प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
07-04-2017, 12:46 PM,
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मोऽ से छल किये जा … सैंयां बे-ईमान-4


आह … इस चरमोत्कर्ष तो मैंने आज तक कभी अनुभव ही नहीं किया था। शमा कहती थी कि वो तो सम्भोग पूर्व क्रिया में ही 2-3 बार झड़ जाती है। मुझे आज पता लगा कि वो सच कह रही थी। अचानक श्याम उठ बैठा। मुझे आश्चर्य हो रहा था वह इतनी देरी क्यों कर रहा है ? उसने मेरी जांघों को थोड़ा सा फैलाया। इससे मेरी मुनिया के दोनों योनी पट (फांकें) थोड़े से खुल गए और अन्दर से गुलाबी रंग झलकने लगा। पाँव रोटी की तरह फूली रोम विहीन कमसिन मुनिया का रक्तिम चीरा तो 3 इंच से कतई बड़ा नहीं था। पतली पतली दो गहरे लाल रंग की खड़ी रेखाएं। ऊपर गुलाबी रंग की मदनमणि चने के दाने जितनी। पूरी मुनिया काम रस में डूबी हुई ऐसे लग रही थी जैसे कोई शहद की कुप्पी हो और उसमें से शहद टपक रहो हो। अब तो वो रस बह कर मेरी दूसरे छिद्र को भी भिगो रहा था। ओह तुम समझ रही हो ना… मुझे क्षमा कर देना मुझे इनका नाम लेते हुए लाज भी आ रही है और…. और झिझक सी भी हो रही है।

अब श्याम ने अपने दोनों हाथों से मेरी मुनिया की मोटी मोटी संतरे जैसे गुलाबी फांकों को चौड़ा किया और फिर नीचे झुकते हुए अपने होंठ उन पर लगा दिए। मैं समझ गई वो अब मेरी मुनिया को चाटना चाहता है। मेरा दिल उत्तेजना से धक-धक करने लगा। मैंने अपनी जांघें जितनी चौड़ी हो सकती थी, कर दी ताकि उसे मेरी मुनिया को चूसने में कोई दिक्कत ना हो। जैसे ही उसकी जीभ की नोक का स्पर्श मेरी मुनिया से हुआ मेरी तो किलकारी निकलते निकलते बची और उसके साथ ही मेरी मुनिया ने एक बार फिर अमृत की कुछ बूँदें छोड़ दी। काम के आवेग में मेरा रोम रोम पुलकित और काँप रहा था। मैंने उसका सिर अपने दोनों हाथों में पकड़ कर अपनी मुनिया की ओर दबा दिया और उसके सिर के बाल इतनी जोर से खींचे की बालों का गुच्छा मेरे हाथों में ही आ गया। अब मुझे पता कि कुछ आदमी गंजे क्यों हो जाते हैं।

अब उसने अपनी जीभ मेरी मुनिया की दरार पर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक चाटनी शुरू कर दी। कभी वो होले से उन फांकों को अपने दांतों से दबाता और कभी अपनी जीभ को नुकीला कर मदनमणि को चुभलाता। मेरी मुनिया तो कामरस छोड़ छोड़ का बावली हुई जा रही थी। अब उसने मेरी मुनिया को पूरा अपने मुँह में भर लिया और एक जोर की चुस्की लगाई। मेरी मीठी सीत्कार निकल गई। जिस अंग से वो खिलवाड़ कर रहा था और मुँह लगा कर यौवन का रस चूस रहा था किसी भी स्त्री के लिए सबसे अधिक संवेदनशील अंग होता है जिसके प्रति हर स्त्री सदैव सजग रहती है। पर इस छुवन और चूसने के आनंद के आगे किसी स्वर्ग का सुख भी कोई अर्थ नहीं रखता।

मेरी तो सीत्कार पर सीत्कार निकल रही थी। वो मेरी मुनिया को रस भरी कुल्फी की तरह चूसे जा रहा था। अब उसने मेरी मदनमणि के दाने को अपने दांतों के बीच दबा लिया। यह तो किसी भी युवा स्त्री का जादुई बटन होता है। मेरी तो किलकारी ही गूँज उठी पूरे कमरे में। अब उसने अपनी एक अंगुली मेरे रति द्वार के अन्दर डाल दी। पहले एक पोर डाला उसे थोड़ा सा अन्दर किया फिर घुमाया और फिर होले से थोड़ा अन्दर किया। मैं तो चाह रही थी कि वह एक ही झटके में पूरी अंगुली अन्दर डाल कर अन्दर बाहर करे पर मैं भला उसे अपने मुँह से कैसे कह सकती थी। मैं तो मारे उत्तेजना और रोमांच के जैसे मदहोश ही हो रही थी। मुझे तो लग रहा था कि मैं अपना नियंत्रण खो रही हूँ। मैं कभी अपने पैर थोड़े उठाती कभी नीचे करती और कभी उसकी गरदन के दोनों और लपेट लेती। मेरे मुँह से विचित्र सी ध्वनि और आवाजें निकल रही थी आह… ओईईइ …… इस्स्स्सस्स्स …… ओह …… मेरे श्याम… अब बस करो नहीं तो मैं बेहोश हो जाउंगी… आह्ह्हह्ह।”

