प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
07-04-2017, 12:42 PM,
#81
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
वो तो उत्तेजना में कांपने ही लगी। उसने अपने पैर ऊपर उठा लिए और मेरी गर्दन के चारों ओर लपेट लिए। उसने एक किलकारी और मारी और वो एक बार फिर झड़ गई। उसकी बुर ने कामरज की 2-3 चम्मच मुझे अर्पित कर दी। उसके मदन जल से मेरा मुंह भर गया। मैं एक हाथ से उसके उरोज मसलता जा रहा था और एक हाथ उसके ऊपर उठे नितम्बों पर फेरता जा रहा था। अचानक मेरी एक अंगुली उसकी गांड के छेद से टकराई। दरदरी (कंघी के दांतों जैसी) सिलवटें महसूस करके मैं तो रोमांच से भर गया। ये सोच कर तो मेरा पप्पू निहाल ही हो गया कि ये गांड तो बिल्कुल कोरी झकास है। मैंने जैसे ही अपनी अंगुली उसकी गांड के छेद पर फिराई वो एक बार फिर झड़ गई। मैं तो चटखारे लेकर उसके काम रज़ को पीता जा रहा था।

कुछ देर बाद वो निढाल सी हो गई। अब मैंने उसकी बुर चूसना बंद कर दिया। और थोड़ा सा ऊपर आया और उसके होंठों को चूम लिया। वो अचनाक खड़ी हुई और झुक कर मेरे पप्पू से खेलने लगी। मेरे शेर ने एक झटका लगाया तो उसके हाथों से फिसल गया। अब तो उसने उसे ऐसे दबोचा जैसे बिल्ली किसी कबूतर या मुर्गे की गर्दन पकड़ लेती है। मैं अधलेटा सा था। उसने अपने दोनों पैर मोड़कर मेरे सिर के दोनों ओर कर दिए। अब मैं नीचे चित लेटा था और वो लगभग मेरे ऊपर 69 की पोजिसन में हो गई। उसने पहले मेरे सुपाडे को जीभ से चाटा और फिर एक चटखारा सा लिया और फिर गप्प से आधा लंड अपने मुंह में ले लिया।

मैंने भी उसकी गांड के सुनहरे छेद पर अपनी जीभ लगा दी। उसकी खुरदरी सिलवटें तो कमाल की थी। मैंने ऊपर से नीचे तक 3-4 बार अपनी जीभ फेरी। उसकी गांड का छेद अब कभी खुल रहा था कभी बंद हो रहा था। जब गांड का छेद खुलता तो वो अन्दर से गुलाबी नजर आता। मेरा अनुमान है इस गांड की चुदाई तो क्या लगता है साली ने कभी अंगुली भी नहीं डाली होगी। वो मस्ती में आकर मेरा पूरा लंड अपने मुंह में लेने की कोशिश करने लगी तो उसे खांसी आ गई। मैंने झट से उसकी चूत को अपने मुंह में भर लिया और उसकी जाँघों को कस कर पकड़ लिया। मुझे डर था कहीं खांसी के चक्कर में मेरा लंड चूसना न बंद कर दे। एक दो मिनट के बाद फिर उसने पहले मेरे अण्डों पर जीभ फिराई उन्हें चूमा और फिर मेरा लंड चूसना चालु कर दिया अबकी बार उसने कोई हड़बड़ी नहीं की प्यार से धीरे धीरे कभी जीभ फिराती कभी मुंह में लेती कभी थोड़ा सा दांतों से दबाती। पप्पू महाराज तो अपना आप ही खोने को तैयार हो गए। मैंने मिक्की और निशा के मुंह में अपना वीर्य नहीं छोड़ा था। मैं चाहता था कि उसे चोदने से पहले एक बार उसे अपना अमृत जरूर पिलाना है। तभी तो मेरी और मिक्की की तड़फती आत्मा को संतोष मिलेगा।

अब मैंने एक अंगुली धीरे से उसकी बुर में डालनी शुरू कर दी। छेद तो कमाल का टाइट था। मुझे तो लगा साले डॉक्टर ने सुहागरात ही नहीं मनाई है ? इतनी टाइट बुर तो कुंवारी अनचुदी लड़कियों की होती है। मैं तो रोमांच से भर गया। मुझे लगने लगा था कि मेरा पप्पू हथियार डालने वाला है तो मैंने उससे कहा- जानू मैं तो जाने वाला हूँ।

