RE: Sex Hindi Kahani बलात्कार
पाँचों के सामने, एक तरफ गाओं के पगड़ी धारी ठाकुर और ब्राह्मण बैठे थे, और उनसे कुछ ही दूर गाओं का बनिया और वश्य समाज के चंद और प्रतिनिधि बैठे थे. दूसरी ओर गाओं के डोम-चमार-मल्लाह-नई वग़ैरह बैठे थे. ज़ाहिर है, किसी के सिर पे कोई पगड़ी नहीं थी. सभी ठाकुर-बामान चारपाइयों और मोडो पे बैठे थे जबही नीची जात वाले ज़मीन पे बैठे थे. किसी को कुछ भी अटपटा नहीं लग रहा था.
एक ठाकुर नौजवान, नीलेश सिंग खड़ा हुआ और उसने हाथ के इशारे से सबको खामोश होने को कहा. सभी एकदम से खामोश हो गये. नीलेश ने अपनी जेब से एक काग़ज़ का टुकड़ा निकाला और पढ़ना शुरू किया,”आदरणीय सरपंच महोदय! मान-नीया पॅंच गनो और ग्राम ब्रिज्पुर के निवासीयो………….इतिहास गवाह है परम पिता परमेश्वर की असीम कृपा से, इस गाओं पे हमेशा ईश्वर की अनुकंपा बनी रही है और जब भी कोई मामला पंचायत तक पहुँचा है, पाँच परमेश्वर ने हमेशा न्याय ही किया है. हमें आशा ही नहीं, बिस्वास है, कि आज भी यही होगा. मुक़द्दमा गाओं की ठकुराइन, श्वर्गीय श्री शौर्या सिंग जी की बाहू, आदरणीया रूपाली सिंग की ओर से दायर किया गया है…….उनका संगीन आरोप ये है, इसी गाओं के श्री कालू, श्री सत्तू, श्री मुंगेरी और श्री मोतिया ने कल रात, पक्शिम दिसा के खीतों में, उनकी और इसी गाओं की कुमारी कमला की इज़्ज़त लूटी है….अब आगे की कार्यवाही, आदरणीया सरपंच, पंडित मिश्रा जी को सौंपते हुए उनसे सभी ग्राम वासियों की तरफ से दरख़्वास्त की जाती है कि वो न्याय और सिर्फ़ न्याय करें
पंडित मिश्रा जी ने अपना हुक्का एक ओर सरकाया और अपना गला खंखारते हुए, गंभीर आवाज़ में सामने सिर झुकाए बैठी हुई रूपाली से बोले,” वादी ठकुराइन श्रीमती रूपाली सिंग जी?”…………….रूपाली ने, जो लंबे घूँघट में सफेद सारी-ब्लाउस में थी, घूँघट के अंदर से ही सिर हिलाकर हामी भरी. पंडित जी बोले,”प्रतिवादी, कालू, मोतिया, मुंगेरी और सत्तू?” चारों चमार, जो सामने ज़मीन पे बैठे थे झट से बोले,”जी परमात्मा.”
पंडित मिश्रा: श्रीमती रूपाली जी. विस्तार से बतायें क्या हुआ आपके साथ. घबराएँ नहीं, यहाँ, सब अपने ही लोग हैं.
रूपाली: प्रणाम पंडित जी…..(झिझकते हुए), वो कल, हमने सोचा कि हवेली के आस-पास उगी घास-झाड़-पतवार की…..
पंडित मिश्रा: हां हां…आगे बोलो…घबराव नहीं…….
और धीरे धीरे रूपाली ने सारा किस्सा बयान किया. कि कैसे उसने सोचा था की वो कोई गाओं का मज़दूर हवेली लाएगी और पैसे दे कर हवेली की आस-पास सफाई करवाएगी…..कैसे उसने शाम के ढूंधलके में कमला की चीख सुनी…...कैसे उसने कमला को बचाने की कोशिश की थी और कैसे उल्टा उसी की इज़्ज़त तार-तार कर बैठे थे ये चार वहशी दरिंदे. अपना पूरा दर्द बयान किया रूपाली ने और सिसक सिसक कर रोने लगी.
