Kamukta Kahani मेरी सबसे बड़ी खुशी
मेरी सबसे बड़ी खुशी
मेरा नाम अंजलि है, मुझे प्यार से सभी अंजू कह कर बुलाते हैं। अपनी गाण्ड में लौड़े लेना मेरी सबसे बड़ी खुशी है! कुछ लड़कियाँ समझती हैं कि इसमें बहुत ज्यादा दर्द होता है, या यह गलत है, लेकिन मैं जानती हूँ कि दुनिया में इससे बेहतर आनन्द कोई नहीं हो सकता जब कोई लड़का मेरी योनि से खेलते हुए मेरे चूतड़ों में लण्ड घुसा रहा हो ! इससे मैं एक मिनट से भी कम समय में परम आनन्द प्राप्त कर लेती हूँ।
लेकिन मैं एक लड़की हूँ और मैं बार-बार, रात भर यह आनन्द ले सकती हूँ जब तक आप मेरी तंग, गीली चूत और कसी गाण्ड में अन्दर-बाहर करते रहेंगे।
मैं आपको अपने देवर से चुदाई का किस्सा सुनाती हूँ !
मेरे पति अविनाश एक कम्पनी में वरिष्ठ पद पर स्थापित थे। वे एक औसत शरीर के दुबले पतले सुन्दर युवक थे। बहुत ही वाचाल, वाक पटु, समझदार और दूरदर्शी थे। मैं तो उन पर जी जान से मरती थी। वो थे ही ऐसे, उन पर हर ड्रेस फ़बती थी। मैं तो उनसे अक्सर कहा करती थी कि तुम तो हीरो बन जाओ, बहुत ऊपर तक जाओगे। वो मेरी बात को हंसी में उड़ा देते थे कि सभी पत्नियों को अपने पति "ही-मैन" लगते हैं। हमारी रोज रात को सुहागरात मनती थी। मैं तो बहुत ही जोश से चुदवाती थी। उनका लण्ड भी मस्त मोटा और लम्बा था। वो एक बार तो मस्ती से चोद देते थे पर दूसरी बार में उन्हें थकान सी आ जाती थी। उनका लण्ड चूसने से वो बहुत जल्दी मस्ती में आ जाते थे। मेरी चूत तो तो वो बला की मस्ती से चूस कर मुझे पागल बना देते थे। मेरे पति गाण्ड चोदने का शौक रखते थे, उन्हें मेरी उभरी हुई और फ़ूली हुई खरबूजे सी गाण्ड बड़ी मस्त लगती थी। फिर बस उसे मारे बिना उन्हें चैन नहीं आता था।
उनके कुछ खास गुणों के कारण कम्पनी ने फ़ैसला किया कि उन्हें ट्रेनिंग के लिये छः माह के लिये अमेरिका भेज दिया जाये। फिर उन्हें पदोन्नत करके उन्हें क्षेत्रीय मैनेजर बना दिया जाये।
कम्पनी के खर्चे पर विदेश यात्रा !
ओह !
अविनाश बहुत खुश थे।
उन्होंने अपने पापा को लिखा कि आप रिटायर्ड है सो शहर आ जाओ और कुछ समय के लिये अंजलि के साथ रह लो। पापा ने अवनी के छोटे भैया अखिलेश को भेजने का फ़ैसला किया। उसकी परीक्षायें समाप्त हो चुकी थी और उसके कॉलेज की छुट्टियाँ शुरू हो गई थी।
अखिलेश शहर आकर बहुत प्रसन्न था। फिर यहाँ पापा जो नहीं थे उसे रोकने टोकने के लिये। अखिलेश अविनाश के विपरीत एक पहलवान सा लड़का था। वो अखाड़ची था, वो कुश्तियाँ नहीं लड़ता था पर उसे अपना शरीर को सुन्दर बनाने का शौक था। वह अक्सर अपनी भुजाये अपना शरीर वगैरह आईने में निहारा करता था। अखिलेश ने आते ही अपनी फ़रमाईश रख दी कि उसे सुबह कसरत करने के बाद एक किलो शुद्ध दूध बादाम के साथ चाहिये।
आखिर वो दिन भी आ गया कि अविनाश को भारत से प्रस्थान करना था। अविनाश के जाने के बाद मैं बहुत ही उदास रहने लगी थी। पर समय समय पर अविनाश का फोन आने से मुझे बहुत खुशी होती थी। मन गुदगुदा जाता था। रात को शरीर में सुहानी सी सिरहन होने लगी थी। दस पन्द्रह दिन बीतते-बीतते मुझे बहुत बैचेनी सी होने लगी थी। मुझे चुदाने की ऐसी बुरी लत लग गई थी कि रात होते होते मेरे बदन में बिजलियाँ टूटने लगती थी। फिर मैं तो बिन पानी की मछली की तरह तड़प उठती थी। दूसरी ओर अखिलेश जिसे हम प्यार से अक्कू कहते थे, उसे देख कर मुझे अविनाश की याद आ जाती थी। अब मैं सुबह सुबह चुपके से छत पर जाकर उसे झांक कर निहारने लगी थी। उसका शरीर मुझे सेक्सी नजर आने लगा था। उसकी चड्डी में उसका सिमटा हुआ लण्ड मुझ पर कहर ढाने लगा था। हाय, इतना प्यारा सा लण्ड, चड्डी में कसा हुआ सा, उसकी जांघें, उसकी छाती, और फिर गर्दन पर खिंची हुई मजबूत मांसपेशियाँ। सब कुछ मन को लुभाने वाला था। कामाग्नि को भड़काने वाला था।
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