उसने मेरा लंड हाथ में पकड़ लिया और बोली “चिंता मत करो इस अमृत की एक भी बूँद इधर उधर नहीं जा सकती।”

और उसके साथ ही उसने फिर मेरा लंड गप्प से अन्दर ले लिया जैसे एक बिल्ली चूहे को गप्प से अन्दर ले लेती है। और उसे फिर चूसने लगी। मैंने भी उसकी बुर को पूरा मुंह में भर लिया और चूसने लगा। और फिर एक … दो … तीन। चार ना जाने कितनी पिचकारियाँ मेरे पप्पू ने छोड़ी। इस बेचारे का क्या दोष पिछले 8-10 दिन का भरा बैठा था (मधु के जयपुर जाने वाली रात को सिर्फ एक बार उसकी गांड मारी थी। उसकी चुत को तो लाल बाई ने पकड़ रखा था) वो गटागट मेरा सारा कामरस पी गई और फिर जीभ चाटती हुई एक ओर लुढ़क गई।

अब वो पेट के बल लेटी थी। उसने अपना मुंह तकिये पर लगा रखा था। उसके नितम्ब तो कमाल के थे। मोटे मोटे दो खरबूजे हों जैसे। रंग एकदम गुलाबी। इतने नाजुक कि अगर गलती से नाखून भी लग गया तो खून निकल आएगा। दोनों गोलाइयों के नीचे चाँद (आर्क) बना था। संगमरमर जैसी चिकनी कसी हुई जांघें। मैंने धीरे धीरे उसके नितम्बों और जांघों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। वो सीत्कार करने लगी। अचानक वो उठी और मेरी गोद में आकर बैठ गई और अपनी दोनों बाहें मेरे गले में डाल दी और मेरी नाक पर एक चुम्बन ले लिया और हंसने लगी। “एक बात बोलूँ?”

“हूँ ” मैंने भी उसके होंठों पर एक चुम्बन लेते हुए हामी भरी।

“आप का उदास चेहरा बिलकुल अच्छा नहीं लगता। आप ऐसे ही खुश रहा करो !” और उसने एक बार मुझे फिर चूम लिया। मैं जानता हूँ मेरी जान अब तुम चुदवाने को तैयार हो पर मैं तो उसकी चूत नहीं पहले गांड मारना चाहता था। मुझे अभी थोड़ी सी एक्टिंग और करनी थी।

मैंने कहा, “मिक्की भी ऐसा ही बोलती थी !”

“ओह … अच्छा …? एक बात बताओ … क्या आपने मिक्की के साथ …?” वो बोलते बोलते रुक गई।

“नहीं हमारा प्रेम बिलकुल सच्चा था” मैं साफ़ झूठ बोल गया।

“ओह … क्या आपकी कोई फंतासी थी मिक्की के साथ ?”

“उन … हाँ …”

“क्या बताओ … ना … प्लीज”

“नहीं शायद तुम्हें अच्छा नहीं लगे …?”

“ओह। मेरे प्रेम दीवाने तुम्हारे लिए मैं सब कुछ करने कराने को तैयार हूँ आज की रात तुम हुक्म तो करो मेरे शहजादे !” उसने तड़ से एक चुम्बन मेरे होंठों पर ले लिया और कस कर मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। मैं सोच रहा था कि कैसे कहूँ कि मैं तो सबसे पहले तुम्हारी गांड मारना चाहता हूँ। फिर मैंने कहा “क्या तुम्हारी भी कोई फंतासी है ?”

ईशशशस … वो इतना जोर से शरमाई कि मैं तो निहाल ही हो गया। “मेरी … ओह … पता नहीं तुम क्या समझोगे …?”

“प्लीज बताओ ना ?” मैंने पूछा

“मैं तो बस यही चाहती हूँ कि बस आज की रात मुझे प्यार ही करते रहो। ऊपर से नीचे से आगे से पीछे से हर जगह। कोई अंग मत छोडो। मैं तो जन्म जन्मान्तर की प्यासी हूँ तुम्हारे प्रेम के लिए मेरे प्रेम देव, मेरे प्रथम पुरुष !” वो मुझे चूमती जा रही थी।