एक तेज और मीठी सी आग जैसे मेरे अन्दर भड़कने लगी थी। मेरी मुनिया तो लहरा लहरा कर अपना रस बहा रही थी। मेरी मुनिया से निकले रस को पीने के बाद श्याम के लिए अब अपने ऊपर नियंत्रण रखना कठिन ही नहीं असंभव हो गया था। स्त्री अपनी कामेच्छा को रोक पाने में कुछ सीमा तक अवश्य सफल हो जाती है पर पुरुष के लिए ऐसा कर पाना कतई संभव नहीं होता। उसे भी अब लगने लगा होगा कि अगर अब इन दोनों (अरे बाबा चूत और लंड) का मिलन नहीं करवाया गया तो उसका ये कामदंड अति कामवेग से फट जाएगा।

श्याम अभी मेरी मुनिया को और चूसना चाहता था उसका मन अभी भरा नहीं था पर वो भी अपने कामदंड की अकड़न और विद्रोह के आगे विवश था। उसने मेरी मुनिया से अपना मुँह हटा लिया और फिर मेरे ऊपर आते हुए मेरे अधरों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा। आह … एक नमकीन और नारियल पानी जैसे स्वाद और सुगंध से मेरा मुँह भर गया। अब श्याम ठीक मेरे ऊपर था। उसका कामदंड मेरी मुनिया के ऊपर ऐसे लगा था जैसे कोई लोहे की छड़ मुझे चुभ रही हो। मैंने अपनी जांघें थोड़ी सी खोल दी थी। अब मैंने अपने एक हाथ से उसका कामदंड पड़कर अपने रतिद्वार के छिद्र के ठीक ऊपर लगा लिया और दूसरे हाथ से उसकी कमर पकड़ ली ताकि वो कहीं इधर उधर ना हो जाए। श्याम अब इतना भी अनाड़ी नहीं था कि आगे क्या करना है, ना जानता हो।

यह वो सुनहरा पल था जिसकी कल्पना मात्र से ही युवा पुरुष और स्त्री रोमांच से लबालब भर जाते हैं, मैं प्रत्यक्ष अनुभव करने वाली थी। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और अपनी साँसें रोक कर उस पल की प्रतीक्षा करने लगी जब उसका कामदंड मेरी मुनिया के अन्दर समां कर मेरी बरसों की प्यास को अपने अमृत से सींच देगा। उसने धीरे से एक धक्का लगा दिया। आह … जैसे किसी शहद की कटोरी में कोई अपनी अंगुली अन्दर तक डाल दे उसका कामदंड कोई 4-5 इंच तक चला गया। एक मीठी सी गुदगुदी, जलन और कसक भरी चुन्मुनाती मिठास से जैसे मेरी मुनिया तो धन्य ही हो गई। श्याम ने दो धक्के और लगाए तो उनका पूरा का पूरा 7″ लम्बा कामदंड जड़ तक मेरी मुनिया के अन्दर समां गया। मैं तो जैसे स्वर्ग में ही पहुँच गई। मेरी मुनिया ने अन्दर ही संकोचन किया तो उनके कामदंड ने भी ठुमका लगा दिया। मेरी जांघें अपने आप थोड़ी सी भींच गई और एक मीठी सी सीत्कार मेरे मुँह से ना चाहते हुए भी निकल गई।

श्याम ने मेरे अधरों को चूसना शुरू कर दिया। उसका एक हाथ मेरी गरदन के नीचे था और दूसरे हाथ से मेरे उरोज को दबा और सहला रहा था। उसने अब 3-4 धक्के लगातार लगा दिए। मेरा शरीर थोड़ा सा अकड़ा और मुनिया ने एक बार फिर पानी छोड़ दिया। अब तो उसका कामदंड बड़ी सरलता से अन्दर बाहर होने लगा था। मुनिया से फच फच की आवाजें आनी चालू हो गई थी। इस मधुर संगीत को सुनकर तो हम दोनों ही रोमांच के सागर में डूब गए थे। जैसे ही वह मेरे उरोज दबाता और अधरों को चूसता तो मैं भी नीचे से धक्का लगा देती।

