़” उन्होंने माथे पर अपनी हथेली रखते हुए कहा, “अब कैसा लग रहा है?”



“अब काफी अच्छा लग रहा है।” तभी मुझे एहसास हुआ कि मेरा गाऊन सामने से कमर तक खुला हुआ है और मेरी गोरी-चिकनी जांघें जेठ जी के सामने नुमाया है। कमर पर लगे बेल्ट की वजह से मैं पूरी नंगी होने से बच गयी थी। मैं शरम से एक दम पानी-पानी हो गयी। मैंने झट अपने गाऊन को सही किया और उठने लगी। जेठजी ने अपनी बाँहों का सहारा दिया। मैं उनकी बाँहों का सहारा ले कर उठ कर बैठी लेकिन सिर जोर का चकराया और मैंने सिर को अपने दोनों हाथों से थाम लिया। जेठ जी ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया। मैंने अपने चेहरे को उनके सीने पर रख कर आँखें बंद कर लीं। कुछ देर तक मैं यूँ ही उनके सीने में अपने चेहरे को छिपाये उनके जिस्म से निकलने वाली खुश्बू अपने जिस्म में समाती रही। कुछ देर बाद उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में संभाल कर मुझे बिस्तर के सिरहाने से टिका कर बिठाया। मेरा गाऊन वापस अस्त-व्यस्त हो रहा था। जाँघों तक टांगें नंगी हो गयी थी। 



मुझे याद आया कि मेरी जेठानी नसरीन और जावेद नहीं दिख रहे थे। मैंने सोचा कि दोनों शायद हमेशा कि तरह किसी चुहलबाजी में लगे होंगे या वो भी मेरी तरह नशे में चूर कहीं सो रहे होंगे। फिरोज़ भाईजान ने मुझे बिठा कर सिरहाने के पास से ट्रे उठा कर मुझे एक कप कॉफी दी।



“ये... ये आपने बनायी है?” मैं चौंक गयी क्योंकि मैंने कभी जेठ जी को किचन में घुसते नहीं देखा था।



“हाँ! अच्छी नहीं बनी है?” फिरोज़ भाई जान ने मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा।



“नहीं नहीं! बहुत अच्छी बनी है” मैंने जल्दी से एक घूँट भर कर कहा, “लेकिन भाभीजान और वो कहाँ हैं?”



"वो दोनों कोई फ़िल्म देखने गये हैं... छः से नौ.... नसरीन जिद कर रही थी तो जावेद उसे ले गया है।”



“लेकिन आप? आप नहीं गये?” मैंने हैरानी से पूछा।



“तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी। अगर मैं भी चला जाता तो तुम्हारी देखभाल कौन करता?” उन्होंने कहा। 



मुझे बाथरूम जाना था। मैं उनका हाथ थाम कर बिस्तर से उतरी। जैसे ही उनका सहारा छोड़ कर बाथरूम तक जाने के लिये दो कदम आगे बढ़ी तो अचानक सर बड़ी जोर से घूमा और मैं लड़खड़ा कर गिरने लगी। इससे पहले कि मैं जमीन पर गिर पड़ती, फिरोज़ भाईजान लपक कर आये और मुझे अपनी बाँहों में थाम लिया। मुझे अपने जिस्म का अब कोई ध्यान नहीं रहा। उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में फूल की तरह उठाया और बाथरूम तक ले गये। मैंने गिरने से बचने के लिये अपनी बाँहों का हार उनकी गर्दन पर पहना दिया। उन्होंने मुझे बाथरूम के भीतर ले जाकर उतारा।



“मैं बाहर ही खड़ा हूँ। तुम्हे बाहर आना हो तो मुझे बुला लेना। संभल कर उठना-बैठना,” फिरोज़ भाईजान मुझे हिदायतें देते हुए बाथरूम के बाहर निकल गये और बाथरूम के दरवाजे को बंद कर दिया। मैंने पेशाब कर के लड़खड़ाते हुए अपने कपड़ों को सही किया जिससे वो फिर खुल कर मेरे जिस्म को बेपर्दा ना कर दें। मैं अब खुद को कोस रही थी कि किसलिये मैंने अपने अंदरूनी कपड़े उतारे। मैं जैसे ही बाहर निकली तो वो बाहर दरवाजे पर खड़े मिल गये। वो मुझे देख कर लपकते हुए आगे बढ़े और मुझे अपनी बाँहों में भर कर वापस बिस्तर पर ले आये।



मुझे सिरहाने पर टिका कर उन्होंने मेरे कपड़ों को अपने हाथों से सही कर दिया। मेरा चेहरा तो शरम से लाल हो रहा था। उन्होंने साईड टेबल से एक एस्प्रीन निकाल कर मुझे दी। फिर वापस मेरे कप में कुछ कॉफी भर कर मुझे दी और बोले, “लो इससे तुम्हारा हेंगओवर ठीक हो जायेगा।” मैंने कॉफी के साथ दवाई ले ली।



“भाईजान, एक बात अब भी मुझे खटक रही है। वो दोनों आप को साथ क्यों नहीं ले गये…। आप कुछ छिपा रहे हैं... बताइये ना…।”



“कुछ नहीं शहनाज़, मैं तुम्हारे कारण रुक गया।”



“नहीं! कुछ और बात भी है जो आप मेरे से छुपा रहे हैं,” मैंने कहा।



मेरे बहुत जिद करने पर वो धीरे धीरे खुलने लगे, “तुम्हे जावेद ने कुछ नहीं बताया?”



