RE: Desi Chudai Kahani बुझाए ना बुझे ये प्यास
आज से फेले उसने कई बार हस्तमैथुन करने की सोची लेकिन उसके
जहाँ मे ऐसा कोई ख़याल या सपना ही अँहि आता था जिससे वो गरमा
सके और आज एक हल्के से ख़याल ने उसे गरमा दिया था. उसे विश्वास
नही हो रहा था की जिस चीज़ के लिए वो बरसों से तड़प रही थी
आज इस कदर उसे हासिल हो जाएगी. वो राज के ख़याल मे दुबई एक हाथ
से अपनी चूत और एक हाथ से अपनी कूची को मसल रही थी. पर थोड़े
ही देर मे वो अपनी ओषच को झटक फिर हक़ीक़त मे आ अपने काम मे लग
जाती.
शाम को सोनू अपने हॉस्टिल चला गया और एक बार फिर वो घर मे
अकेली रह गयी उसके पति टूर पर से अभी दो दिन आने वाले नही
थे. वो बिस्तर पर लेटकर सोने की कोशिश करती रही लेकिन राज और
उसका लंड उसके ख़याल मे आते रहे. चाह कर भी वो उन्हे अपने ख़याल
से ना निकाल पाई.
आख़िर रात के 10.00 बजे वो अपने आप पर काबू नही रख पाई.
बिस्तर से उठी और डस्टबिन से राज का मसाला हुआ बिज़्नेस कार्ड निकाला
और उसका फोन मिलने लगी.
राज का सेल फोन बाज उठा, लेकिन वो नंबर पहचान नही पाया इसलिए
उसने फोन को वाय्स मैल पर दल दिया. महक ने देखा की मेसेज
रेकॉर्ड हो रहा है तो सोचने लगी की क्या उसे मेसेज छोड़ना चाहिए
फिर उसने कहना शुरू किया.... "है में महक हूँ..... मेने तुम्हे
सिर्फ़ शुक्रिया कहने के लिए फोन किया है......कि तुमने... तुम
जानते हो क्यों.... अगर समय मिले तो मिलने आना...."
"मुझे मेसेज नही छोड़ना चाहिए था.... में तो एक रंडी की जैसे
फोन कर उसे बुला रही हूँ जैसे की मेरी चूत उसके लंड की
दीवानी है.... हां दीवानी ही तो है......" उसने अपने आप से कहा.
थोडी देर बाद राज ने मेसेज सुना और मुस्कुरा पड़ा. तकदीर ने उसके
हाथ एक ऐसी मछली पकडा डी थी जो उसकी और उसके लंड की दीवानी
हो चुकी थी.... लेकिन वो इस मछली को पहले खूब तड़पाना चाहता था
फिर ही उसे अपने तालाब मे क़ैद करना चाहता था.
आने वाले तीन चार दीनो मे उसे महक के कई मेसेज मिले पर उसने
उससे फोन पर भी बात नही की. हर बार वो फोन करती और मेसेज
छोड़ती और राज सिर्फ़ सुन भर लेता. उसका हर मेसेज मे फेले से
कहीं ज़्यादा दीवानगी और उतावलापन झलकता था. वो हर बार उसे
याद दिलाती थी की बुधवार को उसके पति टूर पर से लौट आएँगे और
शायद उन्हे मौका ना मिला मिलने का. वो देखना चाहता था की क्या पति
के होते हुए भी वो उससे चुड़वाने के लिए उतनी ही बेचैन है........
आख़िर बुधवार की शाम 4.00 बजे उसने उसे फोन किया.
"हेलो" फोन की दूसरी और से महक ने जवाब दिया.
"है... म्र्स सहगल में राज रहा हूँ... आपने फोन किया था?"
राज ने कहा.
"हां कई बार फोन कर चुकी हूँ तुम्हे.' महक ने थोड़ा झल्लते
हुए कहा.
"हां मुझे तुम्हारे मेसेज मिले थे... लेकिन क्या था में काम मे
ज़रा ज़्यादा ही बिज़ी था..... कहिए क्या काम था मुझसे?" राज ने
पूछा.
"तुम जानते हो मुझे क्या काम था... लगता है की किसी को तड़पाना
तुम्हारी फ़ितरत है..... मेरे पति जल्दी ही घर आने वाले हैं."
महक ने कहा.
"कितने बजे?" उसने पूछा.
"उनका प्लेन शाम को 7.00 बजे लॅंड करेगा, इसका मतलब 8.00 8.30
बजे तक घर पहुँच जाएँगे." महक ने जवाब दिया.
"फिर तो अक्चा है की वो जब दूसरी बार सहर से बाहर जाए तब हम
मिलें." राज ने कहा.
"हां ये ठीक रहेगा, में तुम्हे फोन करूँगी." उसने कहा, "अब
मुझे जाना है में बाद मे फोन करती हूँ."
शाम को 7.30 बजे महक स्नान करके बाथरूम से निकाली तभी दरवाज़े
पर गहनति बाजी. उसने एक गाउन सा अपने शरीर पर लपेटा और दरवाज़ा
खोलने के लिए गयी. उसने के होल से देखा तो पाया की राज दरवाज़े
पर खड़ा था. दर और उत्साह दोनो से उसका बदन कांप उठा. उसने
दरवाज़ा खोला और इधर उधर झाँकने लगी.
"तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" उसने घबराई हुए स्वर मे कहा.
"तुमने कहा था की तुम मुझसे मिलना चाहती हो इसलिए में यहाँ हूँ."
राज ने कहा और इसके पहले महक कोई विरोध करती वो दरवाज़े को
धकेल अंदर आ गया.
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