अब उसने अपने घुटने थोड़े से मोड़ लिए थे और उकडू सा हो गया था। उसके दोनों पैर मेरे दोनों नितम्बों के साथ लगे थे और उसका भार उसकी कोहनियों और घुटनों पर था। ओह … शायद वह यह सोच रहा था कि इतनी देर तक मैं उसका भार सहन नहीं कर पाउंगी। प्रेम मिलन में अपने साथी का इतना ख्याल तो बस प्रेम कला में निपुण व्यक्ति ही रख सकता है। श्याम तो पूरा प्रेम गुरु था। इसी अवस्था में उसने कोई 7-8 मिनट तक हमारा प्रेम मिलन कहूं या प्रेमयुद्ध चालू रहा। फिर वो धक्के बंद करके मेरे ऊपर लेट सा गया। अब मैंने अपनी जांघें चौड़ी करने का उपक्रम किया तो वो उठा बैठा। उसने मेरे नितम्बों के नीचे दो तकिये लगा दिए और मेरे पैर अपने कन्धों पर रख लिए। सच पूछो तो मेरे लिए तो यह नितान्त नया अनुभव ही था। अब उसने मेरी जाँघों को अपने हाथों में पकड़ लिया और फिर से अपना कामदंड मेरी मुनिया में डाल दिया। धक्के फिर चालू हो गए। उसने अपने एक हाथ से मेरा उरोज पकड़ लिया और उसे दबाने और मसलने लगा। मेरे मुँह से मीठी सीत्कारें निकल रही थी और वो भी गुन… गुर्र्रर … की आवाजें निकाल रहा था।

8-10 मिनट टांगें ऊपर किये किये धक्के खाने से मेरी कमर दुखने सी लगी थी। इस से पहले कि मैं कुछ बोलती उसने धीरे से मेरी जांघें छोड़ कर मेरे पैर नीचे कर दिए। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मेरे मन की बात वो इतनी जल्दी कैसे समझ लेता है। वो अब मेरे ऊपर लेट सा गया। मैंने झट से उसे अपनी बाहों में भर कर जकड़ लिया और उसके होंठों को चूमने लगी। कामदंड अब भी मुनिया के अन्दर समाया था। भला उन दोनों को हमारे ऊपर नीचे होने से क्या लेना देना था।

मेरा मन अन्दर से चाह रहा था कि अब एक बार मैं ऊपर आ जाऊं और श्याम मेरे नीचे हों। ओह … मैं भी कितनी लज्जाहीन और उतावली हो चली थी। मैं इससे पहले कभी इतनी मुखर (लज्जा का त्याग) कभी नहीं हुई थी। मैंने अपनी आँखें खोली तो श्याम मेरी ओर ही देख रहा था जैसे। मैं कुछ बोलना चाह रही थी पर इससे पहले कि मैं कुछ बोलूँ या करूँ, श्याम ने कहा,”मीनू क्या एक बार तुम ऊपर नहीं आओगी ?”

अन्दर से तो मैं भी कब का यही चाह रही थी। मुझे तो मन मांगी मुराद ही मिल गई थी जैसे। मैंने हाँ में अपनी आँखें झपकाई और श्याम को एक बार फिर चूम लिया। अब हमने आपस में गुंथे हुए ही एक पलटी मारी और अब श्याम नीचे था और मैं उसके ऊपर। मैंने अपने घुटने मोड़ कर उसकी कमर के दोनों ओर कर दिए थे। मेरे दोनों हाथ उसके छाती पर लगे थे। अब मैंने अपनी मुनिया की ओर देखा। हाय राम…… उसका “वो” पूरा का पूरा मेरी मुनिया में धंसा हुआ था। मेरी मुनिया का मुँह तो ऐसे खुल गया था जैसे किसी बिल्ली ने एक मोटा सा चूहा अपने छोटे से मुँह में दबा रखा हो। उसकी फांकें तो फ़ैल कर बिल्कुल लाल और पतली सी हो गई थी। मैंने अपने शरीर को धनुष की तरह पीछे की ओर मोड़ा तो मुझे अपनी मुनिया के कसाव का अनुमान हुआ। उनका “वो” तो बस किसी खूंटे की तरह अन्दर मेरी योनि की गीली और नर्म दीवारों के बीच फंसा था। अब मैं फिर सीधी हो गई और थोड़ी सी ऊपर होकर फिर नीचे बैठ गई। उसके कामदंड ने फिर ठुमका लगाया। मेरी मुनिया भला क्यों पीछे रहती उसने मुझे 4-5 धक्के लगाने को विवश कर ही दिया।

