RE: Hindi Lesbian Stories समलिंगी कहानियाँ
घडी देखी... १२ मे २० कम थे! शफ़ात आने ही वाला था... मुझे प्लान का अगला स्टैप शुरू करना था! मैने अपना लँड बाहर निकाला और साइड मे लेट गया!
"तू भी आराम कर ले थोडा..."
इतना ज्यादा हो चुका था कि हमारे दिलों की रफ़्तार नॉर्मल होने का नाम ही नहीं ले रही थी! ५ मिनिट बाद जब थोडा नॉर्मल हुआ तो मैं उठा और उसके अजगर पर टूट पडा! वो अभी गाँड मरवाने के दर्द और मजे के मिले जुले अनुभव से उबरा भी नहीं था कि उसके लँड की चुसाई शुरू हो गयी थी! इस बार उसकी आवाजों मे सिर्फ़ मजा ही मजा था! लगता था, उसे चुसवाने का एक्सपीरिएंस तो था! लेकिन शायद लौंडिया इतना ढंग से नहीं चूसती!
"क्या भैया जी... आप इसमे भी एक्स्पर्ट हो??? मेरा तो सर घूम रहा है..."
"देखता जा..."
"मेरा लँड इतना तो कभी खडा ही नहीं हुआ..."
"सही से चूसो तो लँड अपनी सही लम्बाई ले लेता है..."
"हाँ... कर दो... चूस डालो... मैं भी तो देखूँ, क्या लिमिट है मेरी... हाँ भैया जी.. खा जाओ... इसे निगल डालो... पूरा का पूरा... चिंता मत करो... जब तक नहीं कहोगे, नहीं झडूँगा... यही तो हुनर है मेरा... जिसकी वजह से कॉन्वेंट की सारी लडकियाँ मेरी दिवानी हैं..."
"देखते हैं..."
वाकई मे... मैं करीब १० मिनिट तक लगातर उसके १२ इँची लँड के सुपाडे को अपने हलक की दिवारों पर रगडता रहा और उसके आधे से ज्यादा लँड को निगलता रहा लेकिन उस के चेहरे पर क्लाइमेक्स के कोई हाव भाव नहीं थे! हाँ, वो मजे जरूर लेता दिख रहा था!
और सच मे... आज उसका लँड, कल के पहाडी वाले सीन से भी बडा दिख रहा था! या तो सच में ये चुसाई का असर था या कल और आज मे देखने मे फ़र्क था!
शफ़ात के आने का टाइम हो रहा था! मैने पिछले १० मिनिट मे पहली बार उसके लँड को मुह से निकाला!
"मुझे भी तो दिखा... क्या पसन्द आता है, कॉन्वेंट की लडकियों को तेरे मे..." मैने कहा!
"सच मे??? आपको ये भी शौक है?"
"हाँ..."
"मतलब, आपको... मेरा ये लँड... अपनी गाँड मे..."
"हाँ..."
"ले लोगे???"
"हाँ..."
"पूरा???"
"हाँ..."
"अच्छा, अगर दुखे तो बोल देना..."
"ठीक है... वैसे नहीं दुखेगा..." अब मैं अपने असली रूप मे वापिस आ गया था! जिस रूप मे मैं ऐसे मर्दों, ऐसे जिस्मों और ऐसे लौडों पर सब कुछ कुर्बान कर दूँ और इन्हे पाने के लिये कुछ भी कर जाऊँ! लेकिन अभी भी मैने ये सब उस पर जाहिर नहीं होने दिया!
मेरा छेद अभी भी, थोडी देर पहले हुई चटवाई से भीगा हुआ था और पूरी तरह खुला हुआ था! फ़िर भी... उसका लँड सबसे जुदा था! मुश्किल तो होनी ही थी! पहले सुपाडा और फ़िर अगले २ इँच तो आराम से अन्दर चले गये! लेकिन जब उसने प्रैशर बढाना शुरु किया तो मैने अपने होंठ काटने शुरु कर दिये! वो हल्के हल्के हँस रहा था! लेकिन उसने अपने लँड पर दबाव कम नहीं किया! वो अपने हाथो पर अपना वजन लिये था और उसकी टाँगे सीधी थी! फ़िर उसने अपने घुटने मोडे, अपनी टाँगे फ़ैलाई और मेरे ऊपर लेट सा गया! इस बीच वो अपने लँड के करीब ८ इँच मेरी गाँड की गहराईयों मे डुबो चुका था!