“क्या?” मैंने पूछा।



“शायद तुम्हे बुरा लगे। मैं तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहता।”



“मुझे कुछ नहीं होगा! आप कहिये तो.... क्या आप कहना चाहते हैं कि जावेद और नसरीन भाभीजान के बीच ...,” मैंने जानबूझ कर अपने वाक्य को अधूरा छोड़ दिया।



वो भोंचक्के से कुछ देर तक मेरी आँखों में झाँकते रहे, “तुम कुछ जानती हो?”



“मुझे थोड़ा शक तो था पर यकीन नहीं।”



“तुम..... तुमने कुछ कहा नहीं? तुम ने विरोध नहीं किया?” फिरोज़ ने पूछा। 



“विरोध तो आप भी कर सकते थे। आप तो उनसे बड़े हैं फिर भी आप ने उन को नही रोका,” मैंने उलटा उनसे ही सवाल किया।



“मैं दोनों को बेहद चाहता हूँ और ...”



“और क्या?”



“और..... ये हमारे लिये जरूरी था,” कहते हुए उन्होंने अपना चेहरा नीचे झुका लिया। 



मैं उनका मतलब समझ गई थी। मैं उस प्यारे इंसान की परेशानी देख अपने को रोक नहीं पायी। मैंने उनके चेहरे को अपनी हाथों में ले कर उठाया। मैंने देखा कि उनकी आँखों के कोनों पर दो आँसू चमक रहे हैं। मैं ये देख कर तड़प उठी। मैंने अपनी अँगुलियों से उनको पोंछ कर उनके चेहरे को अपने सीने पर खींच लिया। वो किसी बच्चे की तरह मेरी छातियों से अपना चेहरा सटाये हुए थे।



“डॉक्टर ने कोई और रास्ता नहीं बताया?” मैंने उनके बालों में अपनी अँगुलियाँ फ़िराते हुए पूछा।



“और कोई रास्ता नहीं था। और नसरीन को किसी अनजान आदमी से बच्चा हासिल करने से ज्यादा मुनासिब ये लगा, ... और मुझे भी यही ठीक लगा!” वो बोले।



मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह ठीक हो रहा है कि गलत। एक तरफ मुझे दुःख था कि मेरा शौहर एक पराई औरत के साथ हमबिस्तर हो रहा था पर मैं यह भी समझ रही थी कि वो यह अपने लुत्फ़ के लिये नहीं कर रहा था। वो यह अपने भाई और भाभी की मदद के लिये कर रहा था। ... लेकिन क्या यह मदद कोई और नहीं कर सकता था? ... शायद मैं खुदगर्जी से सोच रही हूं! नसरीन भाभी और फिरोज़ भाईजान किसी अनजान मर्द की औलाद नहीं चाहते। ... इस में गलत क्या है? भाईजान को पता है कि उनकी बीवी जावेद के साथ ... उन्हें कुछ अफ़सोस भले ही हो पर ऐतराज़ नहीं है। मुझे भी ऐसे ही सोचना चाहिए ... हालांकि यह आसान नहीं है। 



जावेद और नसरीन भाभी रात के दस बजे तक चहकते हुए वापस लौटे। होटल से खाना पैक करवा कर ही लौटे थे। मेरी हालत देख कर जावेद और नसरीन भाभी घबरा गये। बगल में ही एक डॉक्टर रहता था उसे बुला कर मेरी जाँच करवायी। डॉक्टर ने देख कर कहा कि डी-हाइड्रेशन हो गया है और जूस वगैरह पीने को कह कर चले गये।



अगले दिन सुबह मेरी तबियत एकदम सलामत हो गयी। अगले दिन जावेद का जन्मदिन था। शाम को बाहर खाने का प्रोग्राम था। एक बड़े होटल में टेबल पहले से ही बुक कर रखी थी। वहां पहले हम सब ने शैम्पेन पी और फिर खाना खाया। जावेद ने वापस लौट कर घर में ही एक फ़िल्म देखने का प्रोग्राम बनाया था। घर पहुँच कर हम चारों हमारे बेडरूम में इकट्ठे हुए। वहां सब मिल कर शार्डोने पीने लगे। मुझे सबने मना किया कि पिछले दिन मेरी तबियत वाइन पीने से ही खराब हुई थी पर मैं कहाँ मानने वाली थी। मैंने भी ज़िद करके उनके साथ और ड्रिंक्स लीं। फिर जावेद ने म्यूज़िक चलाया और नसरीन भाभी को अपने साथ डांस करने की दावत दी। नसरीन भाभी को जावेद की बाँहों में नाचते देख कर मुझे जाने कैसा लगा। मैंने भाईजान की तरफ देखा। उनका चेहरा भी कुछ मेरे जैसा ही दिख रहा था। उनको तसल्ली देने के लिये मैंने उनको मेरे साथ डांस करने के लिये इशारा किया। कुछ देर तक दोनों भाई एक दूसरे की बीवियों के साथ डाँस करते रहे। मुझे जेठ जी की बाँहों में आ कर अजीब सी फीलिंग हो रही थी। यह पहला मौका था कि मैं अपने शौहर के बजाय किसी और मर्द की बाहों में थी।
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