हे भगवान् ये क्या लीला है तेरी। ये तो मिक्की की ही आवाज और भाषा है।

“ओह प्रेम अब मुझे और अपने आप को मत तड़फाओ जो मन की अधूरी इच्छा है पूरी कर लो” और उसके साथ ही वो अपने घुटनों और कोहनियों बे बल हो गई। जैसे उसने मेरे मन की बात जान ली हो। और मैं सब कुछ भूल कर उसके नितम्बों की ओर देखने लगा। दो पहाड़ियो के बीच एक मोटी सी खाई हो जैसे और गुलाबी रंग की छोटी सी गुफा जिसका द्वार बंद था। मैंने फिर अपनी जीभ उसपर लगा दी और उसे अपने थूक से गीला कर दिया।

“वैसलीन लगाना मत भूलना … मैंने अब तक किसी को …”

“ओह थैंक्यू मेरी मैना ! तुम चिंता मत करो।”

“ओह मुझे मिक्की बोलो ना ?”

मैंने उसकी गांड के छेद पर वैसलीन लगाईं और एक अंगुली का पोर अन्दर डाल दिया। छेद बहुत टाइट था। वो थोड़ा सा चिहुंकी “ओह गुदगुदी हो रही है … धीरे !”

मैंने उसकी कोई परवाह नहीं की और धीरे धीरे अपनी अंगुली अन्दर बाहर करने लगा। फिर थोड़ी सी क्रीम लेकर अन्दर तक लगा दी। इस बार उसने एक हलकी सी किलकारी मारी “ऊईई … माँ … ओह प्रेम जल्दी करो ना …!”

अब मैंने जल्दी से अपने लंड पर भी वैसलीन लगाईं और ……………

मेरा पप्पू जैसे छलाँग ही लगाने वाला था। ऐसी मस्त गांड देखकर तो वो काबू में कहाँ रहता है। मैंने धीरे से अपना सुपाड़ा उसकी गांड के खुलते बंद होते छेद पर टिका दिया। उसने एक जोर का सांस लिया और मुझे लगा कि उसने भी बाहर की ओर थोड़ा सा जोर लगाया है। मैंने उसकी कमर कस कर पकड़ ली और अपने पप्पू को आगे बढ़ाया। छेद बहुत टाइट था पर मेरा सुपाड़ा चूँकि आगे से थोड़ा पतला है धीरे धीरे एक इंच तक बिना दर्द के चला गया। अब मैंने दबाव लगाना शुरू कर दिया। ऐसी नाजुक गांड मारने में जोर का धक्का नहीं मारना चाहिए नहीं तो गांड फटने का डर रहता है।

जैसे ही उसकी गांड का छल्ला चौड़ा हुआ उसके मुंह से एक हल्की सी चीख निकल ही गई। “ओईई माँ आ अ …” पर उसने अपना मुंह जोर से बंद कर ऐसी अवस्था में कोई और होता तो एक धक्का जोर से लगाता और लंड महाराज जड़ तक अन्दर चले जाते पर मैं तो मिक्की से प्यार करता था और ये मोनिशा भी मेरे लिए इस मिक्की ही बनी थी। मैं उसे ज्यादा कष्ट कैसे दे सकता था मैं थोड़ी देर ऐसे ही रहा। 3 इंच तक लंड गांड में चला गया था।

मिक्की दर्द के मारे काँप रही थी पर दर्द को जैसे तैसे बर्दाश्त कर रही थी। कोई 2-3 मिनट के बाद वो कुछ नोर्मल हुई और अपना मुंह मेरी ओर मोड़ कर कहने लगी। “अब रुको मत मुझे तुम्हारी खुशी के लिए सारा दर्द मंजूर है मेरे प्रियतम !”

हे भगवान् ये तो मिक्की की ही आवाज है इसमें कोई संदेह नहीं। ये कैसे संभव है। कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा। मैंने अपना अंगूठा दांतों के बीच दबाया। मेरा अंगूठा थोड़ा सा छिल सा गया और दर्द की एक लहर सी दौड़ गई। अंगूठे से थोड़ा खून भी निकल आया। ये सपना तो नहीं हो सकता। पता नहीं क्या चक्कर है !

“ओह … प्रेम अब क्या सोच रहे हो क्यों इन खूबसूरत पलों को जाया (बर्बाद) कर रहे हो। ओह मैं कब की प्यासी हूँ प्लीज कुछ मत सोचो बस मुझे प्रेम करो मेरे प्रेम दीवाने !”
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RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ - by sexstories - 07-04-2017, 12:42 PM

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