मैंने अपने सिर के बालों को एक झटका दिया। ऐसा करने से मेरे खुले बाल मेरे चहरे पर आ गए। श्याम ने अपने एक हाथ से मेरे नितम्ब सहलाने चालू कर दिए। जब उसकी अंगुलियाँ मेरे नितम्बों की खाई में सरकने लगी तो मुझे गुदगुदी सी होने लगी। किसी पराये पुरुष का यह पहला स्पर्श था मेरे नितम्बों की खाई पर। मनीष ने तो कभी ठीक से इन पर हाथ भी नहीं फिराया था भला उस अनाड़ी को इस रहस्यमयी खाई और स्वर्ग के दूसरे द्वार के बारे में क्या पता। यह तो कोई कोई प्रेम गुरु ही जान और समझ सकता है। मैंने एक हाथ से अपने सिर के बालों को झटका दिया और थोड़ी सी नीचे होकर श्याम के ऊपर लेट सी गई। मेरे बालों ने उसका मुँह ढक लिया। अब उसने मेरे नितम्बों को छोड़ दिया और मेरी कमर पकड़ ली। मैंने अपनी मुनिया को ऊपर नीचे रगड़ना चालू कर दिया। उसके होंठ तो उसके कामदंड के चारों और उगे छोए छोटे बालों पर जैसे पिस ही रहे थे।

आह… यह तो जैसे किसी अनुभूत नुस्खे की तरह था। मेरी मदनमणि उसके कामदंड से रगड़ खाने लगी। ओह … मैं तो जैसे प्रेम सुख के उस शिखर पर पहुँच गई जिसे चरमोत्कर्ष कहा जाता है। मैंने कोई 3-4 बार ही अपनी योनि का घर्षण किया होगा कि मैं एक बार फिर झड़ गई और फिर शांत होकर श्याम के ऊपर ही पसर गई। श्याम कभी मेरी पीठ सहलाता कभी मेरे नितम्ब और कभी मेरे सिर के बालों पर हाथ फिराता। इस आनंद के स्थान पर अगर मुझे कोई स्वर्ग का लालच भी दे तो मैं कभी ना जाऊं।

अचानक दीवाल घड़ी ने “कुहू … कुहू …” की आवाज निकली। हम दोनों ने चौंक कर घड़ी की ओर देखा। रात का 1:00 बज गया था। ओह हमारी इस रास लीला में एक घंटा कब बीत गया था हमें तो पता ही नहीं चला। मधुर मिलन के इन क्षणों में समय का किसे ध्यान और परवाह होती है।

मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि श्याम तो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा है। यह तो सच में कामदेव ही है। उसने मुझे अपनी बाहों में जकड़ रखा था। इस से पहले की मैं कुछ समझूँ उसने एक पलटी सी खाई और अब वो मेरे ऊपर आ गया। उसने धक्के लगाने चालू कर दिए। मैं तो बस यही चाह रही थी कि यह पल कभी समाप्त ही ना हों। हम दोनों एक दूसरे में समाये सारी रात इसी तरह किलोल करते रहें। मेरी मुनिया तो रस बहा बहा कर बावली ही हो गई थी। मुझे तो गिनती ही नहीं रही कि मैं आज कितनी बार झड़ी हूँ। मैंने अपनी मुनिया की फांकों को टटोल कर देखा था वो तो फूल कर या सूज कर मोटे पकोड़े जैसी हो चली थी।

“मीनू कैसा लग रहा है ?” श्याम ने पूछा।

“ओह मेरे कामदेव अब कुछ मत पूछो बस मुझे इसी तरह प्रेम किये जाओ … उम्ह …” और मैंने उसके होंठों को फिर चूम लिया।

“तुम थक तो नहीं गई ?”

“नहीं श्याम तुम मेरी चिंता मत करो। आह … इस प्रेम विरहन को आज तुमने जो सुख दिया है उसके आगे यह मीठी थकान और जलन भला क्या मायने रखती है !”

“ओह … मेरी प्रियतमा मैं कितना भाग्यशाली हूँ कि मेरी भी आज बरसों की चाहत और प्यास बुझी है … आह मेरी मीनू। मैं किस तरह तुम्हारा धन्यवाद करूँ मेरे पास तो शब्द ही नहीं हैं !”

