RE: Sex Hindi Kahani अनाड़ी पति और ससुर रामलाल
अजय को भी अब बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था। उसने अपने लंड की सुपारी सुनीता की चूत के मुंह पर रखकर एक जोर का धक्का मारा। उसका समूंचा लंड सुनीता की चूत में जा समाया। आनंदानुभूति से किलकारियां भरने वह और जोरों से चिल्ला-चिल्लाकर अपने दोनों चूतड़ उछाल-उछाल कर अजय के मोटे लंड को अपनी चूत में गपकने की चेष्टा करने लगी। अजय को भी लगा कि उसका लंड किसी गर्म सुलगती भट्टी में जा समाया है। गर्म भट्टी में होने के बावजूद उसे आनंद की अनुभूति हो रही थी। वह जोरों के धक्के सुनीता की बुर में लगाए जा रहा था। इधर सुनीता का हाल तो काबिले-बयाँ था। वह तो इतनी गरमा गई थी की मुंह से अनेक गंदे-गंदे शब्दों का प्रयोग कर रही थी। जैसे - आह: फाड़ डालो मेरी चूत को ...भैया, आज मेरी चूत को चोद -चोदकर निहाल कर दो मुझे ... आज अपने लंड के सारे जौहर मेरी चूत के ऊपर ही दिखादो ...जरा जोरों से चोदो न, अगर तुमने मुझे आज तृप्त कर दिया तो मैं अपनी सारी सहेलियों को तुमसे चुदवा डालूंगी ..." लगभग एक घंटे की काम-क्रीडा के बाद अजय ने सुनीता को पूरी तरह से छका दिया और खुद ने भी छक कर उसकी चूत का मज़ा लिया। आधी रात के बाद सुनीता की योनि फिर गरम होने लगी। उसने अजय का लंड पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया। काफी देर तक वह अजय का लंड पकडे उसे चूमती-चाटती रही। अंतत: अजय की आँखें खुल ही गईं। वह बोला, "सुन्नो, अब हम-लोग काफी थक गए हैं, अभी सो जाओ, कल की रात भी तो आएगी ही। बाकी अगर आज कोई कमी रह गई है तो कल पूरी कर लेंगे। अब हम-तुम एक दूसरे के इतने करीब आ गए हैं कि हमारा ये साथ छुटाए नहीं छूटेगा। जाओ आराम कर लो।" सुनीता अब एक ऐसी औरत बन चुकी थी कि उसे तृप्त करना कोई आसान काम नहीं रह गया था। उसकी तो ख्वाहिश इतनी बढ़ चुकी थी कि एक साथ अगर उसपर दस-बारह लोग भी उतर जाएँ तो भी वह थकने वाली न थी।
सुबह नाश्ते की टेबल पर अजय ने उससे पूंछा, "सुन्नो, रात मैंने एक बात नोटिस की कि तूने मेरा आठ इंच का लंड आसानी से झेल लिया और न तो तेरी चूत फटी और न ही उससे खून ही निकला।" "सच-सच बताऊँ ..तो सुनो। जब मैं दीदी के यहाँ गई तो उस समय तक मैं बिलकुल अछूती, अनछुई या ये कहिये बिलकुल कच्ची कली थी। दोपहर को दीदी ने मुझे एक ब्लू-फिल्म दिखाई जिसे देख कर मेरा दिल मेरे काबू से बाहर हो गया और मैं किसी मर्द का लंड अपनी चूत में डलवाने को तड़प उठी। मेरी तड़प देखकर दीदी बोली, "घवरा मत, आज तेरी इच्छा पूरी करवा दूँगी। मैंने चौक कर पूछा कि कौन है जो मेरी इच्छा पूरी कर सकता है तो दीदी ने बताया कि उसके ससुर (रामलाल) हैं। मैंने आश्चर्य से पूछा कि वह क्या कह रहीं हैं, तो ज्ञात हुआ कि वह स्वयं भी उन्हीं से अपनी आग ठंडी करवाती है। दीदी ने बताया कि जीजू तो किसी काम के हैं नहीं। वे तो एकदम नपुंशक हैं। दीदी ने बहुत कोशिश की पर जीजू का लंड खड़ा होने का नाम ही नहीं लेता। अंत में हार-थक कर दीदी को ससुर की बात ही माननी पड़ी और आज उनके