तभी कुछ हुआ और बाकी के ४ इँच एक दम से मेरी गाँड मे घुस गये! मेरी तो चीख ही निकल जाती लेकिन...
"अआह... कौन है???" शिवेन्द्र हडबडाते हुए बोला... वो करीब करीब चीखा ही था! मैने भी आँखे खोली! देखा तो मेरे प्लान का तीसरा पात्र, यानी शफ़ात, शिवेन्द्र के पीछे, उसकी पीठ से अपनी छाती चिपकाये, उसके ऊपर पडा था! अब समझ आया कि मुझे धक्का कैसे लगा था और कैसे एक दम से शिवेन्द्र का बाकी का लँड मेरे अन्दर घुस गया था!
शफ़ात टाइम पर आ गया था और जब मेरे कमरे तक पहुँचा तो देखा कि शिवेन्द्र मेरे ऊपर था और मेरी गाँड मे अपना हथियार डालने के लिये तैयार था! जब तक शिवेन्द्र ने मेरी गाँड मे अपने ८ इँच डाले, तक तक शफ़ात मूड में आकर नंगा हो कर, बैड पर चढ चुका था! इधर मैं और शिवेन्द्र इतने मगन थे कि पता भी नहीं चला कि शफ़ात कब आया, कब नंगा हुआ और कब बैड पर आया! और जैसे ही शिवेन्द्र ने पोज़िशन बदल के अपनी टाँगे फ़ैलाई, शफ़ात ने मौका देख कर, मेरे लँड से चौडे हुए शिवेन्द्र के छेद मे अपना खम्बा रोप दिया!
"ओह... ये... ये मेरा दोस्त है... तुमने कल इसे पिकनिक मे देखा होगा! लेकिन, अब और कोई सर्प्राइज़ नहीं आयेगा! मैं चाहता था कि जब तुम मेरी मारो, तो ये तुम्हारी गाँड मे अपना लँड डाले..." मैने शिवेन्द्र को समझाया!
"अब मैं तुम्हारी गाँड मे धक्के दूंगा और धक्के लगेंगे अम्बर भैया को..." शफ़ात ने शिवेन्द्र से कहा!
"ठीक है..." शिवेन्द्र ने भी कोई और चारा ना देख, बात मानते हुए कहा! शिवेन्द्र ने अपने लँड को आधा बाहर निकाला और उसी तरह शफ़ात ने भी अपने लँड के करीब ४ इँच शिवेन्द्र की गाँड से बाहर खींचे!
"रैडी?" शफ़ात ने शिवेन्द्र से पूछा!
"हाँ..."
फ़िर शफ़ात ने शिवेन्द्र की गाँड मे हौले से धक्का दिया और उससे शिवेन्द्र के लँड को धक्का लगा और वो फ़िर से मेरी खुली गाँड मे खो गया! अब शिवेन्द्र की बारी थी! उसने फ़िर से मेरी गाँड से अपना लँड बाहर खींचा और शफ़ात ने अपना! यही सब दोहराते दोहराते, २ ही मिनिट मे हमारी 'रेलगाडी' के दोनो 'इंजन' लय मे आ गये थे! शफ़ात का 'इंजन', शिवेन्द्र के 'इंजन' को धकेलता और लौटते मे शिवेन्द्र जब 'अपना' बाहर खीँचता तो शफ़ात भी...
इस लय और मस्ती के कारण हमारी आवाजें भी लय मे ऊपर नीचे हो रही थी! लग रहा था कि तीनो मिल कर किसी नाव को खे रहे थे, और हमारे हुँकारे एक साथ उठने और गिरने लगे! कब १२ से १ बज गये, पता ही नहीं चला!
इन सब के बीच मजे के साथ साथ, मेरे बदन की एक एक मसल ढीली हो गयी थी... मैं निढाल हो चुका था! उधर शफ़ात के लँड ने भी जवाब देना शुरू कर दिया था! उसकी आवाजें बता रही थी कि वो किसी भी वक़्त झड सकता है...
"अब बस करो..." मैने शिवेन्द्र को कहा!
"बस??? हो गया? मेरा तो अभी ही शुरु हुआ है भैया जी..." शिवेन्द्र ने डिस-अपॉइंट होते हुए कहा! उसके लिये तो सही वाली के.एल.पी.डी. थी! कल भी जाइन की वजह से उसे गुडिया की चूत बीच मे ही छोडनी पडी थी...