उसके धक्के तेज होने लगे थे। जब उसका “वो” अन्दर जाता तो मेरी मुनिया संकोचन करती और वो जोर से ठुमका लगता। उन्हें तो अब जैसे हम दोनों की किसी स्वीकृति की कोई आवश्यकता ही नहीं रह गई थी। मैं जब उसे चूमती या मेरी मुनिया संकोचन करती तो उसका उत्साह दुगना हो जाता और वो फिर और जोर से धक्के लगाने लगता। मुझे लगने लगा था कि श्याम अपने आप को अब नहीं रोक पायेगा। मेरी मुनिया भी तो यही चाह रही थी। अब भला श्याम का “वो” अपनी मुनिया के मन की बात कैसे नहीं पहचानता। श्याम ने एक बार मुझे अपनी बाहों में फिर से जकड़ा और 4-5 धक्के एक सांस में ही लगा दिए। उसकी साँसें तेज हो रही थी और आँखें अनोखे रोमांच में डूबी थी। मेरी मुनिया तो पीहू पीहू बोल ही रही थी। मेरा शरीर एक बार फिर थोड़ा सा अकड़ा और उसने कामरस छोड़ दिया उसके साथ ही पिछले 40 मिनट से उबलता हुवा लावा फूट पड़ा और मोम की तरह पिंघल गया। अन्दर प्रेमरस की पिचकारियाँ निकल रही थी और मैं एक अनूठे आनंद में डूबती चली गई। सच कहूँ तो 4 साल बाद आज मुझे उस चरमोत्कर्ष का अनुभव हुआ था।

कुछ देर हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे। श्याम मेरे ऊपर से हटकर मेरी बगल में ही एक करवट लेकर लेट गया। मैं चित्त लेटी थी। मेरी जांघें खुली थी और मुनिया के मुँह से मेरा कामरस और श्याम के वीर्य का मिश्रण अब बाहर आने लगा था। उसका मुँह तो खुल कर ऐसे हो गया था जैसे किसी मरी हुई चिड़िया ने अपनी चोंच खोल दी हो। उसके पपोटे सूज कर मोटे मोटे हो गए थे और आस पास की जगह बिलकुल लाल हो गई थी। श्याम एकटक उसकी ओर देखे ही जा रहा था। अचानक मेरी निगाह उसे मिली तो मैं अपनी अवस्था देख कर शरमा गई और फिर मैंने लाज के मरे अपने हाथ से मुनिया को ढक लिया। श्याम मंद मंद मुस्कुराने लगा। कामराज और वीर्य निकल कर पलंग पर बिछी चादर को भिगो रहा था और साथ ही मेरी जाँघों और गुदा द्वार तक फ़ैल रहा था। मुझे गुदगुदी सी हो रही थी। मेरे पैरों में तो इस घमासान के बाद जैसे इतनी शक्ति ही नहीं बची थी कि उठकर अपने कपड़े पहन सकूं। विवशता में मैंने श्याम की ओर देखा।

श्याम झट से उठ खड़ा हुआ और उसने मुझे गोद में उठा लिया। ओह… पता नहीं इन छोटी छोटी बातों को श्याम कैसे समझ जाता है। मैंने अपनी बाहें उसके गले में डाल दी और अपनी आँखें फिर बंद कर ली। वो मुझे गोद में उठाये बाथरूम में ले आया और होले से नीचे होते फर्श पर खड़ा कर दिया। मेरी जांघें उस तरल द्रव्य से पिचपिचा सी गई थी। मुझे जोर से सु-सु भी आ रहा था और मुझे अपने गुप्तांगों की सफाई भी करनी थी। मैंने श्याम से बाहर जाने को कहना चाहती थी। पर इस बार पता नहीं श्याम मेरे मन की बात क्यों नहीं समझ रहा था। वह इतना भोला तो नहीं लगता कि उसे बाहर जाने को कहना पड़े। वो तो एकटक मेरी मुनिया को ही देखे जा रहा था।

अंतत: मुझे कहना ही पड़ा,”श्याम प्लीज तुम बाहर जाओ मुझे … मुझे … ?”

“ओह मेरी मैना अब इतना भी क्या शर्माना भला ?”

“हटो गंदे कहीं के … … ओह … तुम अब बाहर जाओ … देखो तुमने मेरी क्या हालत कर दी है ?” मैंने उसका एक हाथ पकड़ कर बाहर की ओर धकेलना चाहा।

“मीनू एक और अनूठे आनंद का अनुभव करना चाहोगी ?”

“अनूठा आनंद ?” मैंने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।
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RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ - by sexstories - 07-04-2017, 12:46 PM

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