पेट में जो बच्चा पल रहा है वो भी उनके ससुर का ही है। जिस रात में ब्लू-फिल्म देख कर बेकाबू हो रही थी उसी रात को दीदी ने मुझे भी उन्ही से चुदवाने की राय दी और मैं मान गई। लेकिन भैया, एक बात तो माननी पड़ेगी। मौसा जी का लंड है बड़े गजब का। पट्ठे ने एक साथ हम दोनों बहिनो की रात में तीन वार ली परन्तु मज़ाल क्या जो जरा भी कमजोर पड़ जाता हमारे आगे। सारी बात सुनकर अजय बोला, "सुन्नो, मुझे दीदी के ससुर पर क्रोध भी आ रहा है और उसे धन्यवाद देने का मन भी कर रहा है।" सुनीता ने पूछा, "ऐसा क्यों भैया?" अजय बोला, "गुस्सा इसलिए कि वह अपनी बेटी समान बहु और उसकी बहिन की लेने से नहीं चूका। और धन्यवाद इसलिए देता हूँ की अगर वह तुझे न चोदता तो तू मुझसे कैसे चुदवाती। अच्छा चल, दीदी के यहाँ चलने का प्रोग्राम बनाते हैं किसी दिन।" "मैंने पूछा, "भैया, अचानक आपको दीदी के यहाँ जाने की क्या सूझी?" अजय ने मुस्कुराकर कहा, "पगली, जब दीदी अपने ससुर से चुदवा सकती है तो मैं क्यों उसे नहीं चोद सकता?" अजय ने सुनीता को समझाया - देख सुनीता, हम-तुम तो जीवन भर एक-दूजे के रहेंगे। पर अगर दीदी की चूत मिल जाए तो क्या बुरी बात है। तू अपनी मर्ज़ी बता, अगर मैं कुछ गलत सोच रहा होऊं तो। और फिर मैंने तुझसे ये वादा भी तो किया है कि मैं अपने सारे दोस्तों से तुझे चुदवाने की खुली छूट दे दूंगा और तू अपनी सहेलियों की मुझे दिलाएगी। इस बात पर दोनों ही सहमत हो चुके थे।
सुनीता और अजय दोनों भाई-बहिन अपनी दीदी अनीता के यहाँ आगये थे। अनीता ने भाई बहिन की खूब खातिरदारी की। सुनीता ने पूछा, "दीदी, कहीं मौसा जी दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। अनीता ने मुस्कुराते हुए पूछा, "क्या बात है सुनीता, मौसा जी को देखे बिना चैन नहीं पड़ रहा? ठीक है, अभी दुकान तक ही गए हैं आते ही होंगे। " सुनीता बोली, "दीदी, जीजू कैसे हैं? उनमे कोई बदलाब आया है क्या?" अनीता जीजू के नाम पर झुझलाकर बोली, "अब उनमे कोई बदलाब नहीं आने वाला। एक दिन तो उन्होंने साफ़-साफ़ कह दिया कि अगर रहना है तो रह मेरे पास वर्ना किसे से भी अपने यौन-सम्बन्ध बना ले, मुझे कोई एतराज नहीं। अब तुझे मैं उनके वारे में क्या खाक बताऊँ?" अनीता ने पूछा - तू बता इतनी जल्दी कैसे वापस आगयी? क्या मौसा जी की याद खीच लाई। सुनीता ने सर हिलाकर हामी भरी और बोली, "दीदी, तुमने वह सीडी दिखाकर मेरे तन-बदन में जो आग लगाईं है न, वो अब बुझाये नहीं बुझ रही है। मन में आया कि चलकर मौसा जी से ही मज़े लिए जाएँ। वैसे दीदी बुरा न मानना, मैंने अजय भैया को भी अपनी दे डाली है। क्या करती, हम-दोनों खिड़की की ओट से बड़े भैया और मझली भाभी की ब्लू-फिल्म देख रहे थे कि अजय भैया ने मेरी चूचियां सहलानी शुरू कर दीं और मैं उनके बढ़ते हुए हाथो को कतई रोक न पाई।
