RE: Sex Hindi Kahani बलात्कार
कालू, मोतिया, सत्तू और मुंगेरी ने प्लास्टिक के गिलास निकाले और उनमें देसी शराब भर दी. फिर मुर्गी के माँस वाली बड़ी थैली को उन्होने बीच में खोल लिया और रोटी के बड़े बड़े टुकड़े तोड़कर, उसमें मुर्गी-तरी लपेटकर खाने-पीने लगे. मोतिया ने एक बड़ा रोटी का टुकड़ा तोड़ा, उसमें मुर्गी का एक छ्होटा टुकड़ा लपेटा, तरी में थोड़ा डुबोया और कमला के मुँह में ठूंस दिया. बेचारी को शायद बहुत भूक लग आई थी और वो खाने लगी. मोतिया ने कमला से पूछा,”सराब पिएगी मौधी?” कमला ने ना में सिर हिलाया और पानी की बोतल की तरफ इशारा किया. मोतिया ने उसे पानी दे दिया.
कालू ने एक रोटी में थोड़ा मुर्गी का माँस रखा और एक पानी का गिलास भरकर, रूपाली के आगे रखता हुआ बोला,”लो ठकुराइन, खाना खाई लीजो.” इतनी इज़्ज़त से उसने ये बोला था कि एक पल को तो रूपाली को लगा मानो अब तक जो कुछ हुआ था वो सिर्फ़ एक भयानक सपना था. बचपन से रूढ़िवादी, कट्टर संस्कारों में पाली बढ़ी थी रूपाली और उसके लिए नीच जाती के लोगों के हाथ से कुछ भी खाना धर्म भ्रष्ट करने वाली बात थी. उसने मुँह फेर लिया. फिर अचानक वो कालू से बोली,”देखो, अब हम तुम्हारे हाथ जोड़ती हैं, बहुत हो गया. अब हमें हवेली पहुँचवा दो.”
शायद मोतिया या सत्तू तो मान भी जाते, मगर, कालू जिसने सिर्फ़ रूपाली की चूत का रस-पान किया था, इतनी आसानी से इस ख़ज़ाने को छोड़ने को तैय्यार नहीं था. बड़े अदब से बोला,”मालकिन, बस एक बार हमका भी आपकी चूत का स्वरग माफिक आनंद दाई दव…..फिर हम आपको इज़्ज़त से हवेली पहुँचाई देब.” बेयबसी में रूपाली मन मसोस कर रह गयी.
कमला सरक कर रूपाली के पास आ गयी थी. उसने रूपाली का हाथ थम लिया और आँसू बरसाते हुए बोली,”मालकिन…हमका माफ़ कर दव….हमरी खातिर….”. रूपाली ने एक पल के लिए उसको सूनी सूनी आँखों से देखा…..और सीने से लगा लिया. शराब पीते पीते मुंगेरी ने जैसे ही यह नज़ारा देखा, कमज़ोर दिल का होने की वज़ह से वो डर गया और धीरे से सत्तू से बोला,”सत्तू, चल अब बहुत हुआ. रोटी खा के, ठकुराइन और ई मौधी का घर पहुँचाई देत हैं…”. सत्तू ने मोतिया को देखा और उसने कंधे उचका के मानो कहा, जैसा तुम लोग ठीक समझो. पर कालू गुस्से से मुंगेरी से बोला,”वाह रे मुंगेरी. खुद साला ठकुराइन की गान्ड मार लिए हो, और हमका सिरफ़ कमला मौधी की चूत बजाई के सन्तोस कर लैब? आराम से बैठो अभी…….”
जान छ्छूटने की जो एक हल्की सी उम्मीद की किरण बची थी, वो भी ख़त्म हो गयी और रूपाली की आँखों से आँसू बह निकले.
कमला ने रूपाली को कहा,”दीदी, कुछ खाई लो..” मगर गम्सम बैठी रूपाली ने मानो कुछ सुना ही नहीं. कमला ने थोड़ा रोटी-मुर्गी उसके मुँह के पास किया तो रूपाली को चमारों के ढाबे के खाने में वोई दुर्गंध आती महसूस हुई जो उसने सत्तू के बदबूदार लंड से आती हुई महसूस की थी. नफ़रत से उसने नज़रें फेर ली.
चारों चमारों ने तसल्ली से दारू ख़तम की, ठंडी पड़ चुकी रोटी-मुर्गी को पूरा सॉफ कर गये और उसके बाद, मुश्क़ुयल से 3-4 कदम दूर, बारी बारी पेशाब करने लगे. झींगुरों की आवाज़ें, चाँदनी रात और एक के बाद एक चार काले, गंदे, भद्दे इंसानो के मूतने की आवाज़ें…….बदबू के मारे रूपाली को उबकाई आने लगी.
रात के कोई 9-10 बज चुके थे…..आसमान में कुछ काले बादल उमड़ आए थे और बीच बीच में हल्की बूँदा बाँदी भी हो रही थी. खेत की मिट्टी से सोंधी सोंधी सुगंध आने लगी और रूपाली को कुछ राहत महसूस हुई. कालू ने उसे कंधो से पकड़ा और बड़ी इज़्ज़त से बोला,”लेट जाओ मालकिन.” रूपाली का दिल किया दुष्ट कलूटे की आँखें नोच ले मगर, चुपचाप लेट गयी. उसकी पीठ और जाँघो पे खेत का कीचड़ लिपट गया. कालू ने उसकी जांघों को अलग किया और अपना काला चेहरा, उसकी गोरी जांघों के बीच धँसा दिया.
जैसे ही कालू की खुरदूरी जीभ ने रूपाली की चूत को च्छुआ, उसके बदन में एक झुरजुरी दौड़ गयी. कालू को रूपाली की चूत से रूपाली की खुश्बू, उसके पेशाब की मेगक और मोतिया के वीर्य की बदबू का मिला जुला एहसास हुआ. कुल मिला कर उसपे तुरंत असर हुआ और उसका मूसल लंड, एकदम तन्ना के तय्यार हो गया और रूपाली के सौन्दर्य को सलामी देने लगा.
कालू का लंड बहुत ही बड़ा था और ये रूपाली को तब एहसास हुआ जब उसने इस मूसल को अपनी चूत में घुसता हुआ महसूस किया.
“नाआअ……उम्म्म्ममम….आआाअघह….म्म्म्मममममम”. रूपाली को लगा कालू का मूसल उसकी नाभि तक घुसा हुआ है……रूपाली दहशत के मारे सिहर उठी जब उसने कालू को बड़ी इज़्ज़त से कहते हुए सुना,”बस बस ठकुराइन, थोड़ा सा और है बस…” रूपाली ने खुद को बिल्कुल ढीला छोड़ दिया और ना चाहते हुए भी, उसकी टांगे बरबस अपने आप उठ गयी और दर्द ना हो, इसलिए उसने कालू की कमर को टाँगों के बीच जाकड़ लिया. अब कालू पूरा अंदर था और हौले हौले अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा रहा था. सत्तू और मुंगेरी एकदम पास आकर, रूपाली के गोरे गोरे चुतड़ों को कालू के काले चूतड़ के नीचे पिसता हुआ देख रहे थे और उनकी आँखें ऐसे फैली हुई थी मानो उत्साहित बच्चे किसी जादूगर का खेल देख रहे हों.
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