गाओं की एक-दो बुज़ुर्ग ठकुराइनो ने आगे बढ़कर उसे सीने से लगा लिया और उसके सिर को सहलाने लगी
पंडित मिश्रा ने चारों अभियुक्तों पे एक नज़र डाली और पूछा उन्हें कुछ कहना है?
कालू (गिड़गिदाते हुए): झूट है मालिक, एक दम झूट है. ईस्वर की सौं ऐसा कच नाई भया.
सत्तू, मोतिया और मुंगेरी ने भी उसकी हां में हां भरी.
रूपाली सन्न थी. उसे उम्मीद थी ये कमीने गिड़गिडाएंगे, माफी माँगेंगे मगर ये तो सॉफ मुकर रहे थे.
ठाकुर सरीराम : अभियुक्तों को अपनी सफाई में क्या कहना है?
अभियुक्त:
धीरे धीरे सत्तू और मोतिया ने बारी बारी से अपनी सफाई पेश करनी शुरू की.
कुल मिला कर उन की बातों का सार यह था की, रूपाली की ये बात सच थी की वो चारों खेत में बैठकर शराब पी रहे थे…….ये भी सच था की उन्होने वहीं पर खाना भी खाया था और ये वो चारों खेतों में अक्सर करते थे. उनके मुताबिक वो चारों खा-पी रहे थे, हँसी-थॅटा कर रहे थे और अचानक मुंगेरी को लगा था कि खेतों से किसी औरत के धीमे से हँसने की आवाज़ आई थी. बाकी तीनो ने इसे मुंगेरी का भ्रम या नशे की अधिकता समझा लेकिन कुछ देर बाद जब कालू को भी ऐसा लगा खेत से आआवाज़ें आ रही है तो वे चारों आवाज़ के स्रोत को ढूँदने में लग गये और जल्दी ही उन्होने वो जगह ढूँढ ली जहाँ कुछ गन्ने उखाड़ के थोड़ी जगह समतल की गयी थी…..और फिर……उन चारों की आँखें फटी की फटी रह गयी......
सत्तू: हुज़ूर…हम देखे….हम देखे की ठकुराइन खेत मा नंगा लेटी रहीं…..और उनका ऊपर…उनका ऊपर……ई गूंगा चंदर रहा…….” और उसने अपनी उंगली वहाँ पे खामोशी से बैठे चंदर की ओर घुमा दी.
रूपाली चिल्लाई,”क्य्ाआआआआआआआआआआआआआअ????? कामीनो! झूट बोलते ज़बान ना जल गयी तुम्हारी. हरामजादो……..ये गूंगा बेचारा तो रात भर हवेली में था……गंदे काम करते हो और बेज़ुबान पे इल्ज़ाम लगाते हो कामीनो……..भगवान करे निर्वंश हो जाओ तुम…......कोई आग देने वाला ना रहे तुम्हारे गंदे बदन को…..”
ठाकुर सरी राम ने रूपाली को पंचायत की बे-अदबी ना करने की सलाह दी और वो एक आह भरके चुप बैठ गयी.
कालू और मोतिया ने मज़े ले लेकर बयान किया कि कैसे कैसे चंदर और रूपाली ने उनकी नज़रों से बेख़बर, अलग अलग मुद्राओं में हवस के सागर में गोते लगाए थे. मुंगेरी सिर झुकाए सब कुछ चुप चाप सुन रहा था.
पॅंच छेदि मल्लाह ने अपने तंबाखू से सड़े हुए दाँत निकाले और बोला,”ठकुराइन ने कहा है कि हमरे गाओं की कमला की इज़्ज़त से भी खिलवाड़ किए हैं ये चारों……सरपंच महाराजा की आग्या हो तो कमला को भी बुलवाई लिया जाए.”
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