हम लोग कमरे में आ गए और उन्होंने मेरी सलवार उतार कर मेरी चूत में उंगली डालकर अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया। मैंने तो फिर उनके आगे हथियार डाल दिए और अपने को उनके हाल पर छोड़ दिया। फिर क्या था, उन्होंने मेरी ब्रा खोली और खूब जमकर उन्होंने मेरी चूचियों को रगडा, चूंसा और सहलाया। मुझे विरोध न करते देख उनकी हिम्मत इतनी बढ़ गयी कि उन्होंने मेरी सलवार भी उतार फैंकी और खुद भी नंगे होकर मुझ पर चढ़ गए और फिर उन्होंने मेरी चूत पर अपना मोटा लंड टिकाकर मुझे जोरों से चोदना शुरू कर दिया। सारी रात उन्होंने मेरी ली। मेरा भी मन नहीं भर रहा था इसलिए मेरे कहने पर उन्होंने मेरी बुर चार-पांच वार चोदी। फिर मैं उन्हें पटाकर तुमसे मिलने का बहाना बना कर अजय भैया को यहाँ ले आई। सुनीता की जुबानी सारी सच्चाई सुनकर अनीता ने पूछा - कहीं अजय अब मेरी तो नहीं लेगा। देख सुनीता, तूने तो मेरे इतना मना करने के बावजूद भी उससे अपनी चुदवा ली, पर याद रखना मैं ऐसा हरगिज़ नहीं करवा सकती। चाहे वह बुरा माने या भला। बहराल मुझे किसी कीमत पर उसे अपनी नहीं देनी है। सुनीता बोली - दीदी, ये तुम्हारी अपनी मर्ज़ी है। पर एक बात तो है कि मैं मौसा जी से आज रात जरूर चुदवाउंगी।
अनीता ने पूंछा - अच्छा सुनीता एक बात बता, अजय का लिंग भी तेरे मौसा जी के लिंग के बराबर ही है? सुनीता बोली - दीदी, है तो करीबन उतना ही लम्बा और मोटा किन्तु सख्त बहुत है। सच मानना दीदी, तीन दिन तक तो मेरी बुर सूजी रही थी। पूरे एक घंटे तक ली थी भैया ने मेरी। आह: दीदी, सच पूंछो तो अजय भैया का लंड भी न, बड़ा ही मज़े देता है। मेरी बात मानकर अपनी चूत में एक वार उनका लंड ले जाकर तो देखो, अगर न अपने तन की सुध-बुध भूल जाओ तो कहना। देख अजय के लंड की इतनी तारीफें कर-करके मेरे मुंह में पानी मत भरवा। तू कितनी ही कोशिश कर मैं खूंटे पर रख कर फाड़ दूँगी अपनी परन्तु अजय को नहीं दूँगी। सुनीता बोली - जैसा तुम ठीक समझो दीदी, मैं तो रात में अपने बिस्तर से उठ कर मौसा जी के कमरे में चली जाउंगी। आज रात तुम्हारे कमरे में अजय भैया और तुम ही सोओगी सिर्फ।
सुनीता की बात पर अनीता अजय की वारे में बहुत देर तक सोचती रही। वह सोच रही थी की जब सुनीता उसके लंड की इतनी तारीफ़ कर रही है तो उसका स्वाद भी चख लिया जाए। जब मैं पिता समान ससुर से चुदवा सकती हूँ तो वह तो फिर भी मेरा भाई ही है। इसी उधेड़-बुन में कब रात हो गयी। उसे तो तब पता चला जब रामलाल दुकान से समान लेकर भी लौट आया और उसने ढेरों बातें सुनीता से भी कर डालीं। अनीता ने पास आकर रामलाल से कहा - जानू आज मेरा छोटा भाई आया है। उसके सामने अपनी पोल न खुल जाए इसलिए सुनीता मौका पाकर तुम्हारे कमरे में खुद ही आ जायेगी, ज्यादा द्वन्द मत काटना। काटना, खूब लेना मज़े लेकिन सुनीता के साथ। मुझे बिलकुल भी आवाज न देना। रामलाल एक समझदार ससुर की भांति बहू की बात मान गया। खाना खाकर सब लोग अपने-अपने कमरे में चले गए। अजय ने प पूछा - मौसा जी, जीजू कहाँ गए हैं? रामलाल ने बताया की आज उसे अनाज लेकर अनाज मंडी भेजा है। अजय की तो मन की बात हो गयी। उसके दिल में अन्दर ही अन्दर लड्डू फूटने लगे थे। अब वह आसानी से दीदी की चूत ले सकेगा।
क्रमशः....
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