"ठीक है... तुम करते रहो... शफ़ात, तुम वहाँ से हटो.. और मेरी छाती पर आ जाओ..." मैने शिवेन्द्र को और टाइम देते हुए, शफ़ात से कहा!
शफ़ात उठा और मेरी छाती पर आ गया और अपने लँड को मेरे मुह मे दे कर चोदने लगा! लेकिन उन दोनो की लय अभी भी नहीं टूटी थी! मेरे दोनो छेदों में लँड एक साथ जाते और एक साथ बाहर निकलते! अगले २ ही मिनिट मे शफ़ात का लँड मेरे हलक मे हिचकोले खाने लगा! और उसने सीधे मेरे हलक मे धडाधड ७-८ धारें मार दी! धार मार कर वो मुझ पर से ऐसे हटा, जैसे जनमों से थका हुआ हो!
अब शिवेन्द्र को पूरी जगह मिल गयी थी और उसके मूवमेंट्स को भी! वो करीब करीब अपना पूरा का पूरा लँड बाहर निकालता और फ़िर अगले ही धक्के मे उसे वापिस मेरी गुफ़ा मे घुसेड देता! मुझे लग रहा था कि मेरी गाँडु गुफ़ा की दीवारो का कोई कोना ऐसा नहीं बचा होगा, जहाँ उसके अजगर की फ़ुँकार से सफ़ाई ना हुई हो!
अगले १० मिनिट मैने जैसे तैसे निकाले! दर्द तो नहीं हो रहा था, लेकिन मैं थक चुका था! मेरे बदन को शिवेन्द्र इतना धकेल चुका था कि रोम रोम थक के चूर हो गया था!
"शिवेन्द्र, अब तुम भी बस करो... लाओ मैं चूस दूँ तुमको..."
"ठीक है..." कहते हुए शिवेन्द्र ने अपने १२ इँच फ़क्क की आवाज़ के साथ मेरी गाँड से निकाले और मेरे मुह की ओर बढा दिये... मैं किसी भी तरह शिवेन्द्र को सैटिसफ़ाई करके झडवाना चाहता था, ताकि मैं उसके चेहरे पर क्लाइमेक्स के हाव भाव देख सकूँ और मुझे ये भी देखना था कि ये अजगर सिर्फ़ साइज़ का ही बडा है या थूकता भी उतना ही ज्यादा है!
मैने अपना असली तरीका इस्तेमाल किया और उसका लँड चूसते हुए, उसके आँडूओं और उसके 'छेद' के बीच की एक नस को ऐसे दबाया कि अगले ही पल उसका लँड मेरे मुह मे झटके खा रहा था! शिवेन्द्र ने अपना लँड मेरे मुह मे और गहरा देना शुरु किया! लेकिन मुझे उसके माल की क्वांटिटी देखनी थी, इसलिये मैने जबर्दस्ती उसका लँड अपने मुह से निकलवाया और अपना मुह जितना हो सकता था, उतना चौडा खोल लिया!
शिवेन्द्र ने नहीं नहीं करते हुए भी १० लम्बी लम्बी धारें मेरे चेहरे पर, मेरे मुह मे, मेरे गले पर, मेरी चेस्ट पर छोद दी! फ़िर उसकी धारें हल्की पड गयी तो मैं ऊपर उठा और उसके सुपाडे को मुह मे भर कर उसकी अगली ५-६ छोटी धारो को पीने लगा!
शिवेन्द्र के मुह से जोर जोर से हुँकारे निकल रहे थे! उसकी आखें जोर से भींची हुई थी और मुह खुला हुआ था! जैसे ही मैने उसका लँड छोडा, शफ़ात ने मेरे फ़ेस पर पडी उसकी पहली धारों को चाटना शुरु कर दिया! फ़िर उसने शिवेन्द्र का कुछ वीर्य मेरे चेस्ट पर से जीभ पर उठाया और जीभ से ही शिवेन्द्र के खुले मुह मे पास कर दिया!
शिवेन्द्र के लिये शायद ये पहली बार था! लेकिन अपना ही वीर्य था तो शायद उसे कोई आपत्ति नहीं हुई!
मैने नजर घुमा कर देखा, घडी में डेढ बज चुके थे! मैं, उस रात दोनों को अपने घर पर नहीं रखना चाहता था! दोनो ही सबके सोने के बाद आये थे इसलिये उन दोनो को एक एक कर के मैने रात मे ही अपने घर से विदा कर दिया! और मैं वैसे ही, उनके प्रेम पसीने मे, उनके वीर्य मे भीगा हुआ फ़िर से सो गया!
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